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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
सफल वरदान उसके लंबे - लंबे धुंघरवाले काले केश अति मनोहर मालूम होते थे । कमल के समान उसकी बड़ी - बड़ी स्निग्ध आंखें देखने वालों के चित्त को हरण करती थीं । अष्टमी के अर्धचंद्राकार कपाल के नीचे कमान के जैसे टेढ़ी भौंहें बड़ी ही सुंदर मालूम होती थीं । साधु पुरुषों की चित्तवृत्ति के समान, सरल नासिका उसके मुख मंडल की शोभा में अधिक वृद्धि कर रही थी । शुभ्र मोतियों के जैसी दंतपंक्ति उसके लाल - लाल होठों पर अतीव सुंदर प्रकाश डालती थी । उसकी ग्रीवा तीन रेखाओं से शंख के जैसे शोभती थी। वृक्षस्थल पर उभरता हुआ कठिन स्तन युगल उसके नवयौवन के आगमन को सूचित कर रहा था। उसकी लंबी - लंबी कोमल भुजाएँ मृणाल दंड को भी लजाती थीं । उसके शरीर का मध्यभाग सिंह की कमर के जैसा पतला और सुंदर दिख पड़ता था। हथनी की गति की भांति मंद – मंद किन्तु विलास वाली उसकी चाल युवकों के मन को लुभाती थी।
दोपहर का समय था । महाराज वीरधवल की राजसभा भरी हुई थी; इतने में ही द्वारााल ने आकर महाराज को नीचे गर्दन झुकाकर प्रणाम करते हुए कहा - "सरकार! राजद्वार पर पृथ्वीस्थानपुर नगर से राजा सूरपाल के सेनापति और उनके साथी आये हुए हैं । वे दरबार में आना चाहते हैं । हुक्म मिला उन्हें यहाँ ले आओ । महाराज वीरधवल की आज्ञा पाकर द्वारपाल, पृथ्वीस्थानपुर से आये हुए मेहमानों को राजसभा में ले आया । आगतुंक सेनापति और उसके सहचारी राज पुरुषों ने महाराज वीरधवल के सामने पृथ्वीस्थान पुर से लाये हुए वस्तुओं का उपहार रखकर उन्हें झुककर नमस्कार किया और सबके सब अदब से एक तरफ खड़े हो गये । राजा वीरधवल ने बहुमान पूर्वक उनके पुरस्कार को स्वीकारकर, उन सबको बैठने के लिए आसन दिखाये!
प्रसन्न होकर महाराज वीरधवल ने प्रश्न किया "हमारे परम मित्र महाराज सूरपाल के राज्य और परिवार में कुशलता है?" हाथ जोड़कर सेनापति ने नम्रता से उत्तर दिया महाराज! धर्म के प्रताप और आप जैसे मित्र राज की स्नेहभरी नजर से राज्य में सर्वत्र आनंद है । महाराज सूरपाल ने