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'श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना क्या अवस्था हुई? अब लक्ष्मीपूंज हार की प्राप्ति मुझे कैसे होगी? हार न मिलने पर माता के सामने की हुई प्रतिज्ञा का पालन किस तरह होगा? और वह न मिलने से माताजी कैसे जीवित रहेंगी? माता की मृत्यु से पिता के भी प्राणों की रक्षा होना असंभव है। हा! इस वक्त मेरे वंश के संहार का समय आ गया । हे विधि! तेरी विचित्र गति है! तूं क्षण में मनुष्य को रुलाता है, हंसाता है, आशा देकर ऊंचे शिखर पर चढ़ाता है । थोड़े ही समय में फिर मनुष्यों को बंधन में डालता है और निराश करके ऊंचे शिखर से नीचे पटकता है। तेरी विचित्रता को ज्ञानी महान् पुरुषों के सिवा और कोई नहीं जान सकता। ____ अब रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था । आकाश में तारे चमक रहे थे। चंद्रोदय का समय होने से अंधकार भी कुछ कम हुआ था। इस समय आम के वृक्ष पर बैठा हुआ महाबल अनेक प्रकार की विचार तरंगों में गोते लगा रहा था। इसी समय उसी आमवृक्ष के नीचे पेट से घिसकर चलनेवाले किसी सर्प जैसे प्राणी की आहट उसके कानों में पड़ी । इससे कुमार ने सावधान होकर वृक्ष के नीचे की तरफ देखा तो आम के थड़ के नजदीक आता हुआ उसे एक भयानक
अजगर दिख पड़ा । उस अजगर के मुंह में आधा लटका हुआ कोई मनुष्य मालूम होता था । यह देख कुमार समझ गया कि यह कोई क्रूर प्राणी किसी मनुष्य को निगलकर इस वृक्ष के साथ लपेटा देकर उसे मारने के लिए आ रहा है । यदि मैं इस क्रूर प्राणी के मुंह में पड़े हुए इस मनुष्य को जीवित दान दूंतो मेरा इस विपत्ति में आ पड़ना भी सफल गिना जा सकता है । संसार में मनुष्यमात्र के सिर पर काल की गर्जना हो रही है । इस नाशवंत शरीर से दूसरे का कुछ उपकार हो सके तो जीवन सार्थक है । यह सोचकर कुमार वृक्ष से नीचे उतरा । जिस वक्त वह अजगर उस वृक्ष के समीप आकर वृक्ष को लपेटा दे अर्धलटके हुए मनुष्य को मार डालने का प्रयत्न करता था उसी वक्त कुमार ने अपने हाथों से उस भीमकाय अजगर के दोनों होठों को पकड़कर उसे जीर्ण वस्त्र के समानी चीर डाला । अजगर के मुंह के दो विभाग होते ही उसके मुंह से मंद चैतन्यवाली एक युवती स्त्री निकल पड़ी। यद्यपि वह स्त्री जीवित थी तथापि इस समय वह मूर्छागत होने से निश्चेष्ट मालूम होती थी । जंगल का शुद्ध पवन लगने से कुछ देर के बाद अर्ध जागृत अवस्था
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