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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना में उसके मुख से मंद स्वर से "मुझे महाबलकुमार का शरण हो" यह शब्द निकल पड़े। अपने नाम को सुनकर कुमार विस्मय प्राप्त कर सावधान हो उस युवती की तरफ देखने लगा । रात्रि में गौर से उसके चेहरे को देखने से कुमार को मालूम हो गया कि चंद्रावती के राजमहल में देखी हुई वह मलयासुंदरी की आकृति है । यह देख कुमार के आश्चर्य का पार न रहा । परोपकार की भावना के उपरांत हृदयगत प्रेम की प्रेरणा से अब वह अधिक प्रयत्न से उसे होश में लाने का प्रयत्न करने लगा । अब वह कुछ विशेष होश में आकर महाबल द्वारा याद कराये हुए इस श्लोक को बोलने लगी - ___विधत्ते यद्विधिस्तस्यान स्यात् हृदय चिंतितं' इत्यादि वाक्य सुनते ही कुमार को पूर्णनिश्चय हो गया कि वह राजकुमारी मलयासुंदरी ही है । अतः उसने गद् गद् स्वर से कहा – मृगाक्षी! निद्रा का त्याग करो और स्वस्थ बनो। तुम्हारी यह अवस्था देखकर मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है । महाबल का शब्द सुनते ही नेत्र खोल राजकुमारी उसके सामने देखने लगी । अपने पास बैठा हुआ
और अपने शरीर की सुश्रुषा करते हुए राजकुमार को देख उस दुःख में भी उसका हृदय हर्ष से भर आया ऐसी दुःखी अवस्था में कुमार का दर्शनकर वह अपने तमाम दुःखों को भूल गयी। शरीर को संकोचकर और वस्त्र समेट के बैठी हो वह स्निग्ध दृष्टि से कुमार की ओर एकटक देखने लगी।
"मलया - राजकुमार! क्या मैं स्वप्न देख रही हूं । मैं किस तरह जीवित रही । आप अकस्मात् यहां कैसे आ गये?"
महाबल - "राजकुमारी! यह बात मैं तुम्हें फिर सुनाऊंगा । पहले नजदीक में जो यह नदी मालूम होती है वहां चलकर जो तुम्हारा शरीर मैल और अजगर की लाल से सना हुआ है, इसे साफ करना चाहिए। ___ मलया - "जैसी आपकी आज्ञा!" वहां से उठकर दोनों जनें पास में बहनेवाली नदी पर गये, वहां जाकर राजकुमारी के शरीर को साफकर वस्त्र धोकर और उसे स्वच्छ ताजा पानी पिलाकर महाबल कुमार अपने साथ ले फिर वापिस उसी आम के पेड़ तले आ बैठा ।
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