________________
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना - कुमार - हाँ है, उसका प्रभाव ऐसा है कि आम के रस के साथ घिसकर तिलक करने से स्त्री पुरुष का रूप धारण कर सकती है, परंतु वह गुटिका इस समय मेरे पास नहीं है।
सुंदरी! अब मुझे जाने दो, अधिक समय यहाँ रहने से फिर कोई अन्य उत्पात न खड़ा हो जाय । आज के प्रसंग में तुम्हें समझना चाहिए कि विधि हमारे अनुकूल है । मैं अवश्य अपना वचन पालने की पूरी कोशिश करूंगा। तुम्हारे मन की शांति के लिए मैं तुम्हें एक श्लोक दिये जाता हूँ । संकट में उसे याद करने से धैर्य प्राप्त होता है ।
विधत्ते यद्विधिस्तत्यान्न स्यात् हृदयचिन्तितं । एवमेयोत्सुकं चित्तमुपायान् श्चिन्तयेद् बहून् ॥१॥
भाव - जिस तरह पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मरूपी भाग्य करता है, वैसे होता है; परंतु हृदय का चिंतित कार्य नहीं होता । यह चित् उत्सुक होकर व्यर्थ ही अनेक उपाय विचारा करता है ।
अर्थात् संसार में संयोग और वियोग सुख और दुःख मनुष्य के स्वयं के किये हुए शुभाशुभ कर्म के अनुसार हुआ करता है । परंतु मनुष्य के किये हुए विचारानुसार नहीं; तथापि मानव स्वभाव के अनुसार मनुष्य का हृदय व्यर्थ ही अनेक उपाय सोचता रहता है । इस पूर्वोक्त श्लोक का अर्थ समझने के कारण मलयासुंदरी ने तुरंत ही कंठस्थ कर लिया । श्लोक के भावार्थ को विचारकर कुमारी प्रसन्न चित्त से कुमार के धर्मशास्त्र संबंधी ज्ञान और उसके धैर्य की प्रशंसा करने लगी तथा ऐसे गुणवान पुरुष रत्न के समागम से वह अपने आपको कृतार्थ समझने लगी।
कुमार – 'सुंदरी! अब तो मुझे प्रसन्न होकर जाने की आज्ञा दो । समय बहुत हो गया, मेरे साथी मेरी राह देख रहे होंगे।
मलया - 'कुमार! मैं अपने मुख से ऐसे शब्द कैसे कह सकती हूँ, तथापि
60