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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना यह विचाकर कुमार सहसा उस हाथ पर चढ़ बैठा और उसने उसे दोनों हाथों से जकड़कर पकड़ लिया ।
कुमार के इस साहस से अब वह हाथ कमरे में न रहकर खिड़की से बाहर हो आकाशमार्ग में ऊपर जाने लगा । कुमार भी उस हाथ पर निर्भीकता से बैठा रहा । आकाश में जानेपर वायुवेग से हिलती हुई ध्वजा के समान वह हाथ कांपने लगा । उस हाथ ने कुमार को नीचे पटकने के लिए बहुत ही प्रयत्न किये परंतु वृक्ष की शाखा पर लटके हुए बंदर के समान वह हाथ के साथ चिपटा रहा । कुछ समय के बाद उस हाथवाली व्यंतरदेवी का संपूर्ण शरीर कुमार को दीखने लगा। अब वह सोचने लगा 'यह सचमुच ही कोई देवी मालूम होती है, इसे विशेष हैरान करने से कदाचित यह कोपायमान हो मुझे कहीं समुद्र या किसी पर्वत के शिखर पर फेंक देगी । इसलिए अधिक समय तक इस हाथ पर बैठे रहना मेरे लिये बड़ा खतरनाक है । यह विचारकर कुमार ने पृथ्वी की और उतरती हुई उस देवी की गर्दन पर इस प्रकार का मुष्टिप्रहार किया जिसकी पीड़ा से वह करुणस्वर से रुदन करती हुई बोली - 'हे साहसिक! कृपाकर मुझे छोड़ दो। मैं अबसे आपको हैरान न करूंगी । इस समय देवी के आकाश मार्ग से पृथ्वी बहुत दूर नहीं थी, अतः कुमार ने करुणा से उसका हाथ छोड़ दिया । फिर न जाने वह देवी किस दिशा में गायब हो गयी । देवी का हाथ छोड़ते ही निराधार होकर कुमार आकाश से नीचे पड़ा । उसे पड़ते ही मूर्छा आ गयी । जंगल के शीतल पवन से आश्वासन मिलने पर कुछ समय के बाद वह होश में आया । पुण्य के प्रताप से किसी एक घास के ढेर पर पड़ने के कारण कुमार के शरीर को विशेष चोट न पहुंची थी, होश में आकर वह सोचने लगा । न जाने मैं इस समय किस प्रदेश में आकर पड़ा हूं? इस अंधकारपूर्ण रात्रि में जंगल में चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, कहीं - कहीं जंगली जनावरों के कटु शब्द सुनायी दे रहे थे । शेष रात्रि व्यतीत करने के लिए ऐसे बीहड़ जंगल में निशस्त्र होकर जमीन पर बैठे रहना उचित नहीं, यह सोचकर राजकुमार समीपवर्ती एक आम के पेड़ पर चढ़ बैठा । वह मन ही मन सोचने लगा । अहो! इस देवी के अपहरन से मेरी यह
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