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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
शोक में हर्ष तरह उसमें समा जाय इतने प्रमाण में उसे थोता किया । एवं कपूर, कस्तूरी आदि अनेक प्रकार के सुगंधी द्रव्यों से मेरे शरीर पर विलेपन करके वह विद्याधरी मुझसे बोली - "हे भद्रे! इधर आ । मैं तेरे शील की रक्षा करूँ।" इस प्रकार कहकर मुझे उस लक्कड़ के विवर में सुलाकर उसने मेरे ऊपर उस काष्ठ की दूसरी फाड़ ढक दी। इसके बाद क्या बना सो गर्भावास में रहे हुए के समान मुझे कुछ खबर नहीं । पूर्वपुण्य के उदय से यह काष्ठ यहां ही आ पहुंचा और आपने मुझे उसमें से निकाल लिया, बस यही मेरा सर्व वृत्तांत है ।
राजा ने भी रानी के पूछे हुए उत्तर में इस दुर्दशा में यहां पर सबके एकत्रित होने का तमाम हाल कह सुनाया । फिर सुबुद्धि नामक प्रधान मंत्री से पूछा उस विद्याधरी ने रानी को इस काष्ठविवर में क्यों डाला होगा? और यह काष्ठस्तंभ यहां किस तरह आ गया!
मंत्री बोला - "महाराज! मेरा अनुमान है सपत्नी होने की शंका से विद्याधरी ने रानी को इस काष्टविवर में डाला होगा और काष्ट को मजबूत बंधनों से बांधकर उस तरफ से आनेवाली इस गोला नदी के प्रवाह में इस काष्ठस्तंभ को बहा दिया होगा । यह काष्ठस्तंभ नदी के प्रबल प्रवाह में बहता हुआ हमारे पुण्य के उदय से यहां आ पहुंचा है। विद्याधरी का चाहे जो आशय हो तथापि उसका किया हुआ प्रयत्न हमारे लिये सुखरूप निकला है । रानी से जो देवी ने कहा था कि तुम सात पहर के बाद अपने स्वामी से मिलोगी वह देवी का वाक्य सत्य ही हुआ।
राजा "हां देवी का वचन तो अन्यथा हो ही नहीं सकता । परंतु उस मायावी व्यंतरदेव का प्रपंच हमें कुछ भी मालूम न पड़ा कि जिसने थोड़े ही समय में राजवंश क्षय करने का प्रयत्न किया था हम पर मलयादेवी- ने महान् उपकार किया है । उसकी कृपा से कुल में कुशलता, पुत्रपुत्री का वरदान मिला और उपद्रव करनेवाला वह व्यंतर देव शांत हुआ। सच पूछो तो इन तमाम बातों का कारण रानी का अपहरण है । जिस प्रकार कड़वी औषधी से तुरंत ही रोग दूर हो जाता है । वैसे ही रानी का यह दुःखदाई अपहरण अंत में हमें सब तरह सुखरूप हुआ।