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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
विचित्र घटना कहकर कुमार ने अपने पास से एक गुटिका निकाली और मलयासुंदरी के देखते - देखते उसे अपने मुंह में डाल लिया । महाबल कुमार ने आज दोपहर को ही राजसभा में महाराज वीरधवल के पास बैठी हुई महारानी चंपकमाला को देखा था, अतः गुटिका के प्रभाव से वैसा संकल्प होने से कुमार का रूप चंपकमाला के रूप में परिवर्तित हो गया । अब वह साक्षात् चंपकमाला बनकर मलयासुंदरी के पास बैठ गया । मलयासुंदरी भी अपनी माता का रूप देख आश्चर्य पाती हुई निर्भय हो शांत चित्त से बैठ गयी ।
राजा ने ताला तुड़वाकर द्वार खोल मलयासुंदरी के मकान में प्रवेश किया। अंदर घुसते ही महाराज वीरधवल ने मलयासुंदरी को अपनी माता चंपकमाला के पास बैठी देखी । यह देख राजा कनकवती के सन्मुख हो बोला – 'प्रिय तुमने मुझे क्या कहा था! यहाँ तो उन बातों में से कुछ भी मालूम नहीं होता? कनकवती ने कमरे के अंदर आकर चारों तरफ अच्छी तरह देखा परंतु अपनी माता सहित बैठी हुई मलयासुंदरी के सिवा वहां पर कोई भी नजर न आया । कनकवती को देख चंपकमाला का रूपधारण करनेवाला महाबल बोला - 'आओ बहन! आज अकस्मात् आप इस महल में कहाँ से! क्या आज महाराज मेरे पर कोपायमान है? चंपकमाला रानी को बोलती हुई देख वहाँ आने वाले तमाम मनुष्य कनकवती की तरफ घृणा से देखने लगे । वे बोल उठे - "सचमुच ही सौकनों की आपसी ईर्षा उनके निर्दोष बच्चों पर उतरती हैं, क्योंकि कनकवती के सम्बन्ध में भी वैसा ही बनाव बना था लज्जायमान होकर कनकवती ने कहा - "स्वामिन्! यहाँ पर आये हुए एक पुरुष को मेरे देखते हुए राजकुमारी ने लक्ष्मीपुंजहार दे दिया है । आप उसकी तलाश करें। यह बात सुनते ही स्त्री रूपी कुमार ने अपने गले से हार निकालकर राजा की तरफ दिखाकर कहा - 'क्या आप इसी हार को तलाश करने आये हैं, उस हार को देखकर राजा की शंका सर्वथा निवृत्त हो गयी। कनकवती ईर्षा के कारण ही ऐसे अनर्थ की बातें करती है, स्त्रियों में जरा भी विचार नहीं होता । इत्यादि बोलता हुआ तमाम पुरुषों को साथ ले राजा अपने स्थान पर चला गया ।
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