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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
बन्धन मुक्ति वीरधवल को अतिहर्ष पैदा हुआ । अतः वे प्रसन्न होकर बोले - प्यारी - चंपकमाला! तुम्हारे समान ही उत्तम सहचारिणी पति के दुःख में हिस्सा लेनेवाली और ऐसे समय धीरज देनेवाली पतिसुखपरायणता सती स्त्रियाँ होती हैं । इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है । प्रिये! तुम्हारे जैसी सद्गुणसंपन्ना और श्रेष्ठ बुद्धि देनेवाली पत्नी को पाकर मैं आज अपने आपको कृतार्थ समझता
हूं।
प्यारी मृगाक्षी! आज तुमने पुत्रप्राप्ति के लिए जो पुण्यवृद्धि करने का उत्तम रास्ता बतलाया है, वह सचमुच ही प्रशंसनीय है । कारण बिना कार्य की निष्पत्ति नहीं होती । संसार के तमाम प्रसंगों में इस बात का अनुभव होता है, तब फिर यह भी एक सांसारिक ही प्रसंग है । इसलिए पुण्योपार्जन करने की मुख्य आवश्यकता है । पुण्योपार्जन के निमित्त उत्तम ज्ञानवानों को, संसार से विरक्त, त्यागी आत्माओं को एवं दुःखी जीवों को, उनकी आवश्यकतानुसार दान देना, मन, वचन और शरीर की शुद्धिपूर्वक शील पालन करना, देवपूजन करना, जाप करना, तपश्चरण करना इत्यादि महापुरुषों के बतलाये हुए उपायों का सेवन करना चाहिए । अतः प्रियदेवी! पुण्योपार्जन के वास्ते हमें अभी से सावधान होना चाहिए । पुण्य की प्रबलता से एवं देवाराधन करने से अंतरायकर्म दूर होने पर हमें संतान की प्राप्ति होगी इस बात पर मुझे संशय रहित विश्वास है । तो फिर प्यारी! हमें किस देव की आराधना करनी होगी?
रानी चंपकमाला - "प्राणवल्लभ! आपने यह प्रश्न क्यों किया? देवाधिदेव परमपूज्य ऋषभदेव प्रभु हमारे इष्ट देव हैं हीं क्या उन्हें आप नहीं जानते?
महाराज वीरधवल - "प्राणप्यारी! मैं अपने परम पूज्य देवाधिदेव ऋषभ प्रभु को भली भाँति जानता हूं तथापि वे लोकोत्तर देव होने से वीतराग देव हैं। सांसारिक कार्यकेनिमित्त लोकोत्तर देवकी आराधना करने से सम्यक्त्व में मलीनता आती है । यह बात हमने पहले सद्गुरु के मुख से सुनी थी तथा वे रागद्वेष रहित होने के कारण हमें संतति सुख किस तरह देंगे? इसी कारण मैंने
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