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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
बन्धन मुक्ति यह प्रश्न किया है।
चंपकमाला - "स्वामिन्! आपकी यह शंका योग्य ही है, तथापि संतति प्राप्ति के निमित्त अन्तराय कर्मको क्षय करने के लिए देव की आराधना की जाय तो मिथ्यात्व प्राप्ति का या सम्यक्त्व दूषित होने का संभव नहीं। प्रिय देव, वीतराग देव संतति सुख किस तरह दे सकते हैं, इस बात का निराकरण मैंने गुरु महाराज के मुख से सुना हुआ है कि प्रत्यक्ष वीतराग देव कुछ नहीं देते, तथापि जो वस्तु मिलती है वह पुण्योदय या अंतराय कर्म के क्षय होने से प्राप्त होती है यह पुण्योदय करने या अंतरायकर्म को क्षय करने में जिनेन्द्र देव का पूजन, स्मरण या आराधना कारण रूप है।
रानी चंपकमाला के पूर्वोक्त गंभीर और सारगर्भित वाक्य सुनकर महाराज वीरधवल बहुत ही खुश हुए । रानी की बुद्धिमत्ता देखकर उनके अंतः करण में उसके प्रति और भी अधिक प्रेम और सन्मान ने स्थान प्राप्त किया । उन्होंने उसी दिन से जिनेन्द्र देव की आराधना करनी शुरू कर दी । अब वे अपना समय सुख से व्यतीत करने लगे।
हर आत्मा स्व दया, पर दया, द्रव्य दया, भाव दया आदि के भेदों को सुगुरु/गीतार्थ गुरु भगवंतों से समझकर वर्तन करे, तब आत्महित होगा ।
. धर्मकथानुयोग आ-बालवृद्ध सभी के लिए अत्यंत उपयोगी साधन है । जो आत्मा इन कथाओं को पढ़कर अपनी ओर लक्ष्य देता है और आत्म निरीक्षण करता है तो अवश्य आत्मा के ज्ञान - दर्शन गुण को प्रकट करता है।
- जयानंद
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