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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
रंग में भंग
रंग में भंग
विशाल दक्षिण देश में पृथ्वी स्थानपुर नामक नगर था । वह अपनी शोभा और समृद्धि में चंद्रावती नगरी से कम न था । यह शहर भी गोला नदी के किनारे पर ही बसा हुआ था । शहर के चारों तरफ सघन वृक्षों की घटा शहर की शोभा बढ़ा रही थी । शहर के नजदीक में धनंजय नामक यक्ष का मंदिर था । आसपास में कुछ पहाड़ी प्रदेश भी था। समीपवर्ति पर्वतों में बहुत सी गुफाएँ भी दिख पड़ती थीं, जिनका उपयोग तपस्वी, योगी पुरुष या चोर वगैरह करते थे। इस सुंदर और समृद्धिशाली नगर में क्षत्रियवंशी महाराज सूरपाल राज्य करते थे । वीरधवल और सूरपाल राजा में पारस्परिक मित्रता थी । अपनी मित्रता को बढ़ाने के लिए समय समय पर वे आपस में एक दूसरे को श्रेष्ठ वस्तुओं की भेट भेजा करते थे । कार्य प्रसंग पर वे एक दूसरे को आपस में सहाय भी किया करते थे I
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एक दिन महाराज सूरपाल ने बहुत सी श्रेष्ठ वस्तुएँ देकर कुछ राजकार्य के निमित्त अपने सेनापति को चंद्रावती में महाराज वीरधवल के पास भेजा था। उस समय अन्य भी कई मनुष्यों के साथ राजकुमार महाबल पिता की आज्ञा ले गुस रीति से सादे वेष में चंद्रावती की शोभा देखने के लिए आया था । जिस तेजस्वी - युवक के विषय में पाठक महाशय पूर्व परिच्छेद में पढ़ चुके हैं, वह पृथ्वी स्थान नगर का राजकुमार यह महाबल ही है । कुमार महाबल राज के योग्य विद्याओं में अतीव निपुण था । उसके शरीर की सुंदरता और चेहरे का वीरतेज देखने वाले को अपनी तरफ आकर्षित करता था ।
पूर्व परिच्छेद में कथन किये मुताबिक राजकुमार अपने साथियों को पूछकर चंद्रावती की शोभा देखने के लिए निकला है। शहर के राजमार्ग और चौराहे देखता हुआ तथा सुंदर राजप्रासादों की शोभा का निरीक्षण करता हुआ वह मुख्य जनाने राजमहल के पीछे की ओर आ पहुंचा । उस महल के पिछले भाग की खिड़की में बैठी हुई एक सुंदर युवती शहर की शोभा निहार रही थी। देखते - देखते उस राजमहल के नीचे से जानेवाले मार्ग पर चलते हुए राजकुमार
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