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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
बैठिए और प्रसन्न होकर मेरे मनोरथ को पूर्ण कीजिए ।
रंग में भंग
रानी के वचन सुन राजकुमार चकित हो विचार में पड़ गया, वह सोचने लगा कि यह कोई राजा की रानी मालूम होती है या उसकी बहन होगी । ऐसे खतरनाक स्थान में आकर मनोवृत्ति पर संयम न रखा जाय तो स्वदारा संतोष व्रत किस तरह रह सकता है? एवं इष्ट कार्य की सिद्धि होना भी असंभव हो जाय। मैं इतना साहसकर सिर्फ मलयासुंदरी से मिलकर उसके प्रश्न का उत्तर देने के लिए आया हूं, परंतु किसी बुरी भावना को साधने के लिए नहीं । इसलिए मुझे इस स्थान में बड़ा सावधान रहना चाहिए । यद्यपि राजकुमारी मुझे दिल से चाहती है और मैं भी उसके स्नेह बंधन में बंध चुका हूं तथापि उसके माता पिता की सम्मति बिना मैं उसके साथ कदापि विवाह न करूंगा। जब मुझ पर प्रेम करने वाली उस कुमारी स्त्री की तरफ भी मेरी ऐसी दृढ़ भावना है तो विवाहित परस्त्री की तरफ मेरा मन विचलित न होना चाहिए । यह विचारकर कुमार ने समयानुसार अपना कार्य साध लेने के लिए रानी कनकवती से कहा 'मैं मलयासुंदरी के वास्ते कुछ वस्तु लेकर आया हूं। अतः मुझे उसका निवासस्थान बतलाइये । उसे वह चीज देकर वापिस लौटते समय आप जैसा फरमायेंगी वैसा किया जायगा । कनकवती ने कुमार का कथन मानकर उसे नजदीक की सिढियाँ से ऊपर मलयासुंदरी के महल में जाने का रास्ता बतलाया । कुमार ऊपर की मंजिल पर चढ़ गया। राजपत्नी कनकवती भी धीरे - धीरे उसके पीछे चलकर, दरवाजे के पास छिपकर जा खड़ी हुई । कुमार को यह बात मालूम न रही ।
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राजकुमार के गये बाद राजकुमारी मलयासुंदरी स्थिर चित्त से उसी खिड़की में बैठी हुई महाबल कुमार के मार्ग की और दृष्टि लगाये हुए उसी का ध्यान कर रही थी । अंधकार हो जाने के कारण महाबल कुमार के समागम की आशा यद्यपि उसके हृदय में शिथिल हो रही थी, तथापि कुमार के साथ गया हुआ उसका दिल वापिस न आता था, वह खोये हुए धन को वापिस पाने की आशा वाले मनुष्य के समान अंधकार होने पर भी उसी दिशा में देख रही थी। वह उसके ध्यान में ऐसी निमग्न हो रही थी कि " कुमार के अंदर आनेपर भी उसकी ध्यान श्रेणी भंग न हुई । कुमार उसके पास ही जा खड़ा हुआ । फिर भी
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