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अमोल ज्ञानमन्दिरका द्वितिय मयूख जैनदिवाकर जैनाचार्य शान्तिसम्राट पूज्यश्री. अमोलक ऋषिजी महाराज कृत
मदनश्रेष्ठी चरित्र
द्रव्य सहाय्यक शेट सुखलाल दगडूराम वखारी, पिंपळगांव, ता. कळवण, जिल्हा नासीक.
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DEDEOS
KEECECREENETICEESIGECU दानेन भूतानि वशीभवन्ति MEDDEDDOD
जैन दिवाकर शान्ति सम्राट शास्त्रोद्धारक वालचमचारी जैनाचार्य पूज्य श्री अमोलक ऋपिजी महाराज विरचित
दानमहात्म
EEEE दानं हि सर्वव्यसनानि हन्ति BUDDY
श्री मदनश्रेष्ठी चरित्र
HEEEE६चंदानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम्
संयोजक,
प्रसिद्धक्षा पं. मुनिश्री कल्याण ऋषिजी म. सा. | शेट सुखलाल दगडूराम वखारी
पिंपळगांव, तालुका कळवण, जिल्हा मासीक. वीर सं. २४६८ वि० १९९८ ]
[द्वितीयावृत्ति १००० (समर्थ इलेक्ट्रिक प्रेस, धुलिया) ८.४१ RECEEEEEEEEEEEEEE परोऽपि बन्धुत्वमुपैति दानैःDEPENDE DDY
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परिचय धर्मेण कुलप्रसूतिः धर्मेण च दिव्यरूपसंप्राप्तिः। धर्मेण धनसमृद्धिः धर्मेण सुविस्तृता कीर्तिः ॥
स्थानकवासी जनसमाजमें ऐसा कौन मनुष्य होगा जोकि शास्त्रोद्धारक जैनदिवाकर जैनाचार्य बालब्रह्मचारी स्व. पूज्यश्री अमोलक ऋषिजी म. सा. की जीवनीसे परिचित न हो। इसलिये यहांपर पूज्य श्रीका जीवनचरित्र न देते हुये उनके अतिपरिश्रमद्वारा जनताके हितार्थ कवितारूप में लिखाहुवा मदनश्रेष्टीनामक चरित्र जोकि मनुष्य जीवनके सांसारिक विकासकेलिये शिक्षाप्रद है; जिससेकि “ अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतंकर्म शुभाशुभम् " याने कियेहुए शुभाशुभ कर्म मनुष्यको अवश्य भोगने पडते हैं यह शिक्षा मिलती है । उसी मदन नामक शेठका संक्षिप्त जीवनपरिचय प्रारम्भमें सिर्फ पाठकोंकी कुछ सुविधाकेलिये लिख रहे हैं।
अयोध्यानामकी नगरीमें परिजन आदिसे परिपूर्ण वसुदत्तनामके सेठ रहाकरते थे; उनके चार पुत्र थे. जिनमें से सबसे छोटे पुत्रका नाम मदन था । पूर्वोपार्जितपुण्यके प्रतापसे एकत्रित अतुलसम्पत्तिके नशेमें सेठजी इतने मस्त थे कि किधर सूर्य उदय होता है और किधर अस्त होता है यहभी उनको मालूम नहीं होता था । किन्तु " क्षीणे पुण्ये विधीयमाने च दुर्नये श्रीर्याति " इस उक्तानुसार कुछसमयकेबाद सेठजीको “ सुखान्ते दुःखम्, दुःखान्ते सुखम् " इस वाक्यको ध्यानमें रखकर सन्तानकेसहित देश छोडकर विदेशमें जाना पड़ा; वहां पहुंचनेकेबाद अपरिचितताके कारण शांतिदायकस्थान प्राप्त न होनेपर दरिद्रतासे अतिपीडितहो एकसमय सेठजीके चारोंपुत्र काष्टभार लेनेकेलिये
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( २ )
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जङ्गलमें जाते हैं । वहांसे काष्टका बोझा शिरपर रखकर जिससमय शहरके तरफ लौटते हैं उससमय अकस्मात् वर्षा पड़ने लगती है. जिससेकि चारोंही समीपमें रही हुई एकनदीके किनारे बैठ जाते हैं । और दुःखितमनकी मलीनताको दूर करनेवाले ऐसे अपने २ हृदयोद्गारों को परस्पर सुनाते हुये मदन कहता है कि जहांतक राज्यसहित राजपुत्रियों को मैं प्राप्त न करलूंगा वहांतक मातापिताओंकी स्नेहभरीदृष्टिसे पृथक् रहूंगा । इतना कहही रहाथाकि वायुके थोडेसे आघातसे वह नदीमें गिरजाता है; दैवानुयोगसे नदी में बहते हुए एककाष्टकेसहारे नगरके नजदीक एक सुतार उसे निकालकर अपने घर लेजाता है। कुछदिन वहां विश्रान्ति ले बही मदन सुतारके बनायेहुए गरुडयन्त्रपै चढकर हवा खानेके बहाने आकाशमार्गसे एक शहर में पहुंचता है; वहांपर अपनी बुध्दिमानीसे वहांकी राजपुत्री के अत्याग्रहसे रात्रिमें उसकेसाथ गन्धर्व विवाहकर अन्यस्थानपर वापिस आजाता है । प्रातःकाल राजाके आदेशको सुन स्वयं गिरफ्तार होनेकेबाद कोतवाल उस अपराधमें उसे शूलीपर चढ़ाने के लिये लेजाता है, मार्गमें मुनिराज के सदुपदेशसे कोतवाल मदनको समझाबुझाकर छोड़देता है । नगरसे निकलकर फिर उसी सुतारके यहां पहुंचजाता है, जिस शहर में सुतारकेघर मदन रहा करता था उसी शहरमें एक पाठशाला थी. जिसमेंकि राजपुत्री और मन्त्रीपुत्र पढ़ाकरते थे । एकदिन मदन इधर उधर घूमता हुवा उस शाला के नजदीक से निकलता है, वहांपर अपनी स्वार्थपूर्ति केचिन्ह देखकर मूर्ख जैसा वेषभूषा बना उस शालमें
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पढ़नेके बहाने आने जाने लगता है, अन्तिमपरिणाममें मन्त्रीपुत्रसे प्रेम करनेवाली उस राजपुत्रीका पत्रवाहक बन अपनी चातुर्यतासे अर्धरात्रिकेसमय धनसे परिपूर्ण उस राजकन्याकेसाथ घुड़सवार हो दूसरे देशमें चलाजाता है । वहां पहुंचनेकेबाद साथमें सचिवपुत्र न देख मूर्खवेषमें उस मदनको देखकर राजपुत्री मनमें अतिदुःखित होजाती है, किन्तु मदन दासी आदि सम्पूर्ण सुविधायें उसकेलिये करदेता है जिससेकि वह जिन्दगीके दुःखमयदिन एकान्त स्थानमें बिताने लगती है । इधर मदन मूर्खकेभेषको बदलकर बाजारमें जवाहिरातकी दुकान लगाता है, धीरे २ परिचय बढ़नेकेबाद एकसमय मुक्ताफलकी परीक्षाकेलिये आमन्त्रित जौहरियोंकेसाथ यहभी राजदरबारमें पहुंचता है. सभाके अन्दर जवाहरातकी परीक्षामें सबसे अग्रगण्य होनेपर राजा उसे अपना मुख्य अमात्य बनालेता है। उस स्थानका कुछदिन अनुभवकर अकस्मात् नगरकेउपवनसे गुमहुई राजपुत्रीके ढूंडनेकेलिये बीड़ा उठाकर पुनः राजपुत्रीसे मा बापके मिलनेका बहाना ले उस शहरसे प्रस्थान करदेता है । वहांसे निकल मार्गमें वणिग्भेषको बदल जोगीका बेष बना इधर उधर फिरता हुवा जङ्गलमें तालाबके किनारे पानीका घड़ा भरते हुए एक जोगीको देखता है, समीपमें पहुंचकर जोगीके इन्कार करतेहुयेमी अत्याग्रहसे शिष्य बननेके बहाने पीछे २ चल उसके स्थानपर पहुंचजाता है। कपटनिद्रासे सोयाहुवा वही मदन रात्रिकेसमय गुफामेंसे निकलतीहुई उस राजपुत्रीको देखता है, पुनः उसी गुफामें राजपुत्रीके बन्द होनेपर नजदीकमें रहेहुये तोतेकेद्वारा सम्पूर्ण स्थिति सुन, उसके छुड़ानेकेलिये निर्जन बनमें नृत्य करतीहुई खेचरीसे
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मिल, उजड़पुर नामक नगर में आता है । वहांपर बटपैचेंटना आदि महानकष्टाको सहन करताहुवा किसी एक स्थानपर करामाती एक जोगीको देख अपनी कार्यसिद्धीकेलिये उसका शिष्य बनजाता है, शिष्य बननेके बाद जोगी उसकी परीक्षा करनेकेलिये अर्धरात्रि के समय जहांपर रोनेका शब्द होताथा वहांपर मदनको भेजता है और स्वयंभी उसके पीछे छिपकर उसका साहस देखनेकेलिये चलदेता है । मदन जब श्मशान में पहुंचकर देखता है तो शूलीपर एक तरुण पड़ाढै और उसके नीचे बैठी हुई एक स्त्री रोरही है, उसके नजदीक पहुंचकर उसके रुदनअवस्थाके कारणको दूरकर स्वयं स्थानपर आकर उस जोगी से मिलता है। उससमय उस मदनके साहसको देखकर वह जोगी उसकी सहायतासे श्मशानमें विद्या साधनेकेलिये निश्चित तिथीकर कुछवस्तु लेनेकेलिये दोनों बाजार में चलेजाते हैं । रास्ते में शूलीपर चढ़ानेकेलिये लेजातेहुए निरपराधी एक व्यक्तीको निर्दोष ठहराकर साथमें उसकोभी लेआते हैं, इसकेबाद मदन उस जोगीके विद्यासाधनके समय में आयेहुए विघ्नोंको दूरकर पारितोषिक में मनोरथोंको पूर्ति करनेवाला ऐसा एक सुवर्ण पोरषको प्राप्त करताहै । बहांसे निकलकर जहां तहां परस्पर होतेहुए झगड़ों को शान्त करताहुवा चङ्गलानामकी नगरीमें कुछ दिनतक निवासकर उजड़े हुए नगरको जोगीकेसहित अपनी करामातसे बसा, कनकावती नामकी राजपुत्रीका पति बन, मन्त्रमन्त्रितजलको लेकर उस गुफामें आता है, जहांपरकि रूपवती और तोतेके रूपमें भद्रसेण था । लाये हुये उस जलसे उस जोगीको अशक्तकर उन दोनोंको साथ में ले उसी शहरमें आजाता है, जिस नगरसे राजकन्याको
T
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ढूंडनेकेलिये निकलाथा । कुछदिवसकेबाद वह राजा लाई हुई अपनी उस पुत्रीका सम्बन्ध मदनकेसाथ बड़े समारोहके साथ कर उसको आधा राज्यभी देदेता है, कुछकाल दाम्पत्यसुखका अनुभवले फिर उस शहरमें ब्रह्मचारीका बेष बनाकर पहुंचता है जहांसेकि रात्रिकेसमयमें मन्त्रिपुत्र बन राजपुत्रीको लायाथा । नगरमें नैमित्तिक बनकर खोईहई उस राजपुत्रीको अपनी बुद्धिमानीसे राजासे भेट कराकर अतिप्रार्थनासे उसकेसाथ लग्नकर, गन्धर्वविवाहकर छोडीहई उस पूर्वराजपुत्रीको प्राप्तकरलेता है। फिर बड़े समारोहके साथ वटपुरनामके शहरमें पहुंचकर छोडेहुए उन सबकुटुम्बियोंसे यथायोग्य मिलता है, मिलनेकेबाद अपनी २ दुःखित दशाका वर्णन करतेहुये उन कुटुम्बियोंकेसाथ पुनः अयोध्या वापिस आजाता है । जन्मभूमिमें बान्धवोंकेसाथ कुछदिन सांसारिकसुखका अनुभव करतेहुए किसी एकसमय नगरोद्यानमें पधारे हुए मुनिराजके दर्शन करनेकेलिये जाता है। वहांपर पूर्वभवमें किये हुए दानके पुण्यसे तुम महानऋद्धिको प्राप्त करनेवाले बने हो ऐसा मुनिराजके मुरवारविन्दसे सुन संसारके सुखको क्षणभंगुर समझ उसीसमय दीक्षा ग्रहण करलेता है, और कुछकालपर्यन्त स्व आत्माका कल्याण करताहुवा वही मदन अन्तिमअवस्थामें-'सर्वः पूर्वकृतानां कर्मणां प्राप्नोति फलविपाकम्' यह अनुभवित अवस्थाका अनुभव धर्मप्रियजनोंको सुना सुगतिको प्राप्तकरता है। ___सं. १९९७ के धूलिया चातुर्मासमें जिससमय स्थविर मुनिश्री माणक ऋषिजी म. सा. पं. मुनिश्री कल्याण ऋषिजी म. सा. वैयावचशिरोमणी मुनिश्री मुलतान ऋषिजी म. सा. सुव्याख्यानी मुनि श्री हरिऋषिजी म. सा.
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(६)
विद्याभिलाषी मुनिश्री राम ऋषिजी म. सा. तथा मनोहरव्याख्यानी विदुषी श्री. सायरकुंवरजी महासतीजी नवदीक्षित श्री पारसकुंवरजी महासतीजी ठा. ७ विराजतेथे उससमय पं. मुनि श्री कल्याण ऋषिजी म. सा. व्याख्यानकेसमयमें भगवतीसूत्र के साथ मदनश्रेष्ठीचरित्र फरमाया करतेथे । तब कुछ श्रोताओंकीभावनाथी ऐसी रसभरी पुस्तककी प्रतियां इससमय ज्ञानप्रेमियोंकेलिये ढूंडनेपरभी दुष्प्राप्य हैं; इसलिये अगर इसकी पुनरावृति होसकेतो ठीक है । उसी उद्देश्य को लेकर प्रस्तुत पुस्तककी द्वितियावृत्ति की जारही है । अतः रचयिता तथा प्रसिद्धकर्ताके उपकारपर लक्ष देतेहुए ज्ञान प्रेमी इस पुस्तकका सदुपयोग करेंगे । सुज्ञेषु किं बहुना ।
जलगांव ता. २८-७-४१
निवेदक पं. हरिश्चन्द्र शर्मा
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पाना
पंक्ति
अशुद्धि शुद्धि ग्रहणा गहणा उच्चर्या उच्चारिया
वृद्ध करामातती करामाती भरलो भरेलो सह
वध
मदन चरित्रका शुद्धिपत्र. अशुद्धि शुद्धि | पाना पंक्ति विमलत्ता विमलता | २९ १३ बुद्ध
बुद्धि ३०४ हाणे
होण |३१ ११ । अमाग अमाप खुटाडवो खुटाबो विनाशपति वनस्पति ३३ चडत प्रणाम चढ़ते परिणाम ३४ कष्ट कुंवर
कुंवरी करी
छात्र बोलवे बोलावे दाखावो
४५ १३ किनके
सहू
तंहीर
तूही २
norm w w vv.xARAM
काष्ट
तीक्षण
तीक्ष जोगा पामा
जोगी
छत्र
पामी
5 vwww
दाखवो
शुक सुजान
मैं
सुजाज दवल
देवल
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पाना
४८
५६
६२
६६
६६
६६
६७
६७
७०
७४
७७
८२
८७
९२
९२
पंक्ति
१
९
१२
५
२
८
१२
१५
६
९
७
११
११
१४
३
अशुद्धि
म
सठ
न्टप
नृत्युक
अच्योरे
पद्मासने
सुशी
कृणा
हुँशिरी
सुरबडो
माया
बालिये
रीवके
सीले
पारवाल
शुद्ध पाना पंक्ति अशुद्धि शुद्धि
९३
छुट्याइ भद्रसण भद्रसेण
परणावी मुज
सुखे
ལྦ ལླཾ ལ ཝཱ,
सेठ
नृप
मृत्युक
अरे
पद्मासने
सुखी
कृपा
हुशियारी
मुखडो
मार्यो
बोलिये
रीषके
सोळे
परवाल
९४
| १००
|१०२
१०५
|११३
|११३
|१२२
|१२६
|१३१
१३४
|१३४
१३५
३
११
२ परगावी
१०
8
९
Mittele.
१०
सुणी
ले
भीलका
पुष्प
सुण
उडु
2
मदन
नोट:- अगर इन अशुद्धियोंसे पृथक् और कोई त्रुटियां रह गई होतों पाठक सुधारकर पढ़े ।
.
३
२
५
११
मीलका
पुष्ण
मुण
भक्षण
उहू
पदन
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॥
॥ परमात्मायनमः ॥
॥ श्री मदन श्रेष्टी चरित्र प्रारंभ ||
॥
॥ दोहा ॥ परम ज्योती परमातमा । अगम अगोचर शांत ॥ चिदानन्द नन्देशिव करण शरण उपशांत ॥ १ ॥ अरिगंजण अरिहंतजी । सिद्धकिया सिद्धकाम ॥ आचार्य उपाध्याय संत । कोटी करूं प्रणाम || २ || श्री गुरु गुणौघ सिन्धुसम । विद्या चरित्र दातार ॥ स्याद्वाद् समजाइयो | तास करी नमस्कार ॥ ३ ॥ तीर्थेश वाणी शारदा । | विमलत्ता वाहन हंस ॥ बुद्धि दाता कवि मातजी । प्रणमूं भाव अवतंस ॥ ४ ॥ चरणांबुज गुण जेष्टका । प्रास्यू धारखित ॥ पुण्य रास प्रकाशवा । कीजो मुज बुद्धवंत ॥ ५ ॥ विश्वाय के जंतु को । सुख दाता एक पुण्य ॥ जेसंचीने लाविया | तास नहीं कुछ नुन्य
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म .
॥६॥ मानव भव जिन पद धर्म । पावे पुण्य पशाय ॥ ते कारण जिनेशजी । पुण्य भणी सरप्लाय ॥ ७॥ पुण्य करोरे प्राणियां। चिंतित पावो सुख ॥ मदन वर तणी परे। गमावेगा सब दुःख ॥ ८॥ नव रस कस पूर्ण भन्या ॥ सप्त खन्डी एचरित्र ॥ सुणो, प्रमाद सहू परहरी। होवे आत्म पवित्र ॥९॥8॥ ढाल १॥ समकित रत्न चिंतामणी ॥ येदेशी ॥ पुण्य प्रकाश रास सांभलो । प्रकाश पुण्य करनारो हो ॥ सुख दाता | वक्ता श्रोताने । दुःख दोहग हरनारो हो ॥ पुण्य० ॥१॥ सर्व द्वीप मध्ये दीपतो। | लघु जम्बूद्वीप जाणो हो ॥ भरत क्षेत्र सहू गुण भर्यो । ताण्या धनुष्य संठाणो हो । पुण्य
॥२॥ देश बत्तीस हजारमें । पूर्व अधिक सोभावे हो ॥ अनेक ग्रामादि करी । मही | मंडण मंडावे हो ॥ पुण्य० ॥ ३ ॥ अजुध्या नगरी भली। ऋद्वि सिद्धिये भरपूरो हो ॥ |वण बैठी देश नायका । सर्व विधन से दूरोहो ॥ पुण्य० ॥ ४ ॥ लांबी जोयण बारेमा । | नव जोजन चोडाइहो ॥ अनेक पुरा थी परवरी । अलकासी देखाइ हो ॥ पुण्य० ५॥ गड उतंग नवरंगियो। गगन लगेछे द्वारो हो उच्च बुर्ज खाइ खोलेछ । फिरणी शोहे
१उंडी | प्रकारों हो ॥ पुण्य० ॥६॥ उच्च मेहल बहु रंगना। हवेलियांने हाटो हो ॥ त्रिवट | चौवट चौक शेरियां । शोभे शेहर अजब थाटो हो । पुण्य० ॥७। श्री वननामादिकरी।
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मनोरम्य बहु उद्यानोहो ॥ वृक्षलता गुच्छ मंडपे । शोभे नंदन वन मानोहो || पुण्यः ॥ ८ || रिपुमर्दन राजा तिहां ॥ शूर वीर शिरदारो हो ॥ तेज रूप बल बुद्ध शिरे । न्याय नीती गुण धारोहो ॥ पुण्य ● ॥ ९ ॥ सज्जन परजन मन रंजणो । प्रजा पुत्र परे पालेहो ॥ शत्रू अन्याइने गंजणो । उदार प्रणामी चाले हो ॥ पुण्य० ॥ १० ॥ श्री घरा आदी करी । नारी छेत पांचोहो ॥ रूपे रंभा अचंभसी । सीयल लज्जा गुण सांचोहो ॥ पुण्य० ॥ ११ ॥ | सचिव सुबुद्धी कला निलो । राज धुरंधर शूरोहो ॥ राजा प्रजा मन रंजणो । न्याय निपुण गुण पूरोहो ॥ पुण्य० ॥ १२ ॥ तिण नगरी मांही वसे । सब थी शिरे कैपारी हो ॥ 'वसुदत्त' नामें दीपतो । ऋद्वि घरमें अपारीहो || पुण्य ० ॥ १३ ॥ दाता भुक्ता द्रव्य को । गुण ग्राहीने उदारो हो | दया धर्मी जंत पालणा । करता दुःखी की सारोहो ॥ पुण्य० ॥ १४ ॥ सेठाणी प्रियेवती । शील रूप गुण खाणीहो । पतिव्रता नम्र जिमलता । विचक्षण घणी शाणी हो | पुण्य० ॥ १५ ॥ पुत्र चार तस दीपता । अनुक्रमें कहूं नामो हो । श्री घर मेतारंज भलो । अंगंज मैदन अभिरामोहो || पुण्य ● ॥ १६ ॥ रूप कला गुण आगलो || विद्या बलथी पूराहो ॥ धर्म कर्म जाणे सह । सुखद विनीत सनूराहो ॥ पुण्य० ॥ १७ ॥ | योग्य स्थान देखी करी । कन्या वय सम रूपेहो ॥ लज्जा विनयादि गुण भरी । परिक्ष
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1 गुण वर चूंपेहो ॥ पुण्य० ॥१८॥ अति आडंबर करि तदा । चारूं भणी परणाईहो ॥ रूपश्रीव खण्ड १
ने धन्नसिरी । प्रियकरी रतवती बाईहो ॥ पुण्य० ॥ १९॥ आनंद माहें रहें सहू । धन तन 16 को ले लावोहो ॥ धर्म कर्म जीव निगमे । नित्य वृते औछावोहो । पुण्य० ॥२०॥
पुण्य प्रकाशक रासको । मंडण पहली ढालो हो ॥ अमोल ऋषि कहे आगले । है अधिकार रसालो हो ॥ पुण्य० ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ अन्यदा वसुधर सेठजी। उष्ण ऋतुने मांय ॥ सूता भवन नी छत्तपर । अर्धनिशा जब आय ॥१॥ झण|
झणाट गगने भयो । भूषण तणो ते वार ॥ शाहा अचंभी जागिया । जोवे || Sष्टि पसार ॥२॥ दशो दिशा प्रकाशियो । देखी देवी कोय ॥ घरवस्त्र भूषण सजी। वरूप अनोपम सोय ॥ ३॥ विद्युत क्रांती सारखी । आइ ऊभी पास ॥ श्रेष्टी मधुर
वयणे करी । इम करे प्रकाश ॥ ४ ॥ कुण तुम किहांथी आविया । किण काज इण ठाम । जैसी इच्छाते कहो ॥ देवी बोली ताम ॥५॥ ढाल ॥२॥ आउखो टूटा ने सांधोको नहींरे ॥ यहदेशी ॥ त्रिदशी कहे सेठ सांभलो हो । हूं कुलदेवी तुम सुख चावू || हो ॥ आई छु थारा हितभणी हो ॥ ज्ञाने जाण्यो ते जणावूहो ॥१॥ होणहार भव्य | सांभलोहो । होणहार तेही थाय हो ॥ टाली टले नहीं कोईसेहो । इण तरे सुरी फरमाय
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हो ॥ होण ॥ २ ॥ कुलम्बा तस जाणने हो । आसण छोड्यो तत्कालहो ॥ अजाण अपराध जे कियोहो | तस क्षमा वक्षो माय हो ॥ होण ॥ ३ ॥ किण कारण पधारिया हो । किस्यो दीठो ज्ञान माय हो ॥ कृपा करी फरमाविये हो । जिम मुजने सुखधाय हो ॥ होण ॥ ४ ॥ | देवी कहे वच्छ कर्मथी हो । जबर न कोइ जग मांय हो । हरीहर इन्द्र चन्द्र किन्नरु हो। कोई न छूटा विन भुक्त्याय हो ॥ होण ॥ ५ ॥ अनादि कालथी जीवके हो । लार लाग्या है यह हो ॥ शुभाशुभ काम करायने हो । पुनरपि दुःख ते देय ॥ होण ॥ ६ ॥ जड पण बलिया जीवथी हो । जैसे नशानो स्वभाव हो । हर्षीने संचे प्राणियां हो । भोगवे त्रिन उत्साव हो ॥ होण ॥ ७ ॥ जिहां लग निज गुण भणी हो । चैतन्य चित न धरंत हो | सन्मुख होवे नहीं कर्मके हो । तिहां लग दुःख न टलंत हो ॥ होण ॥ ८ ॥ श्रेष्ट एतादिन तुम भणी हो । होतो सुकर्मको जोग हो | तेहथी अहोनिश नित्य नवा हो । मिल्यो सुभोग संयोग हो । होण ॥ ९ ॥ सुख भोगविया सहू परे हो । पण हिवे तजवा एह हो । जिण पीवी मीठी भांगने हो । तेहीज लेहरां लेह हो | होण ॥ १० ॥ इण कारण आई इहां हो। तुमनें चेतावण काज हो | पहलां जे चेते गुणी हो । तेहनी रहे जग लाज हो ॥ होण ॥ ११ ॥ आजथी दिन तीन अंतरे हो। तुमने
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श्रे.
खण्ड
उदय होसी पाप हो ॥ धन सज्जन सब छूटसी हो। तिणथी चेतावू साफ हो ॥ होण ॥१२॥ पहला ही हुशार होयाने हो । वंदोवस्त करी घरमांयहो॥ वस्त्र भूषण जापत करीहो । जिम रहेते एक ठाय हो ॥ होण ॥ १३॥ पुत्र वधूने पीयरे हो ॥ पहराइ भूषण | पहोंचाय हो ॥ पीछे विश्वासुनर भणी हो। घर माल संभलाय हो ॥ होण ॥१४॥ | नारी पुत्र साथे लही हो । रहो परदेशे जाय हो । साहस राखजो मन विषे हो ॥ दुःख | संकट जब आय हो ॥ होण ॥ १५ ॥ नेडा कठे रहजो मती हो। जिम न औलखे कोई
जात हो ॥ वेश बदल रहजो वेगला हो। जिम नहीं होवो विख्यात हो ॥ होण ॥ १६/17 | ॥ एक युगने मायने हो ॥ मिलसी ऋद्धि सिद्धी जोग हो ॥ सुख संपत पासो घणी हो | | ॥ मिलसे सहू इच्छित भोग हो । होण ॥ १७॥ इम उपाय किया थकां हो ॥ लाज
रहसी जग माय हो ॥ देश चोरी थी भीख परदेशकी हो । रूढी जगतमें कहवाय हो। | होण ॥ १८ ॥ इणही कारण चेताविया हो । हितकारक थाणी थाय हो ॥ मान सो तो | सुख पावसो हो । आगे तुमारी इच्छाय हो ॥ होण ॥ १९ ॥ वयण प्रमाण कों सेठजी |" | हो । मान्यो घणो उपकार हो ॥ सुरी आदर्श हुई तदा हो ॥ सेठ करे नमस्कार हो॥ हाणे | ॥ २०॥ ढाल दूजी देवी सीखकी हो। सेठने हुवो विचार हो ॥ अमोलख ऋषी कहे
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T
॥
सांभलो हो || आगल रसिक अधिकार हो | होण ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ चिंतातुर हुवा | सेठजी । ऊंडो करे विचार ॥ अणचिंती या आपदा । किम आई किरतार ॥ १ ॥ सुरी बचन त्रिकाल में || अन्यथा तो नहींथाय ॥ मुज कुल लज्जा रक्षवा | पहलां गई चेताय ॥ २ ॥ ति कारण दिन तीन में । करी वंदोवस्त सब ॥ निज कुटम्ब साथे लही । | जाऊँ विदेशे अब || ३ || इम अपशोस विचार थी । निद्रा गई रिसाय । सूता छे सुख सेज में । पण ते तो नहीं आय ॥ ४ ॥ जेजे युक्ती योजवी । निश्चय कीनो शाह ॥ हीज कार्य साधवा । उग्या दिन का नाह ॥ ५ ॥ ढाल ३ || थारो गयो रे जोबन पाछो नहीं आवे || यह० ॥ ते घरका सज्जन सहू । भोजनादि कर हुवा लहू । निश्चिन्त | देख्या सेठ भावे ॥ पूर्व संचित जैसा फल पावे || सेठजी सारा कुटंब तां | बोलाया एकांत मां । सत्कारीनें बैठावे || पूर्व ॥ २ ॥ कहे सुणजो सह चित लाइ । राते कुल देवी आइ । आपणा हितको चेतावे ॥ पूर्व ॥ ३ ॥ इत्तादिन था सुख लीना जैसा पूर्वे पुण्य कीना । हिवे पाप दिशा आवे || पूर्व ॥ ४ ॥ चेतो तीन दिवस मांही ॥ बहुवां पीयर दो पहचाई ॥ घर धन अन्य ने भोलावे ॥ पूर्व ॥ ५ ॥ और कुटम्ब साथै लेइ । दूर देशे जास्यां रेह । तो लज्जा अपणी रहावे ॥ पूर्व ॥ ६ ॥ मैं तो मानी दे
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खण्ड
१
lal वीनी अरजी । अव कहो थारी मरजी । नारी पुत्र तय फरमाये ॥ पूर्व ॥७॥ कीजे आपकी
जे इच्छा । हम तिणने नहीं करां मिच्छा । करो जिम सहू सुख पावे ॥ पूर्व ॥ ८॥
इम सुणी सेठजी हरख्या । सज्जन गुण वक्ते परख्या । देवी कह्यो जिम करावे ॥ पूर्व E॥ ९॥ घणा गैणा दे बहुवां ताइ । पीयरी ये दी पहोंचाइ । फिर मुनीमने बोलावे ॥ P पूर्व ॥ १० ॥ हम सहू देशाटन जाणं । पर देशे फिरी पाछा आवां । घणा दिन वीतसी
दावे ॥ पूर्व ॥ ११ ॥ थांरो पूरो विश्वास आणी । घरकी मालकी करां थाणी । इम कही सह भोलावे ॥ पूर्व ॥ १२ ॥ पाछली राते निकलवा तणो। संकेत कियो सह सज्जनो। एकही ठिकाणे पोडावे ॥ पूर्व ॥ १३ ॥ गर्गा मुहूर्त जब आयो। धन्न घणो लेइ साथ मांयो। पंच पर्मेष्टी समरावे ॥ पूर्व ॥ १४ ॥ चाल्या मन मानी दिशा मांडाई जीव
तिण बेलाइ । घर धन सज्जन छिटकावे ॥ पूर्व ॥ १५॥ गामांतरे जाइ रहिया। भोजन मकर सुखे सोइया । राते चोर धन लेजावे । पूर्व ॥ १६ ॥ जागी देख्यो धन नहीं पायो ।
मनमें पस्तावो घणो आयो । सुरी वयणथी धीरज लावे ॥ पूर्व ॥ १७ ॥जो घरके
मांही रहता । तो सर्व गमाइ दुःख सहता । इणी परे मन समजावो ॥ पूर्व ॥ १८ ॥ पाइतामें तडको थाया । संतोष कर इम रहिया। आगे गमन सहू करावे ॥ पूर्व ॥१९॥
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वार पडा मागें मिलिया । धन वस्त्र सह लूट लिया । निराधार हुह घबराबें ॥ पूर्व ॥ २०॥ कर पस्तावो आगे चल्या । काँटा भाटा बहु दुःख फल्या । किहां ग्राम किहां वने रहावे ।। पूर्व ॥ २१ ॥ चारो पुत्र ग्राम में जाइ । मेहनत कर धन उपजाइ । खान पान वस्तु लावे ॥ पूर्व ॥ २२ ॥ मांजी देवे निपाइ । छेइ जीमी तृप्त थाह । मन चायो तो क्याथी लावे ॥ पूर्व ॥ २३ ॥ इम करतां नित्य गुजारो । दुःख तणा दिन परहारो। कृत कर्म हम खपावे ॥ पूर्व ॥ ॥ २४ ॥ ढाल तीसरी अमोल भणी । जोवो
करणी कर्म तणी । डरके रेवे ते सुखी थावे ॥ पूर्व ॥ २५ ॥ॐ ॥ दोहा ॥ इम फिरतां भभूमंडले । काल केताइ मांय ॥ बटपुर ग्रामज देखियो । शेहर बडो सुखदाय ॥ १॥
सेठजी कहे कुटुम्बने । आया आपण दूर ॥ अब फिरवा शक्ती नहीं। इहां करां उदरपूर | ॥२॥ काम कोइ लगसी इहां । औलख से नहीं कोय ॥ दिन खुटावा पाप का। सहू मानी खुसी होय ॥ ३॥ शक्ती न भाडो देणकी । झोंपडी कर ग्रामबार ॥ मृतिका वरतन संग्रही । रहे सहू परिवार ॥ ४ ॥ चारूं भाइ वैपारने । फिरता ग्राम मझार ॥ अंतराय टूटे नहीं । सोचज व्याप्यो अपार ॥५॥ ढाल ४ ॥ गौतम रासा की देशी॥ छेउं मिली आपसमें । तब करे इसो विचार ॥ देखो कर्म गती आपणी। कैसी उदय
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1 हुई इण वारजी ॥ करता मोटा २ वैपारजी। उपराजता द्रव्य अपारजी । फिरता
वस्त्र गेणे भार जी । हिवे थइ रह्या निराधार जी ॥ भवी भवितव्यता सांभलो || ॥ आं ॥ १॥ पूरो पेट भरे जितो भाइ । कमा सका नहीं धन्न ॥ अन्न वस्त्र
रा सांसा पडया। तेहथी दुःखी हुयोछे तन्नजी ॥ रहवा ने पूरा न जतन्नजी। किम भकर समजावा मन्नजी। किण रीते पालां इत्ता जन्नजी। हम किण पर खटसी दिन
जी ॥ भवी ॥२॥ कोई तुच्छ वैपार थी जी । पालां अपणो परिवार ॥ द्रव्य लागे नहीं। तेहमां । ऐसो करिये विणज इणवार जी ॥ नहीं चाहिये बीजारो आधार जी। नरेवां
कधी लाचार जी । नहीं कष्टसे जावां हार जी। ऐसो कोइ एक करो निराधार जी ॥ 18 भवी ॥ ३ ॥ सेठ कहे भाइ एहवो तो। छे कठियारा नो काम ॥ नित्य काष्ट लावो वनधकी ||
तिणरा नहीं लागे दाम जी ॥ कोई खुशामदी नो नहीं काम जी ॥ आपणी पण पूगसी
हाम जी । पण कष्ट पडे घणो चाम जी । चारूंवन्धू धरी ते हाम जी ॥ भवी ॥ ४|| १ धन | कोइक कष्ट करी तिहां जी। कमायो थोडो वित्त ॥ रस्सी कुदाली खरीद ने । का|E
छडी वान्धी चारूं मित्त जी । जावे वम मांहे धर हित जी। दारुक भारी लावे नित्य जी बेची बजारमें लेवे वित्त जी । तेहथी माल लावे इच्छित जी ॥ भवी ॥५॥ नित्य
लक्कड
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नवो नाणो गृही जी। नित्य नवो लावे धान ॥ नित्य पीसी निपजावह । तेहनो सह करे * खान जी । इम दिन आवे मध्यान जी । क्षुधा व्यापे असमान जी । तृप्त होवे पी पान
जी । इम चलावे गुजरान जी ॥ भवी ॥ ६॥ एक दिन गया चारी जणा जी। मौली ले वा वन मांय ॥ सरिता उलंघी निकल्या । गेहरी झाडीमें जाय जी ॥ कापी काष्ट ने भारी | बंधाय जी । तब मेघ घटा उमंगी आय जी । वर्षण लागी मोटी धाराय जी । चारो
भाईने चिंता भराय जी ॥ भवी ॥७॥ रखे पूर आवे नदीनो जी। रुकां आंपा इण | जाग । मात तात दूरा रहे । उतरवानो जावे लाग जी। चाल्या चहूं तिहां थी भाग जी ।। मोली सिरपर बोज अथाग जी । पण न गिणे चिंता नो छागजी । जोयो नदी में | K पांणी अमाग जी ॥ भवी ॥ ८॥ कांठे छक सरिता भरी जी। चउजणा जोइ नेण ॥ | धस्को पज्यो छाती विषे । तब कहवा लाग्या वेण जी । इणथी अलगा रहो सेण जी ॥ एतटनी थइ वेरण जी ॥ क्षुधा भी लागी दुःख देण जी। किस्यो करणो कहो हैणं जी ॥ भवी ॥९॥ समय २ वारी चडे जी आयो चारांने पग ॥ पाछाते फिरवा लग्या। नहीं दीसे जावाको लग जी ॥ पाछा जावे किहां भग जी । जल उछाला खाय अथग |जी । भय जागे सूनो लागे जग जी। तब जोवण लाग्या खंग जी ॥ भवी ॥१०॥
१ नदी
२ अवी
३ आकाश
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16 वट वृक्ष पासे आविया । देखी चड्या उतंग ॥ मौली बान्धी एक डालपे। पडे नहीं तिम |
तंग जी ॥ ठन्डथी थूजे थर २ अंग जी । बैठा चारूंही धरत उमंग जी । ढाल चौथी |
चडते तरंग जी । कही अमोलख अभंग जी ॥ भवी ॥ ११ ॥ दोहा ॥ अब्धी पूर उतर | अन्धारासी । जास्यां अपणे गेह ॥ तात मातने भेटस्या। इम चउं कल्पे तेह ॥ १॥ कृष्ण पक्ष
काली घटा । कृष्णतम कृश चित ॥ नेणा निज करना लखे। विसर्या ते निज हित ॥ २ || |॥ अन्न नहीं उरने विषे । शीतल बाजे वाय ॥ सरण एक तरु डालनो । बिजलिया झबकाय ॥३॥ थाक तणा संजोग थी। सुस्ती व्यापी अंग ॥ आपसमें चारों वदे ॥ रहो ||
हुशारी एढंग ॥ ४ ॥ प्राप्त कष्ट खुटाव वा । कोइक छेडो बात ॥ जिमए काल अतिक्रमें KI वामिले तातने मात ॥५॥ ढाल ५॥ बण जारारे यह ॥ सुणो भाईरे ॥ श्रीधर
कहे एम । दुःख मां बात सी आवडे ॥ सुणो भाईरे ॥ सुणो भाईरे ॥ जीव चिंतामें हपूर ॥ अन्य कामे किम प्रवडे ॥ सुणो भाईरे ॥१॥ सुणो भाईरे ॥ मेतारज कहे तामभू
चित माहे उपजे जेही ॥ सुणो ॥ सुणो॥ तेही कहो इणवार । जे जे मनमां आवही ॥ सुणो। २॥ सुणो ॥ अंगज कहे सल्लाठीक । किमही काल खुटाडवो ।। सुणो ॥ सुणो॥ जेजे मनमां चहाय ॥ तेते कही देखाडवो ॥ सुणो ॥ ३ ॥ सुणो ॥ मदन कहे हां गम्मत
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इण सरखी दूजी नहीं ॥ सुणो ॥ सुणी ॥ कहो पहली थे तीन ॥ पछे महारी कहस्यं | सही ॥ सुणो ॥४॥ सुणो॥ श्रीधर कहे भ्रात । शरम आवे कहतां मनरही। सुणो
॥ सुणो ॥ दुःख में ऐसी बात । न करवी पण कहूं सही ॥ सुणो॥५॥ सुणो ॥ इण | | विरियारे मांय । मेहल होवे सत खंडियो ।। सुणो ॥ सुणो । रोशनी सुख सेज । भोग | जोग सहू मंडियो ।। सुणो॥ ६ ॥ सुणो ॥ कुंवरी राजारी होय । रूपे रुडी संग करूं रली । सुणो सुणी ॥ यह मुज हिवडां विचार । प्रभू कृपा ए जासी फली ॥ सुणो॥ ७॥ सुणो ॥ दूजो कहे ठीक बात । तुमने इण वेला आवइ ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ म्हारा | मननी बात । तुमने देवू दरशावह ॥ सुणो॥ ८॥ सुणो॥ ऊची चन्द्रावली होय। घृत पूरित दधीने संगे॥ सुणो॥ सुणो । मशालाए झगमग । गरमा गरम खावू मनरंगे ॥ सुणो ॥ ९॥ सुणो स्त्रियादि परिवार । बैटूं गादी तकिया धरी ॥ सुणो ॥ सुणो॥ | ओडूं शाल दुशाल । यह होवे तो मन रली ॥ सुणो ॥ १०॥ सुणो । तीजो कहे
अहो भ्रात । मुज मन यह नहीं चाहावइ ॥ सुणो॥ सुणो इच्छू मावित्रनी सेब से | जो जोग वाइ मिलावह ॥ सुणो ॥ ११ ॥ सुणो ॥ नित्य करूं मावित्र भक्ती । नर्म विछोणा पाथरी | सुणो ॥ सुणो । इच्छित भोजन वस्त्र । मांगे जोदेवू अर्पण करी । सुणो॥ १२॥ सुणो॥ मावित्र पावे सुख । तो फिर मुज दुःखको नहीं ॥ सुणो ॥ सुणो॥ कव
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खण्ड
* मिलसी ए जोग । जब मनसा स्थिर हो रही ॥ सुणो ॥ १३ ॥ सुणो॥ मदन कहे ||
मुज विचार । मोटो छे सहू थी घणो ॥ सुणो ॥ सुणो॥ कांस्यु हँस सो सर्व । मूर्ख
कही मुजने हणो । सुणो ॥ १४ ॥ सुणो । तेहथी किम कहवाय । सहू कहे तूं कपटी|* संघणो ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ सुणी हमारी बात । दाखे नहीं मन तुज तणो ॥ सुणो ॥१५॥
सुणो॥ मदन कहे सुणो तब । मुज मनरी आश्चर्य चरी ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ जो कृपा करे ईश ॥ तो मैं लेस्यूं इच्छित वरी ॥ सुणो ॥ १६ ॥ सुणो॥ अधिपती होवू मेय । मोटा २ चार राजनो ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ हय गय दल परिवार । ऊठे वरूदावली गाजनो* ॥ सुणो ॥ १७ ॥ सुणो ॥ वलीराज पुत्री चार । परगूं रूपे सुन्दरी ॥ सुणो ॥
सुणो ॥ मिले अक्षय मुज ऋद्वि । तो सब इच्छा लूं भरी ॥ सुणो ॥ १८ ॥ सुणो माटिसिदिनव निध । लेई मिलूं जो तातने ॥ सुणो ॥ सुणो॥ तो देव सर्व सुख ।
शावासी दीजो जातने ॥ सुणो ।। १९॥ सुणो ॥ इम सुणी ॥ तीनों बात । इड २ कर हँसी पड्या ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ वहावा मदन तुज मन । इम कहतां कर तस अडया ॥ja सुणो २० ॥ सुणो॥ मदन बात धुंद माय ॥ असावध बैठा हूंतो ॥ सुणो ॥ सुणो॥3 धक्को लाग्यो तास । पडियो पाणी मा खुतो ॥ सुणो ॥ २१ ॥ सुणो ॥ उपकी ते तत्काल । | वही चाल्यो मजधार ते ॥ सुणो ॥ सुणो ॥ तीनों चमक्या ताम। करवा लग्या हा
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हा कार ते ॥ सुणो ॥ २२ सुणो ॥ हिवे जोवो वक्त की बात । कयां सहूं सिद्ध थावह ॥ सुणो ॥ णो ॥ ढाल पंचमी सुविचार | अमोलक ऋषि गावई ॥ सुणो भाईरे ॥ २३ ॥ * ॥ दोहा ॥ हाक सुणी भाई तणी । वहता मदन कहे एम ॥ कह्या कार्य सह सिद्ध कर । फिर मिलस्यूं भर क्षेम ॥ १ ॥ चल्या आगे मझधार में । चिंते जो आवे | खाड || कदाक तिण माहें पहूं । तो भांगे मुज हाड ॥ २ ॥ तब तिहां दामनी तेजमें। काष्ट वहतो जोय ॥ साहस घर तेहने ग्रह्यो । आधार अधिको होय ॥ ३ ॥ चड बैठ्यो तस ऊपरे । जिम घोडे असवार || पाघडी बांधी काष्ट मुख । साही बाग तुखारे ॥ ४ ॥ | जलथल रचना देखता ॥ गाता जावे गीत ॥ हिवे सानिध करता मिले । ते सुण जो घर प्रीत ॥ ५ ॥ ढाल ६ ठी ॥ कामणगारो कूकडोरे ॥ यह० ॥ तिण अवसर श्री पुरमारे । पद्म खाती गुणवंतरे ॥ रहे करे कुल वैपारनेरे । सोमा नारी सोहंतरे ॥ १ ॥ आखडी आइ खडी रहेरे || आं ॥ पण पूर्व अंतराय थीरे । द्रव्य घणो नहीं पासरे ॥ | दुष्कर करे आजीविका रे इम दिनवीते तासरे ॥ आखडी ॥ २ ॥ एकदा सुभाग्यो दयेरे । धर्म घोष ऋषिराजरे ॥ बहु साधू संग परिवर्यारे । तारे जग जल झाजरे ॥ आ ॥ ३ ॥ आया श्रीपुर उद्यान मारे । उतर्या आज्ञा लेयरे ॥ तप संयम रत्त मुनीबरारे । मोक्ष सामे चित देयरे ॥ आ ॥ ४ ॥ माली लेइ भेटणारे । आया रिपुजय दरबाररे ॥
१ घोडी की लगाम ज्यो
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म.श्रे.
