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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःख की पराकाष्ठा देखकर स्वामी के दुःख से दुःखित हुआ मंत्रीमंडल गद् - गद् कंठ से हाथ जोड़ राजा को विनति करने लगा । "महाराज धैर्य धारण करो और शीघ्र ही महल में चलकर महारानी को देखो कि उसके शरीर की अवस्था कैसी है । जहर के प्रयोग से भी मनुष्य श्वासोच्छ्वास रहित हो जाता है, क्योंकि उसके प्राण, दिमाग या नाभी में संस्थित हो जाते हैं । उन्हें चलकर देखना चाहिए कि रानी की ऐसी ही हालत तो नहीं हो गयी है । मंत्रीमंडल की प्रेरणा से कदम कदम पर स्खलना प्राप्त करता हुआ राजा रानी के महल में आया । वहाँ आकर देखा तो सचमुच ही पाषाण मूर्तिवत् रानी का निश्चेष्ट कलेवर पड़ा है । रानी को ऐसी स्थिति में देखते ही उस पर अति रागवान् राजा नेत्राश्रुपूर्ण होकर मूर्च्छित हो जमीन पर गिर पड़ा । ठंडे पानी के प्रयोग से कुछ देर बाद नेत्र खोलकर राजा बैठा हुआ। परंतु सामने ही रानी की वैसी अवस्था देख फिर मूर्च्छित हो गया । इस तरह बार - बार मूर्छा से उठना और फिर मूर्छित हो जाना, राजा ऐसी भयंकर अवस्था का अनुभव करने लगा । राजकुल के मनुष्यों ने रानी के तमाम शरीर को अच्छी तरह देखा परंतु उसके शरीर में कही पर भी सर्प आदि जहरी जानवर का डंस मालूम न दिया और न ही कोई विषप्रयोग जानने में आया।
मित्रों! रानी का सारा शरीर सर्वथा अक्षत है, जहर का प्रयोग भी मालूम नहीं होता तो क्या रानी के प्राण किसी हृदय दुःख से या किसी दुष्ट देव के कोप से निकल गये होंगे? अगर ऐसा न हो तो तमाम शरीर सर्वथा अक्षत न होना चाहिए । रानी के मोह से मोहित होकर महाराज अवश्य मृत्यु प्राप्त करेंगे और राजा की मृत्यु से इस राज्य का सर्वनाश हो जायगा क्योंकि राज्य की धुराधारण करनेवाला एक भी राजकुमार नहीं है।
सुबुद्धि नामक प्रधान मंत्री ने अपने आश्रित राज्यकर्मचारीयों के समक्ष पूर्वोक्त कथन कर सेनापति से कहा इसी वक्त हमें किसी भी प्रयोग से महाराज की ऐसी स्थिति में उन्हें धैर्य दिलाने के लिए समय व्यतीत करना चाहिए क्योंकि समय व्यतीत होने से हमें राजा को बचा लेने का कोई भी उपाय मिल जायगा। सेनापति बोला - " महानुभाव! ऐसी हालत में किस तरह समय व्यतीत किया जाय? सुबुद्धि बोला – 'राजा से हमें कहना चाहिए कि रानी को जहर चढ़ गया
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