________________
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःख की पराकाष्ठा
दुःख की पराकाष्ठा
1
शयनागार में महाराज वीरधवल और महारानी चंपक माला सुखपूर्वक बैठे आपस में विनोद से बातचीत कर रहे थे । इतने ही में अकस्मात् दीन मुख करके रानी चंपक माला बोल उठी महाराज ! आज मेरा दाहिना नेत्र फड़क रहा है । न मालूम इस अमंगल निमित्त से मुझे क्या कष्ट पड़ेगा । क्या मुझ पर बिजली पड़ेगी? क्या मेरा सर्वस्व लुट जायगा ? या कोई भयंकर बिमारी आयगी? मुझे इस समय न जाने क्या हो गया? हृदय बिल्कुल अशांत है ।
1
महाराज वीरधवल बोले - प्यारी ! स्त्रियों का दाहिना नेत्र फड़कना अमंगल सूचक माना गया है । तथापि तुम बिलकुल निर्भय रहो । किसी प्रकार के अमंगल की शंका मत करो । जिस तरह सूर्य के उदय में अंधकार नहीं आ सकता उसी प्रकार तेरे साथ ही मुझे भी अग्नि का शरण होगा, इत्यादि शब्दों से महारानी को धीरज देकर महाराज वीरधवल राजसभा में जाकर राज्यकार्य में प्रवृत्त हो गये ।
इधर ज्यों ज्यों रानी का दाहिना नेत्र विशेष फड़कने लगा त्यों त्यों उसे महल में, उद्यान में और बगीचे में कहीं पर भी शांति न मिली । वह उदासीन वृत्ति से मध्याह्न समय महल में अपने पलंग पर लेट गयी और धीरे धीरे निद्रा देवी के आधीन हो गयी ।
थोड़ी देर के बाद दासी वेगवती हाथों से मस्तक पीटती हुई, कदम कदम पर स्खलना प्राप्त करती और आँसुओं से हृदय को भिगोती हुई राजसभा में आयी और हाथ जोड़कर कहने लगी- "महाराज ! महारानी चंपक माला को...." यह अर्ध वाक्य सुनते ही शोकार्त दासी को देखकर भयभ्रांत के समान महाराज वीरधवल सहसा बोल उठे - हा - देवी! दैववशात् क्या तुझे अमंगल हुआ? क्या तेरा फड़कता हुआ दाहिना नेत्र सचमुच ही सफल हुआ? अरे वेगवती जल्दी बोल! रानी चंपक माला को क्या हुआ ? मेरा स्नेही हृदय विलम्ब नहीं सहन कर सकता।
29