दीधी बधाइ मुनी आवियारे । हर्ष्या सुणी आपाररे ॥ आ ॥ ५ ॥ चतुरंगणी सैन्या सजीरे | राणी कुँवर सहू साथरे || अन्य घणा चाल्या हर्षधीरे || दर्शण करण सनाथरे आ ॥ ६ ॥ खाती काष्ट लेवा जावतोरे । जाता देखी बहु लोकरे ॥ मुनी उपदेश सुणवा तणोरे । पद्मने जाग्यो शोकरे ॥ आ ॥ ७ ॥ आया सहू मुनी बंधीयारे । धर्म श्रवण ने काजरे ॥ जग हित करवा कारणेरे । दे उपदेश मुनिराजरे || आ ॥ ८ ॥ धर्म एक सुख दायनोरे । जेहनो दया छे मूल रे || औलखो जीव अजीवनेरे ॥ ज्यों होवे सुख को सूलरे ॥ आ ॥ ९ ॥ जीव कह्या छे कायना रे । पृथवी अप तेउवायरे ॥ विना शपति ने त्रस छेरे । सुख दिया सुख पायरे ॥ आ ॥ १० ॥ निजातम सम जाणिये रे जीव भरी जेह देहरे ॥ चार स्थावर में असंख्य छेरे । हरी में अनंता लेहरे ॥ आ ॥ ११ ॥ विनाशपति नर सारखी रे | कही श्री भगवान रे || उत्पन्न तरुण ने वृधता । रोग | संजोग सेनाण रे || आ ॥ १२ ॥ कषाय संज्ञा चउ अछेरे । लाजणी अर्क देखापरे ॥ और अनेक हरी विषेरे । मनुष्य शार्हष्य जणायरे ॥ आ ॥ १३ ॥ तिण कारण नहीं दुह | वियेरे । जो इच्छो निज हितरे ॥ पद्म सुणी ने चमकिवोरे । चिंते ज्ञान ते चितरे ॥ आ ॥ १४ ॥ मुज जाती कर्म एह छेरे । कीजिये कांह उपायरे ॥ ऋषिजी कहे हरीया काष्ट नेरे । बन्धव काटणो नायरे ॥ आ ॥ १५ ॥ तेहीज लीधी आखडीरे । दृढ चडेत प्रणामरे ॥
खण्ड १
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आगे चाल्यो कतारमेंरे । एकदेव सौचेतामरे ॥ आ॥१६॥ जात सुतारछे एहनीरे । किम | *पालीसके करारे ॥ परीक्षा करनी सही एहनीरे । तेलाग्यो तस लाररे । आ॥ १७ ॥ अन्य
मनुष्य देशना सुणीरे । करि शक्ते पञ्चखाण रे ॥ आया तिणही दिशा गयारे । मन माहें हर्ष आणरे ॥ आ ॥ १८ ॥ अवसर जोइ मुनिवरारे । कियो जनपदे विहाररे ॥ तारे भव्य उपदेश थीरे । करै आत्म उद्धाररे ॥ आ॥ १९ ॥ परोपकारी साधूजीरे । तिरे तारे में संसाररे ॥ हलुकर्मी मारग लगेरे । जैसे पद्म सुताररे आ ॥ २०। हिवे द्रढता त्याग कीरे । सुणियों सह नर नाररे ॥ ढाल छट्टी अमोलक कहेरे । आखडी होवे तैयार रे ॥ | २१ ॥ दोहा ॥ त्याग परीक्षा पद्मनी । करण लग्यो सुर लार ॥ सहु कष्ट हरिया किया । शक्तिये बन मझार ॥ १॥ पद्म फिरे पण नमिले । सुखी लकडी तास ॥ रीतोही आयो घरे । सांज समय उल्लास ॥२॥ नारी पूंछे नाथ जी । खाद्यन लाया आज ॥ तेकहे | सोगन मुज दिया । मिलिया गुरु महाराज ॥ ३॥ हरीयो काष्ट न काटवो । हरीये हरीको वास ॥ सूखो न मिल्यो लाकडो ॥ जोयो बन फिर खास ॥ ४ ॥ तेहथी रीतो आवियो । जास्युं फिर प्रभात ॥ भूखा सूता दंपति ॥ व्यतिक्रमी ते रात ॥५॥ ढाल ७ मी ॥इम | समकित मन स्थिर करो ॥ यह ॥ त्याग निभावे बैरागिया । कष्टे द्रढ रहाय ॥ ते निश्चय मुखिया हुवे । दोनों भव माय ॥ त्याग ॥ १॥ पद्म प्रभाते चलिया । कुहाडो लेइ हाथ ॥
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भी आया बनते जोवता । हृदय जगनाथ ॥ त्याग ॥२॥ निर्जीव दारुक पेखता। भमता हुई।
खण्ड १ श्याम ॥ अमेर हाथ आवा देनहीं । हार्या तब हाम ॥ त्याग ॥३॥ तिमहीं आया सांजका। पोताने घेर ॥ भारज्या औलंभोदियो । किस्यो फंद भर्यो हेर ॥ त्याग ॥४॥ दुःख किहां || २ लक्कड लग भोगबूं । काटी दो दिन भूख ॥ अवतो रहवावे नहीं ॥ गयो तन सहू सूख ॥ त्याग ||R ५॥ काल तो जरूर लावजो । जे जातां लगे हाथ ॥ नहीं तो घर आजो मती । सौ वातां में | एक बात ॥ त्याग ॥ ६॥ पद्मतो चुपको सुइ रह्यो । दूजे दिन आयो वन । फिरतो २/ में थाकियो । बैव्यो उत्तरे वदन ॥ त्याग ॥ ७॥ चिंते घर जाइ स्यूं करूं । नारी करसी क्लेश , | सूतो तिहाइ तरु तले । चित जपतो जिनेश ॥ त्याग ॥८॥ त्रिदश जोइ द्रढता। विप्र रूप बणाय ॥ अती बृद्ध त्वचा लटकती । कर काठी सहाय ॥ त्याग ॥९॥ लांबी धोती
पहरबा । ननोइ गल माल ।। पांव खडावां खटकती । शिव तिलक छे भाल ॥ त्याग॥१०॥ * शंकर नाम उच्चार तो। आयो पद्ममे पास ॥ आशीर्वाद देइ कहे । किम वैव्यो उदास त्याग॥ | ११॥ पद्म कहे मैं ली आखडी । जैन मुनीवर पास ॥ हरीयो बृक्ष छेदूं नहीं। तीन दिन हुवा तास ॥त्याग॥१२॥ सूखो लक्कड न मिल्यो । क्षुधा पीडे छे मुज ॥ तिण थी तन दुर्बल भयो । कह्यो वीतक तुज ॥ त्याग ॥१३॥ विप्र कहे मुख बन्धिया। फरेबी घणा होय ॥दुःखी करे संसार ने ॥ जगको बीज खोय ॥ त्याग ॥१४॥ भोगोपभोगनी वस्तु जे। सरजी मानव
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काज ॥ नर देह नारायण समी । सुख दीजे घटणाज ॥ त्याग ॥ १५॥ खान पान सुख
भोग में । नहीं पाप लगार ॥ आपणो शास्त्र इम कहे । छोड फंद निसार ॥ त्याग ॥१६॥ * सूतार कहे भूदेवजी । न कहो कूडो वचन ॥ जो शास्त्र इम ऊच्चरे । तो किम हुवा वामन ॥ | त्याग ॥ १७॥ भक्षाभक्ष गिणवा तणो । रह्यो नहीं काम ॥ माता पत्नी एकसी । विष अमृत तमाम ॥ त्याग ॥ १८ ॥ जोसरज्या नर कारणे । वे स्वादी केम ॥ स्वर्ग नर्क कुण|R जावसी। झूटा शास्त्र नेम ॥ त्याग ॥ १९ ॥ जैन विना मत फैनसो। निग्रन्थ विन पाखंड || दया विवेके धर्मछे । ए मुज श्रधा अखंड ॥ त्याग ॥ २०॥ सुणी विबुध चुपको रह्यो।
पाम्यों चित चमत्कार ॥ ढाल सात अमोलख कही । धन्य २ पद्म सुतार ॥ त्याग ॥ २१ ॥ १आकाश ॥ दोहा ॥ नभ में घुघरी घम घमी । दशो दिश हुयो प्रकाश ॥ देव आइ चरणे नम्यो।
करे नम्र अरदास ॥ १ ॥ अज्ञ अधर्मी अजाण में । आयो डिगावा काम ॥ जेहथी उपजीविका । तेमा धरी द्रढ हाम ॥२॥ तीन दिवस कष्ट थां समो। पण न चढायो मन ॥ | उत्तर पण योगज दियो । थोडेही ज्ञान रमन ॥ ३॥ क्षमो अपराध कृपा करी । मांगो जे | तुम चहाय ।। धन्य जनक जननी जेह । तुम सरीखा जन्म्याय ॥ ४॥ पद्म प्रेक्षी अचंभियो । प्रत्यक्ष धर्म के फल ॥ रंगाणो धर्म रग रगे। भइ श्रद्धा निश्चल ॥५॥ ढाल ८ मी॥ राम आया जमाना खोरा ॥ यह ॥ भाइ धर्म सदा सुख कारी। पूरे इच्छा पाले ज्यांरीरे॥भा॥
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|| आं॥ पद्म कहे देव हूं किस्यो मांगू । हुइ मुज पर गुरु कृपारीरे ॥ भा ॥ १ ॥ सर्व मनोरथ || | पूर्ण हारी । या आखडी अछे हमारीरे । भा॥२॥ देव दर्शन निर्फल नहीं जावे । तेहथी | हुकम दो कोइ उच्चारीरे ॥ भा ॥ ३ ॥ इम आग्रह सुरतणो जाणी। पद्म कहे जो इच्छा |* तुमारीरे ॥ भा ॥ ४ ॥ सूको काष्ट म्हारे नित्य आवे ॥ जे इच्छं ते जावे घडारीरे ॥ भा॥ ५॥ दोनों वर सुर तबही स्मरप्या । अनेवली निधी देखाडीरे ॥ भा॥६॥ कर प्रणाम
गयो निज ठामे । पद्म जी चित हारीरे ॥ भा ॥ ७॥ दिन ऊगा गुरु देव समरिया। में द्रव्य ते साथ लीधारी रे ॥ भा ॥ ८ ॥ आयो निज घर ग्रन्थी बताइ । हर्षी जोइ घर नारी रे । भा ॥९॥ कांहक तो आज लाया दीसे । उभी होइ सत्कारी रे ॥ भा ॥१०॥ रात रह्या था आप किहां जा । निज बालाने विसारी रे ॥भा॥११॥ घर अंदर जाइ पोटली खोली । अपार द्रव्य देखाडी रे ॥१२॥ धर्म पसाये दुःख दूर टलिया। देव संतुष्ट थयारीरे॥ है भा ॥ १३ ॥ अव कोइ मेहनत करनी न पडसी । थास्ये मन चिंत्यारीरे ॥ भा ॥१४॥ सुतारणी घणी हर्षानंदे । करे भोजन तैयारीरे ॥ भा ॥ १५ ॥ अष्टम तप को पारणो कीघो।
तृप्त हुईछे इच्छारीरे ॥ भा ॥ १६ ॥ सूखे समाधे सूता निद्रामें । तब देव स्वपन दिधारीरे IR||भा ॥१७॥ दिनऊगा नित्य सूखो लकड । नदीमें आवसी वह तारीरे ॥ भा॥१८॥ कर
| लम्बाया हाथमें आवसी । इच्छित लीजो बणारीरे ॥ भा॥ १९॥ जाग्रत हुई सत्य स्वपन
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संभार्यो । देवता दीधा जाण्यारी रे ॥ भा ॥ २०॥ चल आया सरिताने कांठे । पूर जातो
जोयो बारीरे ॥ भा ॥ २१ ॥ लोक घणा जोवाने आया। तमाशा आश्चर्य कारीरे ॥ भा॥ 12|२२ ॥ आगल सुणियों मदन चरित्र । ढाल आठ अमोल उच्चारीरे ॥ भा ॥ २३ ॥8॥ |
दोहा । तिण अवसर ते मही विषे । काष्ट तुरी ज्यों स्वार ॥ मदन जी जल क्रीडा करत।। * आया चल मझधार ॥१॥ श्रीपुरने ढिंग आवता । तब ऊग्यो दिनकार ॥ ठाठ जम्यो |
तट ऊपरे । जोये मदन कुंवार ॥ २॥ सरल साद कहे कहाडियो । कोहक मुजने पार ॥ | उपकार होसी अति घणो । मान स्यूं मैं आभार ॥ ३॥ हा हा कार सहुकार रह्या । पडीन !" सके नद माय ॥ जीवित वाहलो सहू भणी । मरण मुखे कुण थाय ॥ ४॥ अंगुलीया पुन्य र बहु करे ॥ जोइ मदन पुण्यवंत ॥ नलकुँवरने सारिखो ॥ साहसवंत दीखंत ॥५॥ ढाल में |९ मी ॥ इण सरवरीयारी पाल ऊभी दोह नागरी ॥ यह ॥ पद्म खाती हर्षाय । दीर्घ कर | तब कियो ॥ हो सुजाण ॥ दीर्घ कर तब कियो ॥ सहायक देवने स्मर । ते काष्ट पे चित दियोहो ॥ सु०॥ ते काष्ट ॥ तत्क्षण मुडियो काष्ट । आगा कर पद्मने हो ॥ सु०॥ आयो॥ उतरी मदन तत्काल । गृह्या तस कद्मने हो ॥ सु० ॥ गृह्या ॥१॥ तात जी महाउपकार। १पग आज मुजपे कियो हो ॥ सु०॥ आज ॥ मरण कष्ट छुडाय । दानजी तब दियो हो ॥ सु०॥ दान ॥ तुम सम अपर न कोय । म्हारे इण जगत में हो ॥ सु० ॥ म्हारे ॥ विनय वचन
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म.श्रे.
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सुणी पद्म । हृयों मोह रक्त में हो ॥ सु० ॥ ६० ॥ २ कहे धन्य २ मुज भाग । लाभ अचिंत्यो थयो हो ॥ सु० ॥ लाभ || अनुत्र्याने मिल्यो पुत्र । सकल गुण युक्त यो हो ॥ सु० ॥ सकल || आणंदी चांप्यो उर । घरेले आविया हो । सु० ॥ घरे ॥ कहे नारीने ए पूत । पुण्य जोग पाइया हो ॥ सु० ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ माता कही लाग्यो पांय । सुता रिणने तदा हो ॥ सु० ॥ सुता० ॥ चिरंजीवो दी आसीस । मस्तककर ठवी यदा ॥ होसु || मस्तक || जिमायो सुअन्न । भोजन निपावइ हो ॥ सु ॥ भोज | उत्तम वस्त्र भूषण । तस पहराबह ॥ होसु ॥ तस ॥ एकांत बैठा सुतार | पूछे मदन भणी हो ॥ ॥ पूछे | पडियो जलधार । उत्पति कहे तुज तणी हो ॥ सु ॥ उ ॥ मदन कहे हूं वाणिक । कर्म उदय आविया हो ॥ सु ॥ कर्म ॥ कर्याकठियाराका काम । काष्ट | शिर वाहिया हो ॥ सु ॥ काष्ट ॥ ५ ॥ एकदा भारी काज । गयो कतार में हो ॥ सु ॥ गयो ॥ वृष्टि अणचिंती धाय । पड्यो जलधार में हो ॥ सु ॥ पड्यो || लाग्यो इंडो हाथ । तिरी इहां आवियो हो ॥ सु ॥ तिरी ॥ आप कियो उपकार । सुख सह पावियो हो ॥ सु ॥ सुख ॥ ६ ॥ सुतार सुणी हर्षाय । कहे सुण नंदना हो ॥ सु ॥ कहे ॥ ए छे तुज घर धन । जाणे मति फंदना हो ॥ सु ॥ जाणे ॥ निज इच्छा जिम तूं । इहां सदा रहियेहो ॥ सु ॥ | इहां ॥ सीखो हमारो कर्म । चहिये सो वणाइये ॥ होसु ॥ चाही || ७ || आनंद माहे मदन ।
खण्ड १
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१ पक्षियों में
रहे पदम घरे ॥ होसु ॥ रहे || बुद्धि जोग गृही काष्ट । केइक वस्तु घडे ॥ होसु ॥ इ ॥ | देखी हर्षे सुतार | अहो बुद्ध सागरु | होसु ॥ अहो || थोडा में सख्यिो सर्व । हम काम कीनो सरु | हो | हम ॥ ८ ॥ जाणवा तुज प्रतीत । मैं काम कराइ हो । होसु ॥ ॥ छे देव सहाय । करेते चावियो || होसु ॥ करे || छोडीने सब कर्म । धर्म अब कीजिये ॥ होसु ॥ धर्म ॥ करो सद्गुरुकी भक्ती । अर्हत स्मरीजिये ॥ होसु ॥ ९ ॥ ए थइ दशमी ढाल । पुण्यवंत पग २ सुखी || होसु || पुण्य ॥ मदन तणी परे जोवो | कहे अमोलख ऋषि ॥ | होसु ॥ कहे || रसीलो मदन चरित्र । आगे भव्य सांभलो || होसु ॥ आगे ॥ कारणथी पके । काज । न रखिये आमलो ॥ हो ॥ सु ॥ १० ॥ दोहा ॥| एक दिन मोटो काष्ट ले । पद्म मदन बोलाय || तूं कहे सो इण काष्ट की। देऊं वस्तु बणाय ॥ १ ॥ मदन कहे म्हारे मने । गगन उडनरी आय ॥ शक्ती होवे तो करो । धारूं जहां ले जाय ॥ २ ॥ पद्म तदा नीपाइयो । | गरुड खंग शिरदार ॥ कला रखी तिणरे विषे । उडे जे इच्छा चार ॥ ३ ॥ मदन कृष्ण का | नंदना । थारो नाम मदन | कृष्ण वाहन ए गरुड छे । कर तूं तेहवी चमन ||४|| कला सह देखाइ तस । मदनजी हष्यों अपार || अब म्हारा वाहया हुसी । भलो कियो उपकार ||५|| ढाल १० मी ॥ कुँवरां साधू तणो आचार ॥ यह० ॥ देखो साहसवंत कुँवार ॥ पुन्यवंत पग २ लहे सत्कार || आं ॥ मदन कहे हूं लावूं फिराइ । अब्बी अंतलिख मझार ॥ श
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म. श्रे.
१२
करूं मुज मन की पूरी । तत्क्षण हुवा तैयार ॥ देखो ॥ १ ॥ कर प्रणाम सुतार तातने । | हुवा गरुड असवार ॥ यथाविधी से कला फिराइ । उड्यो गगन ते वार ॥ देखो ॥ २ ॥ वन गिरी ग्राम अनोखा जोतो। फिर तो इच्छा चार || महंदपुर के पासज आया। दीठो शेहर | मनोहार ॥ जो ॥ ३ ॥ तिण वाहिर एक बनमें उतर्या । गरुड कला संवार । बड की कोचर मांही छिपाइ । आया गाम मझार || देखो || ४ || देवपुरी सम नगरी देखी । भवन विचित्र प्रकार || ऋद्धि सिद्धिये भरी पूरी । सुशोभित बजार | देखो ॥ ५ ॥ एक हाट देखी अति मोटी । माल मंड्याकेइ सार । काम करे तिहां मालक बहुला । श्रृंगारे झलकार || देखो ॥ ६ ॥ ऊंची गादी तकिया टेके । बैठा सेठ सिरदार | वृंदाला रूपाला रंगीला । भूषण वस्त्र श्रृंगार || देखो || ७ | मदन जी ऊभा रह्या तिहां आ । जाणी श्रेष्ट उदार ॥ सेठ सत्कारी पास बैठाया ॥ जोह दिव्य अनुहार || देखो ॥ ८ ॥ मदन पुण्य प्रतापे हाटे || थोडी देर | मझार ॥ स्वपियो माल घणो ते अवसर । इच्छित नफे वैपार ॥ देखो ॥ ९ ॥ ते देखीने सेठ चितवे । घरी आश्चर्य अपार ॥ इसो माल कदी नहीं खपियो । आज ही तूठा किरतार || देखो || १० ॥ या पुण्याई इणी कुँवर की । पगतणे प्रसार । जो सदा रहेये मुज पासे । तो भराय भंडार || देखो ॥ ११ ॥ प्रेम धरीने पूंछे कुँवर थी । किणी ग्राम रहनार ॥ जात पांत थाणी प्रकाशो । इहां आया किण द्वार || देखो ॥ १२ ॥ मदन कहे हूं छू परदेशी । वाणिक घर
खण्ड १
१२
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GEN
अवतार | पेट भरणने फिरूं प्रदेशे । इहां न ओलखनहार || देखो ॥ १३ ॥ विश्रामो जोवूं इण ग्रामे । जो मिले कोइ रखनार || तो तिहां रही दिवस गुजारूं । आयो इहां इम धार ॥ देखो ॥ १४ ॥ इम सुणी शाहजी हर्षाया। फिर बोले घर प्यार || किस्यो बदलो लेहने रहस्यो । | ते करो शीघ्र उच्चार | देखो ॥ १५ ॥ किस्यो काम कारस्यो मुजस्यूं । ते करो पहला जहार ॥ नहीं गुलामी करवा इच्छू । फिर कहूं मैं पगार || देखो ॥ १६ ॥ सेठ कहे बहु काम करनारा ॥ फिकर न कीजे लगार || सदा म्हारे पासज रहजो । साथ चलो दरबार || देखो ॥ १७ ॥ सुणी मदन हर्षाइ बोले । लोभ न मुज लगार | उत्तम अन्न नित्य पेट भरी दो । सजूं सारो श्रृंगार || देखो ॥ १८ ॥ यह कबूल जो आप करो तो । रहस्यूं आपके लार ॥ मानी शेठ खुशी हो राख्या । मदनने निज आगार || देखो ।। १९ ।। षड्रस भोजन धाप जिमायो । करी घणी मनवार | उत्तम वस्त्र गेणा पहराय ॥ वणिया देव कुँवार || देखो ॥ २० ॥ पुण्य | पसाय मदन सुख पाया रहे तिहां सुख मझार ॥ दशमी ढाल अमोल प्रकाशी। आगे मन्योग अधिकार || देखो ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ तेहीज मेहंदपुरी तणा । राजा केतूसेण ॥ प्रेमला नमे सुन्दरी । नमण खमण मधु बेण ॥ १ ॥ तस उदरंसु ऊपनी । कन्या रति अनुहार । रंभा मंजरी रंभासम | मोहनबारी नार ॥ २ ॥ उपवय मद माती थई । चहाय हुई भरतार ॥ जोगी जोडी ना मिल्या । रही अवस्था कुंवार ॥ ३ ॥ एक दिन न्हाइ सज्ज थइ ।
१ देव
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खंड १
कर सोले सिणगार ॥ इच्छित नर वरवा भणी । बैठी गौख मझार ॥ ४ ॥ सहेली साथे तिहां । जोवती पंथा चार ॥ जे जोगो आह मिले।तस आगे अधिकार ॥५॥ ढाल११ मी। मातूं जाय कहिये मांय ॥ यह ॥ तिण वेला राजमांय । वस्त जोहए ॥ भट मेल्यो श्रेष्टी|
घरेए ॥ नृपत जी मंगाए । ते ले चालिये ॥ सुणी हर्ष सेठजी धरे ए॥१॥ सज पोते सिणमें गार । राज, सभा जिस्यो ॥ मदनने पण सजावियो ए ॥ नौकरने सिर माला । देइवहु | परे॥ ठाट बहु धराबियो ए ॥ २॥ चाल्या मध्य बजार।राय भवन तले ॥ मदनजी लारे &
संचरे ए ॥ रायकन्या तिण वार । कंतने कारणे ॥ देखती मार्गे जे फिरे ए ॥३॥ जोड K काम कुँवार । यौबन मद भर्यो ॥ सुन्दर सौम्यता मन वसी ए ॥ ए पर देशी कोय । राय | ॐवर अछे ॥ फिर न मिले जोडी इसी ए ॥ ४ ॥ लेख लिखी तत्काल । ममनी बातडी ॥5 | थोडामें प्रतिी घणी ए ॥ देवे सहेली हाथ । हाथे दीजिये । शीघ्र जाइ कुँवर भणी ए॥५॥ तेतले आया नजीक । मदन मोहन तिहां ॥ सहजे ऊंचो जोहयो ए॥ मार्या नेणना बाण । रायनी कन्याका ॥ सेन करी ऊभो रह्योए ॥ ६॥ समजो चतुर सुजाण । कहे तब सेठने ॥ आप आगे पधारिये जी ॥ मुजने कारण एथ । हमणा नीवेडने ॥ शीघ्र आवू अवधारिये | | जी ॥७॥ लघुनीत करतो जाण सेठ आगे चल्या ॥ दवी कुँवर ऊभा रह्या ए॥ सहेली दौडी आय । पत्र ते करदियो । बांची भेद मदन लह्यो ए॥८॥ कहे दासीने तेह । जाइने की
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प्रहर
२ आकाश
जिए ॥ तुज बाइने इण परे ए रात ॥ गयां एक जाम । दार सहू वन्ध करी ॥ रहजो मेहल *ने ऊपरे ए ॥ ९ ॥ खिडकी खुली राख । रहजो जागता ॥ हूं आस्यूं अंतलिख थी ए झूठी
न मानो एह । अब्बी जाऊं ॥ काज थसी ए सीखथी ए ॥ १० ॥ मदन फिर्या तत्काल । हर्षी सहेलडी । आश्चर्य करती ते गइ ए ॥ कहे कुँवरी थी उमंग । बाइजी सुणो ॥ करामाती ए नर सही ए ॥ ११ ॥ सुरविद्या धर एह । भरियो गुण नीलो ॥ बल रूप बुद्धि | | निपुणोजी ॥ कही अचंभकी बात । प्रीती थी भरी ॥ जेतो चित स्थिरे सुणो जी ॥१२॥ आवसी व्योम में उड । प्रहर निशागयां ॥ बात ए झूटी न हुवे जी॥कीजो इच्छा पूर्ण। | बन्दोवस्त सह । जोगो जोडे जग जुवेजी ॥ १३ ॥ सुण कुँवरी होय । धन्य घडी गिणे । चट पटी लागी मिलणकीजी ॥ कन्या व्यावनी ताम सामग्री सजी । गुप्त पणे तिहां हिलणकी जी ॥ १४ ॥ ऊपर गौखडा मांय । मित्राणी संगे । प्रेम तणी बातां करे जी॥
दिन लगे जुग समान । मुशकले आथम्यो । सहू दार बन्ध किया घरे जी ॥१५॥ १ आँख भ सजिया सह सिणगार । छिपके सहू तिहां ॥ वणी रती अनुहारसी जी। बैठी गोखे आये। २ आकाशग नभ में ठवी । आषाढ मेघ जल धारसीजी ॥ १६ ॥ लागी लग्न अतीमन ॥ कब | *
आई मिले । घडी जावे वर्षा समीजी ॥ जो जावे सणकार । चमके चित में ॥ नेणा जावे | तिहां रमीजी ॥ १७ ॥ हिवे मदन करामात । श्रोता सांभलो ॥ ढाल थइ एकादशीजी ॥ में
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जेहवो जेहनो लेख । तेह वो नीपजे । अमोल कहे हुई जिशी जी ॥ १८ ॥ ॥दोहा॥
खण्ड १ दरबारे दीधो घणो ॥ सेठजी तबही माल ॥ लाभ घणो उपराजियो । मदन पुण्ये ते १४ में काल ॥१॥ हा सेठजी अतिघणा । जाणी मदन पुण्यवंत ॥ पाछा आया निज घरे। ,३ रातको
मदन साथ हरखंत ॥ २॥ सन्ध्या समय सेठथी । मदन करे प्रकाश ॥ आज जामनी में जाइने ॥ रहस्यूं देवी आवास ॥ ३ ॥ साधन करस्यूं मंत्रनो ॥ छ जरुरी काम ॥ आज्ञा दीजे |
मुज भणी । प्राते आस्यूं आम ॥ ४ ॥ सेठ सुणी कहे कीजिये । जिम सुख तुमने थाय ॥ में शीघही प्राते आविये । जिम हममन हर्षाय ॥५॥ ढाल १२ मी ॥ आठ कुवा नव बाबडी,
पणी हरीरे ॥ यह ॥ शीघ्रआया तब वागमें ॥ मदमेश्वरजी ॥ मनमें धरी आणंद ॥ हो मन मोहनजी ॥ अम्ब कौचर थी कहाडियो॥ मदनेश्वरजी ॥ वेणुदेव वसुनंद ॥ हो , १४
मन ॥ १॥ कला जमाइ तेहनी । मद० ॥ यथायोग्य तत्काल ॥ हो मन ॥ आरूढ हुवा | २ सवार # सावध पणे ॥मद०॥ गया गगन गत चाल ॥ होमन ॥ २ ॥ आया राय सदन परे । मद॥ | चौगिरदा फिर जोय ॥ हो मन ॥ वंदोवस्त पुक्त देखियो ॥ मद ॥ज्यों भेद न प्रकट होय ॥
हो मन ॥३॥ खुल्ली वारीने मारगे ॥मद०॥ पेठा मांय मदन ॥ हो मन ॥ कुँवरी झट ऊभी हुई ॥ मद ॥ श्रमित हर्ष वदन ॥ हो मन ॥४॥ सत्कारी मधुरी लवे ॥मद०॥ पावन कीघो भवन ॥ हो मन ॥ कृतार्थ करी मुज भणी ॥ मद ॥ दे बल्लभ दर्शन ॥ हो मन ॥५॥ जब
१ गरुड
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थी दीदार पेखिया ॥ मद ॥ तब थी आश अपार ॥ हो मन ॥ अव ते पूर्ण कीजिये ॥ मद || कर गृही सफल अवतार हो ॥ मन ॥ ६॥ सामग्री सह सज्ज छे॥ मद ॥ लग्न
तणी इण ठाम ॥ हो मन ॥ गंधर्व लग्न करी इहां ॥ मद ॥ पुरी जे शीघ्र हाम ॥ होमन ॥ 5७॥ मदन कहे कुँवरी भणी ॥ सुणो कुँवरी जी ॥ तुम छो नरपति जात ॥ हो मन ॥
हूं वाणिक कुले उपनो ॥ सुणो ॥ कुवरी ॥ किम ग्रयो जावे हात ॥ हो मन ॥८॥ जोगी जोडी जो मिले ॥ सुणो कुँवरी हो ॥ तो जीवित सुख पाय ॥ होमन || रायपुत्र राजा घरे । सुणो ॥ रह्यांथी शोभा थाय ॥ होमन ॥ ९॥ तिण कारण पहली कहूं॥ सुणो ॥ मत भूलो जोइ रूप ॥ होमन ॥ वाणिकने घर दुःख घणो ॥ सुणो कुँ॥ कहते सुणिये खरूप । होमन ॥ १०॥ उठणो पाछली रातरा ॥ सुणो ॥ धान चूरणी फेर ॥ होमन ॥ दिवस उगे जेतले॥सुणो ॥ लेघट जावे जलनेर । होमन ॥ ११॥ नीर लाइ अग्नीढिगे ॥ सुणो॥ रुहो निपजावो अन्न ॥ होमन ।। जिमावो परिवारने ॥ सुणो ॥ रखी प्रसन्न सहू मन्न | होमन ॥ १२॥ सासू सुसरा जेठाणी दी ॥ सुणो ॥ भोलावसी घणा काम ।। होमन ॥ ते तो सहू करना पडे ॥ सुणो॥ विसामो नहीं नाम ॥ होमन ॥ १३ ॥ मांजणों लीपणों सीवणों ॥ सुणो ॥ इत्यादी घणा काज ॥ अहो निशी करवा पडे ॥ सुणो ॥ तिहां किमरहे तुम लाज ॥ होमन ॥ १४ ॥ पाछे पस्तावो पडे ॥ सुणो ॥ जन्म |
चक्की
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खण्ड
* सौ झुरतां जाय ॥ होमन ॥ तेहथी मुजने सीखदो ॥ सुणो ॥ जाइ सोवू निज ठाय ॥ म. श्रे.
