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अवतार | पेट भरणने फिरूं प्रदेशे । इहां न ओलखनहार || देखो ॥ १३ ॥ विश्रामो जोवूं इण ग्रामे । जो मिले कोइ रखनार || तो तिहां रही दिवस गुजारूं । आयो इहां इम धार ॥ देखो ॥ १४ ॥ इम सुणी शाहजी हर्षाया। फिर बोले घर प्यार || किस्यो बदलो लेहने रहस्यो । | ते करो शीघ्र उच्चार | देखो ॥ १५ ॥ किस्यो काम कारस्यो मुजस्यूं । ते करो पहला जहार ॥ नहीं गुलामी करवा इच्छू । फिर कहूं मैं पगार || देखो ॥ १६ ॥ सेठ कहे बहु काम करनारा ॥ फिकर न कीजे लगार || सदा म्हारे पासज रहजो । साथ चलो दरबार || देखो ॥ १७ ॥ सुणी मदन हर्षाइ बोले । लोभ न मुज लगार | उत्तम अन्न नित्य पेट भरी दो । सजूं सारो श्रृंगार || देखो ॥ १८ ॥ यह कबूल जो आप करो तो । रहस्यूं आपके लार ॥ मानी शेठ खुशी हो राख्या । मदनने निज आगार || देखो ।। १९ ।। षड्रस भोजन धाप जिमायो । करी घणी मनवार | उत्तम वस्त्र गेणा पहराय ॥ वणिया देव कुँवार || देखो ॥ २० ॥ पुण्य | पसाय मदन सुख पाया रहे तिहां सुख मझार ॥ दशमी ढाल अमोल प्रकाशी। आगे मन्योग अधिकार || देखो ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ तेहीज मेहंदपुरी तणा । राजा केतूसेण ॥ प्रेमला नमे सुन्दरी । नमण खमण मधु बेण ॥ १ ॥ तस उदरंसु ऊपनी । कन्या रति अनुहार । रंभा मंजरी रंभासम | मोहनबारी नार ॥ २ ॥ उपवय मद माती थई । चहाय हुई भरतार ॥ जोगी जोडी ना मिल्या । रही अवस्था कुंवार ॥ ३ ॥ एक दिन न्हाइ सज्ज थइ ।
१ देव