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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
धर्म - प्रभाव
धर्म - प्रभाव
चतुरंगो जयत्यर्हन् दिशन् धर्मचतुर्विधं, चतुष्काष्टासु प्रसृतां, जेतुं मोहचमूमिमाम् । चारों दिशाओं में फैली हुई मोहराजा की सेना को जितने के लिए ही मानो चार शरीर को धारणकर चार प्रकार के धर्म का उपदेश करते हुए अरिहंत भगवंत जय को प्राप्त करते हैं । ___ संसार में धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है । समृद्धि को देने वाला, अनेक प्रकार की सुख प्राप्ति करानेवाला, संतान को तारनेवाला, पूर्वजों को पवित्र करनेवाला, अपकीर्ति को हरनेवाला और जगत में कीर्ति की वृद्धि करनेवाला, एक मात्र धर्म ही है । संपत्ति की इच्छा करनेवालों को संपत्ति देनेवाला, भोगों की तृष्णा वालों को भोग देनेवाला, सौभाग्य के अर्थियों को सौभाग्य प्राप्त करानेवाला, पुत्रार्थियों को पुत्र और राज्यार्थियों को राज्य ऋद्धि प्राप्त करानेवाला भी सिर्फ धर्म ही है । विशेष क्या कहा जाय जगत में एक भी ऐसी वस्तु नहीं कि जो धर्म के द्वारा धर्मकर्ता को प्राप्त न हो सके । अर्थात् स्वर्ग और अपवर्ग - मुक्ति की प्राप्ति भी धर्म से ही होती है।
धर्म का प्रभाव कथन या श्रद्धाभाव से ही नहीं है, किन्तु विचारक मनुष्य संसार की विषमता का विचार करके इसका भली प्रकार निर्णय कर सकते हैं । प्रत्यक्ष दिखाई देता है कि संसार में एक मनुष्य सुखी, दूसरा दुःखी, एक मूर्ख, दूसरा ज्ञानी, एक आरोग्य प्रास, दूसरा रोगी, एक धनवान तो दूसरा निर्धन, एक दाता दूसरा भिक्षु, एक मनुष्य अन्य लाखों मनुष्यों का पूज्य और दूसरा मनुष्य लाखों मनुष्यों का तिरस्कार पात्र । इत्यादि अनेक प्रकार की विचित्रता का अनुभव क्यों होता है? मनुष्यता समान होने पर भी इस तरह का भेद क्यों देखा जाता है? एक ही कार्य के लिए सब तरह के साधनों द्वारा समान