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पुण्यवंत अवसर पायने । लेग्वे वस्त लगाय ॥ कंकरको कंचन करे । कालंतर में जणाय ॥ ४ ॥ विशेष काले जे फले । ते विशेष दे सुख ॥ इम प्रत्यक्ष आसा तजी । ग्रहो परोक्षो हो मुख ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ११ मी ॥ अगड दम २ बाजे चौघडया ॥ यह ॥ महापुण्यवंत श्री मदन बर जी । दान सेकियो खेवा पार ॥ पाप हावन धर्म बडावन पुण्य प्रकाश कियो अधिकार ॥ आं॥ सुणी पूर्व भव रचना मदनजी । मुनीवर ने जाण्या उपकारी । विन पूछ्या मुज तारण कारण । कथा कही पहिली महाती ॥ ऋद्धि इण थी अधिक मैं पाइ । छोड आयो अनंतवारी ॥ आत्म ऋद्धि प्राप्त । हुया विन । भव २ में हुइ खुवारी । अबतो हूं गुरु कृपा ए समज्यो । करूं आत्मका | निस्तारा ॥ महा ॥१॥ उठ वंदणा कर कहे पूज्यथी। भली कृपा करी महाराया दीनदयाल दयाकर दीनपे । भवंत्र महारा फरमाया ॥ अल्प गुरुसेवा का फल यह । अयम
करस्यूं अर्पण काया ॥ ऋद्धि सिद्धी तो मुज नहीं चहिये । जन्म मरणसे घषराया ॥ येही * दुःख मिटावन कारन । लेस्यूं हूं संयम भारे ॥ मदन ॥ २॥ ऋषिजी कहे करो सुख होवे में * जिम । धर्मे ढील करणी नाहीं । सुणी हर्षी वंदी घर आया। जग छोडन मन उमाह ॥
आइ विराज्या धर्मस्थानके । सब परिवार लिया बुलाइ ॥ कहे सहू मुज देवो आज्ञा । में दीक्षाकी लगी अति चाह ॥ सहू कहे किसी कसर यहां है । कर रह्यो आत्म उद्धार ॥