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म. श्रे.
पक्तिये १
में झीणा मांयथी जी । जगावण भणी नेह ॥ श्रो॥३॥ कुँवरी जाण्यो आवियो जी । मिली मूर्ख परिवार ॥ हर्ष प्रेम उभराह ने जी । बोलावे धर प्यार ॥ श्रो॥४॥ दिवस घणा
खण्ड ५ में लगावियारे । आसींग्यो नहीं मोय ॥ याद आती घडी २ रे । हर्षी आज जोइ तोय ॥ श्री
॥५॥ मदन कहे हूं किस्यो करूंजी । लार लाग्यो परिवार ॥ घणा दिनामाहीं गयो जी। तेह थी मिलण आया द्वार ॥ श्रो॥ ६॥ खान पान किया घणा जी । मीठी रोटी दी मुज | ॥ उच्चे स्थान बैठावियो जी । और करी घणी गुज ॥ श्री ॥ ७ ॥ थोडा 12 दिन रही करी जी ॥ आवण हुवो तैयार ॥ सहू पूंछे भेल हुई जी । किम करे तूं गुजार ॥ श्री ॥ ८ ॥ मैं कह्मो राजपुत्री भणी जी । छोडी आयो निरधार ॥ याद महारी करता हुसी जी । ज्यास्यूं तिहां एकवार ॥श्रो ॥ ९॥ सहू कहेरे मूारे ।।
तुज थी कोण मोहवाय ॥ क्यों दुःखी होवे जाइनेरे । इम घणो परिचाय ॥ श्री ॥१०॥ - मैं नहीं मानी एककीजी । मन लाग्यो इण ठाम ॥ गुप्त भागीने आवियो जी । नकियो किहां मुकाम ||श्रो ॥ ११ ॥ आज दर्श देख्या तुम तणां जी । मोठा महारा भाग ॥
तुम तो खुशी मांही रह्या जी । इत्तादिन इण जाग ॥ श्री ॥ १२॥ कुँघरी दासीने कही। वजी । मंगायो भलो आहार ॥ पहला पीगयो दालनेजी । फिर भात खायो तेवार ॥ |श्रो ॥ १३ ॥ कूदे आंगण मायनेजी । चरित्र बहु बताय ॥ हँसावी पेट दुःखावियो जी ।