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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
हस्योद्घाटन आगंतुक युवती - हाँ, इस राजा के एक मलयासुंदरी नाम की उमर लायक कन्या थी, उसके लिए राजा ने स्वयंवर शुरू किया हुआ है । देश देशांतर से राजकुमारों को बुलाने के वास्ते चारों तरफ राजदूत भेजे हुए हैं । आज से तीसरे दिन याने चतुर्दशी के रोज स्वयंवर का मुहूर्त था और राजा ने स्वयंवर की तमाम सामग्री तैयार कर ली थी परंतु उस कुमारी की सौतेली माता कनकवती ने उस रंग में भंग कर डाला । मैं उस कनकवती रानी की सोभा नामकी मुख्य दासी हूँ। उसकी पूर्ण विश्वास पात्र होने से उसका कोई सा भी कार्य मुझसे छिपा नहीं है। कनकवती मलयासुंदरी पर निरंतर द्वेष रखती थी और उसके छिद्र देखती रहती थी।
मलयासुंदरी - सोमा! कनकवती किसलिए राजकुमारी पर द्वेष रखती थी?
महाबल - इसमें क्या पूछना था? सौकन को स्वाभाविक ही अपनी सौकन की संतान पर द्वेष होता है ।
सोमा - कुछ भी होगा, मुझे इस बात का पता नहीं । हाँ इतना मैं कह सकती हूँ कि राजकुमारी का आज तक कुछ अपराध नहीं देखा गया । उस निर्दोष बालिका के पीछे पड़ने पर भी कनकवती कुमारी का कुछ भी अहित न कर सकी । कल रात का जिकर है मैं और मेरी स्वामिनी सिर्फ हम दोनों ही महल में बैठी थीं । अकस्मात् रानी कनकवती की गोद में कुमारी का लक्ष्मीपुंज हार आ पड़ा चित्त को आनंद देने वाला लक्ष्मीपुंज हार का नाम सुनते ही नवचेतन्यसा प्राप्तकर कुमार सहसा बोल उठा - सोमा! वह हार उसकी गोद में कहाँ से आ पड़ा था?
सोमा - वह हार आकाश मार्ग से पड़ा था । उसे देख हम दोनों ने नीचे ऊंचे चारों तरफ देखा परंतु उस हार को फेंकने वाले का कुछ भी पता न लगा । कुमार ने मन ही मन सोचा - "उसी व्यंतर देवी ने मेरे पास से ले जाकर लक्ष्मीपुंज हार वहांडाला होगा, जिसने उसके साथ मेरी अन्य वस्तुयें भी चुरायी हुई हैं । मालूम होता है उस व्यंतर देवी का कनकवती के साथ कुछ जन्मांतर
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