होमन ॥१५॥ उपवयमें तुम आविया ॥ सुणो ॥ पिता नहीं परणाय ॥ होमन ॥ में तिणथी इच्छो मुज भणी ॥ सुणो ॥ घणा उतावला थाय ॥ होमन ॥ १६ ॥ उतावला 1 ते वावला ॥ सुणो॥ धीरा गंभीरा हो। होमन ॥ तिण कारण समता धरी ॥ सणो॥
कुल घर लज्जा जोय हो । मन ॥ १७॥ राजाजी गुणवंतछे ॥ सुणो ॥ परणासी थोडे RK काल ॥ होमन ॥ जोगी जोडी मिलावसी ॥ सुणो ॥ अवसर जोवो हाल ॥ होमन ॥ | १८॥ तुम हमनी ओलख नहीं ॥ सुणो ॥ बली नहीं संबन्ध ॥ होमन ॥ गुप्त कार्य
करता थकां ॥ सुणो ॥ हृदय होवे अन्ध ॥ होमन ॥ १९ ॥ ९आयो तुम संकेत थी॥ IFE सुणो॥ एदीधी हित सीख ॥ होमन ॥ रखे माठो लागे मन विषे ॥ सुणो ॥ न धरजो
कोई तीख ॥ होमन ॥ २० ॥ शीघ्र जवाब हिवे दीजिये ॥ सुणो ॥ जाऊं निज ठिकाण || होमन ॥ अमोल कही ढाल बारमी ॥ सुणो ॥ देखो मदन गुण ज्ञान ॥ होमन ॥ २१॥ ॥ दोहा ॥ रंभा सुणो बचनए । आश्चर्य पाइ अपार ॥ उभय तरुण एकांतमें ॥al मन राख्यो इण वार ॥ १॥ सरल संतोषी सीलवंत ॥ इण सम अवर न नर ॥ चिंतामणी मुज कर चड्यो । कोई पुण्य अनुसर ॥२॥ रूप अनोपम काम सम । | अमृत वयण उचार ॥ सुसंस्थान संथित तन । बुद्धिप्रबल गुण धार ॥३॥ जाती
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कुलथी काज स्यूं । मुजने गुणथी काम ॥ जो एहवा करथी गया। फिर दुर्लभ्य ए नाम ॥ ४ ॥ इम निश्चय मनमें कियो । गुणानुरागी होय । कर जोडी मधुरेश्वरे ॥ | पभणे सुणजो सोय ॥ ५ ॥ ढाल || १३ मी ॥ हूं तुज आगल सीं कहूं कनैया ॥ यह० ॥ कर जोडी विनंती करूं ॥ बालेश्वर । लुली २: करूं अरदास हो । केसरिया बाल ॥ निष्ठुर वचन इम उच्चरी ॥ बालेश्वर || नहीं कीजे निरास हो । केसरिया लाल ॥ १ ॥ अबलानी अर्ज अवधारिये ॥ बालेश्वर ॥ आं ॥ मुजने तुमचो आधार हो । केसरी ॥ धन सुख राज मैं नहीं चहूं || बाले ॥ हूं गुणीने इच्छनारहो ॥ के || अब ॥ २ ॥ यथा | जोग जोडी मिली || बाले || धैर्यकिम घरे मनहो । के ॥ पुनरपि ते किम पामिये ॥ बाले ॥ परदेशी नो वतन हो । के ॥ आ ॥ ३ ॥ जाती कुलगुण थी लह्यो । बाले || पूछवा नो नहीं काम हो । के ॥ हूं लो भाणी गुण देखने || बाले || अबर नहीं मुज हाम हो ॥ केस ॥ || अब ॥ ४ ॥ कहे सो सो करस्यूं सही ॥ बाले ॥ यथाशक्ति मैं काज हो ॥ केस ॥ काम | थी सुस्ती ना रहे || बाले ॥ ते मांहे किसी लाज हो ॥ केस || अब ॥ ५ ॥ अण विचार्यो जे करे || बाले || ते पाछे पछताय हो ॥ केस ॥ हूं तो परीक्षा कर ग्रहूं ॥ बाले || चिंतामणी जाणी पाय हो | केस || अब ||६|| हूं गुण जोई आपका || वाले || निश्चय कर्यो मन माय हो | केस || बीजो नर वांछू नहीं || बाले || जाणुं तातने भाय हो ॥ केस || अब ॥ ७ ॥
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खण्ड
में हिवे ताण नहीं कीजिये ॥ बाले ॥ ली मुज परीक्षा पूर हो ॥ केस ॥ बातामें वक्त घणा
गया ॥ पाले ॥ हिवणा ऊगसी सूर हो । केस । अब ॥ ८ ॥ वरस्यों तो जीवस्यूं सही , ॥ बाले ॥ सौ बातां की एक बात हो । केस ॥ इत्तापर छिटकाव सो ॥ बाले ॥ तो प्राण आपरे साथ हो । केस ॥ अब ॥ ९॥ जब थी मुज दर्शन भया ॥ बाले ॥ तब थी तर
से मन हो ॥ केस ॥ हिबे इच्छा पुरी करो ॥ बाले॥ पावन कीजे वदन हो ॥ केस॥ || अब ॥१०॥ इत्यादी सुणी मदन जी॥ श्रोता जन ॥ चिंते ऊंडो अपार हो ॥ विवेकी
लाल ॥ ए निश्चय था रागणी ॥ श्रोता ॥ ताण्यामें नहीं सार हो ॥ विवेकी लाल ॥ | अब ॥ ११॥ इच्छित लक्ष्मी आमिली ॥श्रोता । अबतो किम ठेलाय हो ॥ विवेकी ॥ईकारो ||
तदा भो ॥ श्रोता ॥ तब कुँवरी हर्षाय हो ॥ विवेकी ॥ अब ॥१२॥ मित्राणी की है हसाख थी। श्रोता ॥ करार किया आप समाय हो ॥ विवेकी ॥ वरमाल मदन कंठे ठवी॥
श्रोता ॥ मदन मुद्रा पहराय हो ॥ विवेकी ॥ अब ॥ १३ ॥ इणविध लग्न समाचरी । श्रोता ॥ तिहां रह्या दोय जामहो ॥ विवेकी ॥ कौल कर्यो काल आवस्यूं ॥ श्रोता॥ गरुड सजायो जाम हो ॥ विवेकी ॥ अब ॥ १४ ॥ होश्यारी से रहजो तुमे ॥ श्रोता ॥ बात रखे प्रगटाय हो ॥ विवेकी ॥ अवसर उचित करस्यां सही ॥ श्रोता ॥ इणपरे मदन चेताय हो॥ विवेकी । अब ॥ १५॥ रंभा कहे कर जोडने ॥ बाले ॥ मुज आपनो आधार हो ।
१६
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१ आकाश
केस || जोडी जिम निरवाह जो ॥ बाले || जन्म भर एकतार हो ॥ केस || अब ॥ अश्वासन | देह संचर्या ॥ श्री ॥ व्योम मार्ग मदनेश हो ॥ विवे || प्रेमातुर कन्या भई ॥ श्रोता ॥ नेणा नीर वरसेश हो ॥ विवेकी ॥ अथ ॥ १७ ॥ सहेली हाँसी करे ॥ श्रोता । सिद्ध हुआ | सहू काम हो || विवेकी० ॥ हिवे हूं जावूं भुज घरे || श्रोता || दोपहेरे आवस्यूं आम हो ॥ | | अ || १८ || सहेली गया पछे ॥ श्री ॥ उजागराने जोग हो ॥ विवे० ॥ आलस आयो अंग में || श्रोता ।। लोटी सेजमें छोग हो ॥ विवे | अब ॥ १९ ॥ निद्रा आह घेरो दियो ॥ श्री ॥ करती उठण विचार हो । विवे ॥ परवस हुई ते तत्क्षणे ॥ श्री ॥ होवे जे होणहार हो । विवेकी || अब ॥ २० ॥ गम नहीं क्षिण अंतर तणी ॥ श्रोत ॥ ज्ञानी बचन प्रमाणहो || विवे || ढाल तेरे अमोलख कही ॥ श्री ॥ ते सुणो आगे बयान हो ॥ विवेकी || अब ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ जगत विषय प्रकाशतो ॥ ऊगो तब दिनराय ॥ राणी चिंते मन विषे । रंभा जागी नाय ॥१॥ धाय मात भेजी तिहां । ला बाइने जगाय ॥ सिरावणी वेला हुई || ते किम आई नाय ॥ २ ॥ धात्री आई जोहयो । गइ मनमें धस्काय ॥ हाय २ यो रातमां ॥ कुण कीधो अन्याय ॥ ३ ॥ एकरात रही वेगली । तेमां थयो अकाज ॥ राय राणीने दाखवूं ॥ जिम रहे म्हारी लाज ॥ ४ ॥ थर २ अंग धूजावती ॥ आई राणीने पास || नेण नीर बर्षावती ॥ ऊभी न्हांख निश्वास ॥ ५ ॥ ढाल १४ मी ॥
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खण्ड
राघव आविया हो ॥ यहदेशी ॥ देख राणी घाबरी कहे ॥ छेघाहने कुशल ॥ इम किम , IN भूडी थइ तूं ॥ कारण कांह कल ॥१॥ सुगणा सांभलो हो । होणहार श्वरूप ॥ आं॥18
में शीघ्र कहे तें कांइ दीठो । पाछी आई केम ॥ कालजो मुज थर २ छे । छे बाइ ने क्षेम ॥ १ कहे सुगणा ॥२॥ तोतलाती बोले दासी ॥ मा मुजथी न कहाय ॥ आप निजरे जोवो चाली
में बाइ कियो अन्याय ॥ सुगणा ॥ ३ ॥ धस्को पडियो धाय बचने । शीघ्र जाइ जोय ॥ कुँवरी |
को कुचेन देखी । हिये प्रज्वलित होय ॥ सु॥४॥ कहे वेगी ला राजाजी । देखावो एहाल ॥ | पापणी पडदामें रेइ । किया कर्म चंडाल ॥ सु॥ ५॥ दासी दौडी गई भूपपे । राणी
साब बुलाय ॥ बाइजी का मेहल माही । शीघ्र चलो महाराय ॥ सु॥६॥राजा सुण | * आश्चर्य पाइ । शीघ्रता तिहां आय ॥ राणी कुँवरीने बताये । देखो कियो अन्याय ॥ सु॥
७॥राज सूक्ष्म द्रष्टे जोह ! व्यभचारीना चेन ॥ प्रजल्यो तब क्रोधानल थी । रक्त थझ्या #नयन ॥सु ॥ ८॥ अंग रक्षक धायथी कहे । बोल सच एवार । किण साथे इण कर्म फोड्या । | नहीं तो खासी मार ॥ सु ॥९॥ धाय कहे मैं रजा लेइ गह मित्राणी गेह ॥ प्रात आइ | | कह्यो मातने । अनर्थ दीठो एह ॥ सु ॥१०॥ महारा देखत बाई स्वपने । न जाणे या बात ॥ एका एक किम बणियो । अचंभो मुज आत ॥ सु ॥ ११॥ गुन्हेगार हूं नहीं मालक । पूछो बाइ थी आप ॥ झूठ सांच की खबर पडसी । जणासी सहू साफ ॥ सु
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॥१२॥ क्रोधातुर नरेश्वर तव । ठोकर सेज ने मार ॥ जगाइ कुँवर भणी । घबरी उठी ते वार ॥ सु ॥ १३ ॥ अति शरमाइ सेज छोडी । दूर ऊभी जाय ॥ वस्त्रथी अंग ढांक धूजे । नींची दृष्टि ठहराय ॥ १४ ॥ राय कहेरे कुल खप्पन । कलंकित निर्लज्ज ॥ किणरे । साथे कर्म फोड्या । बोल सत्यकूकज ॥ सु॥१५॥ उत्तमकुलमें होइ उत्पन्न । किम सूज्यो | एकाम ॥ पवित्र कुलने पापणी थें। आज कीधो श्याम ॥ सु॥१६॥ जन्मतां जो मरी होती। अथवा इत्ता दिन ॥ तो एकवक्त रोइ रहता। न होतो ए रिन ॥ सु ॥ १७ ॥ इत्यादी बहु कटु बचने । राय को तिरस्कार ॥ कुँवरी उत्तर देत नाहीं ॥रही ते मौन धार ।सु॥१८॥
राणी कहे ए विषकन्या । सांपण सम देखाय ॥ जीवती नहीं काम की। दो यमसदन में | पहोंचाय ॥ सु॥ १९ ॥ दास ने राय हुकम देवे । न्हांख खाडी माय ॥ कुँवरी कहे हूं पडूं जाइ । जिम सब सुख पाय ॥ सु॥२०॥ मेहल पाछल खाइ ऊंडी। गोखे ऊभीरेय । सर्व क्षमाइ जप प्रमेष्टी । छुट्टी मूकी देह ॥ सु ॥ २१ ॥ पडी कुंवरी रोइ माता।
आ बैठी निज ठाम ॥ राजाजी पण गया सभामें ॥ पस्ताई मन ताम ॥सु ॥२२॥ संप्रमेष्टी स्मरण प्रभावे । आल न आयो रंच ॥ ढाल चडदे कही अमोलक । आगे जोवो
|संच ॥सु॥ २३ ॥ ॥ दोहा॥ राय तलार बुलाय ने। कहे धमकाइ एम। जुल्म १ कोटवाल
होवेहे रात में। तूं नहीं जाणे केम ॥१॥राते परण्या नर तणी। चौकस कर पुरमाय ॥
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में पकडी लावो तेहने ॥ जेणे कियो अन्याय ॥२॥ कोटवाल प्रणाम कर ॥ आयो में अ. निज ठिकाण ॥ सगला मार्ग रोकिया। भागे नहीं कोई जाण ॥ ३ ॥ सुभट गुप्त पठा
#विया ॥ करो चौकस पुरमांय ॥ राते परण्या नर भणी । दो मुज कर झट लाय ॥ ४ ॥ | डंडेरो पिटाइयो । प्रगट करी इनाम ॥ जो हम चौर छिपावसी । तस करस्या बदनाम ॥
५॥ ढाल १५ मी ॥ तावडा धीमोसो पडजे ॥ यह ॥ कर्मगति टाली नहीं जाइ हो ॥ R कर्म० ॥ आयु पुन्य प्रबल जिनोंका ॥ बाल बांको न थाइ ॥ ७॥ मदन रयण पाछली
उडीने । आयो वाग माही ॥ वेणुदेवनी कला संकोची। बड कोचर ठाइ ॥ कर्म ॥१॥ | दिन उगता सेठ तणे घर आया चलाइ ॥ मदन वदन शाहजी अवलोकी । आश्चर्य अती | पाइ ॥ कर्म ॥२॥ देवी पूजा विध अनोखी। तुज अंग देखाइ ॥ परण्यो दीसे कोइ |
सुन्दरी । मदन मुलकाइ ॥ कर्म ॥ ३ ॥ उत्तर कांइ न देतां मदनजी। कामे लगाइ ॥ ॐतेतले तो डूंडी पिटाती । सेठ सदन आइ ॥ कर्म ।। ४ ॥ कान लगाइ सुण सेठ । जे रात | परण्याइ ॥ ते हाजर होवो राज कचेरी ॥ छिप्या दंड थाइ ॥ कर्म ॥५॥ सुणी शाह | | घबराया तत्क्षण । मदनने बोलाइ ॥ सज थावो जल्दी तुम जावा । नृपत तेडाइ ॥ कर्म ॥ ६॥ कहे मदन घबरासो ना तुम । वे फिकरे रहाइ ॥ आल नहीं आवा दूं जरा भर । मुज थी तुम ताइ । कर्म ॥ ७ ॥ नहीं करीमें चौरी जारी । तिणरो डर आइ । राजकन्या मैं
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| परण्यो राते । आग्रह कराइ ॥ कर्म ॥ ८ ॥ इम सुणी शाह अती घबराया । निकल बाहिर भाई ॥ धारी बात अनोखी सुणने । कालजो धर्राई ॥ कर्म ॥ ९ ॥ करी प्रणाम चाल्या मदनजी । कहे भटने आइ ।। मैं परण्यो छू राते जाइ । राजकन्या तां ॥ कर्म ॥ १० ॥ सुणी आश्चर्य सहूजन पाया । देखे सिपाइ ॥ रूप तेज बुद्ध साहस पूरो । विस्मयते पाइ ॥ कर्म ॥ ११ ॥ भेद बात कोई नहीं जाणता । ते अब जाण्याइ ॥ राजकन्या से करी अनीती । मोटो ए अन्याइ ॥ कर्म ॥ १२ ॥ पण अखंभो यह छे भारी । जरा न डर पाइ ॥ उपतीने | योहाथे आयो देखो सुराइ ॥ कर्म ॥ १३ ॥ इमं अनेक बातां करता। पकडी लेजाइ ॥ नगर रक्षक के पासे लाया । बात दी दरसाइ ॥ कर्म ॥ १४ ॥ कोतवाल फिर पूंछचो ते हने । तिमहीज सुणाइ ॥ तलवर पण आश्चर्य अतिपायो ॥ साचो ए जणा ॥ कर्म ॥ १५ ॥ खबर पहोंचाइ नृपने पासे । चोर जे पकडाइ || आप कहो तो हाजर लांवा । हुकम ते करांइ ॥ कर्म ॥ १६ ॥ नृप कहे हम ऐसे दुष्टका । मुख न देखाइ ॥ परवारो बधस्थान | ले जाइ | सूली दो चडाइ ॥ कर्म ॥ १७ ॥ नृप हुकम जाणी भट पासे । मदनने बन्धाइ ॥ मदन कहे क्यों बन्धो कहो तिहां । चालू हूं भाई ॥ कर्म ॥ १८ ॥ कणेर माल डाल | गले में । रतांजणी लगाइ || फूटा ढोल तस आगे बाजे । मशाणे लेजा ॥ कर्म ॥ १९ ॥ सहश्रागम जोवाने मिलिया | देखी विलखाइ ॥ मदन मनमें फिकर न किंचित । रा
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म.श्रे.
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१ जंगल में
१ पास
|मुख मुलकाइ ॥ कर्म ॥ २० ॥ पुण्य पसाये जोग वण्यो शुभ । ते सुणो चितलाइ || ढाल पन्नरमी ऋषि अमोलक । कर्मगती गाइ ॥ कर्म ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ तिण अवसर धर्मजय ऋषि । करण चरण गुणधार ॥ मांस २ तपस्या करी । करे आत्म उद्धार ॥ १ ॥ कार्नन में सदा रहे । मांस लगे करे | ध्यान || पारणे आवे ग्राम में । लेइ शुद्ध अन्न पान ॥ २ ॥ संतोषे मनु देहने । पुनः जावे वन मांय ॥ इम हिज तिण दिन आविया ॥ मेहंदपुरीनें पाये ॥ ३ ॥ गोचरी वक्त हुई नहीं । जाणी रह्या तरुतल || ज्ञान ध्यान में रम रह्या । मेरु परे अचल ॥ ४ ॥ तिण अवसर तिण मारगे । मदन सह परिवार ॥ आया अचिंत्य ते पेखतां ॥ दीठो मुनी दीदार ॥ ५ ॥ ढाल १६ मी ॥ श्री जिन आया हो सोरठ देश मझार ॥ यह० ॥ मुनिवर दीठा हो | तब तिहां मदन कुँवार || रोम २ हुलसित धया ॥ धन्य घडी महारी हो । दीठा दीनदयाल || चरण धरण मन उमया ॥ १ ॥ तब तलवरने हो ॥ कहे थंभो इण ठाम ॥ दर्शन लेवूं गुरु | राजना । ते संग रहियो हो । आया ऋषिवर पास || पहलीही कीजे धर्मकाजने ॥ २ ॥ सविनय वंदन हो । नमन कियो तीन वार ॥ कर जोडी ऊभा रह्या ॥ धन घडी म्हारी हो । अंत समय महाराय ॥ दर्शन दीठाजी सहू पापजगया ॥ ३ ॥ इम सुण वाणी हो | साधु आश्चर्य पाय || ध्यान पारीते इम उच्चरे ॥ अंतः सम्यो भाइ हो । किम
खण्ड १
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दाखो इणवार ॥ किम ए मनुष्य गम किहां चरे ॥४॥ मदनजी वीती हो । कही||१ जातेहैं | सहू साची जी बात । जेजे पोते अनुभवी ॥ दया सागर हो । पर उपकारी महंत ।।। | तेहने बचावा इम उच्चरे ॥५॥ सुणो कोतवाल जी हो । पामी मनु अवतार ॥ अकृत्य | | थी वारो आत्मा ॥ किंचित आयु हो । शेर आधा अन्न काज ॥ पापे बुडावो भ्रात मा॥ ६ ॥ सहू जीव मांही हो । मोटो पचेन्द्री जाण ॥ मनुष्य हत्या हो जबरी घणी ॥ सर्व समयनो हो । सार दयाही वखाण ॥ जे उपजे हो हलुकर्मी भणी ॥७॥ अहिंसा | | लक्षणहो । परम धरम दया होय ॥ मरम पेछाणो धर्मनो ।। वैर विरोधेहो। जीव नरक
में जाय ॥ भारो बान्धीहो मोटो कर्म नो॥ ८॥ जिन रीते पान्धेहो । जीव कर्म अजाण ॥ | भोगवे तिम दश भवलगे ॥ ऋण नहीं छूटे हो ॥ कदी बदलो विन दीध । दृष्टांत
जाणो ज्यों भरम भगे ॥९॥ खन्धक जीवे हो। तेरा क्रोड भव मांय ॥ सराइ काचरो | में चीरियो ॥ साधूने वेसेहो । तस भग्नीनोजी कंत ॥ चर्म उतारी बदलो लियो ॥ १०॥ गजमुखमाले हो लाख निन्याणु भव मांय । शोक सूत रोट बन्धाविया ॥ सोमल
सुसरे हो ॥ सिर धर्या खेर अंगार । कर्म काटी मोक्ष सिधाविया ॥ ११ ॥ इम बघणा के हो ॥ उदाहरण शास्त्रने माय । श्रीमद्भागवत अध्याय तेरमें ॥ मांडव ऋषि हो ।
टीटोडी मारी कुशाग्र । सूली चडाया भव फेरमें ॥ १२॥ जीव हिंसाथी हो ॥ दालिद्री |
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खण्ड
सुवर्ण
* कुष्टि जी थाय । दोनु भवे संकट लहे ॥ इम सुणी कम्पो हो । दो भव दुःखथी हो || भ्रात दया लावो हो जो निज हित चहे ॥१३ ॥ जो कोह देवे हो । दान सुवर्ण
सुमेर । पृथवी भरीने हेम थी। कोह छुडावे हो। मरतो एकही प्राण दयाके ते तुल्ये * नधी ॥ १४ ॥ जिम निज आत्मज हो। सदा जीवणो चहाय ॥ तिमहीज जाणो सहू प्राणिया ॥ जो पोतापे हो । कधी संकट आय ॥ तो धवरावे तिम सहू जाणिया ॥ १५ ॥ | कोहक सहायक हो । होह संकट बचाय ॥ किसो गिणो हो तुम ते भणी ॥ इम | अंतरमें हो पेखो ज्ञानकी दृष्टि ॥ ए अवसरे आह अणी ॥ १६ ॥ सुणी उपदेशज हो ॥ चमक्यो चित कोटवाल ॥ दीन दयाल धन्य आपने ॥ भलो बचायो हो । अनर्थथी मुज आज ॥ मरम जाण्योंजी धर्म पापनो ॥ १७ ॥ जाणी जोइ हो । नहीं करूं मोटो अकाज ॥ धर्म बान्धव मदन माहेरो ॥ आप पसाये हो । दीथो अभय एठाय ॥ उपकार मानां दोनूं थायरो॥१८॥ हिवे नहीं करस्यूं हो। कोह पचेंन्द्रीकांघात | ए प्रतिज्ञा |
मुजने खरी ॥ आज थी आपने हो ॥ मान्या में गुरु देव । धर्म दयामें देव जिनवरा ॥18 E| १९ ॥ मदनजी लीधा हो । ते वेला पच्चखाण । पर नारीने जाणूं बेनडी ॥ तस मात तातज हो । खुशी थी मुजने परणाय ॥ तेहीज मुज प्रिया धरा ॥ २० ॥ दोनों प्रतिज्ञा हो ॥ लीनी इम उत्सहाय । वंदणा करी दोन भावस्यूं ॥ मदन पसाये हो । समकिती
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थिया कोटवाल ॥ दया धर्मी उत्साहस्यूं ॥ २१ ॥ मुनी पधार्याहो । ग्राममें गौचरी भी
काज ॥ तलवर मदन आगे चल्या । लौकिक राखण हो । मदन बन्धन मांय ॥
नस धमें प्रेमे मल्या ॥ २२॥ धन्य २ मुनिवर हो ॥ करे मोठो उपकार ॥ मरण | अणी थी उगारिया ॥ दोइने तार्या हो ॥ ढाल सोलमीरे माय ॥ अमोल वंदे गुण ||
रागिया ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ थोडा दूरा जायने । सहू थी कहे कोटवाल ॥ देर घणी || माहु मारगे। दिन थोडो रह्यो हाल ॥१॥ आज घात नहीं होवसी । देख्यो जासी काल | सहू जावो निज स्थान में। सहू गया होह खुशाल ॥२॥ कोटवाल कहे मदन थी। सदगुरु प्रशाद ॥ दोनों भणी उगारिया । मेटी सह विषवाद ॥३॥ हिवे जावो | तुज वेगला ॥ फिरीन आवो ए ग्राम ।। मदन कहे अवसर विना । नहीं आस्यूं इण ठाम में ॥४॥ए उपकार थांको हुयो । भवो भव न भुलाय । शक्ती आया फेडस्यूं ॥ इम कहीर मदन सिधाय ॥५॥ ढाल ११ मी ॥ उग्रसेन की लली ॥ यह ॥ देखो धर्म पसाय । पुण्य प्रबल जीव सब सुख पाय ॥ आं॥ कोटवाल खुशी हुइ । गयो निज ठाम ॥ धर्म भेद जाणी ते पायो आराम ॥ देखो ॥ १ ॥ वक्त गुजयाँ मारण । भूले पड़ी तेह ॥ सत्यजुग दयावंत । कुण लेवे छेह ॥ देखो ॥ २ ॥ धर्मध्यान नित्य कर । रहे कोटवाल ॥ इम तेहने सुखे तिहां। बीते काल ॥ देखो ॥ ३॥ हिवे मदन जी आया।
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वाग मझार ॥ गरुड निकाली । तसलियो सुथार ॥ देखो ॥ ४॥ हुइ सवार तक फेरी में कल ॥ सग गग गगन में गयो ते चल ॥ देखो ॥५॥ रात्री पडया थी आया कुँवरीके मेहल ॥ सहेली रुदंती देखी। पूछे खेल ॥ देखो ॥६॥ तिणरे वीतक सहू। दियो दरसाय ॥ सुणीने पाछा फिर्या बिलखाय ॥ देखो ॥ ७ ॥ होण हार ते तो टाली । टले नाय । प्रकाश करी जोइ । खाडी में जाय ॥ देखो ॥८॥ पतो नहीं | लाग्यो पाछा। वाहिर आय ॥ श्रीपुर भणी चाल्या । मन समजाय ॥ देखो ॥९॥
पद्म खाती तणे । आया घेर ॥ उतरिया मदन जी। देखे चउ फेर ॥ देखो॥१०॥ २२ खाती खातणने । ते लागा पांय । दंपती देखी तस । घणा हर्षाय ॥ देखो ॥११॥
आवो २ प्यारा पूत । लीनो उठाय ॥ उरथी चांपी घणो। प्रेम जणाय ॥ देखो ॥१२॥ दिन घणा किहां तुम । लगाया भ्रात ॥ तुम नहीं सांजे आया । हम घबरात ॥ देखो। १३ ॥ रखे गरुड थी पडे । झोकज खाय ॥ आलंभा दिया घणां ॥कारीगरजी तांय ॥ देखो ॥ १४ ॥ लाय लागी पेट माही । दुख्यो घणो मन ॥ रंग संग छूटयो । नवीर भायो अन्न ॥ देखो ॥१५॥ आज मोटा भाग । पाया तुज दर्शन ॥ हृदय कमल हुयो। पेखी प्रसन्न ॥ देखो ॥ १६ ॥ मदनजी कहे। मेहंदपुर गयो मेय ॥ सुखमाहे रह्यो तिहां । लक्ष्मीदत्त गेह ।। देखो ॥१७॥राजमाहें जातां । मुज लेगया संग ॥ राजकन्या
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| देखी मुज । होगइ दंग ॥ देखो ॥ १८ ॥ राते गुप्त परण्यो। प्राते जागी नृप बात ॥ * कोटवाल साथे भेज्यो । करवा घात ॥ देखो ॥ १९॥ साधूजी महाराज मिल्या दीनो
छोडाय ॥ नाशीने गरुड चडी आयो इण ठाय ॥ देखो ॥ २० ॥साची बात कही। मदन में विस्तार ॥ कम्पितहृदय ते । पाम्या चमत्कार ॥ देखो ॥ ॥२१ मीठी सीख देवे । नहीं |
कीजे एहवा काम ॥ इहां इज रहो। सहू पासो आराम ॥ देखो ॥ २२ ॥ सीख माजी मदनजी । रहे तिण घेर ॥ खाती खातीणरी भक्ती । करे बहु पेर ॥ देखो ॥२३॥ पहले खंड | पूरो हुयो। सतरे ढाल ॥ अमोलक कहे । मदन पुण्य विशाल ॥ देखो ॥ २४ ॥8॥R प्रथम खन्ड सारांश हरीगीतच्छंद ॥ प्रथम खन्ड सम्मास मन्डन । वसुपति विदेशे गया। मदन सरिता पूरे वहाइ । पद्म खाती घर रहया ॥ गरुड चड महंदपुर पतीनी। कन्या वर | केदी थया ॥ मुनिराज साजे ऊगर्या । इत्यादि ए चरित्र कथा ॥१॥ * *
परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदाय के बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी रचित पुन्यप्रकाश मदन श्रेष्टी चरित्रस्य
प्रथम खन्डम् समाप्तम् ॥१॥
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॥दोहा ॥ सिद्ध साधुको नमन कर । सिद्ध करनको काज ॥ द्वितीय खन्ड प्रारंभ दो शुद्ध बुद्ध को साज ॥ १॥ चंदपुरीमें ऊपन्या । चंदप्रभू महाराज ॥ चंदवरण प्रण सदा ॥ सारो इच्छित काज ॥२॥ चंचल स्वभावी जे नरा । ते तो स्थिर नहीं रेय ॥ जे करवा निश्चय कियो। उपाय करे ते तेय ॥ ३॥ श्रीपुरमें खाती धरे । रहे मदन र कुवार ॥ बैठा चैन पडे नहीं । करी काइक विचार ॥४॥ फिरवा निकल्या शहर में ॥ * जोवे कोई उपाय ॥ जेहथी इच्छित सिद्ध हुवे । देखे चित्त लगाय ॥५॥ विश्वेश्वर नामे | तिहां ॥ कलाचार्य प्रवीन । राजपत्र पढावतो । करीनें विद्या लीन ॥६॥ पाठकशालाने | | विष ॥ छत्र बहुला आय ॥ मदन तिहां आइ खडा । जोवे दृष्टि लगाय ॥७॥ दो में विभागते शाळना ॥ पट अंतर में डाल ॥ कुँवरी कुँवर भेगा भणे । राजकुलना बाल E
॥ ८॥ तिणमें मतलष आपनो । होतो दीठो मदन ॥ चुप चाप फिर आविया || खातीरे सदन ॥ ९॥ ढाल १ ली ॥ दया धर्म पावे तो कोइ पुण्यवंत पावे ॥ यह देशी मदन कुँवर निज कार्य साधनने । तुर्तही बुद्धि उपावे जी ॥ जिम कोइ ओलखवा नहीं | पावे । तिम निज रूप पलटावेजी ॥ मदन ॥१॥ मेला फाटा लीरा लटकता । वस्त्र | धार्या निज अंगोजी ॥ राख रज मेल डीले लगाइ । बहु तरह लगायो रंगोजी ॥ मदन ॥२॥ खाती खातण ए तमाशो जोइ । आपसे हँसवा लागा जी ॥ आज किस्यो ए
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खांग बणायो । के भूत झोटिंग कोइ जागाजी ॥म ॥ ३ ॥ हँसतो मदन कहे हूं गेलो। भूत देख भग जावे जी ॥ वे फिकर आप घर में विराज्यो । करूं जिम लेहर मुज आवे| जी । म ॥ ४ ॥इम कही आया बजार के मांही । लोक देख आश्चर्य पाईजी ॥ गम्म | जम्यों पूछे नाम तेहनो । ते 'मूर्ख' बतलाइ जी ॥ म ॥५॥ मूर्ख २ सहू बतलावे । ते बोले हाँइ जी ॥ हँसे कूदेने ख्याल बणावे । लोक भणी हँसाइजीम॥६॥ इम भमतो|| ते गया शाळमें । पंडितसे इम बोले जी ॥ मुजने भणावो तो शाबाशी॥ कुण बुद्धवंत मुजतोले जी ॥ म ॥ ७ ॥ हँसी आचार्य भणवा बैठायो । दीधी हाथमें पाटीजी ॥ बोल | भोले ते कहे हंभोलो। पाटीपे पडि चीरांटी जी॥ म॥८॥ पाठक सह सण सवा लाग्या। सहूने लागे गमतोजी ।। मुंडे लाग्यो पांड्याजीने । नित्य तिहां आइ रमतोजी । म ९॥ जो कोह तस काम भोलावे । जाणने समजे नाहीजी ॥ पांच सात वार तेह थी कहवावे । फिर शीघ्र देवे निपाइजी ॥ म ॥ १०॥ तेहथी सहूने प्यारो लागे । देवे जे ते मांगे जी ॥ सहूने सुहाती करे मस्करी । जिम जागे अनुरागे जी ॥म ॥११॥ तिणही जागा रायनी पुत्री । नित्यप्रति भणवा आवे जी ॥ उपवय हुइ जोइ सचिव तनुजने । मनडो तास मोवावे जी ॥ म ॥ १२ ॥ नेण सेण करे तस सामें । जोवे धरीने कटाक्षो | जी ॥ सचिव पुत्र देखी शरमावे। मेले नहीं तेहथी आँखोजी ॥ म ॥ १३ ॥ एकांत
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खण्ड २
में मिलवा कन्या चावे । पण नहीं मिले ते जोगो जी ॥ डरतो नहीं मिले प्रधान पुत्तर । | वैम धरसी कोह लोगोजी ॥ म ॥ १४ ॥ कुँवरी पत्र देवण ने इच्छो । मनका भाव दरशा| वाजी ॥ तेतले मदन मूर्ख तिहां दीठो । एहथी करूं मुज चावाजी ॥ म ॥ १५॥ तत्क्षण तेहने पास बुलायो । ते शीघ्र दौडो आयो जी ॥ रे मूर्ख तुज नाम किस्यो छे । ते कहे | तुम बोलायो जी । म ॥ १६ ॥ किहां रहे ? फिरूं ग्राम के मांही। काम न किस्यो मुज तांइजी ॥ जे मिले ते रहू हूंखाह । इम कही हँस्यो तिण ठाइ जी ॥ म ॥ १७॥ मैं कहूं ते काम तूं करसी ? । मूर्ख भयों हूंकारो जी । तब प्रधान तनुज ने बतावे । इणरी ओलख धारो जी ॥ म ॥ १८॥ फिर पूंछे तू भण्यो के ठोटी ? । ते कहे हूं तो ठोटीजी । मूर्ख नाम बज्यो मुज तेहथी । सीधी मिलेछे रोटीजी ॥ म ॥ १८ ॥ इम सुणी कुँवरी खुश हुइ मन । डर मिटायो मन केरोजी ॥ विश्वासी लालच देइ तिणने। प्रगट करे मन लेहरोजी ॥ म ॥ २० ॥ मैं बताया तिनने पेछाण्या। मूर्ख आ हाथ लगा-16 योजी ।। एहीज छे प्रधानकुंवरजी। दोनों तब शरमायाजी ॥ म ॥ २१ ॥ गुप्त पत्र तब लिखियो कुवरी । हूं मन थी तुमे चाहूंजी ॥ जरूर मिलो एकांते आइ । डरजो मत दरशाबूंजी ॥ म ॥ २२ ॥ दियो मूर्ख ते गुप्त दे कुँवरने । बाहिर आइजी ॥ बांची हरष्यो मनके मांही । उत्तर पोते लिख्याहजी ॥ म ॥ २३ ॥ आइ बैठो प्रधानपुत्र कने।
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दूजी बातां बणाइजी ॥ तेहतो कछू भेदन पायो । मदन कुँवरी कने जाइजी ॥ म ॥ २४ ॥ मिजहातको पत्र समय । खोली तिने बांच्योजी । मैं पण चाहूं अवसरे मिलस्यूं । कुवरीनो मन रायोजी ॥ म ॥ २५ ॥ तेतले छुट्टी हुई शाळकी । पोताना दफतर लेइ जी ॥ छात्र सहू निज २ घर पहोंचा । मदन पुरमें फिरेइजी ॥ म ॥ २६ ॥ बीजा खन्ड की प्रथम ढालो | कही अमोल रसालोजी || देखो मदन कैसो परपंची । करे नव नव ख्यालोजी ॥ म ॥ २७ ॥ दोहा ॥ राज पुत्री तणी लगी । सचिव पुत्रस्यूं आँख ॥ ते | जाणी पांडे तदा ॥ अंतर दृष्टी राख ॥ १ ॥ मोटा घरका दोइए । तरुण पणें मदमात ॥ इहां जो अकृत्य करे । होवे नाम मुज अस्त ॥ २ ॥ हिवे लालच छोडी करी। सीख देवु दोइ तांय ॥ तो लज्जा रहे शाळकी । इम निश्चय चितठाय ॥ १ ॥ जुदा जुदा | दोन्या भणी ॥ लेगय निज तात पास ॥ भण्घो गुण्यो बताइयो । राय प्रधान हुल्लास ॥ ४ ॥ वक्सीस दी पण्डित भणी । पहोंचाया निज घेर ॥ निज निज स्थाने सुखी रहे ॥ राय प्रधाननी मेहेर || ५ || ढाल दूसरी | पांडव पांचू वंदता । म्हारो मनडा मोयोजी ॥ यह ॥ रायपुत्री गुण सुन्दरी । प्रधान पुत्र वियोगजी ॥ तडफडत अतिमन विषे हिवे किम वणे मिलवा जोग ॥ १ ॥ भविकजन सांभलो । बुद्धि पुण्य मदनका सवाय ॥ चतुर नर संभलो । बुद्धि० ॥ आ ॥ रूप वय बुद्धिसारखी | मुजसचिव तनुज हित
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म.श्रे.
