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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
हस्योद्घाटन का स्नेह संबंध होगा । इसीसे उसने वह हार उसे जा दिया होगा ।
महाबल - "सोमा! वह हार लेकर कनकवती ने क्या किया? इस वक्त वह हार कहाँ पर है?"
सोमा - "हार मिलने से अतिहर्ष प्राप्त कर कनकवती ने मुझसे कहा - "भद्रे! देख, यह कैसा अपूर्व आश्चर्य है । जहां पर पुरुष का संचार होना कठिन है ऐसे स्थान में रहनेवाली राजकुमारी मलयासुंदरी का यह हार अकस्मात मेरी गोद में आ पड़ा है। तूं चारों तरफ देख; इस समय कोई मनुष्य महल में छिपकर, यह सब कुछ देख तो नहीं रहा है? मैंने और मेरी स्वामिनी कनकवती ने भी महल में सर्वत्र देखा परंतु हमें कोई भी मनुष्य देखने में न आया।
कुछ देर मौन रहकर मेरी स्वामिनी ने मुझसे कहा सोमा! तूं इस हार की प्राप्ति का किसी को भी जिक्र न करना । मैंने वह बात शिरोधार्य की । स्वामिनी ने उस हार को कहीं गुप्त स्थान पर छिपा दिया । इसके बाद हम दोनों जनीं महाराज वीरधवल के पास गयी । मेरी स्वामिनी ने हाथ जोड़कर महाराज से प्रार्थना की - "महाराज! मैं आपसे एकांत में कुछ आपके हित और लाभ की बात कहना चाहती हूं।' महाराज वीरधवल यह सुन "बहुत अच्छा" कहकर उठ खड़े हुए और मेरी स्वामिनी के साथ एक जुदे कमरे में चले गये । वहां पर मेरी स्वामिनी ने महाराज से कहा स्वामिन्! पृथ्वीस्थानपुर के भूपति सूरपाल राजा का महा पराक्रमी सुंदर और तेजस्वी महाबल नामक एक कुमार है । उसका एक मनुष्य गुप्तरीति से बहुत दफे आपकी अतिप्यारी राजकुमारी मलयासुंदरी के पास आता है । राज्य का भूषण रूपी और दिव्य प्रभाववाला वह लक्ष्मीपूंज हार आज ही कुमारी ने महाबल कुमार के लिए उस आदमी के हाथ भेज दिया है और साथ ही उसे यह भी कहलाया है कि "स्वयंवर के बहाने से बहुत सी सेना लेकर तुम इस अवसर पर जरूर आना । अन्य राजकुमार भी इस समय अवश्य आयेंगे । आपके संकेत करने पर वे आपको सहाय भी करेंगे। इसलिए इस समय राज्य को ग्रहण करने का यह अमूल्य अवसर है। मेरा विवाह भी आपके ही साथ होगा ।
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