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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःख की पराकाष्ठा है और वह अभी जीवित है, उसके प्राण नाभी में संस्थित है। इसलिए मणिमंत्र
औषधादि के द्वारा उसके जहर उतारने का प्रयोग करना चाहिए । इस विचार से सबकी सम्मति मिलने से प्रधान मंत्री राजा के पास आकर बोला – महाराज! महारानी अभी जीवित है । उसे जहर चढ़ा हुआ है उसके प्राण नाभी में रहे हुए
हैं।
यह वाक्य सुनते ही राजा मानों अमृत से सिंचन किया गया हो वैसे उश्वास प्राप्तकर निन्द्रा से जागृत होकर बोला - "अरे सेवको! जल्दी दौड़ो; विष उतारने वाले मनुष्यों को और भंडार में से जड़ी बूटी लाओ! विष दूर करने वाले मणि लाओ । शहर में जितने मंत्रवादी हों उन सबको बुलाओ और रानी को जल्दी विष रहित करो।
राजाज्ञा मिलते ही जड़ी बूटी, मणि और मंत्रवादी तमाम सामग्री उपस्थित हो गयी । प्रधानमंत्री की आज्ञानुसार रानी को एकान्त में स्थापन कर शीघ्र ही मंत्र वादियों ने मंत्र प्रयोग प्रारंभ किये । अब राजा विचार करता है रानी अब श्वास लेगी, उसकी अभी आंखें खुलेगी; वह अभी करवट बदलेगी, वह अभी बैठी होकर मुझ से बात करेगी । इस प्रकार मोह से व्याकुल राजा को विचार करते हुए आधा दिन और कुछ कष्ट से सारी रात व्यतीत हो गयी । बुद्धिमान् मंत्रीमण्डल ने अपनी बुद्धि के प्रयोग से इतना समय तो व्यतीत करा दिया, परंतु रानी के शरीर पर किये हुए प्रयोगों की कुछ भी असर नहीं हुई । प्रातःकाल होने पर तमाम मंत्रीमंडल निरुपाय हो विचार करने लगा, अब हम राजा को किस प्रकार मृत्यु से बचा सकते हैं! रानी के स्नेहबन्धन में बंधा हुआ राजा अवश्य ही अपने प्राण खोयेगा । सच्चा प्रेम करनेवालों के लिए प्रेमी का सदा के लिए वियोग होने पर मृत्यु के सिवा अन्य कोई उपाय नहीं । हा! हा! राजा की मृत्यु से यह राज्य, राष्ट्र, कोष, चार प्रकार की सेना तमाम प्रजा और हम अनाथ हो जायेंगे! इस चिंता समुद्र में डूबे हुए राज्य के तमाम प्रधान पुरुष राजा के प्राण बचाने में निरुपाय हो गये।
पूर्ववत् अपनी वल्लभा को चेष्टा रहित देखकर राजा का फिर से हृदय
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