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| दायजी ॥ ते विन अन्य गमे नहीं || राज घरे दुःख घणो थाय ॥ चतुर ॥ २ ॥ शोकानें परदा तणो । आसंजोगी दुःख होयजी ॥ वणिक घर रहतां थकां । मुज हुकम न उल्लंघे कोय ॥ व ॥ ३ ॥ मनहर वसे सदा मनमें। क्षणिक नाहीं भुलायजी ॥ ते पण इम चइता से । करूं कांइक मिलण उपाय ॥ च ॥ ४ ॥ बीजो कांह सूजे नहीं । मूख्यने राखूं दासजी || तिण हाथे पत्र मोकली । हूं तो पूरूं महारी आस ॥ च ॥ ५ ॥ रजा | लेवा तात मातकी । ते तो आइ तब तिण पासजी ॥ प्रणमी पद उभीरही । ते कहे। करो इच्छा प्रकाश ॥ च ॥ ६ ॥ साकहे भुज काज करणने । चाहिये छे माणस एकजी ॥ वस्तु मंगावू बजारथी । वली अन्य कार्य छे अनेक ॥ च ॥ ७ ॥ अरीबिंद कहे तुज चाहिये । हूँ शंखू तेतला दासजी ॥ कह तो भेजूं दरवारसे ॥ जे सदा रहे तुजपास ॥ च ॥ ८ ॥ मूर्ख भोलो एक नर अछे । अन्न वस्त्र लेइ रेयजी ।। फरमावोतो राखूं तेहने । तब रायजी आदेश देय ॥ च ॥ ९ ॥ हर्बी जाइ निजघरे । भेजी दासी शाळरे मायजी ॥ मूख्यों तिहां रमतो होसी । लावो तेह ने इहां बुलाय ॥ च ॥ १० ॥ मदन आयो शाळा विषे । राजपुत्री देखी नायजी ॥ पूंछे पण्डित थी तदा । राय कुँवरी कहां महाराय ॥ च ॥ ११ ॥ काम करायो मुजथकी । पइसा आप्या चारजी । आज देवण तणो को | तेही मिलावो इणवार ॥ च ॥ १२ ॥ पण्डित कहे ते घर गइ | अब नहीं आवे इण ठाण जी ॥
खण्ड २
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चिन्ता हुई चित मदनने । अब किहां जोवूं ठिकाण ॥ च ॥ १३ ॥ बैठो वाहिर आयने । तब दासी आइ तस पासजी ॥ चल शीघ्र मूर्ख मुजसंगे । बाइ बोलवे रखवा दास ॥ च ॥ १४ ॥ कहे मदन हूं तब चलूं । चार पइसा मुजने अपायजी ॥ दासी हूंकारो भर्यो । साथे हुयो अतिहर्षाय ॥ च ॥ १५ ॥ नाचतो कुदतो मारगे । वली उडातो धूलजी ॥ चेटी जोइ चिंतये । बाइ किन चाले लग्या भूल ॥ च ॥ १६ ॥ रायकुंवरी गोवे रही । मूर्ख आवंतो जोयजी ॥ खुशी हुई मनमें घणी । इण थी कारज म्हारो होष ॥ चं ॥ १७ ॥ हर्षे बुलाइ कने लियो । दिया खावाने पक्कानजी ॥ कहे | सदा तुम इहां रहो । तुज कह्यो करस्यू प्रमान ॥ च ॥ १८ ॥ मूर्ख कहे हूं रेवस्यू । जो खवासो ऐसा मिष्टान्नजी ॥ रातरा रहवो नहीं बने । मा बाप करे छे तान ॥ च ॥ १९ ॥ कुंवरी कहे नित्य आपस्यूं । माग्यो सरस मैं आहारजी ॥ रातरो काम न माहेरे । फक्त | भुक्तावा समाचार ॥ च ॥ २० ॥ खुशी : हुइ मदन रह्यो । करवा इच्छित कामजी ॥ दूजी ढाल दूजा खंडकी । कहे अमोल पूगे किम हाम ॥ च ॥ २१ ॥ दोहा ॥ गुण सुंदरि एकांत में । मूर्खने इम केय ॥ मुज मननी तुजने कहूं । ज्यों भेदन दूजो लेय ॥ १ ॥ मूर्ख सोगनखा कहे । नहीं तुम हुकमने बार ॥ कहस्यो सो कहस्यूं सही । नहीं कहा करूं उचार ॥ २ ॥ कुँवरी कहे प्रधान को । ओलखे छे तूं गेह ॥ मूर्ख कहे जाणुं अधुं । ते दिन
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| दाख्यो तेह ॥ ३ ॥ हां तेहीज कुँवर तणें । छाने जाइ पास ॥ ये पत्र लिखने देवू । तूं मैं
गुप्ते दीजे तास ॥ ४ ॥ दो तीनदा समजाइयो । तब भरियो हुंकार ॥ प्रेम पत्र लिखवा में लगी ॥ गुणसुंदरी तेवार ॥ ५॥ ढाल ३ री ॥ में मुख देख्यो गोडी पारस को ॥ यह ॥
देखो चतुरनर मदन परपंचने । करे है कैसो उपाय जी ॥ आं॥ अहो प्राणेश्वर आप विरह थी। तरशे महारो तनजी ॥ परवश पणे घरमें रही छं। पक्षी ज्यों: जी ॥ देखो ॥ १॥ पांडयाजीने वैम पड्याथी । पहोंचाडी मुज गेहजी ॥ तुम मुज मन
मन्दिरमा रमियां । कैसे निभावू नेहजी । देखो ॥ २ ॥ आज लगण दिल खोल बोल 5 रणरो । अवसर मिलियो नाय जी ॥ हिवणा बाततो छ कागदथी। सोधो कोइ उपाय
जी ॥ देखो ॥ ३॥ दियो कागद मूर्खने हाथे । ते आयो जिन गेहजी ॥ वांचीने परमानंद | पायो । उत्तर इणविध देयजी ॥ देखो ॥ ४ ॥ तुम विरह मुज साल समाणे। में खटके हिया मांय जी ॥ तुम उपाय बतावो ते करूं । मुजनें न सूजे उपायजी देखो।
५॥ वंदी खामण कर धर्यो खीशे । नाणो लेकर मांय जी ॥ आयो राजपुत्रीने पासे ॥ में कूदतो हर्ष भराय जी ॥ देखो ॥ ६॥ कहे मुजने इनाम दियो ए । बुलायो नित्य एम
जी ॥ कुँवरी उमाइ उत्तर किस्यो लायो । छे किस्यो मुजपे प्रेमजी ॥ देखो ॥ ७ ॥ मूर्ख | कहे फरेब छे पूरो । कागद दीनो हाथ जी ॥ कह्यो एकांत जाइने बांचजो । मनमें राख
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जो बात जी ॥ देखो ॥ ८॥ प्रेम पत्र ज्यो कुँवरी हुलसाइ । खोली हृदय लगाय जी ॥ मुक्तामाल सरीखा अक्षर । मतलबी शर जणाय जी ॥ देखो ॥ ९॥ सुभाग्ये मुज का एहवा पतिमिले । जन्म जासी सुख मांय जी ॥ मुजने अंतःकरण थी चहावे । शीघ्र करूं
हूं उपाय जी ॥ देखो ॥ १० ॥ इहां रह्यां मेलो नहीं होवे । रहणों प्रदेशे जाय जी ॥ | तोमन मानी मजा भोगवां । पुनरपि पत्र लिखा य जी ॥ देखो ॥ ११॥ प्यारा प्रेम सदाइ, निभाता । मात पिता प्रच्छन्न जी ।। पर देशे चल सुख भोगवा । दाखावो आपको मनजी | ॥ देखो ॥ १२॥ कर खामण दीधो मूर्खने । बांच्यो निज घर आय जी ॥ खुशी होइ ने | | उत्तर लिखियो ॥ युक्ती अजब मिलायजी ॥ देखो ॥ १३ ॥ मुज घर संपति तातने र हाथे । पगथी नहीं चलाय जी । मोज मजा सब घनथी होवे । तेहथी सुणो चित लाय
जी॥ देखो ॥१४॥ युगल अश्व चडवा ने चैये। खरचषा बहुलो धन जी ॥ चलवाको दिन कीजे कायम । किसे स्थान मिलन जी ॥ देखो ॥ १५॥ इण प्रश्न का उत्तर कारण । प्यासो छु इणवार जी ॥ मनसा होवे तो दरशावो । तो होवू हूं तैयार जी देखो ॥ १६ ॥ लेइ कागद नवी धोती ॥ आयो कुँवरी पास जी ॥ नाचे कूदे धोती बतावे । वक्सीस दिये खास जी ॥ देखो ॥ १७॥ और समाचार किस्या तूं लायो। तेतो पहला बताय जी । तब पत्र मेल्यो मुख आगल । प्रेमोत्सुख हो उठाय जी ॥ देखो ॥१८॥
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से
आह।
खोली बांची आनंद पाह। पाछो देवे जवाब जी॥ धन तणी तो फिकर न करनी ।
खण्ड २ | लास्यूं तुरंग सिरे आब जी ॥ देखो ॥ १९॥ अन्धारी चउदस प्रहर राते । मिलसां
कालीका स्थानजी ॥ मूर्ख पत्र घर आइ बांची। हर्षायो आस्मान जी ॥ देखो ॥ २० ॥ 1| लिख्वी उत्तर तैयार हमेछां। लेइ मोहर कर माय ज
पालो | हँसतो दीनार बताय जी ॥ देखो ॥ २१ ॥ पत्र दियो कुँवरी लियो झबकी। बांची मन || उमंगाय जी ॥ उपाय करवा लागी चटपटी ॥ तुर्त दूं साज सजायजी ॥ देखो ॥ २२॥ उपाय सहू जमायां मदन जी ॥ ढाल तीसरी माय जी ॥ दूजा खन्डकी कही अमोलख । आगे सुणो चितलाय जी ॥ देखो ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ गुण सुन्दरी घुडशालथी। २६ अश्व दो उत्तम जोय ॥ लाइ निज घर बान्धिया । मूर्ख हाथे सोय ॥१॥ गुप्त करे नित्य || तेहनी । खान पान संभाल ॥ मूर्व पास करावे ॥ निजरे निज निहाल ॥ २ ॥ हेम जडित रत्ना तगा। गेणा नगदी धन्न ॥ अल्प भार बहु मोलका । संग्रह कियो में प्रच्छन्न ॥ ३ ॥ त्रयोदशी ने पत्र लिव । मूर्ख हाथ पठाय ॥ काल रातका निश्चय। आजो कालिका ठाय ॥ ४ ॥ तुम आज्ञा प्रमाग में । कियो वंदोबस्त सष ॥ पाछो उत्तर दे मदन । देरन म्हारे अब ॥ ५। ढाल ४ थी ॥ कुँवर अभय बुद्ध को भंडारी ॥ यह ॥ | मदन जी कलावंत भारी । निज कारज संपादन कारन । करे कैसी हुशियारी ॥ ७ ॥
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रात्री
P काली चउदश आइ जिण दिन । मदनजी विचारी ॥ आज निशा ये कुँवरी आवसी ।
कालीक दुवारी ॥ मद ॥ १॥ हूं पहली जा रहूं तिहां अब । करी सहू तैयारी ॥ धन्न माल ते बहुलो लासी । मुज कमी कछू नारी । म ॥२॥ खाती खातण ने पगलाग्यो। रखजो कृपारी ॥ थोडा दिनमें पाछो आस्यूं । काम छे इणवारी ॥ म ॥ ३ ॥ पुण्या अट्टम सहम बताइ । आयोग्राम वारी ॥ सूतो सुखे कालिका सरणे । वाट जोतो नारी
म॥४॥ मेहल में कुवरी अवसर जोह। कीनी तैयारी ॥गेणो नाणो भया तोबरे। | वस्त्र श्रेयकारी ॥ मद ॥५॥ मरदानी सिरे पाव सज्यो तन । धामनी अतिकारी ॥ शस्त्र | वस्त्र सज हुई अश्वपर ।। कीनी सवारी ॥म ॥५॥ गली गुंची गुप्त मार्ग फिरती । | आइ गाम बारी । देवालय पासे ऊभी रही । मधुरी पुकारी ॥म ॥७॥ चालो वल्लभ देरन करिये । पूरो इच्छा सारी ॥ हुकम प्रमाणे आइ ऊभी । नाथजी अबलारी ॥म॥ ८॥ सुणी मदन चुप चाप उठियो । आयो कुँवरी मांरी ॥ रीते घोडे आइ बैठो । बोल्यो में न लगारी ॥ ९॥ आगल मदन पाछल कुँवरी । चाल्या आगारी ॥ कुँवर मन सजावण कारण । कुँवरी उच्चारी ॥१०॥ दोहा छंद चोपाइ गूढार्थ । कह छे तेवारी ॥ पहेली में | प्रश्नोत्तर पूंछे । बुद्धि देखाडी ॥ ११॥ मदन चिंतवे चुप्प रेवणो । इहां छे गुणकारी ॥ | मून रयो कछु उत्तर न दे ॥ कुँवरी विचारी ॥ म ॥ १२॥ निशा घोर तम दीसे नाही ।
२ अंधारो
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म. श्रे.
खण्ड २
समुद्र हर
# मार्ग चोर शाहारी ॥ न जाणे कोइ नेडो माणस । सुणे बोली यारी ॥ म ॥ १३ ॥
ओलखी जा कहे राज सचिवने । केकोइ आगारी ॥ तो कोइ लारे आइ पकडले । करे, में ते खुवारी ॥ म ॥ १४ ॥ इम जाणी बुद्धिवंत कुँवर ए । रह्या मून धारी ॥ मैं मूर्खणी सं करूं छं बड २ । विगर विचारी ॥ म ॥ १५ । नेडो घोडो लेइने पूछे ॥ हुइ जिम इच्छारी। पाछो जवाब न आपे तयते । रही चुप्प धारी । म ॥ १६ ॥ आज भाग धन म्हारा बाइ। तूठा कर्तारी बल बुद्धि वय रूप पुरंदर । पाइ भरतारी ॥ म ॥ १७ ॥ कोहक ग्रामें जाइ रहस्यूं । हो स्व इच्छारी । इम अनेक तरंगा उपजे । ज्यों सिन्धूवारी ॥ म ॥ १८ ॥ कब दिन उगे कब मुख निरखू । इम रही उमंगारी ॥ लारे २ अश्व चलावे । | करती विचारी ॥ म ॥ १९ ॥ मदनजी चिंते दिन उगाथी । थासी मजारी ॥ फिरतो |घर जावण नहीं पावे । थासे मुज प्यारी ॥म ॥ २०॥ ढाल ए दूजा खंडकी चौथी । अमोल उच्चारी ॥ विचार दोन्यारा सिद्ध होणको ॥ दिन छे बहुलारी ॥ मदन ॥ २१ ॥ॐ ॥ दोहा ॥ उभय जणा एकण दिशे । शीघ्रते चाल्या जाय ॥ खाह पहाड | उल्लंघता। साहस मन सवाय ॥ १॥ कार्य अर्थी मनुष्य ते । दुःख सुख गिणे न कांय ॥ दुःख ने सुख करी लेखता । कामी काम उमाय ॥२॥ इच्छा अति मुख दर्श की । कुवरीने मन मांय ॥ तेहना दुःख ने दाबबा । जाणे रवी दवाय ॥ ३ ॥ सध्या रंग जब
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१ सरोवर
प्रगट्यो । कुँवरी अश्व कुदाय ॥ आगे आइ मुख प्रेक्षती ॥ जोह मूर्ख धस्काय ॥४॥ वृक्ष शाख छेद्या थकां । जिम पडे धरणी आय ॥ तिम कुवरी पडी अश्वथी । वे शुद्ध | हुई मुरछाय ॥ ५॥ ढाल ५ मी ॥ आइरे पनोती जरा सिन्ध केरे ॥ ए० ॥ कुँवरी ने | पडी देखनेरे । मदनजी आश्चर्य पायरे ॥ मुजने जोह मुरजा गहरे ॥ चिंत्यो न मिल्यो |
इणने आयरे ॥१॥ जोवो करामात मदनकीरे ॥ ॥ करे अचिंत्य उपायरे ॥ मूर्ख |पणो नहीं पलटणोरे ॥ जिहां लग ए नहीं चहायरे जो ॥ २॥ दिशि विदिशी अवलोकन नेरे । जलागार तंतू भिजोयरे ॥ लेह आयो । कुँवरी कनेरे । मुख पर छांव्यो तोयरे । जो
२ पाणी ॥ ३ ॥ पवन जोग सावध हुइरे । बैठी करत विलापरे ॥ हाय देव किस्यो करे प्रगव्या में पुराकृत पापरे ॥ जो ॥ ४॥ किणने धार्यो कुण आवियो रे । एतो मूर्ख सिरदार रे ॥ मनमोहन किहां रह्यारे ॥ जे देता नित्य समाचार रे ॥ जो ॥ ५॥ हिवे आगल किम, थावसी रे ॥ जन्म कुवांरेइ जायरे ॥ मननी इच्छा मनमें रही रे । हूं गइ पूरी छलायर
रे ॥ जो ॥६॥ कुँवरीने रोती देखनेरे । मदन बैठो आई पास रे ॥ मूर्ख पणो भजाव | # वारे ॥ रोवे ठस्की भरी श्वांस रे ॥ जो ॥ ७ ॥ मूर्खने रोतो देखनेरे । कुवरीने
आइ रीस रे ॥ किसो दुःख तुज जगतमारे । जिमतूं पाडे चीसरे ॥ जो ॥ ८॥ ठसका # भरतोते कहेरे । मुज पण आयो रोजरे ॥ थांरा सुख थी मैं सुखी रे। तुम दुःख मुजने हो
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HHINARY
में यरे ॥ जो ॥९॥ कुवरी कहे रोवू तुज भणी रे । किम लाग्यो मुज लाररे ॥ दगो करी में
खण्ड २ किहां चल्यो रे। बोल्यो न पहली गवाररे ॥ जो ॥१०॥ ते कहे दगो सगो नहींरे ।
मैं दुःखियो अपार रे ॥ मैं लार नके नहीं लग्यो रे ॥ सुणो वीत्या समाचार रेजे *॥ १९ ॥ तुम मुज काले दिन छतारे ॥ सीख दीवी घर जाणरे ।। मुज घर ना पूछो ।
सजनारे । मैं कह्यो कहाड्यो मुज हाण रे ॥ जा ॥ १२॥ सहू लडवा लाग्या मुज थकी रे FR|| कह्यो मुज मूढ शिरदार रे ॥ कोइ स्थान टिके नहीरे । जाव तिहां दे कहाडरे ॥ जो
॥ १३ ॥ कमावा ने कोडी नहीं रे । खावा दौडी आयरे ॥ मुफत में माल आवे नहींरे । निकली इहां थी क्योंनी जाय रे ॥ जो ॥ १४ ॥ कूटी कहाड्यो घर बाहिरे रे ॥ मैं करतो || आर्त ध्यानरे ॥ कालीदेवी देवालयरे । सूतो जो एकांत ठाणरे ॥ जो ॥ १५ ॥ फिकर थी| नींद आइ नहीं जी । जितरे थे आया तिण जागरे ॥ बोली मैं थाणी ओल-132
खीरे । पायो सुख अथागरे ॥ जो ॥ १६ ॥ मैं जाण्यो बुलावा आविया रे । उठ आयो । a तुम पास रे ॥ तुम हुकुमें अश्वे चड्यो रे। साथ हुयो धर हुल्लास रे ॥ जो ॥ १७ ॥ 5 अन्धारामें सूज्यो नहीं रे । तिण थी आयो इहां चाल रे ॥ तुम बड बड्या खाटी छाछ | |ज्यूरे । म नहीं समज्यो सवाल रे ॥ जो ॥१८॥ तो उत्तर किस्यो देवूरे। मैं जाण्यो चितारे अभ्यास रे ॥ महारो दगो पीठो किस्यो रे ॥ ते तो करो प्रकाश रे ॥ जो ॥१९॥
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१ धोबीका कुत्ता
कुँवरी सत्य जाण्यो सह्न रे । करे अती पश्चाताप रे ॥ थारो अवगुण इणमें नहीं रे । | म्हारा प्रगट्या पापरे ॥ जो ॥ २० ॥ चौरी करी मैं मात तातनीरे । तेहथी पामी ए. दुःखरे ॥ रजक श्वान जिसी थारे । क्रिणने देखांडू मुखरे ॥जो ॥२१॥ रात होती तो पाछी जावतीरे ॥ हिवे तो नहीं जवायरे ॥ किस्यो लिख्यो छे मुज दैवमेंरे । भोगवू ते हिवे , हायरे ॥ जो ॥ २२ ॥ इत्यादी ॥ आरत करेरे । गुणसुन्दरी ते वाररे ॥ बीजा खंड की || पांचमीरे । अमोल ढाल उच्चाररे॥जो॥ २३ ॥ ॥दोहा॥ गुण सुन्दरी चित चिंतवे। | इहां रोयां स्यूं थाय ॥ ए मूर्ख शिर शेवरो । दुःख सुख समजे नाय ॥ १ ॥ गहर वक्त आवे नहीं । करूं आगे को उपाय ॥ नशीवे मूख्यों लिख्यो । मोहन क्यां थी आय ॥२॥ धिक् २ महारी बुद्धिमे । धिक् २ मुज अवतार || छूट्यो राज सज्जन सहू। हुई हूं तो निराधार ॥ ३ ॥ हिबे किणहीक ग्राम में । एकांत स्थानक जोय ॥ रही | जिंदगी पूरी करूं ॥ण आधारे मोय ॥ ४॥ इम निश्चय करने कहे । चाल जिहां तुज मन ॥ कृत्य कर्म फल भोगवी । इमहीज होसी मरन ॥५॥ ढाल ६ ठी ॥ बडे घर ताल लागीरे ॥ यह ॥ सुणो भाइ मदन कहानी जी ॥ कलावंत गुणकी खानी जी ॥ आं॥ चालतां २ आवियो जी । पुर पयठाण सुस्थान । गढ मढ मेहल थी शोभतो जी।। मनोहर अइठाण ॥ सु॥१॥ शुभ मुहूर्त तिहां पेसियाजी । रायकन्या शरमाय ॥
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खंड २
|तंतू थी अंग ढांकने । मदननी लारे जाय ॥ सु ॥२॥ मध्य बजारे आवियाजी । लोक में बहु मिल्या जोय ॥ विके जागा पंच खंडनी । मोल घणो न लेवे कोय ॥ सु ॥ ३ ॥ मदन तिहां उभा रह्या जी । कुँवरी थी पूंछे एम ॥ कहो तो ए जागा लेवू । सब बातरो में | पावसो क्षेम ॥ सु ॥ ४ ॥ कुँवरी मुद्रा दी तेहने जी । बेंची जवेरीने जाय ॥ चाहिता दाम लेइ करी । बच्या ते जमा कराय ॥ सु॥५॥ मोल लीवी तेह जायगाजी। शुभ मुहूर्ते ते वार ॥ छेली मजले सुंदरी ने । सुखथी दी बैठाय ॥ सु॥ ६ ॥ जे माल कवरी मंगाहयो जी। ते तर्त दियो लाय ॥ दास दासी राख्या घणा। जे पोताने आया
दाय ॥ सु॥ ७ ॥ सवाइ नौकरी दीवी सबने । सहूने एकांते लेय ॥ मधुर वयणे शिक्षा में दिये । वली लालच अधिको दय ॥ सु ॥ ८ ॥ काम करजो इच्छा जिसो । रह |
जो तस हुकमरे मांय ॥ महारी बात तिण आगलें । किंचित ही करनी नाय ॥ सु॥९॥ # सोगन करा पक्की करी । फिर आया दूजे मजल ॥ बैठक राखी आपणी । जिहां कुँवरी
न आवे चल ॥ सु ॥ १० ॥ थापण राखी रकम थी जी । लाया सिरे पोशाक || में ग्रहणा वस्त्र ओपता जी । देव सरीखा पाक ॥ सु ॥ ११ ॥ दोय दास साथे लेह जी । Kआय जवैरी बजार ॥ मौकाकी दुकान देखने । भाडे लिवी ते वार ॥ सु॥१२॥ गादी
तकिया जमाविया जी ॥ राख्या मुनीम हुशियार ॥ माल घणो खरीदियो । सहू शाभार
२
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SYMENT
करी श्रेकार ॥ सु ॥ १३ ॥ महिमा फेली शेहर में । कोइ आया जवैरी कुँवार ॥ छे बहुला में धननो घणी ॥ वली निघा बाज सिरदार ॥ सु॥ १४ ॥ बहोत्तर कला में सीखिया जी |
जबैरातनी पैछाण ॥ तिण जोगे पुन्य. प्रवलेजी जमी चौखी दुकान ।। सु ॥ १५॥ में एकही मुद्रा करोडनी जी । धन कमी नहीं कोय ॥ द्रव्य तिहां सर्व संपजे जी । पोलो | हाथ जग मोहय ॥ सु ॥ १६॥ दुकान थी आइ निज घरे जी । दूजी मजलके माय ॥ सेठ तणो वेश परहरी । लेवे मूर्ख स्वांग षणाय ॥ सु ॥ १७॥ पंचम महाले कुँवरी आगे । अचाणक पडे आय ॥ गेलायां करे घणी । पोते हँसने तास हँसाय ॥ सु॥ १८ ॥ भोजन मांगे पेट हणी ने । ते धरे सन्मुख लाय ॥ शाक पेहली आरोग ले । पाछे । रोटी जावे खाय ।। सु ॥ १९ ॥ घडी दोघडी तिहां रही ॥ इम ख्याल करे बहु पेर ॥ दौडीने नीचा उतरी ते । अछा वस्त्रले पेहर ॥ सु॥२०॥ उत्तम भोजन खाय ने आइ चलावे दुकान ॥ उत्तम ज्ञानकी पुस्तकां जी । देवे कुँवरीने आन ॥ सु॥ २१॥ कहे तुमतो तुमारे घरे नित्य । पढता ऐसी किताब ॥ तेहवी मिलती लाइ दी । हूं तो नहीं
समज्यूं साव ॥ सु ॥ २२ ॥ यों बात भोल पे डालने जी । कुँवरी ने कामें लगाय ॥ इम में सुखे काल अतिक्रमें । ढाल छट्टी अमोलक गाय ॥ सु ॥ २३ ॥ 8 ॥ दोहा ॥
तिण अवसर कोइ देशथी । जोहरी माल बहु संग ॥ आया ते पयठाणपुर ।
REP
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म. श्रे.
३
१ मोती
* व्यवसाय धर रंग ॥ १ ॥ मकरकेतू महीपाल ने । नमी नजराणो कीध ॥ सत्कारी
खण्ड २ नृपतेहने । योग्यस्थान तस दीध ॥ २ ॥ माल बतायो भूपने । मुक्ता फल बहु तेज ॥ में विविध वरण अवलोकी ने । बृध्यो नृपनो हेज ॥ ३ ॥ दो दाणा नृप छांटिया । पूछे तेही ६ नो मोल ॥ सवाकोड तिण उच्चर्या । अटल एकही बोल ॥ ४ ॥ आश्चर्य पाइ राजवी । में ग्राम जवैरी बुलाय । देशां मोल चौकस करी । जे सहू जन ठेहराय ॥ ढाल ७ मी ॥ तावडा धीमो सो पडजे ॥ यह ॥ दीपती मदननी पुन्याइ जी ॥ दी०॥ मुक्ताफळकी साची कीमत । करी सभामांही ॥ ७ ॥ सामंत साथे शाह बुलाया। जवेरी कह वाइ ॥ ३० नृप भेटने सज्ज थया सह । मनमें हर्षा ॥ दी॥ १॥ मदन अने पुरना सहू जोहरी । हिल मिल चाल्याइ ॥ आया सभामें नम्या नृपने । नम्र अति थाइ ॥ दी ॥२॥ सत्कारी सहू ने वेसाया । तिहां योग्य ठाइ ॥ मोती ताशक धरी तस सन्मुख । ते दोइ मिलाइ ॥ दी॥ ३ ॥ इणमैंथी उत्तम जोढी एक । कहाडी दो मुज तांइ ॥ साचो मोल विचारी || कीजो । सह बुद्धि मिलाइ ॥ दी ॥ ४ ॥ मौटा २ जौहरी बैठा । करवा परीक्षा तांइ
या बैठा जोवे मदनजी । सक्ष्म दृष्टि ठाइ ॥ दी॥५॥ तेहीज दोनों मोती छांट । दीना भूप तांइ ॥ उत्तम थी उत्तम ए स्वामी । हम निजो आइ ।। दी ॥ ६ ॥ जे नृप पहला छांट्या हूंता । तेहीज दिठाइ ।। खुशी हुइ शावासी दीनी । कीमत कहो भाइ
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Y
1
॥ दी ॥ ७ ॥ परीक्ष कहो छे दोनूं सारीखा । के कांह जुदाइ ॥ दीर्घ विज्ञाने जोया सहजन | इणपर दरसाइ ॥ दी ॥ ८ ॥ ए दोनूं सम सीप तनुज छे । फरक नहीं कांह ॥ सवा कोडनी कीमत दीसे । दीजे जै इच्छाह ॥ दी ॥ ९ ॥ मदनजी बैठा मून धरीने । जरा न बोल्याई ॥ विन बोलायां उत्तम नरतो । दाखे न चतुराई ॥ दी ॥ १० ॥ इम जोइ राजेश्वर चिंते । ए दीसे सुगुणाइ ॥ इनकी मती सहू थी है वेगली । पूछां इण
॥ दी ॥ ११ ॥ सहू सेठने पूंछे भूधव । ये कोइ नवाइ ॥ किहां थी आया किस्यो करे छे । बोले किम नाहीं । दी ॥ १२ ॥ बृद्ध जवैरी कहे नरमाइ । प्रदेशी आयाइ ॥ जवैरातरो धंदो इणरो । हिवणा जम्याइ || दी ॥ १६ ॥ बुद्धवंत धनवंत इण सम । पुरमे न देखाइ ॥ कम सवाली छे शरमालू । तिणधी न बोल्याइ ॥ दी ॥ १४ ॥ धराधिप तब दोनों मोती । मदनने दीधाइ ॥ करी परीक्षा कीमत दाखो । जे तुमें जणाइ ॥ दी ॥ १५ ॥ मदन कहे सहू वघ पुरुष हैं । साचीज फरमाइ || मैं बालक अधिको सी जाणू | भेद न इण मांही ॥ दी || १६ | अने वृद्धने आगे बोलतां । अशातना थाइ ॥ सहू फरमावे तेहीज कीजे । ये मुज इच्छाइ ॥ दी ॥ १७ ॥ इम सुणी राय शंकित हुयो । भेदज दिखाइ ॥ अतिआग्रह कर पूंछे नरवर । कहो जे जणाइ ॥ दी ॥ १८ ॥ जुदा कपाले जुदि है बुद्धी । न मोटा छोटाह ॥ सह जवैरी कहे कहोजी । खुशी हम सगलाई ॥
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म. श्रे.
२
मेंदी ॥ १९ ॥ सहनी रजाले कहे मदनजी । मुज जे सुज्याइ ॥ एक ए मोती छे जी अमोलक ||
खण्ड । दूजा निकमाइ ॥ दी ॥२०॥ सुणी रायजी आश्चर्य पाया । ढाल सात मांड ॥ ए तो | मनुष्य दीसे करमातती । अमोल ऋषि गाइ ॥ दी ॥ २१ ॥ दोहा ।। सुणी वाणी इम मदनकी । सत शाह भया उदास । ईर्षा लाइ इम कहे । आपो जमावे खास ॥ १ ॥ बात कियां थी स्यूं हुवे । दो प्रत्यक्ष बताय ॥ ए अमूल्य ए कोडीनो। कीमत किण गुण ,
पाय ॥ २ ॥ मदन कहे साची कही। एमावित्रनी रीत ॥ बालकने सुधारवा । धारे में १ ऊपर
नारेली प्रीत ॥ ३ ॥ आज्ञा लेइ आपकी । मैं प्रकाशी बात ॥ तैसेही कर दाखवू । सहर कठीण अंदर
समक्ष साक्षात् ॥ ४ ॥ निक्कमो मोती बींदता। फूटसी ए तत्काल ॥ तजा पडमां नरम छ । जोवो सह कृपाल ॥५॥ ढाल ८ मी ॥ मथुरा आवी साधवी । हेक सजनी ॥ यह ॥
इम सुण वाणी मदननी ॥ हेके साजन ॥ सहूजन आश्चर्य पाय ॥ बात करे ज्ञानी जिसी। हेके राजन ॥ जोयां परतीत आय ॥ के चतुरां सांभलो ॥ हेके साजन ॥ मदन बुद्धि | प्रत्यक्ष ॥ ७ ॥ १॥ अतीचतुर सिकलीगिरा ॥ हेकेसा॥राजा लिया बुळाय ॥ कहे छेदि इण मोतीने ॥ हेकेसा। जिम फूटवा नहीं पाय ॥ के॥ चतु ॥ २॥ तो इनाम
देस्यूं घणो ॥ हेकेसा० ॥ कारीगर हर्षाय ॥ विविध मशाला लगायने ॥ हेकेसा० ॥ 5सार ऊपर चडाय ॥ ॥ केच ॥ ३ ॥ चतुराइ कीनी घणी ॥ हे० ॥ पण खंड्यो तत्काल ॥
常常带常常带常常
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१ हाथी
सिकलीगर मुख ऊतर्यो ॥ हेके !! हर्षा तब नृपाल केच ॥ ४ ॥ ले रूपानी थाली में ॥ हेकेसा० ॥ जोया पड उघाढ ॥ बालू तृतिया पडमें || हेकेसा० ॥ निकली देखी काहाड ॥ के च ॥ ५ ॥ आश्चर्य पाया सहजणा || हेकेसा० ॥ नृप कहे शाबास ॥ साचा जवैरी ए सही || हेकेसा० ॥ सभाजन करे प्रकाश ॥ केच ॥ ६ ॥ राजेश्वर कहे मदनने ॥ हे केसा || आश्चर्य मोटो एह ॥ रेती किम मोती विषे ॥ हे केसा० ॥ दाखो कारण | तेह | केच ॥ ७ ॥ नरमाइ मदन भणे ॥ हे केसा० ॥ अवधारो महाराज ॥ मुक्ताफल भी उत्पती । हेकेसा ॥ होवे पांच जगाज |! केच ॥ ८ ॥ चक्रव्रती राजा तणी ॥ हेकेसा ॥ पत्नी श्रीदेवी होय ॥ पुत्र न होवे तेहने ॥ हे केसा || मोती प्रसवे सोय ॥ केच ॥ ९ ॥ जातीवंत वंशनी ॥ हेकेसा ॥ गांठ में मोती धाय ॥ तीजा उत्तम नागनीं ॥ हे केसा ॥ फण में मोती पाय || लेच ॥ १० ॥ मयंगल उत्तम मस्तके || हेकेसा० || मोतीनो भंडार ॥ ए चउस्थान किंचित मिले ॥ हेकेसा० ॥ इण हीज जगत मझार ॥ च ॥ ११ ॥ पंचमी जग प्रसिद्ध छे । हेकेसा० ॥ सीप तभी पैदास ॥ तिणमें पण जाती घणी || हे केसा० ॥ करी ग्रन्थ प्रकाश ॥ केच ॥ १२ ॥ हिवे इण में रेती तणो ॥ हेकेसा० ॥ कारण देउ बताय || स्वाति नक्षत्र वसती ॥ हेकेसा० || सीप जलवर आय ॥ केच ॥ १३ ॥ तिण अवसर कोइ पक्षियो || हेकेसा० ॥ सागर बर उडजाय ॥ घने बूठे तिण ऊपरे ॥
२ बर्षाद बरषे
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खण्ड २
* हेकेसा० ॥ नीचे पडे रडकाय ॥ केच ॥१४॥ ते झेले कदा सीपडी ॥ हेकेसा ॥ तेहनो में | मोती थाय ॥ पक्षी पाखनी रज ते ॥ हेकेसा ॥ मोती पडमें रहाय ॥ केच ॥ १५ ॥ इत्यादि संजोग थी॥ हेकेसा॥ इणमें रहगह रत्त ।। हे ए उत्तम जातीनो ॥ हेकेसा॥ पण संग बिगड्यो पेत ॥ केच ॥ १६ ॥ विद्याविन ए शोभतो ॥ हेकेसा॥ बींया प्रगट्या गुण ।। गुरु गमे जे विद्या गृह ॥ हेकेसा ॥ तेहीज जगमें निपुण ॥ केच ॥ १७ ॥ इण कारण इण मोतीने ॥ हेकेसा०॥ मैं निकमो कह्यो नाथ ॥ रूप देखी मैं राचिये ॥ हेकेसा ॥ परखी जे गुणजात ॥ केच ॥ १८ ॥ क्षमा करीयो सहू जेष्ट जन ॥ हेकेसा॥ लोपी आपकी वाण ॥ सहू कहे धन्य छे तुम भणी ॥ हेकेसा० ॥ कीधी खरी पहछान ॥ के ॥ १९ ॥ नानी वय यह चातुरी ॥ हेकेसा॥ निजकुलमें अवलोक ॥ खुशी हुवा हम 5
अति घणा ॥ हेकेसा ॥ बधसी आगल जोख ॥ केच ॥ २० ॥ मदन दीस बुद्धि करीd 5 हेकेसा० ॥ सहूनें वंशमें कीध ॥ पीजे खंड ढाल आठमी ॥ हेकेसा० ॥ कही
अमोल भलीबिघ । केच ॥ २१ ॥ दोहा ॥ प्रमुदित नरवर भणे । अहो श्रेष्टी सिरदार
॥ एक तणी परीक्षा करी ॥ दूजानी करो उचार ॥ १॥ अमूल्य ए किण कारणे । इसो| भएमा सी गुण ॥ ते हिवे शीघ्र प्रकाशिये ॥ अहो जवैरी निपुण ॥२॥ मदन कहे राजा
भणी । दूं यश गुण बताय ॥ हिवणा तो अवसर नहीं । च संजोग जब थाय
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२ पाणी
३ बैठे
॥ ३ ॥ द्रबे रूप घट नीर भर । क्षेत्र ऊंच अछांय ॥ काले शरद पूनम निशी । भावे पुण्य सवाय ॥ ४ ॥ सुणी भूपतव खुशी हुवा । मिलशी सहू संजोग || ठेरावो वैपारीने ॥ | देइ सहू सुख भोग ॥ ५ ॥ ढाल ९ मी ॥ भवियण भाव सुणो ॥ यह ॥ राजाजीने मदन जवैरी । दोन्यारी प्रीती घणेरी हो ॥ पुण्यना फल मीठा ॥ बहुवार मदनने बुलावे ॥ ए कीने बात वणावे हो ॥ पुण्यना फल मीठा ॥ १ ॥ इम करतां शरद पूनम आइ । तब नृप कहे जवैरी तांह हो ॥ पुण्य ॥ मुक्ताफल गुण देखाडो । तुम मननी कूंचीं काहाडो हो ॥ पुण्य ॥ २ ॥ कहो ते वस्तु मंगावूं । कहो ते साज जमावूं हे ॥ पुण्य ॥ कहे जोहरी आजरी राते। मोती गुण थासी विख्याते हो ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ तांबाना पत्रा मंगाइ । देवो चांदणी उंची मां बिछाइ हो ॥ पुण्य ॥ रज मेल कलंक हरीजे । बरोवर शुद्ध जाय पाथरीजे हो ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ सह मध्ये रजत घट मेलो । स्वच्छ सुघाट उदके भरलो हो ॥ पुण्य ॥ इम सामग्री जमवावो । इष्ट पूरसी आपणो उमवो हो ॥ पुण्य ॥ ५ ॥ जेजे मदन बताइ । राय ते ते सहू कराइ हो ॥ पुण्य ॥ तब अस्त थया दिन राया || नृप मदनना मन उमाया हो ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ दोनों आया आकाशी मांह । सह दरवज्जा बंध कराइ हो । पुण्य ॥ सुखासन त्या विछाइ ॥ दोनों आनंद घर निसीजाइ हो ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ बुद्धी गुण बृद्धी मांड्यो ख्यालो । जेहथी
१ चांदीक
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म.श्रे.
३३
२ चंद्र
KON
S
प्रमादको होवे टालो हो । पुण्य ॥ पूनम पूरा चांद प्रकाश्या । भूमी व्याप्त तम सह हास्या हो ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ जिम २ शशी ऊंचो आवे | तिम २ सौम्य प्रकाश बडावे हो ॥ पुण्य ॥ कांतीजमी मोती पे आइ । दोन्यारी एक जोती थाइ हो ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ तब मोती बघतो देखावे । जिम २ इन्दू उच्चज आवे हो ॥ पुण्य ॥ मध्य अंतलिखे जब आवे । मोती कुम्भप्रमाणे देखावे हो || पुण्य ॥ १० ॥ तब तिण माहे थी पाणी छूटो । जाणे बेवण लागो घडो फूटो हो । पुण्य ॥ ताम्रपत्र पे बहाये । तेहने शीतल वायु फेलायो हो | पुण्य ॥ ११ ॥ तब मदनजी अवसर जोइ । ते घडो सरकाइली धोइ हो ॥ पुण्य ॥ तब मूल रूपे मोती थइयो । नृप मन आश्चर्य भइयो हो ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ तब जबैरी कहे राय तां । रात्र बहु गई निद्रा आइ हो ॥ पुण्य ॥ दोनों सूता तिण ठामो । सुखे निद्रा आइ जामो हो । पुण्य ॥ १३ ॥ निशा व्यतिक्रान्त थाइ । दिनकर तब प्रगटाई हो || पुण्य ॥ जागृत हुवा ते जामो ॥ मदन अने नरस्वामी हो ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ जो चांदणी मांह । सब पीली २ देखाइ हो ॥ पुण्य ॥ नरवर आश्चर्य पाया । ताम्रपत्र लिया करम यां हो ॥ पुण्य ॥ १५ ॥ उत्तम कंचन जो । अि हिडे हर्षित होइ हो ॥ पुण्य ॥ मदन कहे नरमाह । एतो एकही गुण देखाइ हो ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ एहवा गुण छे एमा सोला ॥ ते किम जाणे नर भोला हो ॥ पुण्य ॥
खण्ड २
१ अंधारा
३३
३ रात्री
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PERABANKIRNSE
| मैं सीख्यो गुरु पासे । ते आप आगे करूं प्रकाशे हो ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ पांचो इन्द्रियना रोग गमावे । स्थावर जंगम विष नशावे ॥ हो पुण्य ॥ पांचो, स्थावर उपद्रव टाले में क्षुद्र जीवनो जोर न चाले हो ॥ पुण्य ॥ १८ ॥ स्त्री शत्रु मोहवावे । सहू इष्ट कार्य सिद्ध
थावे हो ॥ पुण्य ॥ ते कारण अमोलक एह । बहू पुण्य संचित जन लेह हो ॥ पुण्य ॥ २] १९॥ इण कारण इने गुप्त राख्यो । भरी सभाने भाव न भाख्यो हो ॥ पुण्य ॥ इणने ||
बहु यत्ने संग्रही जे ए भेद न किणने दीजे हो ॥ पुण्य ॥ २० ॥ कीमत में मांगे तेहथी दूनी दीजे ॥ वली तेह कहे सो कीजे हो ॥ पुण्य ॥ पण इणने मती गमावो | । दुर्लभ्य ए जगमां पावो हो ॥ पुण्य ॥२१॥ ए दूजे खन्डे सुखदाइ ॥ ढाल नवमी संअमोलक गाइ हो ॥ पुण्य ॥ देखो बुद्धि मदनजी केरी । आगे पुण्याइ फेले घणेरी हो |॥ पुण्य ॥ २२ ॥ * ॥ दोहा ॥ मदन जवैरी जे कह्या ॥ चन्द्र कान्तका गुण ॥ |ते सह धार्या रायजी । जाण्या मदन निपुण ॥१॥ मंत्री ऐसा चाइये । म्हारा राज मझार ॥ तो फिर मुज कोइ कामकी । फिकर न रहे लगार ॥२॥ इम निश्चय मनमें कियो । वृधी अधिकी प्रीत ।। सीक दीवी मदन भणी ॥ वसिया ते नृपचित ॥ ३ ॥ बुलाया शीघ्र आवजो । छे तुमथी बहु काम ॥ राते जे कोइ दुःख हुयो । तेक्षमजो गुण | | धाम ॥ ४ ॥ नमन करीने मदनजी । पहोंचा निज दुकान ॥ खुशी हुवा मन में घणा ।
KRISHNNYONYINSYNSAINA
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जेफली निज जवान ॥५॥ ढाल १० मी॥ तंहीर याद प्रभू आवेरे दर्द में ॥ यह ॥ मदन म. श्रे. कुंवरजी पुण्य का दरिया । निर्मल वुद्धिसे यशः विस्तरिया ॥ ७॥ पूरी मंडले नृप
खंड सभा भराइ । सचिब सामंत सहू भेला करिया ॥ म ॥ १॥ सभा मंडपे अच्छा विछोणा बिछाया । और ठाठ पाट सह श्रृंगारिया ॥म ॥२॥ सह सुणी उमाया झट पट | आया। आज किसे काम दरबार भरिया ॥ म ॥ ३ ॥ यथायोग्य बैठा आसण आइ
नृपती शोभे ज्यूं सिंह केसरिया ॥ म ॥ ४ ॥ देवसभासम ते रही दीपी । राज बल तेज १ शत्रू
जो अरी जाय डरिया ॥ म ॥५॥ मोटा सन्मान थी मदन बुलाया। सामा भेज्या | २ हाथी
हय घेवरिया ॥ म ॥ ६ ॥ठाट पाट जाइ लाया जवैरी तांइ । ते पण आया हर्ष Pउरभरिया ॥ म ॥ ७॥ नृपादि सहू आदर दीधी । नम्र वयणे अति सत्कारिया ॥ म ॥
॥ ८॥ पोताने पास नृप मदन बैठावे । न बैठे जवैरी उभा नमी ठराया ॥म ॥९॥ राय कहे म्हारे तीन सौ प्रधानो। पण इणसम नहीं एक अवतरीया ॥ म ॥ १० ॥ तिण कारण ए तीन सौ ऊपर । प्रधानपदका दीधा जरीया ॥ म ॥ ११॥ मोहर स्मरपी ऊपर बैठाया। रायजी हकममें मदन अनुसरीया ॥म ॥ १२॥ मदन के जोगो । पण हिवे किम जावे ना उचरीया ॥ म ॥ १३ ॥ जैसा बढाया वैसाही चडाया। 1.निभालेसी नृप होइ मुज दरीया ॥ म ॥ १४ ॥ नमन करी बैठा सचिष आसने । सजन
घोडे
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जनना हृदय ठरीया ॥ म ॥ १५ ॥ हर्षानन्दकी बटी बधाइ । दुशमणनो हृदय आगे जरीया ॥ म ॥ १६ ॥ मुक्ताफलना वैपारी बुलाया । पास बैठाया नृप प्रेम घणा घरीया ॥ म ॥ १७ ॥ कहो मोतीनी कमित भाइ | नीतीवंत तब हम उच्चरीया ॥ म ॥ १८ ॥ एकनी कीमत सवाक्रोड दीनार । शीघ्र दिरावो अब जावां हम घरीया ॥ म ॥ १९ ॥ राय कहे फूटा मोतीको कांइ लो । ते कहे फूटो गयो तेतो कचरीया ॥ म ॥ २० ॥ सत्यवंत संतोषी जोइ राय हर्ष्या । मदनने कहे देवावो जोग चरीया ॥ म ॥ २१ ॥ तब सचिव कहै सुणो विदेशी भाइ । अमूल्य मोतीना न जाय दाम भरीया ॥ म ॥ २२ ॥ थे निकल्या छो विदेशे कमावा । घरको धनतो न जावे धरीया ॥ २३ ॥ फूटा जे मोती हमी लिया फिर । तिणरी ही कीमत देस्या हम भरीया ॥ म ॥ २४ ॥ पांच क्रोड सोनैंया दिलाया । दाण माफ सह तेहना करिया ॥ म ॥ २५ ॥ मार्ग खावण खरच सहू दीना । अतिहर्ष गया ते निज घरीया ॥ म ॥ || ढाल दशमी अमोल ऋषि गाइ । इण गुणें मदनना यश पसरीया ॥ म ॥ २७ ॥ दोहा ॥ पुण्य पसाये मदनजी । पाया निर्मळ बुद्ध || राजा प्रजा मोहिया ॥ कीर्ती पसरी शुद्ध ॥ १ ॥ पुरपयठाणना नृपनो । पाया पद प्रधान || प्रीती बधी वणी राय की । देख मदन गुणवान || २ || क्षण अन्तर चावे नहीं । करे एकांत सहवास ॥ सम्वाद
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केह प्रकारना । करे बुद्ध प्रकाश ॥ ३ ॥ निरभिमानी मदनजी । ढोंग बधायो । म. श्रे.
