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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
शोक में हर्ष करने के लिए आयी हूं । इस प्रकार कहकर आदरपूर्वक उसने मेरे हाथ में सुगंधिमय कुछ चंदन के टुकड़े दिये । मलयादेवी का अपने पर वात्सल्य देखकर मुझे बड़ा धैर्य प्राप्त हुआ। मैंने देवी से कहा हे देवी! मुझे कौन और किसलिए यहाँ हरण कर लाया? मुझे अब अपने स्वामी का मिलाप होगा या नहीं?" देवी ने कहा - "धर्मबहन! तेरे पति वीरधवल का वीरपाल नामक एक छोटा भाई था। राज्य की इच्छा से उसने राजा को मारने के लिए अनेक उपाय किये । परंतु राजा के पुण्य के सामने उसके तमाम प्रयत्न बेकार हुए । एक दिन उस निष्ठुर ने राजा को मारने के लिए महल में प्रवेश किया और राजा पर शस्त्र का वार किया। परंतु राजा ने सावधान हो उसके वार को चुका दिया और तलवार के एक ही प्रहार से उसे जमीन पर गिरा दिया । बुरी तरह घायल होकर वीरपाल अपने पाप का पश्चात्ताप करते हुए कुछ शुभ भावना से मृत्यु पाकर इसी पर्वत पर मेरे परिवार में प्रचंड शक्तिवाला भूत जाति में देव पैदा हुआ है । उसने ज्ञान से अपना पहला भव देखा । वैर यादकर राजा से बदला लेने के लिए उसके छिद्र देखता हुआ उनके पीछे फिरने लगा । राजा का पुण्य प्रबल होने से उसका कुछ भी अकल्याण करने में वह सर्वथा समर्थन हुआ, तब उसने विचार किया कि राजा का रानी चंपकमाला पर गाढ़ प्रेम है, उसके जैसा स्वाभाविक प्रेम अन्य किसी पर नहीं मालूम होता । यदि रानी को मार दिया जाय तो प्रेम के बंधन में बंधा हुआ राजा स्वयं ही मर जायगा । इसी तरह मैं अपना बदला ले सकता हूं।
___"हे सुंदरी! इसी विचार से वह भूत देव तेरे पीछे फिरने लगा । आज तुझे शयनगृह में एकाकी निद्रावस्था में देख इस पर्वत पर उठा लाया । पुण्य की प्रबलता और आयुष्य लंबा होने से वह तुझे मार नहीं सका । हे धर्म सहोदरी! अब तुझे घबराने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि तुम्हारे ही शुभकर्म की प्रेरणा से मैं तुझे आ मिली हूं । अब से तेरे पुण्य कर्म का उदय हो गया है। और वही तेरा रक्षण करने और तुझे इष्टप्राप्ति कराने में समर्थ होगा । मेरे जैसी उस तेरे पुण्य की प्रेरणा से इष्ट प्राप्ति में सिर्फ निमित्त कारण होती है । इसलिए तुझे जिस वस्तु की इच्छा हो तूं मुझे मालूमकर जिससे कि मेरा समागम तेरे लिये सफल हो ।
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