________________
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना एक रोज चंद्रावती के महाराज वीरधवल का भेजा हुआ राजदूत राजा सूरपाल की सभा में आया । उस समय महाराज सूरपाल, महाबलकुमार और प्रधानमंत्री मंडल सब राजसभा में बैठे हुए थे। द्वारपाल के साथ राजसभा में प्रवेशकर चंद्रावती के दूत ने महाराज सूरपाल को विनययुत नमस्कारकर कुशलवार्ता कथनपूर्वक अपने स्वामी का आदेश निवेदन किया। महाराज! मुझे आपके परम मित्र चंद्रावती नरेश ने आपकी सेवा में भेजा है। हमारे महाराज ने आपको प्रणाम पूर्वक कुशल प्रश्न पूछा है । विशेष समाचार यह है कि महाराज वीरधवल के रतिरंभा के रूप को तिरस्कार करनेवाली मलयासुंदरी नामकी एक कन्या है । हमारे महाराज ने उनका स्वयंवर मंडप रचा है । वंशपरंपरा से मिला हुआ वज्रसार नामक धनुष उस मंडप में रखा जायगा । जो कुमार अपने पराक्रम से उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायगा उसी के गले में राजकुमारी वरमाला डालेगी । इसी स्वयंवर पर अनेक राजकुमारों को आमंत्रण देने के लिए चारों तरफ दूत भेजे गये हैं और आपके रूपवान, गुणवान, कलाभंडार महाबल कुमार को बुलाने के लिए यहां पर मुझे भेजा गया है । आज जेठ मास की कृष्णा एकादशी है और स्वयंवर का मुहूर्त जेठवदि चतुर्दशी के दिन रखा गया है । यों तो मुझे वहां से रवाना हुए बहुत दिन हुए, परंतु रास्ते में बिमार होने के कारण मैं यहां पर जल्दी नहीं पहुंच सका । इसलिए महाराज! अब समय बहुत थोड़ा रह गया है अतः महाबल कुमार को आप तुरंत ही चंद्रावती की तरफ रवाना करें, क्योंकि अब विलंब करने का समय नहीं रहा।
महाराज वीरधवल के स्वयंवर संबंधी आमंत्रण से राजा सूरपाल को बहुत खुशी हुई । सन्मान पूर्वक आमंत्रण को स्वीकारकर दूत को वस्त्रादि के दान से सत्कारितकर विसर्जन किया। इस समय महाबल राजकुमार भी राजसभा में महाराज के पास ही बैठा हुआ था । चंद्रावती के दूत के वचन सुनकर उसका हृदय हर्ष से प्रफुल्लित हो उठा । वह प्रसन्न हो विचार ने लगा - 'अहा! पुण्य की कैसी प्रबलता है! जिस कार्य के लिए मैं रातदिन चिंतित रहता था वह भाग्य से आज सामने आ उपस्थित हुआ। जो कार्य सामर्थ्य और धन व्यय से सिद्ध होना
62