खण्ड २ सनाय ॥ वैपार वक्त वेपारी हो । नित्य व्यवसाय चलाय ॥ ४॥ वणे प्रधान प्रधान वक्ते।
दे धर्मी ने सहाय ॥इम सुखे काल अतिक्रमे । आगे आश्चय थाय ॥५॥ ढाल ११ मी ॥ |आघा आम पधारो पुज्य ।। यह०॥ सुण जो होणहार गत भाइ । ते अचिंत्य गुजरे आइ
॥ ७ ॥ तिण अवसर वसंत ऋतु आइ । वन वाडी फुलाइ ॥ कंदर्प मित्र व अहलाद बधावा । बन क्रीडाने जाइ ॥ सुण ॥१॥ राजा राणी सामंत सहेली और
पुरका नर नारी ॥ हिल मिल आया बागके मांही । करे भोजन तैयारी ॥ सुण ॥२॥
गोला रोटा बाटी वाफला । घृते पूर्ण भरिया ॥ तेज मशाले दाल झोलकी । चतुराइ 5 स्यूं करिया ॥ सुण ॥ ३॥ और केह पक्कानज लाया । जवैरी झारा बणाया ॥ गटकाइ
लौटा भर २ ने ॥ केफ मगनज थाया ॥ सुण ॥ ४॥ रंग गुलाल उडाइ गेरी । मिल बरोबरीका साथे ॥ चंग मृदंग झालरी बाजे । गावे धमाल लटकाते ॥ सुण ॥ ५॥ इम रमंता नशोज उतर्यो । क्षुधा तब प्रगटाणी ॥ माल मशाला जीम्या सहु मिल । मन मान्या उरताणी ॥ सुण ॥ ६॥ लेह तंबोल बैठा एक स्थाने । मित्र सहेली परवरिया ॥
बुद्ध विनोदकी करी मस्करी । मधुर गायन उच्चरिया ॥ सु॥७॥ मकर केतु भू - मतिराणी । रूप सुन्दरी बाइ । रूपे रंभा दीठा अचंभा ॥ सुर नरने उपजाइ ॥ सु॥
HINABRANI
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KARNAKYPNRHMENRNARY
4८॥ सुकुमाल बाला मोहनमाला । सहेली संग संचरिया ॥ नाचे गावे नवरंगे । हेत
हियामें भरीया ॥ सु ॥ ९॥ सहेल्या विचथी रायनी पुत्री । आदर्श था ते वारो ॥ | सहेल्या नहीं देखती कुँवरी । विस्मय पाइ अपारो ॥ सु ॥ ॥ १० ॥ बाइजी २ सहू पुकारे।। | उत्तर नहीं कछु पायो । आस पास सहू ढूंढी जागा । तो पण नहीं देखायो ॥ सु ॥ ११ ॥ | घबराह तब सहू सहेली । हाहाकार मचायो ॥ दौडो २ वाइ किहां गइ । केहक रूदन | करायो ॥ सु ॥ १२ ॥ केतुमतीराणी आइ दौडी । आतुरी आइ पूंछे ॥ किहां गई रूपी
मुज प्यारी । रोवानो कारण स्यूं छे ॥ सु ॥ १३ ॥ हम सहू मिल इहां खेलती । विचमें | हुंती बाइ ॥ रमती २ अदृश्य हो गई । एकाकी न देखाइ ॥ सु ॥ १४ ॥ नजाणे पृथवीमें पेठी। को आकाश उडाइ॥ गइ होवे तो ठाम बतावां। आश्चर्य येही आइ॥
सु ॥ १५॥ घबराइ मुरछाइ राणी। दास्या भागी जाइ ।। अर्ज करी राजाजी आगल । में तिहां अनर्थ निपज्याइ ॥ सु । १६ ॥ रंगमें भंगथयो तिण अवसर । सहु दौडी | तिहां आइ ॥ किहां गइ वाइ पतो न पाइ । सहू रह्या घबराह ॥ सु ॥ १७ ॥ गुप्त प्रसिद्ध जोया सहु स्थानक । ग्राम जंगल के मांह ॥ सवार प्यादा घणा दौडिया । मिली नहीं किण ठाइ ॥ सु ॥ १८ ॥ आते रौद्र ध्यान करता । सज्जन पुरजन फिरिया। निज २ घर सहू चुप आषैठा । चिंताए मुख उतरिया ॥ सु॥१९॥ राणी ते समजाइ
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राजा । हूं तस पतो लगास्यूं ॥ चिंता फिकर नहीं कीजे किंचित । थोडा दिने मिलास्यूं ॥
सु ॥ २० ॥ धीरजधारी सहू परिवारी । मेहलमें आइ रहीया ॥ ढाल एकादश अमोल में भाखी । कैसा आश्चर्य भइया ॥ सु ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ।। - दूजे दिन मकर केतू नृप । कियो दरबार तैयार ॥ मदन अने सामंत सहू । बैठा हो होशियार ॥१॥ बीडो फेरे | रायजी । है कोइ नर बडवीर ॥ लावे कुँवरी माहरी । कर उद्यम धर धीर ॥२॥ आधो | * राज तेहने देऊ । परणावू ते बाल ॥ उपकार ए भूलूं नहीं । जावत जीवित काल ॥ ३ ॥ ऊठो २ सुरमा । कीजे एतो काज ॥ बैठा खाइ चाकरी । धरिये तेह तणी लाज ॥ ४ ॥ मजलस में बीडो फिरे । सहू रह्या नीचो जोय ॥ खबर नहीं किहां गइ ।
लाय किहांथी सोय ॥ ५ ॥ ढाल १२ मी ॥ श्रीरामजी नारन पाइहो। यह०॥ 18| उत्तम थी बचन न क्षमा ही हो ॥ सराते सुराइ जणाह हो ॥ आं ॥ इम जोह राय |
असुरत्त हो कहे । किहां गह सहूनी सुराइ हो ॥ ऊंचा किमं कोई नहीं जोवो । किम || रह्या छो मुरजाइ हो ॥ उत ॥१॥ काम जरासो न होवे तुम थी । तो किम करशो|81 लडाइ हो ॥ एकही हुकम म्हारो नहीं मानो । सीधी रोट्या खाइ हो ॥ उत ॥२॥ वक्त ऊपर कोई काम न आया । पुत्री हमारी गमाइ हो ॥ तिण विन राज पाट ए सायबी । सुनी मुज देखाइ हो ॥ उत ॥ ३ ॥ मैं जाणतो बहु सज्जन महारे । महारे कमी नहीं कांह
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हो ॥ वक्त पच्या सहूना गुण जाण्या । मतलबी सहूनी सगाह हो ॥ उत ॥ ४॥ इत्यादी नृप वयण सुणीने । सभा सहू अकलाइ हो ॥ निजथी काम न होतो देखी । पर पर रखा गुडाइ हो ॥ उत ॥ ५॥ तुम पराक्रमी तुम गुणवंता । तुम छो नृपने नेडाइ हो ॥ तुमने नृपने प्रीती घणेरी ॥ तुम जागीरी पाइ हो ॥ उत ॥ ६ ॥ इम कर | तां बहुवक्त विहाणी । तब ज्यूंना मंत्री अकुलाइ हो ॥ इर्षा लाइ मदनने ऊपर । दाबी | इण मुज ठकुराइ हो ॥ उत ॥ ७॥ चिंते इणने दुःखमें न्हा । राय राख्यो छे फुलाइ हो ॥ मुज थी एह मरोड धणी करे । पण अब थासी सिधाइ हो ॥ उत्त ॥ ८॥ उठ कहे | सहू थी आपणी सभामें । मदन जवैरी सवाइ हो ॥ बलमें पूरा काममें शूरा । मुख्य | प्रधान कहाइ हो ॥ उत्त ॥ ९॥ए बुद्धवंता पत्तो लगासी । निश्चय लांसी बाइ हो ॥ येही छे इण कामने जोगा। जावे तो काम थाइ हो ॥ उत्त ॥१०॥इम सुणी मदन जी समज्या। ए बोल्या इर्ष भराइ हो ॥ मुजने दुःखमें न्हाख्या चावे । ऊंचा एम | चडाइ हो ॥ उत्त ॥ ११ ॥ पण आपने तो सीधी लेणी । काम जिनथी सिद्ध थाइ हो ॥ खम्भ ठपकारी उभा थइया। नृपने सामे आइ हो ॥ उत्त ॥१२॥ रायजी पण समज्या मनमें । करे जवैरीनी इर्षाइ हो ॥ परदेश भेजे दुःखमें न्हाखवा । पण धन्य | जवैरी तांइ हो ॥ उत्त ॥ १३ ॥ नामही लेता तत्क्षण ऊभा थया । डरन जरा लाइहो ॥
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खण्ड
२
छे बुद्धिवंता काम सिद्ध करसी । जोइए आगे सी थाइ हो ॥ उ ॥ १४ ॥ मुजरो करने कहे मदनजी । स्वामी दो आज्ञाइ हो ॥ थोडा दिन में कुँवरी सोदी । लाइ देस्यूं तुम तांइ. हो ॥ उत्त ॥ १५ ॥ नरपति भाखे तुम परदेशी । इहां आइने रह्याह हो ॥ एदुष्का| रज तुम सुख इच्छक । रजा किम देवाइ हो ॥ उत्त ॥ १६॥ माता पिता पण दूरा | तुमथी । साथे छे खटलाइ हो ॥ एकली छोडी किम जवाय । विचारो मन माइ हो ॥
उत्त ॥ १७ ॥ नमन करीने मदनजी बोले । सहुनी छ कृपाइ हो ॥ मुजने ऐसो काम | भोलायो । निश्चयथी ते थाइ हो ॥ उत्त ॥ १८ ॥ आप सहू के आशीर्वादे । | अने मुज पुन्य सहाह हो ॥ तिणथी दुःख जरा नही थासे । सब संकट विरलाइ हो । उत्त ॥ १९ ॥ इम सुणी राजाजी हर्षाइ । कहे धन्य २ तुम तांइ हो । महारी सभामें | तुमही मर्दछो । प्रत्यक्ष गुण दीठाइ हो ॥ उत्त ॥ २० ॥ शीघ्र जावो बाइ ले आवो । छे || परमेश्वर सहाइ हो ॥ धार्यो कार्य सिद्ध तुम थासी । मुज मन इम दरशाह हो ॥ उत्त ॥ २१ ॥ इम सुणी हर्षाया मदनजी । ढाल द्वादश मांडहो ॥ पुण्यवंतने सहू काम सुलभ ॥ ऋषि अमोलख गाई हो ॥ उत्तम ॥ २२ ॥ ॥ दोहा ॥ रजा लेइ नृपति तणी । करी लुली प्रणाम ॥ बहु परिवार परिवर्या । आया होटे ताम ॥१॥ भोलावे मुनीमने । राखजो पूरी संभाल ॥ जोगाजोग विचारने । लेजो देजो माल ॥२॥ हूं राजानी रजा
दुकानपर
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१ दुकान
थकी । जावूं परदेश | पुत्री लास्यूं रायनी । करी चौकस धरी रेश ॥ ३ ॥ मुनीम कहे आश्चर्य करी । तो दुक्कर काम || बुद्धी बल साहस करी । पूर्ण करजो श्वाम ॥ ४ ॥ फिर न कीजो पाछली । सवाइ जोजो आय ॥ होट बंदोवस्त सह करी । फिर निज सदने जाय ॥ ५ ॥ ढाल १३ मी ॥ उग्रसेणकी लली | यह ॥ सुणो सभा चित लाय । मदन कुँवरीने इम समजाय ॥ आं ॥ आया हवेली निज ओरी मांया | मूर्खको तब रूप बणाय ॥ सुणो ॥ १ ॥ फटी चिदीका लीरा लटकाय । माथे बांधी बाल बिखराय ॥ सुणो ॥ २ ॥ एक व फाटी एक मूल नाय । फाटी अंगरखी घाली तनमांय ॥ सुणो ॥ ३ ॥ ज्यूंनी फाटी टोपी लीवी पेर । शरीरे लगायो धूल राख केर ॥ सुणो ॥ ४ ॥ इत्यादी भेष सज दरपण जोय । श्रृंगार माहे खामी नहीं कोय ॥ सुणो ॥ ५ ॥ शीघ्र चड आया पांचमें मजल | कुँवरी सामें दाखवे अपनी अकल ॥ सुणो ॥ ६ ॥ हड २ हंसता पड्या सामे जाय । करी मुरखाइ कुँवरीने हंसाय ॥ सुणो ॥ ७ ॥ अटकतो कहे सुणो आश्चर्य बात । आज एक आयो मुज ग्रामको भ्रात ॥ सु ॥ ८ ॥ तिण पूंछयो इहां तूं आयो केम । किण घर रहे । तुज शरीरनें खेम ॥ सु ॥ ९ ॥ मैं कह्यो म्हारा तात दीनो निकाल | रिस आइ इहां आइ । रहूं खुश हाल ॥ सु ॥ १० ॥ एक राज कन्या पासे रह्यो छू नौकर । चोखा वस्त्र अन्न मने आपे पेटभर ॥ सु ॥ ११ ॥ फिर ते मुजसे कहे थायरे वियोग |
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म.
श्रे.
खण्ड
२
मात तात थायरा करे घणोसोग ॥ सु ॥ १२ ॥ एकवार तिणथी तूं मिल जरूर जाय ।
थोडीक सातातस जीवने थाय ॥ सु ॥ १३ ॥ में कह्यो पूछस्यूं हूं मालकणीने जाय । *ते हुकम देवसी तो मिलस्यूं हूं आय ॥ सु ॥ १४ ॥ तिहां थकी दौडी आयो तुमारे पास ।
आपनी जे इच्छा ते कीजे प्रकाश ॥ सु ॥ १५॥ कहो तो हूं जाइ मिलूं कुटंब ने तांय । थोडो काल तिहां रही मिलू पाछो आय ॥ सु ॥ १६॥ इम सुण कुँवरीने नेणे आयो नीर । एक तूंही सेंदो मुज छोड जावे तीर ॥ सु ॥ १७ ॥ महारी उम्मर किम व
पूरी होसी एम । कर्म चण्डालनी मैं किहां पाउं खेम ॥ सु ॥ १८॥ मूर्ख निश्वास न्हांखी से अश्रू नेणे लाय । सोगन खा कहे पाछो आस्यूं इण ठाय ॥ सु ॥ १९ ॥ कुवरी
कहे मिल पाछो आवजो सही । महारी बात किणने केवणी नहीं ॥ सु ॥ २० ॥ नहीं करूं|5 म बात कोइ आस्यूं पाछो सही ॥ बचन देइने चाल्या मदनजी तहीं ॥ सु ॥ २१ ॥ नीचे आइ सहू दास दासीने बुलाय । विश्वासी कहे एक धारो महारी वाय ॥ सु ॥ २२ ॥ थोडा दिन काज हूं तो जावू प्रदेश । बंदोवस्त पाछलो राखजो विशेष ॥ म ॥ २३ ॥ बाहिर कोह तरह जाणे नहीं पाय । घर मांहे अन्य नहीं आवे चलाय ॥ सु ॥ २४ ॥ महारी कोह बात जणा जो कदी मत । हुकम में रहजो दुःख न धर चित सु ॥ २५ ॥छे महिनाकी पहली दी नौकरी चुकाय । नीती सर रखा देस्यूं इनाम
३८
१ बचन
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२ घर
हूं आय ॥ सु ॥ २६ ॥ इम पुक्त वंदोवस्त कीनो मदन ॥ शुभ मुहूर्त चाल्य छोड सदैन || सु ॥ २७ ॥ हलका भारको लियो द्रव्य घणो लार । जिम सहू सुख रहे विदेश मंझार ॥ सु ॥ २८ ॥ ढाल त्रयोदश अमोलख ऋषि कहे । पुण्य पसाय जीव सब सुख लहे ॥ सुणो ॥ २९ ॥ ॥ द्वितीय खन्ड सारांस हरीगीत छंद ॥ दूजे खंड श्रीपुर | पतिनी । करामाते कन्या हरी ॥ पुर पयठाणे जवैरी होइ । मुक्ताफल परीक्षा करी ॥ पयठाणपुर राजाकी कन्या सोधवा वीडो गिरी ॥ चालिया आगे जवैरी । अमोल एती | थइ चरी ॥२॥ परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी । महाराज के सम्प्रदाय के बालब्रह्मा|चारी मुनी श्री अमोल ऋषि जी रचित पुण्य प्रकाश मदनकुँवर चरित्रस्य द्वितीय | खन्डम समाप्तम् ॥
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१ इच्छित
॥ दोहा ॥ तीर्थकर सिद्ध साधूको । वारम्वार नमस्कार ॥ शांतीनाथ स्मरण करी । करूं तिउखन्ड उच्चार ॥१॥ मदन चरी छे मनहरी। अधिकाधिक संवाद ॥ ते सूणियों श्रोता गणों। छांडी सह विखवाद ॥ २ ॥ सत्य बड़ो संसारमें । आराधे पुण्यवंत ।। प्राणांते हटे नहीं। तस होवे सहू कंत ॥ ३ ॥ पुर पयठाण थी मदन जी । | करी सहू वंदोवस्त ॥ चाल्या आगे विदेशमें । पुण्य मुहूर्त प्रशस्त ॥ ४ ॥ आय ग्राम ने वाहिरे । सिद्ध करणने काज ॥ वाणिक वेश छिपाइयो । बण्या जोगी महाराज ॥५॥ भगवा वस्त्र पहरिया । गले रुद्राक्षकी माल ॥ आनन भभूती औपती । काप्या सिरका बाल ॥६॥ झोली घाली बगल में । करमें सौटी सहाय ॥ कम्बल खन्धे लटकती।
शिर शिव तिलक लगाय॥७॥ विन आडंबर शांत चित । फिरे भूमंडल मांय ॥ ग्रामा ३ जंगल | रण्य शिखरी गिरी । ढूंढता सहूजाय ॥ ८॥ साधू रूपथी तेहने । हटकी न सके कोय ॥ १ पहाडबात घणी हाथे लगे । आदर सह जगे होय ॥ ९॥ ढाल १ ली ॥ जंबूद्वीपरे भरत
| बवाणियेरे ॥ यह ॥ मदनकुँवरजी बुद्धि आगला जी ॥ कुँवरी सोदण काम ॥ जोगी रुहो पृथवी उल्लांघता जी। रहता शुभ जोह ठाम ॥ मदन ॥१॥ बहुपुर वह स्थान | चौकश घणी करेजी । किहांह पतो नहीं पाय ॥ तो पण साहस रति नहीं खन्डियो जी॥
आगे आगेजी जाय ॥ म ॥ २ ॥ आगल जातां ते मार्ग भूलिया जी । पड्या
२ मुखपर
५ गुफा
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१ जंगल
२ पशु ३ पक्षी
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कतार में जाय । पन्थ विनाही ते दिशानुसारथी जी । जोता पन्थ क्रमाय ॥ म ॥ ३ ॥ पहाड खाड तिहां मोटा आवियाजी । द्रुम दर महीतल सर्व ॥ कुश काँटाने तीक्षण काँकरा जी । लागे तन तीक्ष पर्व ॥ म ॥ ४ ॥ उतंग चडीने ते नीचा आवता जी । जोता गुफा झाडी मांय ॥ वनचर खेचर क्षुद्री जीवडा जी । बहुला दृष्टि जी आय ॥ म ॥ ४ ॥ आगल चौगान वन रलिया मणो जी । सुन्दर वृक्ष उतंग ॥ ताल तमाल न आंबू जांबू वाजी । दाडिम लिंबू सू चंग ॥ म ॥ ६ ॥ रायण केला सेंतूतने आम लीजी । सहू भरिया फल फूल || गेहरी सुखदा शीतल छांयडीजी । लागे मन अनुकूल ॥ म ॥ ॥ ७ ॥ धराजडी छे पंच रंग पहाण में जी । केइ आसण आकार | मध्य पुष्करणी बावी शोभती जी । मकराणामें ते सार ॥ म ॥ ८ ॥ निर्मळ नीर स्फटिक समजिहां भरयो जी । कुमुदिनी चौफेर ॥ मध्य कमल बहु पद्मने पुंडरीकाजी । बहु रंग दीपे छे । लेहर | म ॥ ९ ॥ साताकारी ठाम ते जाणने जी । दंड कमंडल ठाय ॥ थाक उतारण | तिहां मज्जन कियो जी । तुर्त ते वाहिर आय ॥ म ॥ १० ॥ वस्त्र धोइ सुकाइ | पेहरिया जी । फिर कर तिणहीज स्थान || मीठा पाका निरोगा फल लियाजी । ते पुष्करणीपे आन ॥ म ॥ ११ ॥ रूचता भोगवी जल आरोगियोजी । पाजे बैठा मन रंग ॥ चिंते इण वने ए किम नीपनाजी । वावी वृक्ष सूरंग ॥ म ॥ १२ ॥ झाडी झूडी
४ बावडी
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म. श्रे.
४०
Vi
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स्वच्छ ए भूमिकाजी । कोण करी इण ठाय ॥ निश्चय संचरे इहां कोइ मानवीजी । पण ते किम न देखाय ॥ म ॥ १३ ॥ इम तरंगा अनेक मन उपजेजी । चारोंही कानी ते जोय || तेतले उतंग शिखरी थी उतरतोजी । जोगी देख खुश होय ॥ म ॥ १४ ॥ प्रचन्ड अंग तस ऊंचो छे घणोजी । रोम घणा तस अंग ॥ दाढी मूंछ जटा जुट तेहनेजी । लंगोटी बान्धी छे तंग ॥ म ॥ १५ ॥ लोह कडो कर खडावां पेरमेजी । सिन्दूर तिलक ललाट || मृत्तिका घटले जलने कारणे जी। आवे तेहीज वाढ | म ॥ १६ ॥ मदन पद्मा| सण तिहां जमाइयोजी । नासाग्र दृष्टि ठाय ॥ प्रमेष्टी नाम जपतो मन विषेजी । ध्यानी मुनी ज्यों थयाय ॥ म ॥ १७ ॥ तेतले जोगी ते तिहां आवियोजी । देखी मदन कोजी रूप | तरुण वये यह वैरागी गुण निलोजी । ध्यानस्त शांत स्वरूप ॥ म ॥ १८ ॥ इम विचार तो पेठो वाचीमेंजी । जल डोहली कियो अंगोल ॥ वस्त्र धोतो ते ईश्वर भक्तीनाजी । गुह्य श्लोक रह्यो बोल || म ॥ १९ ॥ मदनजी चिंते एकांत एरन्नमेंजी । ए एकलो | किम रेय ॥ साचो जोगी के कोइ परपंचीयोजी । आवे मन संदेह ॥ म ॥ २० ॥ चौकस करणी जी इण साथ रही जी । इम कियो द्रढ विचार || तीजा खन्डे पहली ढाल एजी । अमोल आगे चमत्कार ॥ म ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ जल घट भर जोगी तदा । आयो वावी बार ॥ ध्यान तजी तत्क्षण उठी । मदन कियो नमस्कार ॥ १ ॥
खण्ड ३
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साष्टांग दंडवत कर । कहे आज धन्य भाग । जंगल में मंगल भयो । साचो तुम वैराग्य |॥ २ ॥ अव चरण छोडू नहीं । करस्यूं श्वामी सेव ॥ कृपा करी सेवक परे ! जल घट दो मुज देव ॥ ३॥ गुरु कृपाथी पामस्यूं। आत्म अनुभव ज्ञान ॥ पारस संग सुवर्ण वणु
ण जोग निध्यान ॥४॥ इत्यादी करे विनंती। छोडे नहीं चरणार ॥ जोगी देख आश्चर्य भयो । यह विनीत सिरदार ॥ ५ ॥ ढाल २ जी ॥ गोपीचंद लडका ॥ | यह०॥ श्रोता गण सुणिये । मदन तणी करामातने ॥ ७ ॥ देख विनय भक्त भावना | सरे । जोगी कहे सुणो वच्चा । हम जोगी एकांतमें रहते । संग नहीं करते कच्चा हो
॥ श्रोता ॥ १॥ तूं कोण ह्यां कैसे आया । कहां जाणेकी आशा ॥ यह जोगी के प्रश्न में | सुण के मदन करे प्रकाशा हो ॥ श्री ॥२॥ बाल वैरागी मैं हूं श्वामी । गुरु नहीं मुज माथे ॥ फिरता २ आ निकलियो । अब रहूंगा तुम साथे हो ॥ श्रो॥ ३ ॥ सत्य बचन हे श्वामीजी का। जोगी एकांत रहणा || गृहस्थी का का संगन करणा । ज्ञान ध्यान |चित धरणा हो । श्रो ॥ ४ ॥ आप जैसे असंग्गी देखके । पाया मैं आणंद ॥ गुरु जी मुज ऐसे चाहिये । सदा सुखदाइ सम्बन्ध हो । श्रो॥५॥ जोगी कहे हमतो नहीं है रखते। चेला मेला कोइ ॥ और जोगी है बहुत जगत में । करना गुरू तूं जोइ हो ॥ श्रो॥ ६॥ मदन कहे सामे आह गंगा । छोड दूर कोण जावे ॥ चैला तो गुण देख के करणा।
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पहाड
म. श्रे. मठ देखण मन चावे हो ॥ श्री ॥ ७ ॥ एक दो दिन सेवा करके । कहोगे ,
खण्ड ३ 1 तो फिर जास्यूं ॥ पुण्य जोग मिल्यो संत समागम । मूक्यो जाय न महास्यूं हो ॥ श्रो *८॥ जल कुम्भ ए मुजने आपो । मठ लगे पहोंचावू ॥ महारे सामे आप उठावो । मैं तो 2 घणो शरमावूजी ॥ श्री ॥९॥ बल जोरी घट लियो छोडाइ । करी घणी नरमांड जोगी देख के आश्चर्य पाया। चिंते करणो काइ हो ॥ श्रो॥ १० ॥ यो बालने वली इके लो । करैगा क्या उत्पातो ॥ राते इसका मन समजाके । कल करूंगा जातो हो ॥ श्रो॥ ११॥ महा विषम झाडी में चाल्या । मोठा शैल मझारे ॥ आगे पाछे फिरता आया ।
एक गुफाने द्वारे हो ॥ श्रो ॥ १२ ॥ जोगी आगल माहे पेठो । मदनजी तसा 5 लारे ॥ पंक्तिया थी नीचा उतर्या । महान्धकार मझारे हो ॥ श्री ॥ १३ ॥ अन्ध गुफा
में आगे चाल्या । थोडी दूरे जातां । प्रकाश देख्यो चौगान आयो । सुन्दर सदन देखा ता हो ॥श्रो ॥ १४ ॥ घटार्यो मटार्यो निर्मळ । आरस पहाणे जडिया ॥ विछायत विछी तिहां निर्मळ । आसण बहुविध पडियाजी ॥श्रो ॥ १५॥ तिणपे जा जोगीजी बैठा । कहे मदनसे तारे ॥ जल घट इस ओटेपे धरदे । मदन धरदीयो जारे हो ॥ श्रोता ॥ १६ ॥ एकांते जा बैठा मदनजी। सरकत २ गुडिया ।। कपटनिद्रा ये धोरण लागा । महीनवस्त्र पांघरीया जी ॥ श्रो॥ १७॥ जोगी बैठो इष्ट पूज वा । गोफणी यां निकाल्या ॥ घंटा
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१ वस्त्र
बजाइ गंध लगाइ । शेख पूर माहें घाल्या जी ॥ श्री ॥ १८ ॥ मदनजी चिंते ए रचना । आश्चर्यकारी देखाइ ॥ रूप जोगीको काम भोगीका । क्या ए ढोंग लगाइजी ॥ श्री ॥ १९ ॥ ऐसी विषम जाय ए रचना । किण विध इण जमाइ ॥ किस्यो करछे एकांते रही । देखूं रहने होइ हो ॥ श्री ॥ २० ॥ एतो जोगी है करामाती । सिद्धी साधन हारो । देखा आगे किस्यो करे ए। मौको मिल्यो ए सारोजी ॥ श्री ॥ २१ ॥ तंतूछेद माहें स्यूं मदनजी । देखी रह्या तमाशो ॥ तीजा खन्ड की ढाल दूसरी || अमोल करी प्रकाशोजी || श्रोता ॥ २२ ॥ * ॥ दोहा ॥ पूजन करी निवृत्त हुयो । जे जोगी तेवार || क्षुधा त्रप्ति कारणें । भोजन करे तैयार ॥ १ ॥ एक | गुफा पट खोलने || आटो दाल निकाल ॥ घृत सक्कर दी सह ॥ तिन तणी ते काल ॥ २ ॥ दाल बाटीने चूरमो । कियो तदा तैयार ॥ घृत पूरित सजी साजते । देखी करे विचार || ३ || दो हमतो प्रत्यक्ष छां । करवा भोजन भोग | किम निपाइ तीनकी । | देखूं ए संयोग ॥ ४ ॥ तीजाने देख्या विना । जागृत होणों नाय ॥ इम निश्चय कर सो रह्या । जोवो तीजो कुण आय ॥ ५ ॥ ढाल ३ जी ॥ आउखो टूटाने सान्धो को नहीं रे ॥ यह ॥ भुक्त तैयार हुयां थकांरे । जोगी मदनने जगायरे ॥ उठरे भोजन करी लहरे । सरल सादे बतलायरे ॥ १ ॥ पत्तो लागो कुँवरी तणोंरे ॥ आं ॥ मदन मन हर्षायरे ॥
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खण्ड
उठायो उठे नहींरे । रह्यो नींद घुररायरे ॥ पत्तो ॥२॥ उठाइ बैठो करेरे । तेतो पड २ | जायरे ॥ बड २ करे जोगी मनथीरे । एतो दारिद्री देखायरे ॥ पत्तो ॥३॥ मांथा फोड इणथी कियारे । कांह न निकससी साररे ॥ जड मूंढ ए कोइ जंगलीरे । उठसी मनथी | | कोइ वाररे ॥ पत्तो ॥ ४॥ भोजन शीतल क्यों करूंरे । लेवू शीघ्र थी भोगरे ॥
उगों ते मूकी देउरे । इणपर कर मन्योंगरे ॥ पत्तो ॥ ४ ॥ उठी गयो गुफा विषेरे। , | जोवे मदन द्रष्टि पसाररे ॥ गुफा माथी सुणवियोरे । जाणे रोवे कोइ नाररे ॥ पत्तो । | ६ ॥ अरे दुष्ट मुज छीवे मतीरे । क्यों लाग्यो म्हारे लाररे ॥ प्राण लेवण इच्छा दिखेरे ॥ नहीं करूं तुज संग प्याररे ॥ पत्तो ॥७॥ दूर रहे म्हारा थकीरे । जो जरा म्हारी || पीठरे ॥ हूं छू राजरी पुत्रीकारे । तूं तो दीसे छे कोइ धीठरे ॥ पत्तो ॥ ८॥ जोगी
६ कहे मीठासथीरे । क्यों करे निकम्मो शोगरे ॥ भोजन तो भोगी लहेरे । जराक मुज १ टेख सामो छोगरे ॥ पत्तो॥९॥ दो मांस तुज इहा भयारे । अजु ओलख्यो मुज नायरे ॥
मुजसम जगमां को नहींरे । विद्यावल में सवायरे ॥ पत्तो ॥ १० ॥ एकवार प्रसन्न म हारे । जो तूं म्हारा विलासरे ॥ तुज कृपाको तिरस्यों अछ्रे । पूर २ म्हारी आसरे ॥
पत्तो ॥ ११ ॥ चल तूं पहली जिमलेरे । इम कही लायो तस बाररे ॥ते जोगीने अण छीवतीरे । कर्यो थोडो सो अहाररे ॥ पत्तो॥१२॥ जोगी दूर बैठो थकोरे। बांतां
TRYAMANNASIMHAYY
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केह बणायरे || इम करसी तूं किहां लगेरे । कोण तुज सहायक थायरे ॥ पत्तो ॥ १३ ॥ ताप किणरी एहवी जगारे । मुज आज्ञाविन आयरे ॥ मोत जिणरी आइ लगीरे । ते मुज सामे थायरे ॥ पत्तो ॥ १४ ॥ कुँवरी कहे फूले मतीरे । जगमाहें घणा रतनरे ॥ मदन जवैरी सारखारे ॥ करसी महारा जतनरे ॥ पत्तो ॥ १५ ॥ फूल्यो फूल कुमलावइरे । तिम तुज आयो अंतरे || मिलावो महारा कुटम्बरे । जो तूं सुख चावंतरे ॥ पत्तो ॥ १६ ॥ निश्चय कियो मुज मनधीरे । करणो जवैरी भरताररे ॥ ते छोडी हूं अन्यनेरे । मरणांत नहीं इच्छनाररे ॥ पत्तो ॥ १७ ॥ ज्यादा जोर जो तूं करेरे । तो प्राण तजू इण वाररे || जोगा कहे मरे मतीरे । तुज खुशी करूं कोइ बाररे ॥ पत्तो ॥ १८ ॥ पुनरपि मेली गुफा विषेरे । सिल्ला मजबूत लगायरे ॥ विचार केइ करता थकारे । अहार पेट भरखायरे ॥ पत्तो ॥ १९ ॥ वच्यो अहार पात्तल विषेरे । मेली दियो गुडालरे ॥ जाणे ए उठ खावसीरे । मदन पास ते डालरे || पत्तो ॥ २०॥ विद्याके प्रभावसेरे । उड गयो जोगी अकाशरे । तीसरा खन्ड की तीसरीरे ॥ ढाल अमोल प्रकाशरे । पत्तो ॥ २१ ॥ | दोहा ॥ जोगी गया तदनंतरे । मदन हुवा सावधान ॥ हर्षित चित्त में चिंतवे । हुयो धार्या प्रमाण ॥ १ ॥ जेहने जोवा निकल्यो । ते कुँवरी इण ठाम ॥ हिवे लेइने चालिये । फिर पोतानें गान ॥ २ ॥ क्षुधा पण लागी अछे । छे ए भुक्त तैयर ॥ अन्न तणो
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म. श्रे.
४३
आदर करूं । सुकन यह श्रेकार ॥ ३ ॥ जीमी ने तृप्त हुइ । कुँवरी लेवा काम ॥ आया | गुफाने बारणे । सिलपट नेडा जाम ॥४॥ लंबा कर करवा लग्या। मत २ शडू सुणाय ॐ॥ चमकी कर पाछो लियो । जोताको न जणाय ॥५॥ ढाल ४ थी ॥ चार पहेर को दिन होवेरे लाल ॥ यह ॥ फिर तिहां छातथी बोलियोरे लाल । भले पधार्या मदने शहो। जवैरी ॥ मार्ग जोतां तुम तणोरे लाल । वीत्या घणा दिनेश हो । जरी ॥१॥ काज विचारी कीजियेरे लाल ॥ ७ ॥ देखी पहला निज जोर हो । जवैरी ॥ तो सगलो सिद्ध थावसीरे लाल । नहीं तो बधसी और हो ॥ ज ॥ का ॥२॥ चमकी मदन जोव 2 ऊपरे लाल । बहु रंग पोपट देख हो ॥ ज ॥ बैठो छे पीजरा विषरे लाल । रूपवंत सो विशेष हो ॥ ज ।। का ॥ ३ ॥ मुजने किम ए ओलखेरे लाल । किम बोले नर भाषहो । ज ॥ पूछीने निर्णय करुरे लाल । छेपशू के नर खास हो ॥ का ॥ ४ ॥ पड्या देख || विचारमेरे लाल । फिर तोतो कहे एम हो ॥ज ॥ उतावल करसि तुमरे लाल ॥ तो थासो मुज जेम ॥ ज ॥ का ॥ ५॥ मदन कहे तुम कौन छोरे लाल ॥ किम हुया छो |
कीर हो ॥ ज ॥ ना किम कहो पट खोलतारे लाल । किम ओलखोमुज वीर हो ॥ ज ॥ का व॥६॥ कीर कहे पुर पहठाणनो रे लाल । दुरजय पूत भद्रसेण हो ॥ ज । बीडो फिर्यो कुँवरी लाणकोरे लाल । मैं ते जोयो नेण हो ॥ ज ।। का ॥७॥ तुम तिहां
१ तोता
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बीडो झेलियारे लाल । मैं उमायो वरवा नार हो ॥ ज ॥ थाणे आगल भागियोरे लाल
पामा इहां ते कुँवार हो ॥ ज ॥ का ॥ ८॥ गुप्त रही जोइ कलारे । जोगी गयो तिण वार हो ॥ ज ॥ रुपसुन्दरीने लेववारे लाल । उघाड न लागो द्वार हो ॥ ज ॥ का ॥९॥ कर चव्या सिल्ला थकीरे लाला । खेंच्या नहीं छूटत हो ॥ ज ॥ तब पस्तावो अती थयोरे | लाल । फंदं आइ फंदत हो ॥ ज ॥ का ॥ १०॥ सांजे जोगी आवियारे लाल । मुजने चेंट्यो जोय हो ॥ ज ॥ असुरत्त क्रोधे भयोरे लाल । कहे चोरी ऐसी होय हो ॥ ज ॥ का ॥११॥ जाणे नहीं तं मुज भणीरे लाल। आयो लेवा माल हो ॥ ज | मार मारी मुजने छ लाल म जाण्यो आयो काल हो ॥ ज ॥ का ॥ १२ ॥ विनवणी काना घणीरे लाल । नहीं आइ तस पीर हो ॥ ज ॥ तत्क्षण विद्या प्रभावधीरे लाल । मुजने बणायो कीरे हो २ तोतो ॥ ज ॥ फ ॥ १३ ॥ मंत्र थकी मुज बान्धियोरे लाल । न जवाय धन्ही उल्लंघ हो । ज ॥ फिर यो जंगल
आइ बैंटू इहारे लाल ॥ध्यान तुमारो अभंग हो॥ज॥ क॥१४॥ मदन आसी मुज छोडसीरे में I लाल । करी कोइ दाय उपाय हो । ज ॥ आज पुण्य प्रभावथीरे लाल । तुम भेट्या मुज ||
आय हो ॥ ज ॥ का ॥ १५ ॥ ना कह्यो इण कारणे रे लाल । रखो उलजो इण ठाम में हे ॥ ज ॥ छोडन हार औरको नहीं रे लाल । कुण करे सघला काम हो ॥ ज ॥ का ॥ ॥ १६ ॥ जोगी रूपे ढोंगी छेरे लाल । निर्दय हृदय कठोर हो ॥ ज ॥ रिसायो बुराथी
१ दया
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म. श्रे.
