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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
शोक में हर्ष काष्ठस्तंभ की उन दोनों फालियों को गोला नदी के भूषण रूप भट्टारिका देवी के मंदिर के आगे रखवा दिया गया। मध्याह्न का समय हो गया था, भूख से रानी का मुखकमल कुमला रहा था। प्रधान मंत्री ने कहा - "कृपानाथ! समय बहुत हो चुका है । अब हम कृतार्थ हो गये हैं। भोजन का समय बीत रहा है। क्षुधा से क्षामकुक्षीवाली महारानी भी कुमलाई हुई दिख पड़ती है और आप भी कल से अन्न जल रहित हैं । अतः अब आप शीघ्र ही शहर में चलकर स्नान भोजनकर दुःख को जलांजलि दें । प्रधान के वचन सुनकर महाराज वीरधवल शहर में प्रवेश करने के लिए तैयार हो गये । प्रजाजनों ने शहर के रास्ते और बाजार सजा दिये थे । राजा रानी दोनों हाथी पर बैठकर राजमहल को चल दिये।
इस समय अनेक प्रकार के बाजों के नाद से आकाश गूंज रहा था । चारण लोग बिरुदावली बोल रहे थे। महाराज मांगलिक और आशीर्वाद के शब्द सुनते हुए तथा याचकों को दान देते हुए राजमहल में आ पहुंचे । महल में आकर मंत्री सामंत और नागरिकादि सर्व जनों को संतोषितकर महाराज ने विसर्जन किया । वे लोग भी महाराज को नमस्कारकर हर्ष प्राप्त करते हुए अपने - अपने घर पहुंचे। राजा और रानी ने स्नानपूर्वक ऋषभ देव प्रभु की पूजा करके भोजन किया
और प्रजाजनों ने खुशी बताने के लिए उस दिन महाराज के पुनर्जन्म का महोत्सव किया।