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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
शोक में हर्ष यह घटना देखते ही तमाम लोग भयभीत हो कांपने लगे विस्मय और आनंद से पूर्ण हृदय वाला राजा जनता को आश्वासन देते हुए बोला - "सज्जनो! इस वृत्तान्त के वास्तविक रहस्य को हमारे अंदर से कोई भी नहीं जानता, परंतु काष्ठस्तंभ में रही हुई रानी शायद इस रहस्य को प्रकट करेगी । यों कहकर उन्होंने रानी की तरफ देख यह प्रश्न किया । प्रिये! यह क्या घटना है? क्या इस रहस्य को बताकर तुम हम सबकी शंका दूर करोगी?
राजा के पूर्वोक्त वचन कान में पड़ते ही रानी चंपकमाला अर्धनिद्रा में से जागृत हो महाराज को अपने सन्मुख खड़ा देख उनके मुखमंडल की तरफ एक टक देखने लगी । नजर से नजर मिलते ही रानी के नेत्रों से अश्रु की धारा बहने लगी । इस समय दोनों दंपती को जो आनंद प्राप्त हुआ वह अकथनीय था । कुछ देर तक निर्निमेष दृष्टि से देखकर हर्ष के आंसुओं से विरह की अग्नि को बुझाते हुए रानी स्वयं राजा से पूछने लगी । स्वामिन्! आज इस नदी के किनारे पर आप किसलिए पधारे हैं? पानी टपकते हुए ये भीगे वस्त्र आपने क्यों पहने हैं? ये तमाम लोग यहां पर किस लिये इकट्ठे हुए हैं? वह सामने चिता किसके लिए बनायी गयी है? यह मृतक को उठानेवाली शिविका देख पड़ती है, क्या कोई मनुष्य मर गया है?
राजा अधीर होकर बोला - "देवी! तुम्हारे पूछे हुए तमाम प्रश्नों का मैं बाद में उत्तर दूंगा। पहले तुम मुझे अपना संपूर्ण वृत्तान्त सुनाओ । तुम कहाँ चली गयी थीं । इतने समय तक कहां रही? घूण के समान इस काष्ठस्तंभ में किस तरह घुसी? यह कंठ में रहा हुआ हार तुम्हें किसने दिया! और इस नदी के प्रवाह में किस तरह बह आयी? यह सब वृत्तान्त सुनाकर हमारी उत्सुकता को दूर करो।
रानी ने मधुस्वर से कहा - 'अगर आपको प्रथम मेरा ही वृत्तान्त सुनना है तो उस नजदिक वाले बड़ के वृक्ष की शीतल छाया में चलो । वहां जरा विश्रांति लेकर मैं शांत चित से इस घटना का सर्व वृत्तान्त सुनाऊँगी । रानी के इस उत्तर से वहां रही हुई तमाम जनता को बड़ा हर्ष हुआ और राजा रानी सहित