आपनेरेल
में बुरोरेलाल । छे एपको चोर हो ॥ ज ॥ का ॥ १७ ॥ लंपटी नारी तणो रे लाल
खण्ड ३ र अहंकारी अथाग हो ॥ ज ॥ विद्या पण जाणे घणीरे लाल । मरण स्थंभन मोह भाग
॥ज ॥ का ॥ १८ ॥ एहनी विद्या आगले रे लाल । सुरासर जावे भाग हो ॥ ज॥ तो आपणो किस्यो दाखवूरे लाल । इणने आगल लाग हो ॥ ज ॥ का ॥ १९॥ तेथी|
। जो जाणो करामात हो॥ज || जीति सको इण धूतनर लाल । तो लगावो हाथ हो ॥ ज ॥ का ॥ २० ॥ जाणूं छं हूं आपथीरे लाल । बाइ मैं पासूं - आराम हो ॥ ज ।। ढाल चौथी अमोलख कहीरे लाल । हिवे जोवो मदनना काम हो |
॥ज ॥ काज ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ मदन सुस्त होइ कहे । भलो कियो उपकार ॥ बचायो उपसर्ग थी। पण सोच भयो अपार ॥ १॥ मैं आयो महाशंकटे । रूप सुंदरी | काज || विन लिया जाता थका। मुजने आवे लाज ॥२॥ जास्यूं तो इणने लइ।
नहीं तो रहूं अवधूत । दाय उपाय कोई करी। शक्ते मिलास्यूं सूत ॥ ३ ॥ शुक कहे | || चिंता तजो । दाखू मैं उपाय ॥ कमवक्ती हुवे चोरकी । कुँवरी हाथे आय ॥ ४ ॥ 5 काम अच्छे हिम्मत तणो । मदन कहे हर्षाय ॥ फरमावो कृपा करी । तेहूं करूं उपाय ||
५॥जे ॥ ढाल ॥ ५ मी ॥ प्रभू त्रिभुवन तिलोरे ॥ यह ॥ मदन जी सांभलोरे । पूर्ण कीजे काम ॥ मद० ॥ राखिये आपणी माम ॥ म ॥ ७॥ एक जोजन रे मायने जी
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| हूं जावूं फिरवा काज ॥ गिरी तरु वन जोवतो । मुज मन रखूं विलमाज ॥ म ॥ १ ॥ एक दिन ह्यांची पूर्वमें जी । वटदुम मोटो निहाल || विश्रांती लोधी तिहां । तिहां शुक टोलो आयो चाल ॥ म ॥ २ ॥ बैठा जुदी २ डालियेजी । सब पक्षी सिरदार || टुकलगा, मुज देखतोजी । मेखोन्मेख निरधार । म ॥ ३ ॥ वैम पड्यो तेहनें मने ॥ ते उड आयो मुज पास ॥ कुण किहांना रहवासिया । इम पूछे ते विभास ॥ म ॥ ४ ॥ मैं कह्यो तुम पूंछो किस्यों जी । तुमने कह्या स्यूं थाय । तुम हम तो सरीखा मिल्याजी बोल्यो व्यर्था जाय ॥ म ॥ ५ ॥ विस्मय हुयो ते इम सुणी जी । वली पूछे इण पेर ॥ तुम सागे तोता नहीं जी । छे कोई दुःख की खेहर ॥ म ॥ ६ ॥ मैं चमक्यो मनने विषेजी । ए छे चतुर सुजाज ॥ बोली में मतलब लख्यो जी। हा हा ! पशु विन्नण | म ॥ ७ ॥ मैं कह्यो तुम केवो जिकीजी । साची छे सह बात || पण दुःख जेहने कीजियेजी। जेहथी दुःख विरलात ॥ म ॥ ८ ॥ शुक कहे तुम किम जाणियोजी । मैं न करूं दुःख दूर || पक्षी सरीखा जगतमें जी । कुण नर लायक पूर ॥ म ॥ ९ ॥ वीर मती शुकने कहेजी । पामी बहुली रिद्ध ॥ कुसुम श्री श्रुक जोगधीजी । सील राख्यो भलीविध | म ॥ १० ॥ दमयंती हँस पसायथीजी । कीधा बहुला काम ॥ विषथी राय उगारियो जी । जोवो पोपटका काम ॥ म ॥ ११ ॥ एकावतारी तिथंच हुवेजी ।
I
१ बडका वृक्ष
१ विज्ञान
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म. श्रे.
खण्ड
४५
पाले बाराव्रत ॥ भगवंत भाख्यो निज मुखेजी । जोवो पशुना कृत ॥ म ॥१२॥ पाल इत्यादी पस्यू तणाजी । द्रष्टांत वहु जग मांय । निज मुखथी निज कीर्ते जी करतां लज्जा आय ॥ म ॥ १३ ॥ कहो पहली थारी बीतीजी । किम थयो एह श्वरूप ॥ मैं * जाणूंसो बतावस्यूं जी ॥ जे उपाय तद्रूप ।। म ॥ १४ ॥ मैं कह्यो पुर पयाठणकोजी । मैं छु क्षत्री पूत ॥ रायकन्याको हरण करीने । लायो ए अवधूत ॥म ॥ १५॥ तस लेवण
आवियाजी । मार्ग सही बहुकष्ट ॥ इहां फंद फस्यो जोगीनेजी । ए निर्दय छे धृष्ट ॥ म ॥ १६ ॥ तेषापी मुजने को जी । नरथी पशु अवतार ॥ लेणाथी देणो पड्यो । अब | दुःख पावू छु अपार ॥ म ॥ १७ ॥ मुज बीतक तुमने कह्यो। अब दानो कोइ उपाय ॥ में किम पाछो नरपद लहूं । वली कुँवरी हाथे आय ॥ म ॥ १८ ॥ उपायतो हूं जाणूं छु। पण तुमथी ते नहीं थाय ॥ दूजो सूरो जो मिलेतो । जोगीनो जोम गमाय । म ॥१९॥
ए जोगीना धुर थकीहूं । नाणू छं सह कर्म ॥ करामाती जो मिले तो । खोले सगला भर्म शाम ॥ २० ॥ इम कही चुपको रह्योजी । ढाल पंचमी माय ॥ तीजा खन्ड की कही में अमोलख । शुक उपाय बताय ॥ म ॥ २१ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ कृत्रिम शुक कहे मदनसे । ६ मैं तस कह्यो नरमाय ॥ इम निरास नहीं काजिये । बान्ध आस पास माय ॥१॥ में पाछलथी आवे अछे । मंत्नीश्वर सुजाण । बुद्ध वल कला कौशल्यका । मदन जरी
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निधन ॥ २॥ जो मुजने दर्शावसो । धूर्त विजय नो उपाय ॥ तो हूं कही मंत्रीशने । सिद्ध करास्यूं भाय ॥ ३ ॥ कह्यां विना नहीं चालसी ॥ जोगी जीतण बात ॥ उपकार | होसी अतिघणो । तीन मनुष्य सुख पात ॥ ४ ॥ इम आग्रह थी पूछतां। ते कहे सुण धर ध्यान ॥ कहीजी जरूर मदनने । ते करसी पुण्यवान ॥५॥ ढाल ६ठी ॥ नहीं संदेह लगार निरोपम ॥ यह ॥ सुणो मदन धरी हृदय सदन ए । कीजे सुखको उपायो॥ हिम्मतसे कार्य सिद्ध होवे । शुकवर मुजने बतायो । सुणो ॥ १ ॥ इण हिज | वने शिव शंकर नामे । जोगी था गुणवंता ॥ ध्यान ज्ञान शील संतोष वैराग्य । करीने | अधिक सोहंता ।। सु ॥२॥ तिणनो ए रुद्रशंकर नामे । चेलो छ अभिमानी ॥ बालपण गुरु प्रीती घरीने । सिखाइ विद्या छानी ॥ सु॥३॥ हुवो प्रवीन यो योवनवंतो।
अनीती करवा लाग्यो । कांण मर्दान न माने गुरुकी । अशुभोदय तस जाग्यो ॥सु ॥४॥ 18 गुरु शिक्षा बहु देवे तेहने । ते नहीं माने लगारो ॥ अविनय घणो करवा लाग्यो ।
तब दियो मठथी कहाडो ॥ सु॥५॥ गुरुजी मन रमावा काजे । पाल्यो मुज धर प्रेम ।। कृपा करीने ज्ञान पढायो । नर भाषा आदी तेम ॥ सु॥ ६ ॥ एकदा गुरु चिंतामें बैठा। विसरी ज्ञानने ध्यान ॥ नरमाइ में पूछयो श्वामी । स्यूं विचार मन म्यान ॥ सु॥७॥ | कहें गुरुजी रुद्रो बिगडी । करी विद्याकी रुवारी ॥ अतीतको इण धर्म लजायो !
SHERPHANSKRIT
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म.श्रे.
नीती बिगाडी म्हारी ॥ सु॥ ८ ॥ मैं कह्यो चिंता कर्या स्यूं होवे । उपाय कोइ बतावो।
खण्ड ३ गुरु कहे पुण्य बलिष्ट जिहां लग । तिहां लग नहीं चाले दावो ॥ सु ॥ ९॥ मदनना में श्रेष्टीको पुत्र । इने विद्यासे हरासी ॥ तबही ये प्रपंच छोडने । जागे आत्म रमासी । सु॥ १० ॥ मैं पूछो किण नरथी हरसी । ते करामात बतावो ॥ होणहारसे है कोण वलीयो । विगतवार फरमावो ॥ सु ॥ ११ ॥ कहे गुरु इहांथी उत्तरे । भीमा अटवी , भारी ॥ फळ फूळ पत्र वल्ली वृक्ष वर । मनने रमावण हारी ॥ सु ॥ १२ ॥ तिण मध्ये एक देवालय वर । शिखर रयण में सौहे ॥ सुवर्ण स्थान मणीमय, मूर्ती । काम यक्षनी, ४६ | मन मोहे । सुणो ॥ १३ ॥ तिहां पुष्करणी निर्मळ जल । कमल कुमुदिनी छाया ॥ पाज पंक्तिया और सह विध। देखत मन लोभाया ॥ सु ॥१४ ॥ इण हिज भरत क्षेत्रने मध्ये ।। गिरी बैताड सोहंतो । दक्षिण श्रेणी नटवर नयरे । मने वेगनृप मोहंतो॥सु ॥१५॥ 5 तस नारी रतीसुन्दरी रंभा । विद्या बलमें पूरी ॥ सोले सहेली करने सोहे । सर्व सुगुण | | सनूरी ॥सु ॥ १६ ॥ ते सदा पुनमकी राते । तिण देवालय आवे ॥ नाटक पाडी | यक्षरीजावे। फिर बावडीमें न्हावे ॥ सु॥ १७ ॥ तिण वेला कोइ रतीसुन्दरीना ।।। नीलाम्बर हरी लावे ॥ दवल में छिपे तिणथी छांने तुतही पट लगावे ॥ सु ॥ १८॥ किन्नरीयो आइ तास डरावे । जोनिडर स्थिररेवे । ते अभय वचन आपे तव । तेहना
१ हरे वस्त्र
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वस्त्र तस देवे ॥ सु ॥ १९ ॥ ते कने मांगे ते वर आपे । रुद्रनो ते मद गाले ॥ ए वात गुरूजी सुणाइ । करगया ते काल ॥ सु ॥ २०॥ गुरु वियोगे हूं दुःख पावू । रहूंछ इण वनमांही ॥ इम साचे शुकेश्वर मुजने । हितकी बात चेताइ ।। सु ॥ २१॥ कहे में मदनसे बात सुणिये । महारो मन हर्षायो ॥ वाट तुम्हारी जोतो बैठो। तुम दर्शने | | सुख पायो । सु ॥ २२ ॥ ए कारज तुम हाथे थासी । कीजे साहास धारी | तीजा | खन्डकी ढाल ए छठी । ऋषि अमोल उच्चारी ॥ सु ॥ २३ ॥ॐ ॥ दोहा ॥ मदन कहे | पाए भली कही । अपणाहितकी बात ॥ हिम्मत धर निपजा वरयूं। थोडेइ काले भ्रात ॥१॥ | तोतो कहे कार्य हुयां । मुज मत जाजो भृल ॥ जिम कुँवरीने सुखी करो । तिम मुज | | हो ज्यो अनुकूल ॥ २ ॥ मानव पुनः मुजने, करी ! मिलावो परिबार ॥ यह मुज इच्छा पुरवा । हिवे तुमचो आधार ॥३॥ मदन कहें कार्य हुया । पहला छेद तुम दुःख ॥ कुँवरी मिलावू राजने । तबमें पावूसुख ॥ ४ ॥ ए निश्चय चित राखजो । रहजो सदा हुंशियार ॥ मेंहूं सहू कार्य साधने पाछो आबू इण वार ॥ ५॥ ढाल ७ मी ॥ राग वेलावल ॥ रेघडी
याला वावला ॥ यह ॥ साहसधारी मदन जी । काज साधवा जावे ॥ जे साहसवंतने उद्यामी । तेहना सह सिद्ध थावे ॥ सा ॥१॥ रन्न वन्न अटवी उल्लंघता। रहता तरु गिरी। छांहे ॥ वनफळ योग्य आरोग्यता । वे फिकर चल्या जावे ॥ सा ॥२॥ काँटा ॥ कंकर पांवे
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जंगली
| चुबे । महागीरी उल्लंघे ॥ दुःख किंचित नहीं वेदता । घणा जोवा उमंगे॥ सा ॥ ३ ॥ पुण्य | प्रभावे वनचर तणो । जरा दुःस्व नहीं थावे ॥ देखी अनोखी वस्तुने । अति आंणद लावै |
॥ सा ॥ ४॥ इम चलतां गिरी शिखरपे । चडिया घणा ऊंचा ॥ आगल जोवे तेतले । मन | र कार्य पहुचा ॥ सा ॥ ५॥ मणी शिखर झगमग करे । जाणे गगने लाग्यो । ध्वजा पताका | चिन्हये । देख दुःख सह भाग्यो ॥ सा ॥ ६॥ जे भद्रसेण शुक दाखव्यो । ते एही वा देवालय ॥ तिणहीज रस्ते चालिया। मन में घणा गह गय ॥ सा ॥ ७॥ समभूमी पर 12
आवाता । वन रमणीक जोह ।। अनेक उत्तम वृक्ष वेलडी । फल फूल भोइ ॥ सा ॥८॥ स्वाभावे जम्या पाषाण त्या । जाणे बिच्छा गलीचा । इम मनरंगे मालता । पोखरणीये पहोंचा ॥ सा ॥ ९॥ ते मकराणी पाषाणमें । जाणे सुज्ञे, बणाइ ॥ यथास्थान रंग शोभतो । जाणे चतुरे भाई ॥ सा ॥१०॥ भंड वस्त्र अलगा धरी । पुष्करणीमें आया॥ जल क्रीडा गमती करी । मदनजी न्हाया ॥ सा ॥ ११॥ भीने वस्त्रथी रही। कमल| ग्रही हाथ ॥ हर्षानन्द उत्सहाथी । भेट्या यक्षनाथ ॥ सा ॥ १२ ॥ पूजा करी भक्त | भावसे । पग धोकज दीधी ॥ नानाविध स्तवनता । प्रेमोत्सुक कीधी ॥ सा ॥ १३ ॥ | दीन बन्धव भक्त वत्सला । सरणागत सहाइ ॥ सामर्थ्य करवा सर्व तूं ॥ शक्ती सर्व पाइ ! ॥ सा ॥ १४ ॥ कर्तीि तुह्मारी सांभली । मुज मन उमायो ॥ संकट बिकट सहन करी ।
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१ हाथ
तुम सरणे आयो । सा ॥ १५ ॥ न चाहूं धन संपदा । म चाहूं मैं नारी ॥ पर उपकार के कारणे । सह संकट भारी॥ सा ॥ १६॥ तिणमां सहाय करे सदा । ए उत्तम आचारो ॥ बृद्ध विचारी आपको । मुज कार्य सारो ॥ सा ॥ १७ ॥ अर्ज एती अव धारीये ग्रहूं आसरो थारो ॥ जो होवे कोइ असातना । गुन्हो क्षम जो महारो ॥ सा ॥ १८ ॥ जे आवे सोले किन्नरी । ते देखण नहीं पावे ॥ दुःख नहीं किंचित देसके । वस्त्र कर आवे ॥ सा ॥ १९ ॥ वस होइ मुज किन्नरी । मुज कार्य सारे ॥ एही इच्छा सिद्ध करो। इम प्रणामी उच्चारे ॥ सा ॥ २० ॥ जाबैठा मूर्ती पाछले । किन्नरी वाट वाट जोइ ॥ ढाल सात अमोलिख कही । पुण्य थी सहू हाइ ॥ सा ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ पूनम पूरो उगियो । पूर्व दिशामें चन्द ॥ चांदणी पसरी चौकमें । नाशी गयो तब अन्ध ॥ १॥ व्योम मार्गे साभल्यो । धुंघरको घमकार ॥ प्रकाश पड्यो देवल विषे । मदन हुयो हुशियार ॥२॥
एटले सोले सांमटी । खेंचरी रूप अपार ॥ षोडश शृंगारे सजी। ऊभी देवल बार ॥३ २॥ मन बच काय ने नम्र कर । आइ यक्ष सन्मुख ॥ कर प्रणामी स्तुती करे। वह विनय, | लेवा सुख ॥४॥ मन रली पूर्ण करण । कला सुधारण काज ॥ एकांत स्थानक लखी।।
सजियो नाटक साज ॥५॥ॐ ॥ ढाल ८ मी ॥ लावणी ॥ आश्चर्य जे कथा रसाल | थकी ॥ यह ॥ कामदेवरी जावण कारण । रंभा खडी ज्यों इन्द्र परी ॥ चार सारंगी
常常依然常常然;
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खण्ड ३
म. श्रे. ४८
चारले तपले । चार मजीरे कर धरी । चार परीने पेहरा- घाघरा । घेरदार बहु झलके , जरी। ओड पितीम्बर अतिही सुन्दर । रेशमी बहुरंग भरी। बुलंद अवाजी पाय घुघरी।
बान्धी बरोबर सोले खडी ॥ होय पुण्य पूर्वले जिनके । जब जनको मिले ऐसी घडी २॥ आं ॥१॥ धप मप २ वाजे मृदंग । थाप लगे है सम्मत से || सण २ करे सारंगी मैं बोले । तान मिलाइ रम्मतसे ॥ टन्नक २ बाजे मजीरे। हिला सीसको जम्मतसे ॥ चारोंही श्रीस्वर मिलाह । राग अलापी गम्मतसे ॥ प्रथम तो धुपद उच्चारी । ध्वनी
य गगन चडी॥ होय ॥२॥ तीन तान और सप्तश्वरसे । राग रागणी छत्तीसों॥ ६ योग्य वक्त सिर रीत रायसे । मिला ध्वनी उच्चारी सो घननन २ घाले घुमरी । ठमक २
करती चाले ॥ लटक २ कर लटका तोडे । करी कटाक्षने निहाले ॥ छमक २ कर विछि | | या छमके । खणणण कर खडके चूडी ॥ हो ॥ ३ ॥ करी नाटक बतीस प्रकारे । पूरी सहू |
मनकीजी रली ॥ संत तंत परितंत हुई तब । आपसमें मश्करी चली ॥ हार बैठी सब &| धरणी ऊपर । पसीने के उतरे रेले ॥सरत खल्ली गुलाब कुसमज्यं । मुल्के नूर नेणा खेले॥ | वायु उडावे शिखा पृष्टपे । जाणे नागन खेले पडी ॥ हो ॥ ४ ॥ कहे चलो पुष्करणी
अन्दर । थाक समावां करां न्हावण ॥ नृत्य सामग्री मूकी त्यांही । कपडे बदले तन छावण | | ॥ आइ वडी वावडी पाजपर । उतार साडी तिहां रखे । सहू पडी निर्मळ नीरमें । जल
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१ मिली
१ साडी
क्रीडा करे भय पखे ॥ शंक न किनकी सहू मिली नारी । ख्याल गम्मत में रही अडी ॥ हो ॥ ५ ॥ मदन देख कर आनंद पाया । आज मिला मौका भारी ॥ अपूर्व नाटक ने निरखा। क्या सोहे किन्नरी नारी ॥ क्या नृत्य ? क्या गायन इनका ? क्यातान ? रहे आश्चर्य पा ॥ मजा अनोखा मुजको बताय । भद्रसेण शुककी कृपा | अब वक्त कार्य साधन की कह्या प्रमाणे यह जंडी || हो ||१६|| पडी चरण यक्षराज के बोले । सरणी है श्वामी थांरो ॥ लुपते २ चले अधर जब । छिपते झाड जो अन्धारो ॥ वस्त्र पास आ चन्द्र चांदणे नीलाम्बर ओलख लिया || लघुलघवी कला प्रभावे । हरण करी देवळमें गया ॥ बैठे वे फिकर खुशहो दिल में। दोनों पटको लिये जडी ॥ हो ॥ ७ ॥ जलक्रीडा कर सबी सुंदरी । आह तब वावडी वारे ॥ शीतल पवनसे अंग थरथरे । दोनों वहा भीडी जारे ॥ निज २ तंतू पहर लिये सब । रति सुन्दरी नग्न रही || साडी मिली नहीं चौकस करतां ॥ कहो बेन किसने ए लही ॥ ऐसी हाँसी मत करो कोइ । यों बोले है नग्न खडी ॥ हो ॥ ८ ॥ शीघ्र बतावो साटिका मेरी । शीत अंग थर २ काँपी । ओर मस्करी बहुतेरी करी । तोभी जरा तुम नहीं धापी ॥ सह कहे बाइ सम तुमारी । हम नहीं लीवी तुम साडी ॥ निज २ सहू तंतू झटकारी । अंग अंतर दिये देखाडी ॥ फिर कोण लेगया | मेरी ओडणी । येही फिकर है बहुतबडी | हो ॥ ९ ॥ सहू मिल ढूंढे चारुं कानी ।
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झाड खाड वावीमें जाइ॥ ऊंच नीच सह स्थानक निरखे। तो भी लगडा नहीं पाई॥
खण्ड ३ रतीसुन्दरी पड पाणीमें । ढूंढ लिवी वावी सारी । थर २ धूजत्ती वाहिर निकली।
किहां गई बाइ मुज सांडी ॥ अन्य कोइ आणें नहीं पावे । केतो गइ हवा में उडी ॥ हो ||॥ १०॥ सब कहे जाणे दो साडी॥ बहत आपणे घर मांहीं । क्यों निकम्मी मेह
करती । रखे शरदी लगसी बाइ॥ देवालयमें वस्त्र आपणे । सो पहेरी घरको चलिये ।। रखे अब्बी दिन ऊगी जासी । लडे पती उनसे डरिये ॥ आइ सह देवाकय पासे । जडे
पट पर दृष्टी पडी॥ हो ॥ ११॥ अहो किंवाड किसने यह लगाये। कोण यह कैसे आया। ३६ क्यों छिपा ये मन्दिर अन्दर । ए साडी का चोर पाया ॥ बोल कोण है दान व मानव
| क्यों तेने फंद मचाया ॥ जाणता नहीं है शक्ति हमारी । क्यों तेने मृत्यूंचाया। रिस र भराइ बोले धाइ । जैसी भाद्रपदकी पडे झडी ॥ हो ॥ १२ ॥ मदन कछु उत्तर नहीं आपे । # तबते मन में शरमांइ ॥ इसकी हिम्मत हद है बाइ । गुप्त रहा यह इहां आइ ॥ निडर .
होकर नाटक देखा । जो देवतकोना पाइ ॥ बोलाया बोले न जरा भर । क्या है इसके मन र मांड ॥ रखे लेणासे देणा होवे । ले जावे अपणी गठडी ॥ हो ॥ १३ ॥ अहो बान्धव दो वस्त्र हमारे । ठन्डथकी रही है कॉपी ॥ कहो तुम्हारे मनमें होय सो । अभय बचन दीना आपी ॥ मुफतमें तुम नाटक देखा । तोभी नियत नहीं धापी ॥ चोर बने हमारे सचे
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तो भी हम देती माफी ॥ कहो तुमारे मनने होय सो करे कार्य यह वक्त
अडी ॥ हो ॥ १४ ॥ इम सुणी मदन हर्षाया । पटके आडे ऊभे रही । नीलाम्बर |दिये बाहिर डाली । लेह किन्नरी खुशी भइ ॥ तत्क्षण मदनजी वाहिर आये । सहू जणी जो आश्चर्य पाइ । अल्पये साहसवंत भारी । मानव पुण्यवंत देखाइ ॥ ढाल
अष्टमी कही अमोलक पुन्यवंतकी झुकती घडी । हो ॥ १५॥ ॥ दोहा ॥ हर्षी | | बोले अपच्छरा । अहो पुरुष महाभाग्य ॥ किण कारण इहां आविया ॥ कीधी हमसे लाग| R॥१॥ चाहिये सो दरशाइये । हम सरीखो कोइ काज ॥ मदन नरमाइ इम भणे। | भाग्य भलो मुज आज ॥२॥ दरसण दीठा आपका । पूगी सघली हाम ॥ काज एक छे | आपथी । ते पूरो गुण धाम ॥ ३ ॥ रुद्र नाम एक जोगियो । अदृश्य करी कपट ॥ |पुर पयठण भूधव तणी । कन्या लायो झपट । ४ ॥ ते लेवण हूं आवियो । जाण्यो नोगी बलिष्ट ॥ करामात कोइ दाखिये । पूरे म्हारो इष्ट ॥ ५ ॥॥ ढाल ९ मी ॥ श्री सीमंधर श्वाम सासण श्वामीरे ॥ यह ॥ खेचरी कहे चित लाय । मदन जी सुणियरे ॥ ते जोगी विद्या भंडार । जीत्यो न जाय किणीयेरे ॥ १॥ए बहु विसंमो काज । तुम दरसायोरे ॥ नहीं सहजे ते वस आय । दाखू उपायोरे ॥२॥ तिण वस कीधा बडादेव । मंत्र प्रभावरे ॥ जे तससामें थाय । तस शान गमावरे
राजा
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म. श्रे.
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१ पाणी
॥ ३ ॥ तब मदन कहे हो सुस्त । सुणो सत्य बाइरे ॥ विन राजपुत्री लिया लार। घरे न जवाहरे ॥ ४ ॥ हूंती आप लग आस । थइ आज पूरीरे । इम नहीं कीजे निरास ।
खण्ड ३ होह सनूरीरे ॥५: खगवनिता कहे एम । उदास न थावारे ॥ एक दुष्कर है उपाय ||मावि विद्याधरनी तुम निपजावोरे ॥ ६॥ इहांथी जोजन बार । आनंदपुर ग्रामोरे ॥ ते हिवडां छे उजाड । मनुष्य विन ठामोरे ॥ ७ ॥ तेहने ईशाण कुण । बट उद्यानोरे ॥ तेहने मध्य बड वृक्ष । सप्त एक स्थानोरे ॥ ८॥ तिण बिचमें एक कूप । अन्धार्यो बाजेरे ॥ तेहनो उर्दक लाय। तो सीजे काजरे ॥ ९॥ मदन कहे आप प्रसाद । ए निपजावूरे ॥ निश्चय | है मुज मन । ते जल लावूरे ॥१०॥ तोतो थासी काम । महारा सहू सिद्धारे ॥ किन्नरी हंकार । बतास्यूं विधीरे ॥ ११॥ आवती पूनम रात । जल लेइ आजोरे ॥ मंत्री
वरीले जाजोरे ॥१२॥ हमने हा बहुवार । अब हम जास्यारे ॥ आवती | पूनम रात । निश्चय आस्यारे ॥ १३ ॥ देखी मदन पुण्यवंत । सहू हर्षाहरे ॥ रती सुन्दरी प्रेमवस । सीस कर ठाइरे ॥ १४ ॥ होसी फते तुज काज । रखो हूंशियारीरे ।। हम कही चडी विमाण । सोलेह नारीरे ॥ १५ ॥ मदनजी कियो प्रणाम । ते उड चालीरे ॥ धरती मदनने चित्त । रहे घरमालीरे ॥ १६ ॥ मदनजी करे विचार । वध्यो वली कामोरे ॥ करस्यूं हिम्मत राख । प्रभू पूरे हामोरे ॥ १७ ॥ सूता देवलमांय । रात
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हाथ
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१ चित्तव्यो
खुटाडीरे ॥ प्राते यक्ष सन्मुख । सीस नमाडीरे ॥ १८॥ मान्यो घणो उपकार । रक्षा कीनीरे ॥ इम आगे हो ज्यों सहाय । हो ज्यों मुज चीनीरे ॥ १९॥ होइ सज तत्काल । आगे चाल्यारे । भयकर अटवी पहाड । नेणे निहाल्या रे ॥२०॥ ते नहीं डरे लगार
हर्षी चल्या जावेरे ॥ करता नित्य फळ आहार । झाड पर रहावेरे ॥ २१॥ थोडा दिन रे माय । नयर दिखायोरे ॥ मनहर तेहना भवन । देख हर्षायोरे ॥ २२॥ आतां तेहने |पास । लगे शून्य कारोरे ॥ एक ही नहीं देखाय । पशू नर नारोरे ॥ २३ ॥ विस्मय थया अती मन । कारण कांइरे ॥ किणने पूर्वी जाय । कोइ न देखाइरे ॥ २४ ॥ इम केइ । करत विचार । आगे चल्या जावरे ॥ नवमी ढाल रसाल । अमोलक गावेरे ॥ २५॥ ॥ ॥ दोहा ॥ तब तिहां दीठो आवतो । जोगी रूपे नर ॥ भगवा वस्त्र माल गल । रूप गुणे अपार ॥१॥ मदनने पासे आहयो। कियो लली नमस्कार ॥ धन्य भाग्य संत भेटिया || जंगल मंगलाचार ॥२॥ मदन पण नमन कर । पूंछे तुम छो कोण ॥ इहां किहां थी आविया । कहो नगर गत होण ॥ ३ ॥ सो कहे रमते राम हम । आ निकला इस जाय ॥ दर्शन संतके देखके । आनंद अंग न माय ॥४॥ चलिये नगर अवलोकिये। |क्यों हुइ उजड एह ॥ कर धर दोनों संग चले । धरता अतिलेह ॥५॥8॥ ढाल ६१. मी ॥ नमूं अनंत चौवीसी ॥ यह ॥ नगरमें पेसतां । राजपन्थ सुविशाल ॥ बहु
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१ अनाज
* हाट हवेली। उतंग रंगी सुढाल ॥१॥ प्रजापति हाटे मृतिक भंड बहुरंग ओला
ओल जमाया। पढिया छे केइ ढंग ॥२॥ महतरनी हाटे । भाजी फल बहुताय ॥ डाला भर घरीया । रखवालाको नाय ॥ ३ ॥ मालीनी हाटे पुष्प बहु प्रकार । भूषण बहु रंगा । गजरा तुर्राहार ॥ ४ ॥ पसारी हाटे किरियाणा बहु भाँत ॥ बन्धा छुट्टा धर्या । मार्ग चलत देखात ॥ ५॥ भुशार दुकाने । चौवीस तरह नो नाज । ऊंच ढगला लगी या। कोठा थेला भर्याज ॥६॥ कसारा हाटे धातू पात्र झलहल ॥ छे केइ भाँतना । चिनित वरण विमल ॥ ७॥ खुडद्यानी हाटे । नाणा सिक्का अनेक ॥ ढगली कर धरिया । सुवर्ण रुपविशेक ॥ ८ ॥ मणीहारनी हाटे । काँच कागदको माल ॥ मणियोंना भूषण । चकित होवे नर भाल ॥ ९॥ बजाज बजारे । वस्त्र बहु प्रकार ॥ लटकता दीपे । केह जरी जरतार ॥ १० ॥ सर्राप लोक तो । चांदी सोनो विस्तार ॥ भूषण बहु परेना ।
मेल्या बसणे पसार ॥ ११ ॥ जवेरीनी पेढीये । खुल्ला पडिया करंड ॥ जवेरात बहु परे व जडित भूषण मंड ॥ १२ ।। हुन्डी बाला तो गादी तकिया लगाय ॥ भरी रोकड भंडारे ॥ ठाठ घणो ही शोभाय ॥ १३ ॥ इम रचना बजार की । जोता हुया पार ॥ पण तस रखवाला । दीठा नहीं नर नार ॥ १४ ॥ आगे आइ हवेल्या । श्रीमंत रहवा जोग । तिण माही भाह । साहती सामग्री छोग ॥१५॥ पड्या वस्त्र लम्बा । गेणा पण घणी
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जाग ॥ जाणे पेहरता गया । सहूनर नारी भाग ॥ १६ ॥ शाख चूले चडियो । रोटी चक लोटे जोय । धरी थाल परुसी । जीमण हार न कोय ॥१७॥ इम चमत्कार बहु । जोवता सर्व जाय । राजमहल समीपे आया दोनों चलाय ॥ १८ ॥ पडया पहरायत नाभ शस्त्र वहूतिण ठाम ॥ आगे कचेरीमें । दफतर विखयों तमाम ॥ १९॥ मेहल ऊपर | चडिया। पेखंता आवास ॥ सहू पडी सामग्री। राजभोगसी खास ॥ २०॥ अति आश्चर्य में ।।धरता । चडिया आगल जोय ॥ कहे ऋषि अमोलख । ढाल दश यह होय ॥ २१ ॥8॥ |॥दोहा॥ कन्या रंभा सरीखी । शृंगारी शोभित ॥ गलकर द्रष्टी भूपरे । बैठी सुस्ते चित K॥१॥ देख मदन आश्चर्य भयो । सुरी नारी किन्नरी एय | सुन्य ग्राममें एकली। किण |K
कारण ए रेय ॥ २॥ कन्या पद मनुष्यना । सुणने ऊंची जोय ॥ इच्छित आया पेखने। | हर्षित अतिही होय ॥ ३ ॥ उत्सहाये उभी रही। जोडी दोनों हाथ ॥ लज्जित नयण र # अधो करी । मदनके सामे आत ॥ ४ ॥ आश्चर्य चकित मदन हुवो । मोहाणो अतिमन ॥
जेह ए रंभा परणसी । ते नर जगमें धन्य ॥५॥ ढाल ११ मी ॥ राम आया जमाना | खोटा ॥ यह ॥ भाइ मदन पुण्यवंत भारी ॥ जहां जावे तहां पावे सत्कारीरे ॥ भाइ ॥७॥ मदन पास ते बाइ आइ ॥ नीची नमीने इम उच्चारीरे ॥ भाइ ॥१॥ मदनेश्वरजी भला पधार्या । पूरी आस हमारीरे ॥ भाइ ॥२॥ अषाढ मेघ ज्यूं मारग जोती । ते
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म. श्रे. बूब्यो चहायो वारीरे ॥ भा ॥ ३ ॥ इण सुखासने आप विराज्यो । आरोगे अन्नवारीरे
खण्ड ३ R॥ भा ॥ ४॥ भक्ती प्रेम अतुल्य तस जोइ ॥ लाग्यो मदनने आश्चर्य कारीरे ॥ भा ॥५॥ में मैं तो ओलखू इणने नाहीं ॥ इण किम नाम कियो जहारीरे ॥ भा॥ ६॥ इत्ती खुशा
मद करे किण काजे । नहीं दीसे छे एह ठगारीरे ॥ भा॥७॥ अपणां पाससे किस्यो १ पाणी लेसी । मैं तो पहला छां बावारीरे ॥ भा॥ ८॥ तिहां विराजी आणंद पाया । थाक
| सहू गली गयारीरे ॥ भा ॥ ९॥ दूजो जोगी बैठो पासे । रह्यो मून ते धारीरे ॥ भा ॥
१० ॥ पूछे मदन तिण कन्या तांह ॥ किण कारण रहो एक लारीरे ॥ भा ॥ ११ ॥ किण र RC कारण पुर ए उजड । किहां गया नरनारीरे ॥ भा ॥ १२ ॥ महारो नाम थे किम पहचाणो
किण काज मार्ग निहारीरे ॥ भा ॥१३॥ तव कुँवरी कहे नरमाइ। भोजन जीम्यां कहूं | सारीरे ॥ भा ॥ १४ ॥ नहीं अंतर आपसे है कांह । जीवा छां आप आधारीरे ॥ भा ॥ १५ ॥ मदन अचंभी अर्ज ते मानी ॥ तब उष्णोदक थयारीरे ॥ भा॥१६॥
पीठी तेलनो मर्दन कीधो । फिर शुद्धोदक नह्यारीरे ॥ भा ॥ १७ ॥ ते तले तिण २ चांदी
रसोइ बणाइ । अति चतुरता संवारीरे ॥ भा ॥ १८ ॥ शाग दाल घृत मिष्ट पक्कान । व्यंजनादी बहु त्यारीरे ॥ भा ॥ १९ ॥ रजत पाट सोनारी थाली । मुखमली गादी विछारे ॥ भा॥ २०॥ मेली रत्न जडित कटोरी। स्वादी तोय हेम झारीरे ॥ भा ॥ २१ ॥
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| अनुक्रमे सहु जिमाया । कुँवरी करी पुरस्कारीरे ॥ भा ॥ २२ ॥ बीजा जोगीने भेला | बैठाया । जिमाया कर मनवारीरे ॥ भा ॥ २३ ॥ तृप्त हुई सुखासने विराजा । तंबोल में | मन्योंग आरोग्यारीरे ॥ भा ॥ २४ ॥ ढाल एकादश तीजा खंडकी । ऋषि अमोल उच्चारीरे । || भा ॥ २५ ॥ ॥ दोहा । अपार भक्ती भावजो । हर्षा मदन अपार ॥ किण कारण ए| एवंडो । करे म्हारो सत्कार ॥ १ ॥ भाव भेद समजे नहीं । कांइक छे गूढ भेद ॥ ते जाणवा मदनने । जागी घणी उम्मेद ॥२॥ तेतले कन्या निवृत्ती । आवेठी मदन पास ॥ साता है सह बातरी । पूछे धरी हुल्लास ।। ३०॥ मदन कहे तुम जोगथी। पायो घणो |
आणंद ॥ हिवे उत्कंठा एतली । दाखो तुम संबन्ध ॥४॥ विनययुक्त कुवरी भणे । | इहवृत सुणो नाथ ॥ दया करी हम ऊपरे । सुखी करो सहू साथ ॥५॥ ढाल १२ मी॥
तारा प्रत्यक्ष मोहणी ॥ यह ॥ भवितव्यता भवी सांभलो ॥ दोष न किणरो देवाय हो । | मदनजी ॥ कृत्य कमाइ आपरी । सुख दुःख जगमें पाय हो ॥ मदनजी ॥ भव्य ॥ १॥ IN कर जोडी कुँवरी भणे । सुणी यों श्री मदनेश हो । म ॥ कहाणी हम करमा तणी।
जे भोगवां हम क्लेश हो ॥ म ॥ भय ॥ २॥ आनंदपुरवर नयर ए । श्री जसोधर नृपाल हो ॥ म ॥ श्रीमती राणी गुण भरी। धर्म कर्ममे खुशाल हो ॥ म ॥ भव्य ॥३॥ दत्त | सेण नामें कुंवरये । जोगी रूपे आप साथ हो ॥ म ॥ कनकावती मुज नाम छे । कन्या *
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तास कहवात हो ॥ म ॥४॥राज जोग सहू सायबी । सुखे निर्गमे काल हो ॥म ॥
खण्ड ३ एकदा अचिंत्य रूठियो। इणपुर पर बेताल हो ॥ म ॥ भव्य ॥५॥ कोप्यो सुर अति * आकरो । कर्यो रूपविक्राल हो ॥ म ॥ आयो इहां चलायने । जाणे आयो जग काल हो, ६॥ म ॥ भव्य ॥ ६॥ अरराट शब्द कियो अति । रोषे पाडी चीस हो ॥ म ॥ धूजा तो #y पग मारथी । करड २ दांत पीस हो ॥ म ॥ भव्य ॥७॥ हाट हवेली धूजिया। पडिया ज्यूना प्रासाद हो । म ॥ लोक सह भयभ्रान्त थया ॥ पाम्या घणो बिखवाद हो ॥ म ॥ ॥ भव्य ॥ ८ ॥ छोडी घर धन सज्जना । न्हाठा लेह जीव हो ॥ म ॥ कोई न जोवे कोइने । हाहा करता रीव हो । म ॥ भव्य ॥९॥ राजाजी भयभ्रांत थइ । लेइ निज़n
परिवार हो ॥ म ॥ भागा वनमें जा रह्या । करता सोच अपार हो ॥ म ॥ भव्य ॥ २॥१०॥ स्थिर थह पायदल मूकिया । जे जे भागा लोक हो ॥ म || चउकानी थी बुला
इया । दियो घणो संतोष हो ॥ म ॥ भव्य ॥ १२ ॥ खान पान मकानको । कियो २६ सहू वंदोवस्त हो ॥ म ॥ वनवासी सहूजन बण्या । सहता दुःखने कस्त हो ॥ ॥ #॥ भव्य ॥ १२ ॥ पशुपक्षी पण ग्रामका । महाभयथी गया नाश हो ॥ म ॥ मनुष्य
तिर्यंच मर्या घणा । एसी व्यापी त्रास हो ॥ म ॥ भव्य ॥ १३ ॥ इण कारण इणले | शहरका । ऐसा हुवा छे हवाल हो ॥ म ॥ विचित्रगति छे कर्मकी । न रहे सहु सम
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१ राजा
काल हो | म ॥ भव्य ॥ १४ ॥ हम सह हमणा तिहां रहां । सही शीत तापादि दुःख हो | म ॥ गया दिन संभारता । कब मिलसी ते सुख हो ॥ म ॥ भ्रव्य ॥ १५ ॥ एकदा नैमित्तिक आविया । अष्टअंगका जाण हो ॥ म ॥ देखी सह जन हर्षिया । जाण्यो सुख मंडाण हो | म ॥ भव्य ॥ १६ ॥ राजादिक वृद्धजन मिली । दियो घणो सत्कार हो | म ॥ ऊंच आसण बेसाविया ॥ पूंछे करी नमस्कार हो | म ॥ भव्य ॥ ॥ १७ ॥ कृपाकरी फरमाविये । ये हम संकट पूर हो ॥ म किणदिन किण संयोग थी । किणविध होसी दूर हो ॥ म ॥ भ ॥ १८ ॥ विबुद्ध कहे अहो नरपति | वय पंचमी बुद्धवार हो | म ॥ फाल्गुण पूरी मंडले । आनंदपुरने मझार हो ॥ म ॥ भ ॥ ॥ १९ ॥ पूर्वदिशीना द्वारथी । जोगी रूपने मांय हो ॥ म ॥ मदन नामे पुण्यात्मा । आसी पयदल चलाय हो | म ॥ भ ॥ २० ॥ ते वस करसी असुरने । नगरी देसी वसाय हो | म ॥ परणसी पुत्री तुम तणी । कनकावती जे कहवाय हो ॥ म ॥ म ॥ ॥ २१ ॥ इम कही नैमित्तिक गया ॥ हर्ष्या सह नर नार हो | म ॥ जावो तुम नगरी बिषे । आज आसी मदनेशहो | म ॥ भ ॥ २३ ॥ ताताज्ञाये आविया | मुज़ने | मेली इण ठाम हो ॥ म ॥ जोगी तणो रूप धारने । बान्धव गया आप साम हो ॥ म ॥ भ || २४ ॥ नैमित्तिकना कहेण थी । पैछाण्या हम आप हो ॥ म ॥ द्वादश डाल अम्रोल
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में कही । टलिया सहुसंताप हो ॥ मदन ॥ भ ॥ २५ ॥ ॥ दोहा ॥ दर्शन दीठा राजरा ।
खण्ड ३ हुयो घणो आणंद ॥ वीत्यो वृतांत हम तणो । कह्यो सर्व सम्बन्ध ॥ १॥ हिवे कृपा हम पर करी । एतो कीजे काज ॥ सरणे आया राजके । रखिये हमारी लाज ॥२॥ मदन | कहे मुन शक्तिथी । जो थासी उपकार ॥ तो पाछो हटस्यूं नहीं । करस्यूं काम विचार ॥ ३ ॥ संध्या हुई तिण अवसरे । भगिनी बान्धव दोय ॥ नरमाइ कहे मदनने । अब में। रहणो नहीं होय ॥ ४॥ असुर आवण वेला हूई । पधारो वनमाय ॥ रयणी तिहां सुख
थी रही ॥ प्राते आवस्यूं ह्यांय ॥५॥ मदन कहे जावो तुमे । हूं रहस्यूं इण ठाम ॥ व राते मिलस्यूं असुर थी ।.करस्यूं थाणों काम ॥ ६॥ प्राते तुम सहू देखजो । इम सुणी
हर्षाय ॥ प्रणामी पद मदन तणा ॥ दो, ते तब जाय ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १३ मी ॥ कपूर होवे अतिउजलो रे ॥ यह ॥ उभयगया तदनंतरे जी । मदन चिंते मन माय ॥ असुर आवण अजू वार छेजी। किस्यो करूं इण ठाय ॥ चतर नर । साहसवंत मदन ॥
आं ॥ १ ॥ जिण कामें इहां मैं आवियो जी । ते करूं पहली जाय ॥ सत वटवृक्ष | मध्य कूप क्यां जी । जोवू पहली ते ठाय ॥ च ॥ २ ॥ जल लाइ संग्रही धरूंजी। फिकर टले एक एय । महिनानो अवकाशछेजी । करस्यूं काम सब जेह ॥ च ॥ ३ ॥ इम चिंतवी तिहांथी चल्याजी । आया ग्रामनेवार । किन्नरी कला अनुसारथी जी ।
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सेनाणी जोइ जहार ॥ च ॥ ४ ॥ पेठता अगड विषेजी । देववाणी इम होय ॥ मत पेशो इण कूपमें जी | पहलां चेतावूं तोय ॥ च ॥ ५ ॥ आश्चर्य पाह मदन तिहांजी ॥ चौबाजू जोवे तत्काल । कोइ दृष्टी आयो नहीं जी । तब चाल्या पातील ॥ च ॥ ६ ॥ पुनरपि शब्द इशो हुयो जी। नहीं माने मुज वेण ॥ मत पेसे इण कूपमेजी । जो तूं वांछे चेन ॥ च ॥ ७ ॥ मदन सुण्यो असुण्यो करीजी । शीघ्र उतयों कूपमांय ॥ देव उछाली तत्क्षणे जी । बाहिर दीघो ढाय ॥ च ॥ ८ ॥ आश्चर्य पाया अतिघणोजी । हुइ बैठा सावधान । कहे कुण तुम प्रगट हुवोजी । दाखूं मुज बयान ॥ च ॥ ९ ॥ छिप्या तुम किण कारणे जी । मुज बालकथी डर । इम डरायां मैं ना डरूं जी । प्रगटो झट मेहर कर ॥ च ॥ १० ॥ क्षणभर रहा जोह तेहनी जी । उत्तर न आप्यो कोय । तब मदन सावध हुवाजी । तूंबो लीधो सोय ॥ च ॥ ११ ॥ पुनरपि चाल्या कूपमेंजी ॥ पुनरपि हुइ इम वाण ॥ वीती तोइ समजे नहींरे || नहीं माने मुज काण ॥ च ॥ १२ ॥ मदन कहे इमना कह्या जी । नहीं मानूं मैं बात ॥ ना कहो कि कारणे जी । कहो होइ साक्षात् ॥ च ॥ १३ ॥ इम कही कूपमें चालियाजी । देवने आइ रीस ॥ उठाइ न्हाख्यो वाहिरे जी । पूगी नहीं जगीस ॥ च ॥ १४ ॥ मदन सावध हुइ कहे जी । इम करणों नही जोग || तुच्छ वस्तु जल सारिखीजी । किम नहीं करवा दो
१ कुये में
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भोग ॥ च ॥ १५॥ बिन कारण तुम मुज भणी जी । क्यों न्हाखो दुःख माय ॥ एह में म. श्रे.
