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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
लंग में भंग ग्रहण करो यों कहकर राजकुमारी ने अपने हाथ से महाबल के गले में लक्ष्मीपुंज हार डाल दिया और बोली - "कुमार! इस हार के बहाने से मैंने आपके गले में यह वरमाला पहनायी है । इसलिए इस वक्त गंधर्व विवाहकर आप मुझे अपने साथ ले चलें । जिससे पारस्परिक वियोगजन्य दुःख न सहना पड़े।"
कुमार - "राजकुमारी! आपका कहना उचित है । तुमने अपने मन का भाव प्रकट किया यह ठीक है, तथापि जनता के समक्ष माता पिता की सम्मति से विवाह किये बिना इस तरह विवाहकर मैं तुम्हें साथ ले जाऊँ यह कुलीन पुरुषों के लिए उचित नहीं । ऐसा करने से मैं एक साधारण चोर के समान मनुष्यों की नजर से गिर जाऊँगा । ऐसे कार्यों में जल्दी करना उचित नहीं होता । तुम शांतचित्त से कुछ दिन तक यहाँ ही रहो । मैं तुम्हें वचन देता हूं कि घर जाकर ऐसा ही प्रयत्न करूँगा जिससे तुम्हारे मातापिता मेरे ही साथ तुम्हारा विवाह करें। कुमारी? अब धैर्य धारणकर प्रसन्न चित्त से मुझे जाने की आज्ञा दो। ___ भावी दंपती पूर्वोक्त प्रकार से आनंद में मग्न हो एक दूसरे से जुदा होने की तैयारी कर रहे थे । इतने ही में अकस्मात् उस कमरे के द्वार बंद हो गये । यह देख सावधान हो कुमार बोला-'द्वार किसने बंद किये? राजकुमारी चकित हो विचार में पड़ी थी, इसी समय बाहर से कनकवती की आवाज सुनायी दी। अरे! दुष्ट महाबल! तूं मुझे ठगकर कुमारी से आ मिला! याद रखो मुझे ठगने का फल तुम्हें अभी मिल जायगा । मलयासुंदरी बोली - "कुमार! यह मेरी सौतेली माता है और इसी महल के पहले मंजिल में रहती है। मालूम होता है कि आपको यहाँ आते हुए उसने देख लिया है और इससे वह हम पर कोपायमान हुई मालूम होती है । अहा! मेरी कितनी भयंकर भूल! मैंने उसे यहाँ आयी हुई को बिल्कुल न जाना, संभव है उसने हम दोनों की तमाम बातें सुनी हों कुमार बोला - "सुंदरी! जब मैं तुम्हारे पास आ रहा था उस वक्त इसने मुझे रास्ते में रोका था और कामातुर होकर इसने मुझ से विषययाचना भी की थी । मैं इसे असत्य उत्तर देकर तुम्हारे कमरे का रास्ता पूछकर ऊपर आ गया । परंतु यह मुझे भी मालूम न हुआ कि खुफिया मनुष्य के समान मेरे पीछे आकर वह हमारा तमाम व्यतिकर सुनेगी।
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