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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना आप जाने के लिए इतने उत्सुक हैं और मेरे साथ विवाह करने का मुझे वचन देते हैं तो मैं इतने से ही संतोष मानकर प्रभु से प्रार्थना करती हूँ कि आपका मार्ग निष्कंटक हो । आप शांति पूर्वक अपने निर्णय किये स्थान पर पहुंचे' इतना शब्द बोलते ही कुमारी की आंखों में अश्रु भर आये । हृदय गद् गद् हो उठा । उससे आगे कुछ न बोला गया । वह अश्रुपूर्ण नेत्रों से टकटकी लगाकर कुमार की तरफ देखती रही।
कुमार धैर्य धारणकर उसके मस्तकर पर चुंबन द्वारा अंतिम पवित्र प्रेमभाव का परिचय देकर किसी को मालूम न हो इस तरह जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते किले से बाहर हो गया और प्रयाण के लिए तैयार होकर उसकी राह देखते हुए अपने साथियों से जा मिला । रास्ते में वह राजकुमारी को विवाहित करने के अनेक उपायों के विचारों में लगा रहा । पृथ्वीस्थानपुर में पहुंचने तक राजकुमारी का चित्रपट उसके हृदय से क्षणभर के लिए भी दूर न हुआ । नगर में आकर विनयपूर्वक माता पिता को नमस्कारकर मलयासुंदरी से मिला हुआ लक्ष्मीपुंज हार उसने अपने पिता को समर्पण किया। पिता ने जब उस महाकीमती हार प्राप्ति का कारण पूछा तब शरम से समयोचित असत्य उत्तर देते हुए कुमार बोला - "चंद्रावती के राजपुत्र मलयकेतु ने मित्रता के बतौर निशानी के लिए मुझे यह हार दिया है । यह सुनकर महाराज सूरपाल ने कुमार की प्रशंसा करते हुए कहा पुत्र! तेरा बड़ा अद्भुत कलाकौशल्य है कि जिससे थोड़े ही समय की मित्रता से उस राजकुमार ने तुझे ऐसा महाकीमती हार भेट कर दिया । राजा ने उस लक्ष्मीपुंज हार को कुमार की माता पद्मावती रानी को सौंप दिया । माता ने भी पुत्र की प्रशंसाकर वह दिव्य हार अपने गले में पहन लिया। ____ अब राजकुमार रात-दिन मलयासुंदरी के समक्ष की हुई प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के विचारों में निमग्न रहता है । वह सोचता है कि कुमारी के समक्ष की हुई दुष्कर प्रतिज्ञा को मैं किस तरह पूर्ण करूंगा । यह हृदय की बात माता - पिता के समक्ष किस तरह कही जाय! अब वह सदैव इसी उधेड़ बुन में लगा रहता है।
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