IR उदक लिया विनाजी। मुज थी नहीं जवाय॥च॥१६॥ इम कंही उठ्यो ततक्षिणे जी। * चाल्यो कूप मझार ॥ देव कहे धीटा थनेरे । लनाडर न लगार ॥ च ॥ १७ ॥ कमवक्ती
आइ थायरीरे । क्यों तूं वांछे मोत ॥ पण मदनजी मुणे नहीं जी । कहे इम १ पाणी
* कर्यां कांइ होत ॥ च ॥ १८ ॥ असुर तब असुरत्त थयो जी । तत्क्षण मदन उठाय ॥
वट शाखाने चेंटांवियो जी । हाल्यो चाल्यो नहीं जाय ॥ च ॥ १९ ॥ मदन चिंते रूडो वण्यों जी । करणों किस्यो उपाय ॥ होणहार तिम थावसी जी । चिंता कियां काइ थाय॥च ॥ २०॥ मदन लटक्या बट शाखने जी । ढाल तेरमी मांय॥ अमूल्य आश्चर्य
आगे घणोंजी । सुणजो चित्त लगाय ॥ च ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ क्रोधे | | व्याप्यो व्यंतरो। महावायु चलाय ।। मूल सहित वट उपडी । उडी देशांतर जाय ॥ १ ॥ जोयण पच्चासने अंतरे । जयंती पुरने बाहर ॥ ते वट जाइने स्थंभियो । व्यंतर
गयो आंगार ॥ २ ॥ मदन बडने चेंटी रह्या । वीत्याछे चउपैहर ॥ वदन सहू अकडावियो | २ दस्त १अपनेघर
जाणे टूट हुवेढेरे ॥ ३ ॥ उपाय कुछ चाले नहीं। छूटणरो ते वार ॥ अकुलावण आवे घणी। चिंता व्यापी अपार ॥ ४ ॥ किहां हूं आयो उडी । काम स्थान रह्या दूर ॥ कुण छोडे ए दुःखथी । के होसी आयु पूर ॥ ५॥ ॥ ढाल १४ मी ॥ श्री अभिनंदन
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दुःख निकंदन ॥ यह ॥ पुण्य संजोग. सुजोग मिले जग । पुण्यथी होवे सुखदाईजी ॥ दुःख दोहग दूरा विरलावे । ते सहूपुण्य बडाइ जी ।। पुण्य ॥ १॥ तिहां थी थोडी दूरने | माइ ॥ सावत सहा वैपारी जी ॥ सहू परिवारे तिहां उतरिया । जाता विदेश मझारी , जी ॥ पुण्य ॥ २ ॥ पिछली राते सेठ तिहां आया । करवा भणी नीहारी जी ॥ तिण हीज वट हेटे आइ बैठा । छायानो अन्धारो जी ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ ठसको सुणियो मदन , तणो तब । अतिही आश्चर्य पाया जी ॥ शुचि करी मदन कने आया । मधुर वयणे - बोलाया जी ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ सत्यकहे तूं कुण इण समेंह्यां । व्यंतरके मानव जातो जी ॥ किम बैठो तूं वृक्ष चडीने । किण कारण ठसकातो जी ॥ पुण्य ॥५॥ नरम वयण तब | मदन पयंपे । नहीं हूं निश्चय देवो जी ॥ कर्म संजोगे फंद फसाणो॥ महारी दया तुम लेवो
जी ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ मेहर नजर म्हारा पर कीजे । जीवित दान मुज दीजे जी ॥ मर-18 प्राणांतिक उपसर्ग मुकाइ । अभयदान फल लीजे जी ॥ पुण्य ॥७॥ उपकार मुजपे मोटो
थासी । मानव जान बच जासी जी ॥ इत्यादी विनंती करी कह्यो । छोडावो मुजा फांसी जी ॥ पुण्य ॥ ८॥ सेठजीने दया दिल आइ । मदन तणों कर साइ जी ॥ खेंची तत्क्षण नीचे न्हाख्यों । तेतले अश्चर्य थाइ जी ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ सेठजी लटक्या बडने जाइ । मदन जी आश्चर्य पाइ जी ॥ सावंत शाहतो अति घबराया । हे प्रभु अब
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खण्ड ३
५६
म
१ पुकार
में करूं कांह जी ॥ पुण्य ॥ १० ॥ ए नर नहीं कोइ छ इन्द्रजाल्यो । मुजने फंदमें डाली
जी ॥ आप छ्टीने किहां अब जावे । सेठजी पाडी किंकाली जी ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ धावोरे धावो दुष्ट ने पकडो । इण कधिो अन्यायो जी ॥ उपकारनो बदलो इण दीधो । अपकारी ए, सवायो जी ॥ पुण्य ॥ १२॥ मदन कहे सेट दोष नहीं महारो । हूं नहीं जाणं भेदो जी ॥ उपकारी आपपे संकट जोहाई पावं; खेदो जी ॥ पुण्य ॥ १३ ॥। | सेठकहे कर छूटको म्हारो । तो तूं जीवतो जासीजी ॥ नहींतो फिर फजीती पुरी।
थारी इण ठाम थासी जी ॥ पुण्य ॥१४॥ मदन सेठ नेडो नहीं जावे । रखे पाछो जावू ६ चेंटी जी ॥ उतारे सेठनो साद सुणियो ॥ थी थोडीसी छेटी जी ॥ पुण्य ।। १५॥ सहू
जणा जोइ बड तले आया। लटकता सेठ देखायाजी ॥ रिसाणा सठ अंगुली करीने । मदन भणी बताया जी ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ तत्क्षण पकडी मदनने तांड ॥ धक्का मुक्का लगाया जी ॥ यो जादूगर बडो अन्याइ । अरे क्यों सेठ टंगायाजी ॥ पुण्य ॥१७॥ छोडरे दुष्ट सेठने वेगा । स्यूं टग मग रह्यो जोइजी ॥ छोड्या बिन जावा नहीं देस्यूं । कमवक्ती तुज होइजी ॥ ३ ॥ १८ ॥ मदन कहे निश्चय नहीं जाणूं । छूटण धांधण उपायोजी
क्यों विनकारण मुजने मारो । कीजे रुडां न्यायोजी ॥ पु ॥ १९॥ लौक कहे अरे मीठा ठगारा ॥ क्यों वणे अव भोलोजी | सेंठो पकडी उभा मदनने । जरान मूके पालोजी ॥
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॥ ॥ २०॥ घणा लोककी गर्दी थाइ । हाहाकार मचाइजी ॥ ढाल चतुर्दश कही अमोलक । मदन सहाय कुण आइजी ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ अम्बिका नामे देवीनो। देवल घणो मनोहार ॥ विश्रामो पन्धी जना । लेवे तेह मझार ॥ १॥ तिण अवसर तिण मंदिरे । बहुविद्याका जाण ॥ जोगी एक जुगती करी। बैठा लगाइ ध्यान ॥२॥ कोलाहल सुणी करी । ध्यान पार तत्काल ॥ आया देवल वाहिरे । विसम्या नेण | निहाल ॥ ३ ॥ पुन्यवंत एक बालने । घेर रह्या घणा लोक । बृद्ध नर लटक्यो वटतले। |किस्यो जम्यो ए थोक ॥४॥ तत्क्षण चल आया तिहां । लोक देख हर्षाय । आदर | | देइ अतिघणो ॥ हुई बात दर्शाय ॥ ५ ॥ॐ ॥ ढाल १५ मी ॥ कोयल हुक रही ||
मधुवनमें ॥ यह ॥ गुणीकी संगत गुणीजन पावे । गुणीने गुणी मिल्या हर्षावे ॥ आं॥ | मदन गुणवंत जोगी जोई । मन माहे खुसी घणो होइ ॥ गु॥१॥ तत्क्षण आइ पडयो | जोगी चरने । स्तुती करी रह्यो उत्सहा धरने । गु ॥२॥ हिवे सरणो छे नाथ तुमारो। ए महासंकट महारो निवारो ॥ गु ॥ ३॥ हूं निराधार पडयो फंद मांह । मुज अपराध | इणमें कुछ नांइ ॥ गु ॥ ४ ॥ सेठजी मुजपे किया उपकारो । अशुभोदयथी थयो | अपकारो ॥ गु॥५॥ सहू कहे यो मीठो कपटी । मत चाले लागो देवेला चपटी ॥ गु॥६॥ मदनकी दया जोगीने आइ । सहू ननने विश्वास दी याइ ॥ गु ॥७॥ घोटा की तत्क्षण
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खण्ड
में बट के लगाइ ॥ सेठजी तत्क्षण पड्या हेटे आइ । गु॥ ८॥ उठीने जोगी चरणे लागा।
गुरु दर्शन थी सहू दुःख भागा ॥ गु ॥ ९॥ सहूजन जोगीकी करे बडाइ । ऐसा करामाती || में जग विरलाइ ।। गु ॥ १० ॥ नमन करी सहू जोगीने ताइ । निज २ उतारे सुखे आ रह्याइ |
॥ गु ॥ ११ ॥ मदनजी चाल्यो जोगी की लारो। चिंते काम होसी यांसे महारो ॥ गु॥१२॥ ॐए करामाती पाणी अपासी। तिणथी रायकन्या दुःख जासी ॥ गु ॥ १३ ॥ आनंदपुरने में
येही वसासे । सहू मन वांच्छित यां थी थासे ॥ 7 ॥ १४ ॥ जोगी मदन अम्बिका स्थान || * आया। नेडा मदन बैठी सीस नमाया ॥ गु ॥ १५॥ कहे हूं श्वामीजी शिष्य तुमारो। ५७
सेवा करस्यूं सदा रही लारो॥ गु॥ १६ ॥ आपकी आज्ञा प्रमाणे रहस्यूं । तिळ मात्र कधी दुःख नहीं देस्यूं ॥गु ॥ १७॥ इम सुणीने जोगी हर्षाया। कुण छे तूं किहां थी आया |
॥ गु ॥ १८ ॥ नरमी कहे हूं वैश्यनो पूतो । जल लेवानो अगड पहूं तो ॥ गु ॥ १९॥ १ कूवामें 5| देव दियो मुज बडने चेंटाइ । आप कृपाथी ते दुःख गयाइ ॥ गु ॥ २०॥ उपकार
आप कियो अतिभारी । जीवित दान तणा दातारी ॥ गु ॥ २१ ॥ हिवे हैं आपकी वंदगी करस्यूं । तेहथी दुःख महोदधी तरस्यूं ॥ गु ॥ २२ ॥ सहूगुणसंपन्न चेलो जोह का जोगीका रोम २ खुश होइ ॥ गु ॥ २३ ॥ प्रेम धरीने राख्यो पास । मदनजी रह्या
धर हुल्लास ॥ गु ॥ २४ ॥ गुणीने गुणवंत इमा आ मिलिया । दो५ जणारा मनोरथ
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फलिया ॥ गु ॥ २५ ॥ आगे करामात करखी घणेरी । सुण जो सह हित चित देरी || गु ॥ २६ ॥ तीजो खन्ड समाप्त था । ढाल पन्नर ऋषि अमोल गाइ ॥ गु ॥ २७ ॥ ॥ तृतीय खन्ड सागंत हरीगीत छन्द || वन जोगी घर मिली कन्या । शुक उपाय बता| विया ॥ जो खेचरी नृत्य बचन ले । उजडपुर में आविया । चेंटीवट उड गया जयंती । जोगी करामाती पाइया । एती चरी खन्ड तीसरे । अमोले ऋषि दरसाविया ॥ ३ ॥ परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराज के संप्रदायके बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी रचित पुण्य प्रकाश मदन कुँवर चरित्रस्य तृतीय खन्डम् समाप्तम् ॥ ३ ॥
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खण्ड ४
२ मन्दरमें
॥ दोहा ॥ अहंत सिद्ध साधू धरम || गृही यह सरणा चार ॥ नेमीनाथ नमन करी | ॥ कहूं चौथो अधिकार ॥१॥ मदन कथन अतिमन रमन । सुणता विक्से हुल्लास ॥ वक्ता मन बधे उमंग तिम । करेगुणी गुण प्रकाश ॥२॥ बुद्धिबल सहूथी अधिक । जो साहसवंत होय । आश्चर्य चकित सहने करे । सुणजो ते सहू कोय ॥ ३ ॥ रही | मदन जोगी कने । सेवा साधे हमेश ॥ चिंते जोगी परखिये । देइ कोइ आदेश ॥४॥ एकदा रयणी अर्धमें । जोगी अने मदन | विनोद बात करता थका। बैठा अम्ब सदन ॥५॥ रुदन शब्द सुणियो तदा । जोगी कहे कुण रोय ॥ मदन कहे नारी अछे । कहो | तो आयूँ जोय ॥ ६॥ साहस पेखी मदनको । जोगी हुकम फरमाय ॥ जावो खबर आवो | लही । किण कारण अरडाय ॥ ७ ॥ तत्क्षण उठी मदनजी । जोगीने पग लाग ॥ शब्द तणे अनुसार थी । चाल्या शीघ्र ते भाग ॥ ८॥ अन्धारो छायो अति । पृथिवी नहीं देखाय ॥ साहसधारी मदनजी । स्मशाणमें आय ॥ ९ ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ गाय २ घांटा रया ॥ यह ॥ प्रज्वल मशाण प्रकाश थी। तिहां देखे दृष्टि पसार ॥ साहसवंत मदन जी । सूली एक उतंग तले । ते बैठी रोवे नार ॥ साहसवंत मदन जी ॥१॥ जवान नर सूली परे । ते मृत्यूक हुयो देखाय ॥ साह ॥ निरखे नारी सब ते । तब दया मदनने आय ॥ सा ॥२॥ मदन पूछे मीठासथी । बाह रोवो
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छो किण काम ॥ सा ॥ वतिक तुम मुजने कहो । जो होवे तुम मन हाम ॥ सा ॥३॥ इम सुण नारी खुशी हुइ ॥ कहे धूंगट पट उघाड ॥ सा ॥ नेणा नीर नितारती । स्यूं पूछो मुज प्रकार ॥ सा ॥ ४ ॥ दुःख तो जेहने कीजिये । कांह जे नर दुःख गमाय
॥ सां ॥ अन्य आगे कहतां थकां । ते वयण प्रलाप कहाय ॥ सा ॥५॥ मदन कहे | * मुज शक्तिसम । मैं तुजने देस्यूं साज ॥ सा ॥ योग्य काम करस्यूं सही । तुम कहोते
छोडी लाज ॥ सा ॥ ६॥ हर्षाइ प्रेमला भणे । तुम सुणजो साहसवंत ॥ सा ॥ इण | सूलीरे ऊपरे छे । महारा प्याराकंत ॥ सा ॥ ७ ॥ द्वेषीजन दगो करी । विन मोते। नहाख्या मराय ॥ सा ॥ प्राणेश्वर विरहथी । मुज प्राण रह्या अकुलाय ॥ सा ॥ ८ ॥ हूं रोवू इण कारणे । मुज जमवार जासी कम ॥ सा ॥ म्हारो रक्षण कुण करे। विण | प्यारे म्हारो प्रेम ॥ सा ।। ९॥ मदन कहे गत बातनो । बाइ पश्चाताप अजोग ॥ सा ॥ थारे यारे सम्बन्ध को ॥ बाइ इत्तादिन संजोग ॥ सा ॥ १० ॥ समताधारी विरमिये बाइ । अणहूंतो ए विलाप ॥ सा ॥ महिला कहे इम किम कहो छो । सत्पुरूष हो आप ॥ सा ॥ ११ ॥ मदन कहे किस्यो करूं ॥ कांइ मूर्दा न जीवता होय ॥ सा॥ और कहो सो मैं करूं । तुम उपाय बतावो सोय ॥ सा ॥ १२॥ कांता कहे मुज कंतनो। मने मुख जोवानी हाम ॥सा॥ मनडो अतितरसी रयो । ते किम होवे मुज काम ॥सा॥१३ &
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म.श्रे.
सूली तो ऊंची घणी । कांह मुज थी नहीं चडाय ॥ खा ॥ १४ ॥ कृपा करी मुज ऊपरे । आप | दर्शन देवो कराय ॥ सा || १५ || मदन कहे परनारने तन । कर लगावा पञ्चखाण ॥ सा ॥ पण | उपाय एक दाखवूं । तिम देखो तुम प्राण ॥ सा ॥ १६ ॥ नमीने मैं उभो रहूँ बाइ ॥ इण | सूलीके पास ॥ सा ॥ तुम चडी मुज पीठपे । सहु परो मनकी आस ॥ सा ॥ १७ ॥ खुशी हुई नारी भणे कां । ठीक बताइ रीत ॥ सा ॥ मदन नम्यो नारी चडी । तब करवा प्रीतम प्रीत ॥ सा || १८ || प्रेम धरीने निरखथी । तब मुरदे मुख दियो फाड ॥ सा ॥ जाण्या आइ प्रेम | प्रीतम मुज इच्छे प्यार ॥ सा ॥ १८ ॥ शर्बना मुखने ढुंकडो । तब भामनी मुख लेजाय ॥ सा ॥ नाक काट मुखमें लियो । नारी दुःख पा घबराय ॥ सा ॥ उतरी नीचे मुख ढांकने । रक्त पड्यो मदनपे तदाय ॥ सा ॥ २० ॥ चमकी मदन मुख पेखियो । तिहां अग्नीने प्रकाश ॥ सा || आश्चर्य पायो मन विषे कांइ । किम काटी इण नास ॥ सा ॥ २१ ॥ पूंछे बाह तुम तणी । सह पुगी मनकी आस ॥ सा ॥ नारी कहे पुगी सही ! अब जावूं निज आवास ॥ सा ॥ २२ ॥ नारी तो निज घर चली । मदनजी सब मुख जोय ॥ सा ॥ नाक देख नारी तणों ते । अतिही आश्चर्य होय ॥ सा ॥ २३ ॥ पाछा तिहांथी चालिया । ते अम्बा देवले आय ॥ सा ॥ बंदन कीधो प्रेमसु । सन्मुख बैठा हुलसाय ॥ सा ॥ २४ ॥ चौथा खन्ड तणी कही । अमोले पहली ढाल ॥
खंड ४
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१ मुरदो
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सा | परीक्षा दी जोगी भणी । छे आगे सम्मास रसाल ॥ साहस ॥ २५ ॥ ॥ ॥ दोहा ॥ जे जे विरतंत वीतियो । ते सह दियो संभलाय ॥ साहस देखी मदनको जोगी अतिहर्षाय ॥ १ ॥ अर्धरात में एकलो । महाभयंकर ठाम ॥ किंचित जातो न डर्यो । कियो कियो मुज काम ॥ २ ॥ भुज विद्या साधण भणी | सूर पुरुष की क्षप ॥ बहुदिनधी थी म्हांरे । ते आवी मिल्यो टप ॥ ३ ॥ एछे पुण्यवंत प्राणियो । सूरो बहू हुशियार || हुंशियार इण सहाये साधन करूं । फळसी विद्या सार ॥ ४ ॥ इम चिंती कहे मदन स्यूं । सुणो वच्छ गुप्त बात || विद्या म्हारे साधवी । जो सहायक तुम थात ॥ ५ ॥ ॥ * ॥ ढाल ॥ २ जी ॥ श्री जिन अजित नमु जयकारी ॥ यह ॥ मदनसेण महा | पुण्यवंत प्राणी । सुणियो जोगी बचनजी ॥ कर नोडीनें इण पर बोले । हर्षिक करीने | वदनजी ॥ म ॥ १ ॥ सुखधी विद्या साधोश्वामी । करस्यूं शक्ती सारु सेवजी || महारा | जोगे हुकम फरमावो । ते करस्यूं तत्क्षेवजी ॥ म ॥ २ ॥ हर्षाई जोगी तब बोले । का | ली चतुरदशी रातजी ॥ मशाणे जाइ विद्या साधवी । जेहथी चिंतित थातजी ॥ म ॥ ३ ॥ हम बातां करतां दिन उग्यो । विद्या साधन सराजाम जी । कहे जोगी चालो गाम मांह ले आवां सहू आमजी ॥ म ॥ ४ ॥ जोगी मदन दोह जोगी रूपे । शोभित वेस सजायजी ॥ नयर जयंती माहे पधार्या । मध्य बजारे आयजी ॥ म ॥ ५ ॥ तेतले सामे बंदी
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में जन एक । ठाट थी आ तो देखायजी ॥ रतांजणी चरचित तस अंगे। कणेर पुष्प पहम. श्रे.
शाखण्ड ४ रायजी ॥ म ॥ ६॥ आगल फूटो ढोल बाजाता । सुभट शब्द उचारे जी । इणरा सहायक कोइ मत होवो। इणरा कर्म इने मारेजी ॥७॥ तेहने देखण ऊंचे स्थाने । ऊभा मदन जोगी दोइजी ॥ वंदीजन औलखी तो प्रेक्षी । मदनजी हर्षित होइजी ॥ म ॥ ॥८॥ चिंते याने किण काज बान्ध्या । कांइ गुणो इण कीधोजी ॥ गुरूजी से कहे || हुकम होय तो। छोडावू काल सुख दीधो जी ॥ म ॥९॥जोगी कहे उपकार ए कीजे। तब ऊभो सहू आडोजी ॥ अहो किहां ले जावे इणने । कांह अन्याय देखाडोजी |
म ॥ १०॥ राय भट कहे यह अन्याइ । विन गुणे इण पापीजी ॥ पोतानी नारी नो नाक काट्यो झूटो बोले तथापीनी ॥ म ॥११॥ बंदीवान कहे महाराजा म्हारी अर्ज सुण लीजोजी ॥ न्याय अन्याय हियामें तोली । गुन्हेगारने दंड दीजोजी ॥ म॥
॥ १२ ॥ मैं छु रत्नपुरीनो वासी सेठ । सुदर्शननो पूतोजी ॥ अंगज महारो नाम कहिये। 12 व्याव इहां मुज हूंतोजी ॥ म ॥ १३ ॥ आणो लेवा बहुदा आयो । नारी न चाले
मुज घेरो जी ॥ दोइ स्थान हँसी हुवे महारी । खायो घणोही फेरोजी ॥ म ॥ १४ ॥ एकदा मैं मन माहें विचार्यो । उपवय हुई मुज नारीजी ॥ किंचित प्रीती किम नहीं | मजपे । क्यों नहीं चाले लारी जी ॥ म ॥ १५ ॥ हम चिंती परस्यंनी राते । मजने |
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नींद न आइजी ॥ अर्ध निशामें म्हारी नारी । उठीने किहां जाइजी ॥ म ॥१६॥ #मैं पण गुप्त पणे हुयो लारे । एकना घर माहे पेठो जी ॥ तरुण पुरुष मुज नारी संगाते । व क्रीडा करतो दीठोजी ॥ म ॥ १७ ॥ जार कहे खोटो प्रेम है थारो । तूं अब सासरे प्रजासी जी ॥ थारे वियोगि प्यारी मारो । अकाले मृत्यू थाजी ॥ म ॥ १८ ॥ नारी
कहे प्यारा इण भव माही । छोडूं नही तुज साथो जी॥ते मौल्यो मुज गिणती में नाही। तुमही छो मुज मथो जी ॥ म ॥ १९ ॥ सदातो वेगो मरतो (जातो) घरकानी । अबके हट घणी लीधोजी ॥ देखू जावे नहीं तो उपावे । पर भद पूगा स्यूं सीधो जी।
म ॥ २० ॥ इम सुणी जार अतिहर्षाया । काम क्रीडा करवा लाग्या जी ।। सुणी बात & अजोग कर्तव्य जो । म्हारो क्रोधानल जाग्या जी ॥ म ॥ २१ ॥ ललकार्यों में रे दुष्ट अन्याइ । आज लरयो तूं हाथेरे ॥ इत्तादिन मुज घणो सतायो । लुब्धी नार मुज सायो । जी॥म ॥ २२ ॥ ते दुष्ट म्हारे सामे थइयो । करवा लाग्यो लडाइ जी ॥ हाक हमारी मणने तिहां तब । लोक घणा आया धाइ जी॥ म ॥ २३ ॥ राज सुभट पण दौडी आया। पूछी हकीगत सारो जी ॥ जाण अन्याह कब्ज कियो झट । पकडी लेगया जारोजी
म ॥ २४ ॥ नारी शरमाइ घर गइ भागी। ए थाइ दूजी ढालोनी ॥ ऋषी अमोलख कहे अब आगे । नारी चरित्र निहांलो जी ॥ म ॥ २५ ॥ ॥ दोहा प्राप्त समय ते
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म.श्रे.
६१
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जारने । उभो कियो नृप पास ॥ वीती वारता रातकी। कीनी सह प्रकाश ॥ १ ॥ मुज ने पण बोलावियो । मैं कही साची बात ॥ इण नर मुज मारण भणी । रच्यो हूंतो उत्पात || २ || आप पासाये मैं बच्यो । दीजे इणने दंड || लोक सुणी सह थर हरे । फिर न हुवे ये भंड ॥ ३ ॥ प्राणांत शिक्षाकारी । दिजो सुलीये चडाय ॥ पाप कट्यो मैं इम | कही । हर्ष्या मनरे मांय ॥ ४ ॥ मन उतर्यो इण नारथी । कियो जावण विचार || दिवस थोडो जाणी करी । रह्यो रात ए वार ॥ ५ ॥ ढाल ३ जी ॥ कमलदल लोचना ॥ यह ॥ चतुर जन प्रेक्षिए । एतो चरित्र पूर्ण भरी नार ॥ च ॥ आं ॥ तिण अवसर मुज श्वसुर सासु । जो पुत्री व्यभचार ॥ च ॥ १ ॥ शरमाया घणा मनके मां । दियो तास धिक्कार ॥ च ॥ २ ॥! लोक देखावुं ते पण शरमी । नरमी करे उच्चार ॥ च ॥ ३ । चूंक ए म्हारी मोटी घणी हुइ । क्षमा करो हितकार ॥ च ॥ ४ ॥ हिवे कधी इसो काम न कर स्यूं ॥ बोली दीन हो लाचार ॥ च ॥ ५ ॥ सुसरा मुज मनाइ लेगया । तेपडी पग मझार ॥ च ॥ ६ ॥ सासु सुसरे करे नरमाह । मुज हियो दियो ठार ॥ च ॥ ७ ॥ बुरी भली पण एछे तुमारी । हिवे लेवो संभार ॥ च ॥ ८ ॥ जो उंडो विचार न करसो तो | पस्तासो कोइ बार ॥ च ॥ ९ ॥ नाम घणो जगमाही भंडासी । लोक देशी फिटकार ॥ च ॥ १० ॥ दाबी बुरी बात इहांहीं राखो । लेजावो इने लार ॥ च ॥ ११ ॥ इत्यादी
खण्ड ४
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सुण क्रोध समायो । वीती बात विसार ॥ च ॥ १२ ॥ खा पी राते जाइ सूता । हुयो नींद मझार ॥ च ॥ १३ ॥ पाछली थोडी रात रही जब । सुणी मैं किलकार ॥ च ॥ १४ ॥ दौडो २ रे मुजने छोडावो । मारे मुज भरतार ॥ च ॥ १५ ॥ दचकी उठ्यो मैं तब जोयो । देखूं तो मुज नार ॥ च ॥ १६ ॥ मैं तस पूछयो क्यों तूं चिल्लावे । कुण तुज दुःख देनार ॥ च ॥ १७ ॥ ते मुज गाल्या देवा लागी । अरे दुष्ट अविचार ॥ च ॥ १८ ॥ महारी नाक ते नींद में कापी । भोलो वणे इणवार ॥ च ॥ १९ ॥ तब अती मैं आश्चर्य पायो । घ्राण न जोयो तस ठार || च ॥ २० ॥ कुण काट्यो नाक घरमें आइ | गुंग्यो मैं भर्म मझार ॥ च ॥ २१ ॥ तेतले मुज सयन घर बारे । लोक आ जम्या अपार ॥ च ॥ २२ ॥ सासु सुसरा मांये आया । तेकिमाड उखाड ॥ च ॥ २३ ॥ असुरन्त हो मुजने पकड्यो । देवा लाग्या मार || च ॥ २४ ॥ कुंदी खूब करी तिहां महारी । लाया सिपाइ सिरकार || च ॥ २५ ॥ नकटी नाक सहने देखाडे । सहू रह्या सत्य धार ॥ च ॥ २६ ॥ मुज बान्धी आया राज पासे । न्टप कोप्यो घर क्षार ॥ ज ॥ २७ ॥ काल दूजाने शिक्षा दिलाइ । आज थे कियो अनाचार ॥ च ॥ २८ ॥ म्हारो बोल्यो कान घरे नहीं । दियो हुकम पुकार ॥ च ॥ २९ ॥ जावो एने सूली चडावो । एमोटो गुन्हे गार ॥ च ॥ ३० ॥ विन इन्साफ मुज बान्ध ले जावे । किस्यो करूं हूं लाचार ॥ च ॥
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स्वण्ड
|३१॥ श्वामी जी कहूं हूं प्रभु साक्षे ॥ मैं नहीं लियो नाक उतार ॥ च ॥ ३२॥ विना गुन्हे मैं मार्यो जावू । कीजे म्हारी बहार ॥ च ॥ ३३ ॥ ढाल तीसरी चौथा र खन्डकी । अमोल करी उच्चार ॥ च ॥ ३४ ॥ * ॥ दोहा ॥ महारी वीती*
वारता । दीधी श्वामी सुणाय ॥ जगदाधार जोगीश्वरा । सोचो न्याय अन्याय ॥१॥ * छोडावो ए कष्टथी । थास्ये बहु उपकार ॥ धर्मी धर्म रक्षा करो । एहिज आप आचार
२॥ सुणवाणी आगंदकी । चिंते मदन ते वार ॥ राते जोइ मशाणमें । तेहीज नकटी नार ॥ ३ ॥ एक यह सज्जन माहेरो । दूजो छे सतवंत ॥ तीजो धर्म ए उगरे । चोथो होय साहावंत ॥ ४ ॥ छोडायूं हूं इम भणी । देखाइ चमत्कार ॥ अभय दियो वंदी भणी । ते हा ते वार ॥५॥ ॥ ढाल ४ थी। राजग्रही तो नगरी जी ॥ यह ॥ मदन तदा सुरा थाइ । जोगीनी आज्ञा पाइ । कांइ फरमाइ । अहो सुणियों तुम सुभटो जी । इण नर नाही गुन्हों कीनो । राजा खोटो दंड दीनो । हम मन चीनो । सहू दूरा यहां थी हटोजी ॥ १॥ सुभट तब माने नाहीं। छोडे नहीं अंगजताइ । रिसज आइ । कहे तुम बिच नहीं आईये जी ॥ जिणरो निमक हमने खायो.। तिण ए हुकुम फरमायो। हम उठायो । ते खोटो नहीं थाषहजी ॥ २ ॥ नहीं हम मूका त्रिकाले । तुम क्यों में पड्या इणरे चाळे । किस्यो भालें । हट जावो इहां थकीजी ॥ मदन बहू पर समजावे ।
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२ मोटो
१३ खाटाहो
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सुभटने नहीं मन भावे | धूम मचावे | हीण वचन रह्या बकी जी ॥ ३ ॥ तब जोगी घोटो उठायो । रोशे सुभटने बतायो । सह मुरछायो। धरणीको सरणो लियो जी ॥ लोक सह आश्चर्य पाइ । जीव लेइ न्हाठा जाइ । हा कार धाइ । कोइ राजाने जा कियो जी ॥ ४ ॥ सविने नृप पठाया । बजारमें दौडी आया । जो तिण ठाया । भेद नगर जनथी लयोजी || राय आगल जाइ कह्यों । जोगी कोप थी इम भयो । आश्चर्य थयो । जोगी शांत करो नृप कयो जी ॥ ५ ॥ सचिव सामंत साथ लेह । जोगीने आपणमेह | कर जोड के । इच्छित हुकम फरमावियो जी । सहू समोह भेगो भयो । तत्क्षण तिहां देखी रह्यो । मदन कह्यो । अहो सुणो न्यावसी फीवियो जी ॥ ६ ॥ न्याय आसणे विराजी । किस्या न्याय कीनो गाजी । कहो ते मांजी । मरण मुखे इने क्यों दियोजी ॥ राजा ईश्वर सारखा । करे बुद्धि थी पारखा । जे हाँरीखा । फिर शिक्षा देवो कियो जी ॥ ७ ॥ पूछ तल्लास कीनी नांहीं । नाक खन्ड नहीं को लाइ । किहां पब्याह | रक्त चिन्ह बली जोइये जी ॥ शस्त्र वली ते मंगावो । वक्त वार वली पूछावो । इम हुवे | न्यावो । उतावला नहीं होइ ए जी ॥ ८ ॥ सचिव कहे साची कही । भूल्यो हूं शुद्धना रही । चालो सही । राय भवनरे मांयने जी । मान बात साधे थया । जोगी मदन आगल भया । सभा में गया । लोक घणा जुड्या आयने जी ॥ ९ ॥ क्षेमा सहा बोलविया ।
| १ क्या अच्छा
लगा
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म. श्रे.
