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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःख की पराकाष्ठा न दिया । मंत्रीमंडल और प्रजाजन के रुदन करते हुए रानी की शिबिका के साथ महाराज वीरधवल अपने निश्चय को पूरा करने के लिए गोला नदी के किनारे आ पहुंचे।
रानी के शव की पालकी एक तरह रखकर उन मनुष्यों ने चिता की लकड़ियों को ठीक करना शुरू किया। इधर राजा ने स्नान करने के लिए गोला नदी में प्रवेश किया । इस समय राजा के चेहरे पर पूर्ण उत्साह और उत्सुकता दिख पड़ती थी । वे मन में विचार कर रहे थे । चिता जल्दी जल उठे तो मैं स्नानकर शीघ्र ही उसमें प्रवेश करूंगा । इन्हीं विचारों के दरम्यान स्नानकर राजा बाहर आया । ठीक इसी समय गोला नदी के प्रवाह में बहता हुआ एक बड़ा भारी सूखा हुआ काष्ठस्तंभ आ रहा था । उस सूखे हुए काष्ठस्तंभ को उन्होंने बाहर निकाल लिया । किनारे पर लाये हुए उस काष्ठस्तंभ जो बहुत से मजबूत बंधनों से चारों तरफ से बंधा हुआ था उसको देखने के लिए महाराज वीरधवल भी उसके समीप आये ।
. पथ का पथिक पथ भूलकर परिभ्रमण कर रहा हो, भयानक वन में/अरण्य में, चोरों ने लूट लिया हो,नंगे बदन हो, क्षुधा-प्यास से व्याकुल हो, ऐसे समय में उसे देवी भोजन, शीतल जल एवं वस्त्राभरण की प्राप्ति भाग्य योग से हो जाय तो उसे कितनी आनंदाभूति होगी । उससे कई गुना अधिक जिन बिंब एवं जिनागम की प्राप्ति से जिन आत्माओं को आनंदानुभूति होती हो, वे ही आत्माएँ सफलता की सीढ़ियों चढ़ सकते
-जयानंद
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