|| पुत्री संग ले आविया । बताविया । निर धाण सय प्रजा भणीजी ॥ मदन नारी थी * 5 पूछे त्यारे किस्यो वैर पतिथी थारे । नाक उतारे । किहां किण वेलां लेवि अणीजी ॥ १० ॥
१ नाक कट ६३ मशाहाजी बातमांडी कही । मुज कन्या चूकी गइ । आज निशमइ । मुज जमाइरोसे भरी
जी ॥ निद्रामें नाककापी यो । और शब्द नहीं भाखियो । मदन कियो । एनाण लावो ढूंढी व करी जी ॥ ११ ॥ सामंत्त साथे भेजियो । ओरो चउ बाजू पेखियो । नहीं देखियों । रक्त
| टीपने हाडको जी ॥ मून धरी फिर आविया । मदन भणी दरसाविया। नहीं पाविया । निघालणाभासेनाण जोवो ताडको जी ॥ १२ ॥ नृप पूंछे तब किम भयो । नाशिक एनो किण लियो ।
सह विस्मयो । हिव न्याव चौकस थावसी जी ॥ मदन कहे चौकस करो। नहीं अपराधी ए नरो । निश्चय धरो । नारी खोटी स्वभावथी जी ॥ १३ ॥ चालो नाक हूं देखाई । मुर्दाना | | मुखथी कहाडूं। असत्य झाडूं । राजादी सुण आश्चर्य भयाजी । सहु मदन साथे गया। #जोगी राजसभामें रया। सहू आगया। स्मशांणे सूली जिहां जी ॥ १४ ॥ शैब मुख ३ मुरदा | थी नाक कहाडिया । सहू लोकाने देखाडिया । सहु चालिया। राज कचेरी आवियाजी ॥ रातनी बात मदन बीती । कही सहू थइथी जेती। हुई फजिती। नारी चरित्र गवाविया
जी ॥ १५॥ राय नारीपे कोपियो । मारणको हुकम दियो । मदन कह्यो । इम तो नहीं | * होवे कधीजी ॥ लोकने धास्ती कारणे । कहाडो देशने बारणे । ते धारने । करी
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| सजाइ यथा विधिजी ॥ १६ ॥ मुख कालो कराइयो । लम्बीकरण मंगाइ यो । बैठावियो ॥ ढोल फूटो आगे बाजतो जी ॥ धूल मही उछालता । मध्य बजारे चालता । निहालता । हुर राज्यो कुण धागले जी ॥ १७ ॥ ठाम २ उभा रही। रायजीनो हुकम कही । कुमत गही । तेहनी ए गत धावसी जी ॥ जे व्यभचारे राचसी । मिथ्या भाषण | भाषसी । इण साक्षसी । दोनों भव दुःख पावसीजी ॥ १८ ॥ निकाली गामने वाहीरें । | कर्मोदय कुण सहाहरे | देखाइरे । अनाचारण गत एह बीजी ॥ सहू धिक्कार तस देवता । जोगीना गुण केवता । आइ रेवता । निज २ सदने तेहस बीजी ॥ १९ ॥ | छेमासा गया निज घरे | अपयश थी आरत धरे । किस्यो करे । कूपात्र पाने पड्यांजी ॥ ते नार वनमें आथडी । मरीने नरके पडी । दुःख घडी । भव भ्रमण हम बहु नयाजी || २० || मदन कीर्ती विस्तरी । रुडी न्याय रीती करी । ए उच्चरी । चौढाल चौ | खन्डे सिरीजी । अमोल ऋषि इण पर कहे । सत्य शील जे दृढ गहे । ते सुखलहे जोवो मदन तणी चरी जी ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ तिहां रहवा जोगी भणी । करे विनंती राय ॥ ते कहे नरवस्ती विषे । हमसे नहीं रहवाय ॥ १ ॥ एकांतवास पसंद हम । रहां ईश्वर में लीन ॥ क्या प्रयोजन जगत से। जिसका संग तज दीन ॥ २ ॥ सहू प्रणम्या जोगी पदे । तेदे आशिर्वाद || चाल्या यश विस्तारता । राखी तिहां ते याद ॥
१ गद्वा
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खण्ड ४
३ ॥ अंगज पण साथे हुयो । जोगी मदन कहे एम। हमतो रमते राम हैं । तूं संग लागा केम ॥ ४ ॥ ते कहे हूं शिष्य आपको । रहस्यूं आज्ञा मांय ॥ मदन कहे साथे में लियो । करसी सज्जन सहाय ॥ ५॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ मोटी या जग माह मोहणी ॥ यह ।। पुण्य ॥ संजोगे सजन मिले । अणचित्यो हो आणंद प्रगटाय || गुणवंत थी गुणवंत | मिल्या । चमत्कारीहो केइ करे उपाय ॥ पुण्य ॥१॥ जोगी कहे मदन भणी । आपाlal
आया हो जिण कारज काज । ते तो अजू को नहीं । थे फसाया हो इण झगडा माज ॥ पुण्य ॥ २॥ नरमाइ मदन भणे । गुरु रायजी हो इम फरमावो केम । जीवित दियो गुणी नर भणी । भयो चेलोहो ए अपंसी क्षेम ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ ए उपकार मोटो र देवेगा सुख हुयो । हिवे करस्यां हो सहू आपणो काम || चलिये लहिये बजार थी। जेलागे हो ते | सहू सराजाम ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ मध्य बजारे आविया । बहु लोकजहो उठ करे प्रणाम ॥ लापरवाही निलोभिया । बुद्धवंता हो विरलाजग श्वाम ॥ पुण्य ॥५॥ सामग्री जाचे तिहां । ते लोकज हो दौडी २ लाय ॥ दुगुणी आपे कहेण थी । बरा जोरी हो तस पल्ले | बन्धाये ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ दाम दे तेतो लेवे नहीं । कहे आपको हो सहू छे प्रताप ॥ | लेवां घणा नरने ठगी । और चाहिये हो सो सुखे लेवो आप | पुण्य ॥७॥ देखी भक्ती उदारता । जोगीश्वर हो अतिही हर्षाय ॥ चिंतवे मनरे मायने । ए प्रताप हो
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मदनको कहवाय ॥ पुण्य ॥ ८॥चायती वस्तु लेयने । तीन आया हो तब ग्राम ने बार M॥ बैठा अम्बिका देवले । आपसमें हो करता बात विचार | पुण्य ॥ ९॥ रंग | रूप सेठाण जो । अंगज हो करे मन में विचार ।। मुज बेन्योइ सारखा । अन्य कोहछे हो | यह तस आकार ॥ पुण्य ॥ १० ॥ अंगज पूछे मदन स्यूं । तरुण वयमें हो किम लीनो जोग ॥ किसा गामका वासीथा । इहां आया हो किस हे संजोग ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ उभय | पक्ष संसार का । प्रकाशो हो कृपा कर नाम ॥ संशय मुज मन उपज । ते फिटसी हो | पासूं आराम ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ मदन कहे शावास छ । थोडे अंतर होगया मुज भूल || हूवसुदत्तनो मदनछु । अझुध्याय हो उपनो मुजे कूल ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ अंगज सुण हयों
। बेन्योइ जी हो मिल्या मोटे भाग । दर्शन थी दुःख मेंटिया । आप कीधो | हो उपकार अथाग ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ किहां अछे कुटम्ब सहू । आप निकलया हो देशाटन काज । घणा बर्ष वीती गया । पाछो पत्तो हो लाग्यो छे आज । पुण्य ॥ १५॥ मदन | कहे सहू वट पूरे । कर्म जोगे हो हूं आयो इण ठाम ॥ ठीक हुयो तुम मुज मिल्या । | हिवे करस्या हो आपण सहू काम ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ जोगी जो आश्चर्य भयो । साला बेन्योइनो मिल्यो जोडो आय ॥ गंभीराइ धन्य मदनकी । इत्तीवारमें हो जरा भेद न जणाय ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ अंगजने जोगी कहे । मदन ए हो कियो किस्यो उपकार |
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खण्ड ४
१ देवेगा सुख
॥ छोडाइ साला भणी । खुशी कीधी हो पोतानी नार ॥ पुण्य ॥ १८॥ मदन तदा प्रणमी कहे । गुरु राया हो सह आप उपकार ॥ हम दोइना जी तब तणा । श्वामी आपज हो एक छो दातार ॥ पुण्य ॥ १९॥ आप पुण्य प्रताप थी। श्वामी पग २ हो वरते आणंद ॥ आगे इछित पूरजो । सदा रह जो हो आप चरण सम्बन्द ॥ पुण्य ॥ २०॥ इम बातां विनोद में । गुजारे हो सुख २ काल ॥ अमोल सज्जन मिलापनी ॥ चौ खन्डे हो कही पंचमी ढाल ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ हिवे विद्या साधन | भणी । साधक थइया दोय ॥ बुद्ध बल गुण गौरव लखी । जोगी मन खुश होय ॥१॥ परीक्षा बहुविध करी । सहमें पडिया पार ॥ तब तो मंत्र पढाविया । विधी युक्ता धर प्यार ॥२॥ पक्का साधक तस किया । हटे नहीं को ठाय ॥ करामात जोवा तणी।। दोन्यारे मन चाय ॥ ३ ॥ कृष्ण चतुर्दशी सोम दिन । सहू सामग्री सज्ज ॥ आया तिहार | स्मशाणमें । विद्या साधन कन्ज ॥ ४ ॥ जिम २ जोगी दाखवे । तिम २ करे सहकाम
॥ प्रमाद भय चिंता तजी। काम सिद्धकी हाम ॥५॥ ॥ ढाल ६ ठी॥ श्री सीमंदर | श्वाम शासण श्वामीरे ॥ यय ॥ चूलो मोटो खोदाय । कढाइ चढाइरे ॥ तेल पूरी तत्काल । आंच लगाइरे ॥१॥ जोगी मदनने केय । उतावल कीजेरे ॥ कोइ लावो | संब तुम ढूंढ । जे थी काज सीजेरे ॥ २॥ कहे अंगज ते वार । हूं लेइ आबूरे ॥ मुरदो
HOMSANSKRRISMANSHAKRA
६५
१ मुरदा
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ॐ सूली पर जेह । वैर गमावूरे ॥ ३॥ मदन जोगी तिण ठाम । अंगज चाल्यारे ॥ निज | रिपु निर्जीव । सूली ए भाल्यारे ॥ ४ ॥ युक्ती थी कहाडी तेह । खांदे धरियारे । वजन में
घणो तिण माहे । जावे न चलियारे ॥ ५ ॥ विसामाने काज । तरु तल आइरे ॥ * मृत्युक भूहये ठाय । क्षिण बैठाइरे ॥ ६॥ तेतले कलेवर तेह । व्यंतर उडायोरे ॥ तेहीज में | तरुनी डाला । तस चिकटायोरे ॥ ७ ॥ अंगज चालवा ताम । करी तैयारीरे ॥ नृत्युका तिहां नहीं जोय । आश्चर्य पाया भारीरे ॥ ८॥ इत उत घणाइ जोय। तेहा न देखावेरे में
तेतले तरुनी डाल । लटकतो पावरे ॥ ९ ॥ चढिया लेवण बृक्ष । साहस धारीरे छोडाइ ते डाल । नीचे दियो डारीरे ॥१०॥ आया नीचे उत्तर । निघा नहीं पडियोरे ॥ जौवे ऊंची दृष्टि । तर डाले अडियोरे ॥ ११॥ विस्मय घणो ही पाय । कुण उडावेरे ११ झाडपर ॥ मृत्युक किम उड जाय । ठेठ किम आवेरे ॥ १२॥ चडिया पुनः पादोप । बुद्धि उपाइरे ॥ छोडी लियो पीठ बान्ध । फिर उतर्याइरे ॥ १३ ॥ ले आया जोगी पास । वीतक दरसायोरे ॥ देखी साहस तास । जोगी हर्षायोरे ॥ १४ ॥ जोगी कहे रहो हूंशि| यार । भग नहीं जावेरे ॥ मदन अंगज दोइ तास । गाडो सावरे ॥ १५ ॥ करतां तस | उपचार । छोडी दीनोरे । तेह सव तिण वार । रस्तो लीनोरे ॥ १६ ॥ मदन तस भगतो. | जोय । आश्चर्य पाइरे । लार भग्या ले तरवार । दीनो गुडाइरे ॥ १७॥ टांगडी पकडी
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म.श्रे.
१तरवार
आटा
तस । धिंसता लायारे ॥ न्हाख्यो भट्टी पास । अंगज सहायारे ॥ १८ ॥ कराइ तस अंगोल । चंदन चरच्योरे ॥ पेराइ कुसुम सुवास । पूज्यो अच्योरे ॥ १९ ॥ बल बाकुल निप जाय । पासे मूक्यारे ॥ मंत्र थी बान्धयो तास । जरा नहीं चूक्यारे ॥ २० ॥
करमें ही करवाल । दियो सुवाइरे । दुजो उदड कणिक को । पूतलो बणाइरे #॥ २१ ॥ ते मनुष्याकार । श्रृंगार सजायोरे ॥ मुरदाने पग पासा । लाइ बैठायोरे ॥ २२ -
पूतला लारे अंगज । दबाने बैठारे ॥ सपना मशले पाय । सावध रही सेंठारे ॥ २३ ॥ | मदन अस्सी ले हाथ । प्रहरो देवेरे ॥ कोइ उपसर्ग करने न पाया । चकोरे तै रेवेरे ॥ २४ ॥ | पह्मासने जोगी तेह । जपता मंत्रोरे ॥ हो मादी यथाविध । करता तंत्रोरे ॥ २५ ॥ प्रगट्या व्यंतर अनेक । चेष्टा करतारे ॥ मदन भणीने मंत्र । बाकला देतारे ॥ २६ ॥ ते गया विरलाय । जाप पूरो थाइ रे । सब उठ्यो तत्काल । खड़ कर साइरे ॥ २७॥पीसतो जोरे दांत । अस्सी #घुमातोरे ॥ अंगज पूतल लार । दबी मंत्र ध्यातोरे ॥ २८ ॥ कणिक पूतलानो ताम । सीस | उडायोरे ॥ उछली पडयो तत्काल । कढाइ मायोरे ॥ २९ ॥ उकलता तेल मांय । गोता स्वाइरे । जोगी ते इम जोय । आणंद पाइरे ॥ ३० ॥ ढाल छटीके मांय । सिद्ध थयो मंतोरे ॥ मदन पुण्यकी बात । अमोल कहंतोरे ॥ ३१ ॥ * ॥ दोहा ॥ पूर्व दिशामें प्रगट्यो । सूर्य जाज्वल्यमान ॥ पूतलापर प्रभा पडी । दीसे सोवन वान ॥ १ ॥ जोड दोनु हर्षिया ।
३ तरवार
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| जोगी की करामात ॥ निज मेहनत सफली हुई । जोगी पण हर्षात ॥ २ ॥ प्रणम्या दो जोगी पदे । जोगी दी आशीस ॥ थाणे सहाये माहारी । पूरी हुई जगीस ॥ ३ ॥ मदनके कृपा आपकी | देखी अपूर्व बात || मुज थी सीं सेवा सदी ॥ सह आपकी करामात ॥ ४ ॥ ढांकी पुतलो लाविया । देवी देवल मांय ॥ भुक्त पान इच्छित करी । सुखथी सयन कराय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ७ मी ॥ कोयल टहुक रही मधुवनमें ॥ यह ॥ पुण्य पसाय जीव संपत पावे । अचिंती लक्ष्मी कर आवे || आं ॥ साहसिकता बुद्ध मदन की जोइ । ते जोगी तब संतुष्ट होइ ॥ पुण्य ॥ १ ॥ जाग्या मदन तब जोगी चेतावे | सुण भाइ मुज मनसा जे चहावे ॥ पुण्य ॥ २ ॥ हमतो हैं निष्परिगृही साधू ॥ कनक कान्तासें रहे अलाधू ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ फक्त मंत्री सत्यता जोवा । कार्य कीधो पोरषो होवा ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ तुमने जे मुज भक्ती बजाइ । तिण बदले ये देखूं तुम तांइ ॥ पुण्य ॥ ॥ ५ ॥ मदन कहे तब अतिनरमाइ । आप पसाय कमी कछु नाहीं ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ आपनी वस्तु आप पास राखो । मुजने तो कधी छेह न दाखो ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ सेवक तो खुशी सेवा मांइ । सब ऋधि आपकी कृपा जणाइ ॥ पुण्य ॥ ८ । जोगी कहे हमतो नहीं राखां । तुजने जोग देखीने भाखां ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ जो रहसीये थारे पासे । तो उपकार बहु लो थासे ॥ पुण्य ॥ १० ॥ इम जोगीनी कृणा जाणी । वयण शीस
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म.श्रे. ६७
चडायो ते टाणी | पुण्य ॥ ११ ॥ कर जोडी पूछे नरमाइ । किस्ये काम ये पोरसो आइ ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ कृपा करीने गुण फरमावो । पूरस्यूं वक्त पे महारो चाहावो ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ जोगी कहे यह जापते राखीजे । कहूं गुण ते कोइने न भाखीजे ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ जिण वक्त होवे द्रव्य की चहाइ । तब पोरषाकी करी पुजाइ ॥ पुण्य ॥ १५ ॥ गरदन नीचलो अंगज कापे । बेंची काम करे विनालापे ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ काट्यो अंग पाछो तिमथावे । जिम औषधसे घाव रुजावे ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ इम अखूट्ट ऋद्धि यह | जाणी । छेह न आवे कल्पांत दानी ॥ पुण्य ॥ १८ ॥ इम सुणी मदन हर्षाया । जोगी वयण सत्य शीस चडाय ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ कहे आबी रखूं एकांत जाइ । काम पढ्या | लेजास्यूं आइ || पुण्य ॥ २० ॥ तत्क्षण गिरी किन्नरी में आया । जिहां रवीका दर्शन पाया ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ बिकट पन्थ मनुष्य नहीं आवे । तिहां डंडो घणो खाडो खोदावे ॥ ॥ पुण्य ॥ २२ ॥ पोरसो पूर दियो तिण मांह | ऊपर मजबूती पकी कराह ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ सेनाण भणी गोळ पत्थर जमायो । तेल सिन्दूर्या देव बणायो ॥ पुण्य ॥ २४ ॥ | पाछा आया जोगी पासे । किया काम सह किया प्रकाशे ॥ पुण्य ॥ २५ ॥ मदन अंगज सुखे करे जोगी सेवा ॥ शिष्यने ते संभाले अह मेवा ॥ पुण्य ॥ २६ ॥ देखो मदनकी | प्रबल पुण्याइ । अल्प प्रयास अखूट ऋद्धि पाइ ॥ पुण्य ॥ २७ ॥ कहे अमोलख चरित्र
Se
खण्ड ४
१ गपचुप
६७
२ गुफ
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रसालो । पूरी हुई चउखन्ड सप्त ढालो ॥ पुण्य ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ करामात जो जोगीकी । मदन करे विचार । इणही जोगी प्रशादस्यूं । काम पाडस्यूं पार ॥१॥ उजड | पुरी वसावणो । मैं दीधो छे बचन ॥ ते इण पुरुष पसायथी । पडसी पार कोइ दिन ॥ २॥ करे भक्ती भला भाव थी । अंतर नहीं जणाय ॥ जे मन कार्य साधवो । ते कधी | | न दर्शाय ॥ ३ ॥ तिहूं फिरता भूमंडले । जोता अनोखा ठाम ॥ चंगला नगरी
आविया । तिहां लियो विश्राम ॥४॥ नगरी जोवा चालिया । मध्य बजारकेमाय । नर समूह मिलियो घणो । जोवा ऊभा रहाय ॥५॥ॐ ॥ ढाल ८ मी ॥ धन्य २ मेतारज मुनी ॥ यह ॥ झगडादो मोटा जगतमें। कनक कान्ता केरा ॥ जे नर इण फंदे | | फस्या । कहूं चरित्र जेरा ॥ झ ॥१॥ वैश्या अने विप्र तणी । तिहां लागी लढाइ ॥|
विप्र कर घयों नारनो । छोडायों छोडे नाहीं ॥ २ ॥ २॥ लोक सह ठठा करे । देवे I विप्रने साजो । उस्ताद एक तूंही मिल्यो। भली लीधी लाजो ॥ ॥३॥ विप्र कहे। अजू स्यूं थयो । हिवे मजा देखाहूं ॥धूती खायो जगतने । ते धन सहु कहाडू ॥ झ ४॥ गणिका अतिघबरावती । जोडे कर पडे पायों । एक वार मुज छोडियो । नहीं करूं
अन्यायो॥ झ॥५॥इम जोह नरमाइने । दया मदनने आइ । छोडावू हूं इण भणी । * कहे गुरुजी तांड ॥झ ॥६॥ जोगी तब आज्ञा दीवी । झट करी नमस्कारो ॥ आयो
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खण्ड ४
में विप्र वैश्या कने । इम करे उच्चारो ॥ झ ॥७॥ कुलीन नरने चोहटे । गृही नारीनो ||
हाथो । विवाद करो निर्लज्ज थइ । ये जोग न घांनों ॥ झ ॥ ८ ॥ तुम छो भूदेव सरीखा । | गुरु जगतका वाजो ॥ मनुष्यवृन्दे नारी थकी। झगडता लाजो ॥ झ ॥ ९ ॥ जोगी रूप जोइ करी । विप्र इम प्रकाशे ॥ साची कही महाराज जी। आपने इम भाषे ॥ झ॥१०॥ जाणो नहीं इणनी चरी । ए गणिक धूतारी ॥ जीव लिया घणा मर्दका । चिलकती कटारी ॥ झ ॥ ११ ॥ आप अछो प्रदेशिया। कांह भेदन जाणो ॥ पूछो #ग्रामका लोक थी। जरा इणरा बखाणे ॥झ ॥ १२॥ मैंहीज उस्ताद इण तणो । अब ६८
नश ठाम लास्यूं ॥ आप अने सहू समक्षे । इणरो कूड कडास्यूं ॥ झ॥ १३॥ सहू # कहे मदन भणी । श्वामी मत पडो चाले ॥ ऐतो रांडछे एहवी । ब्रह्म मार्ग घाले ।
झ॥ १४ ॥ जाणी दयाल मदन भणी । वैश्या घबराइ ॥ पांव पकड मदन तणा । कहे ब्राम्हण अतिनरमांड ॥ झ ॥ १५॥ श्वामी मुज राँकडीपरे । जरा दया कीजे ॥ छोडाइ इण दुष्टथी। । मुज अभय दीजे ॥ झ ॥ १६ ॥ हूं तो छु अनाथणी । थइ छु निराधारो ॥ आप जैसा गुरु मिल्या । दुःख समुद्र तारो ॥ झ ॥ १७ ॥ आप विना महारा इहां । रक्षक नहीं कोई ॥ छोडायां विन जावोतो । ईश सोगन होई ॥ झ॥ १८॥ मदन कहे | धैर्य धरो । घबराइयो नांहीं ॥ मुज उपाय जो चालसी । तो छोडास्यूं पाई ॥२॥
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| १९ ॥ कारण कोइ समज्या विन । हूं कि किणने दबाबूं || धीरपे न्याव निवेडने । सहू रस्ते लावूं || झ ॥ २० ॥ इम सुण सहू विस्मय हुवा । वैश्या धैर्य लाइ || ढाल आठ चौथा खन्डकी । अमोल गाइ ॥ झ ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ मदन कहे तब विप्रने । | घबरावो मत चित्त ॥ धैर्य लाइ सच्ची कहो । हूं जे पूछूं मित्त ॥ १ ॥ कर किम झाल्यो एहनो । किस्यो कियो अन्याय ॥ तुम कहो सहू मांडने । जिम मुज समजण थाय ॥ २ || फिर गुरु प्रशादसे । करस्यूं यथायोग्य ॥ मन दोइका राखस्यूं । खुशी होसी सह | लोक ॥ ३ ॥ धीर वीर बुद्धि निलो । मदनने जाणी तेह ॥ विप्र कहे श्वामी सुणो । न्याव निवेडो एह ॥ ४ ॥ इण ठगियो मुज मित्रने । मैं ठगी इण नांय ॥ करतव्य कहूँ विस्तारने । जे इण कियो अन्याय ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ९ मी ॥ गाफल मत रहरे ॥ यह ॥ संग तज दोरे । सहू सुज्ञ संग तज दोरे ॥ वैश्या नहीं हुई किस कीनारी । बात कहू वfती विस्तारी ॥ सं ॥ आं ॥ चंपानगरी मझारी । वसे कमल सेठ धन धारी । तस भोगवती छे नारी । बृद्धवय नन्दन एक थैयो । गुण चन्द नाम तस देयो ॥ संग ॥ १ ॥ लाड कोड घणा किधाइ । पूरी विद्या नाहीं पढाइ ॥ रूपवति नार परणाइ || भोगवे मनमाना || जाता काल नहीं जाना ॥ संग ॥ २ ॥ एकदा बैठा गौखां मांई ॥ बहु | सेठ जाता दीठाई। पूछे भटने तब बुलाइ । कोणये किहां थकी आया ॥ दीसे सह हर्षमें
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म.श्रे. ६९
मैं
भराया ॥ संग ॥ ३ ॥ तब सेवक कहे सुणो श्वामी । ए सेठ सुदौदन नामी । तस घर कछू नहीं खामी । वैपार काज विदेश सिधाया । लाभ उपराजी आज आया ॥ संग ॥ ४ ॥ सहू सज्जन ये तसथावे । बधाइ घर ले जावे । कमावुं सहू मन भावे । सुणी इम दास तणी वाणी । कुमरके मनमें भेदाणी ॥ संग ॥ ५ ॥ हूं तो कमाइ नहीं जाणूं । खां छू ठंन्डो खाणूं । किम मावित्रने मन मानूं । अब तो विदेशे जाइ ॥ लावू धन घणो कमाइ ॥ संग ॥ ६ ॥ इम भाग परीक्षा थाइ । सज्जन मुज लासी बधाइ । सहू लोक मने सरसाइ । इम करी पुक्त विचारो ॥ मावित्र कने आया तत्कालो ॥ संग ॥ ७ ॥ आतुर कुँवरने जोइ । सेठ आश्चर्य मन अति होइ ॥ मिष्ट वयणे पूछे सोह । कुँवर कहे अर्जी सुण लीजे ॥ इच्छा म्हारी पूर्ण कीजे ॥ संग ॥ ८ ॥ मैं विदेश कमावा जावूं । पूंजीने द्रव्य कुछ चावूं । दूंगाजे कमाइ लाबूं ॥ उमंग उपजी ये मुज मनमें । लेखूंगा यशः सह जनमें ॥ संग ॥ ९ ॥ पिता कहे सुण मेरी भाइ । अपने घर कमी कुछ नाहीं । खरचो विलसो जे चित चाइ ॥ कारण कमावाका नहीं कांइ । जाण के दुःखी न होणाइ ॥ संग ॥ १० ॥ इम बहु परे समजावे । पण कुँवर मन नहीं भावे । जावण को हट लगावे ॥ करण मन प्रसन्न तब पतो ॥ दियो घणो धन और सूतो ॥ संग ॥ ११ ॥ वली ग्राम दंडेरो पिटायो । गुण चन्द विदेशे जायो । तस संगे जे नर
खण्ड ४
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१ गाडियों
थायो । साज दे शक्ती प्रमाणे । काल ते थासी रवाने ॥ संग ॥ १२॥ सुण बहुनर साथे थावे । साकट में माल भरावे । तब पिता सीख फरमावे । धार जो बेटा हित | लाइ । सुखे ज्यों पाछो घर आइ ॥ संग ॥ १३ ॥ संतोष खरो मित्र जाणो । शील औषध |
छे सुख दानो । नरमाइ माता मानो । सत्य छे सहू स्थान साखी । मधुरता पूंजी अखूट भाखी ॥ संग ॥ १४ ।। सहुसे हिल मिल रहीजे । परनारीपे दृष्टि न दीजे । पर धनकी इछा नहीं कीजे । हुंशिरी से रहो सदाइ । वेगा आवजो सब भाइ ॥ संग ॥ १५ ॥ बहु, मुनीम गुमास्ता दीधा । नौकरभी बहु संग लीधा । भोलवण दी बहुविधा । सिन्धू कंठ लग पहोंचाइ ॥ वाहण आछो सजवाइ ॥ संग ॥ १६॥ शुभ मुहूर्ते चालू थइय।। सजन फिर घर सब गइया । वाहण नीरमें वहिया ॥ सुखे श्रीपुरम चलि आया ॥ शहर छटा देख हर्षाया ॥ संग ॥ १७ ॥ तज वाहण गाडा सजाया। बहुमाल तिणमें भराया । दाणीका दाण चुकाया । फिर सहू आया शहर मांह ॥ भाडे जगा मौकाकी गहाइ ॥ संग ॥ १८ ॥ हाट रंगीली जमाह । शोभित वस्तु शोभाई । सहू जुदा २ तिहां रहाइ ॥ करे वैपार मदछोडी ॥ धन कमावा चित जोडी ॥ ॥ १९ ॥ लाभ देवं प्रमाणे उपावे । संतोष तेहीमें पावे । संकोचे काम चलावे । धर्म पण करे वक्त पाइ ॥ इम सुखे काल गमाइ ॥ सं ॥ २० ॥ नीती छे सदा सुख,
२ तगदीर
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म. श्रे.
खण्ड ४
* दाता । अनीती कियां दुःख पाता । ते सुणियो आगे भ्राता ॥ ढाल नवमी पूर्ण थाइ ।
अमोलख ऋषि एह गाइ ॥ सं ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ इणहीज नगरीने विषे । वैश्या , पाडा माय ॥ सब वैश्यामें शिरोमणी । कपट कलाए सवाय ॥ १॥ अनंगनी नामे यह ।। | वस्त्राभूषण रूप ॥ कला कौश्यल्यता ए करी । वश कीधा था भूप ॥ २॥ धन घणो EX| उपराजवा । रचियो एक प्रपंच ॥ दगाथी पासा रमण । ठगी करयो द्रव्य संच॥३॥R R| केइ धूर्त हरविया । जीती न सके कोय ॥ जे जे इण भवने चड्या । ते गया इज्जत खोय
॥ ४ ॥ डर्या कला जो एहनी । को इन आवे पाप्त ॥ इम घणा दिन वीतिया। आगे सुणो अरदास ॥५॥ॐ ॥ ढाल १० मी ॥ मांग २ वर मांगनी ॥ यह ॥ वैश्या संग निवारिये । जो चाहो सहु सुख हो ॥ जोइणरे फंदे पड्या । जोवो जिणरा || दुःख हो ॥ वै ॥ १॥ एकदा ते गुणचन्द्र जी । क्रीडा करवा काम हो ॥ आया गणिका मोहले । दीपंता रूप वाम हो ॥ वै ॥२॥ इणरा भवनके ढूंकडे । जाय ते चालंत हो ॥ ठगणी ए बोलाविया । मुख मटके मोहवंत हो ॥ वै ॥ ३ ॥ भोला ते समज्या नहीं। |पडिया इणरी फास हो ॥ मुनीम हटक्या अतिघणा । भूल्या तातनी भासहो ॥16 व वै ॥ ४ ॥ आपण आया कमाववा । नहीं फसवाने फंद हो ॥ जो इण रस्ते लागसो । | तो किम करस्यां धंद हो ॥ वै ॥ ५॥इम सुणी फिरवालाग्या । गणिका दिया चिडाय
PREROES
७.
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१ घरम
हो ॥ मान मरोड्यो द्रढ थयो । पेठा सदनने माय हो ॥ वै ॥५॥ मेहतो तब बिलखोर भयो । आयो उतारे ताम हो ॥ बात कही निज साथमें । ए थयो खोटो काम हो । के ॥७॥ दो मोटा सहाजी मिली । आइ कुँवर समजाय हो ॥ ॥ कपटण वैश्याए कहीं । चालण न दे उपाय हो ॥ वै ॥ ८॥ सहू समजाइ थाकिया । सुस्ताइ रह्या स्थिर हो ॥ गुणचन्द लुब्ध्या भोगमें । जोयो नहीं घर फिर हो ॥ वै॥९॥ रमवा लाग्या जूवटो ।। धन चाहिये सो मंगाय हो | दिन केत्ताइ पूरियो । मुनीम तम धबराय हो ॥ वै ॥१०॥ चाकर नोकर छूटिया । साथी दिया छिटकाय हो । निज २ धंदे सहू लग्या ॥ वैपार | पण बन्धथाय हो ॥ वै ॥ ११ ॥ वैश्या प्यारी वित्तंनी । जाणी निरधन तास हो ॥ कहे | निकलो मुज गेहथी। नहीं तो पासो त्रास हो ॥ वै ॥ १२ ॥ मोह लंपट ते न तजे । तष कियो अपमान हो देइ धक्का कढाइया । नौकर हाथे तान हो ॥ वै ॥ १३ ॥ चल आया दुकानपे । सूना देख्या धामहो। कारमा हो ॥ वै ॥ १४ ॥ मेहता देख कुँवारने । आदरदे लिया माय हो । नरमांड कहे वरने
चंपा चलो हिवणाय हो ॥ वै ॥ १५॥ हूं कारो कँवर भर्यो । मेहतो विश्वास लाय हो । रह्यो माल कुँवर भणी । दियो तब संभलाय हो ॥ वै ॥ १६ ॥ धोमनीये | लेइ द्रव्य ते । पहोंचा वैश्या गेह हो ॥ द्रव्य लाया तस देखने । दरशावे ते नेह हो ।
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२ धनकी
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खंड
* वै ॥ १७ ॥ क्षमिए मुज अपराधने । थइ नशे वे भान हो ॥ गुन्हो कियोंमे मोटको । म. श्रे. अ कियो प्यारा अपमान हो ॥ वै ॥ १८ ॥ भोला भाइ समज्या नहीं ॥ पुन्हः पडया तस ॐ फंद हो ॥ विसरिया ते दुःखने । कामी नर महा अन्ध हो. ॥ वै ॥ १९॥ मुनीम जाणी
बात ए । रह्या मनमें पस्ताय हो ॥ धन्न गयो इज्जत गई। चाले नहीं उपाय हो ॥ वै॥d - २० ॥ जो दुर्व्यश्नीनीरीतडी । सुज्ञ तजो सुख चाय हो ॥ दशमी ढाल अमोलन ।
वैस्या व्यश्नीनी गाय हो ॥ वै ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ गुणचन्द लुब्ध्यो नारसे । जुवापे अतिमन ॥ थोडा दिनरे मायने । खोयो सघलो धन ॥१॥ मतलय पूग्यो रांडनो। पूर्व परे करे तेह ॥ धक्का मुक्का मारने । छोडायो निज गेह ॥ २॥ कर जोडी गुणचंद कहे खास्यु थारी ऐंठ ॥ दर्शन ले तृप्त तो था । रहूं दरबजे बैठ ॥ ३ ॥ पडयो रहे घर बाहिरे
जे न्हाखे ते खाय ॥ प्रसन्न मुख जो नारनो । आप घणो हर्षाय ॥ ४ ॥ तो पण नही गमे रांडने। मारण चिंते उपाय । कुबुद्ध करे जे आगलै । ते सुणजो
चितलाय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ११ मी ॥ मत करना परतीत रांडकी ॥ यह ॥ लावणीमें | Fमत करो वैश्या संग मानलो मेरी सीख भाइ ॥ दगादार या नार थइना किसकी अब
थाइ ॥ ७ ॥ वसंतऋतु दरम्यान । फूली है सबही बनराइ ॥ कंदर्प केरी वहार लूटने लोक घणा धाइ ॥ आये वागके मांय । खेलते खातें मिठाइ ॥ नाच रंग विनोद ख्याल
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१चन्द्रजैसी
बहु । रहे जो लगाइ ॥ यह अनंगी नार । यार ले सेहल करण जाइ ॥ म॥ १॥ राजा || राणी दासी सहेली । संग सब सज आया ॥ यथायोग्य सजन संघ रम्मत । गम्मत | लगाया ॥ राणी कंठे हार। हीरा तारांगण शोभाया ॥ नाचत कूदत भलक पडे । जाणे | इन्दू छाया ॥ दृष्टि पडी गणिकाकी उसपे । मन गयो ललचाह ॥ म॥ २ ॥ जो मिले | ऐसा हार । जिया सफल मेरा थावे | इस विना सिणगार अलूणा । मुजको लखावें ॥ किम आवे यह हात । बात विषमी बहु देखावे ॥ राजा तणी ए प्यारी र । दर्शन दुष्करसे पावे ॥ हुई चित उदास । गई तब सुरती विलखाइ । म ॥ ३॥ | बंद किया रंग राग । देख इम साती सहू पूंछे । किम हुये उदास । कहो तुम मनमाये | स्यूं छे । ते कहे पूरण हार । यार इच्छाका है कोई ॥ कहूं उसमें बात । पार कर दे |
चहाइ मोई ॥ न तजू जीवित जान । राख स्यूं कंत उम्भर तांई ॥ म ॥ ४ ॥ सुणी * प्यारीकी बात । गुणचन्द तत्क्षण ढिंग आइ ॥ कहो होवे जो मनसा । तत्क्षण | पूरूं क्षणमांइ ॥ मरणांतिक नहीं डरूं । करूं दुष्कर हूं उपाइ ॥ तुम मन चावे सोहूं करस्यं । दंकहो सो लाइ॥इम सण गणिका हर्षा कहे तुम सब प्यारा नाहिं।म॥ ५॥ देखायो ते हार भूलकतो । राणी कंठे सारो। लादो करी उपाय राखूगा ।प्राणसे कर प्यारो ॥ नहीं देवू कभी छेह । बचन लो पहलां तुम म्हारो ॥ करो इच्छा पूरण ,
२ मेरी
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खण्ड ४
बचन नहीं लोचूंगा थारो । शसि चडाइ वचन । चल्यो ते करवा उपाइ ॥ म॥६॥
रही तस्करके पास । सीखियो चोरी करण ज्यारे ॥ हुवो कलाप्रवीन । के शस्त्र लीधा प्रसंग त्यारे ॥ राजमहल में आयो जोया पेहरायत द्वारे । कला करी पेठो ते अन्दर । हिम्मत
मन धारे ॥ निद्रा वस नृप नारी देखी ते सूती सेज मांह ॥ म ॥ ७॥ ग्रीवामें पड्यो हार । के लेवण मति तब उपाइ ॥ शस्त्रे तोडे डोरी । राणी जाग्रत तब थाह ॥ देखी तस्कर पास। अतिगइ मनमें घबराह ॥ दौडो २ चोर । किलकारी जोरसे लगाइ । सुणी राणीकी हाक के । सुभट आया तब धाइ ॥ म ॥ ८॥ गुणचन्द गयो घबराय । बचण उपाय न देखाइ । | पख्यो राणीके चरण । रोवतो कहे सुणो मांह ॥ अब आपको सरण । करी मैं पूरी अन्याइ ।। | अहो पृथवीपाल । उगारो मेरी दया लाइ ॥ इम सुण राणी वयण । अचंभो मनमें अति | पाह॥म ॥९॥ चोर तणा नहीं चेन । षचन पण बोले ए मीठा ॥ कोमल अंग सरंग। भोल पण अंगमें बहु दीठा ॥ पूछे कहे तूं सच्च । इहां तूं आयो किम धीठा ॥ अब करे | नरमाइ । कर्म ते कर्या पहली चीठा ॥ कर जोडी कहे तेहा दया कर छोडावो मां ॥
म ॥ १० ॥ चंपानगरी कमल सेठको । बाजूं हूं बैटो । उप्रा जणने द्रव्य । हटकर विदेश मा पेठो ॥ रह्यो आपने शेहर । वैश्या फंद रह्यो सेंठो । लूट लियो सब द्रव्य । कर्म दुःस्व मुज हृदय पेठो ॥ न मानी मैं सीख । जे दीधी तातजी म्हराइ ॥म ॥ ११ ॥
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१ मेरी
वसंत रमण गया बाग । हार आपको रांड जोइ ॥ भरमाइ मुज कहे । लाइदो हार मुजे सोह | मोह अन्ध मानी बात । आपके मेहले आयाइ ॥ न जागूं चोरी कर्म । रांड मुज फंदे न्हाख्योइ ॥ कही मैं साची बात। जीवित दान दो मुज तांइ ॥ म ॥ १२ ॥ सुणी गुणचन्द चरित्र । दया राणीके मन आइ ॥ बैठायो निज पास फेर दिया आया सिपाइ ॥ गुणचन्दसे कहे राणी । अब कहे तुज जे इच्छाह ॥ जाणो वैश्य । घर के करणी धनकी कमाइ ॥ जो तूं छोड व्यसन विश्वजीवतो राखूं तुज तांइ ॥ म ॥ १३ ॥ गुणचन्द कहे कर जोड । मातजी सुणो इच्छा म्हारी ॥ हूं हूं वाणिक जाता नहीं हुइ थोडी मुज ख्वारी ॥ अब प्रतिज्ञा निश्चल मन थी । मैं लोधी धारी ॥ नहीं जोवूं तस मुख | कोड उपाय कोइ वारी ॥ इम सुणी राणी वयणा पुत्र परपासे राख्याइ ॥ म ॥ १४ ॥ एकदिन देखी उदास । रांणीने गुणचन्द बतलावे ॥ कहे राणी मुज प्यारी । पुत्री गमगइ नहीं पावे ॥ गुणचन्द कहे हूं पतो लगास्यूं । राणी हर्षाये ॥ बाइ नाम पूछयाथी । ते गुणसुन्दरी दरसावे ॥ ते दे मुज मिलाय । उपकार भूलूंगा नहीं भाइ ॥ म ॥ १५ ॥ सुख रहे गुणचन्दा राणी पासे हित चहाइ खान पान वस्त्र भूषण तस राणी दीधाइ ॥ सुणी वैश्या की रीत । प्रीति कोइ सुगणा मत कीजो ॥ कहे विप्र महाराज बात और आगे सुण लीजो || ढाल चतुर्थे खन्ड एकादश अमोल ऋषि गाइ ॥ मत ॥ १६ ॥ दोहा ॥
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म.श्रे.
७३
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बोलाइ मुनीमने | राणी ओलंभो देव || संभाल्या नहीं कुँवरने । मरजाताथा एय ॥ १ ॥ मुनीम कहे । करजोडी नहीं माजी मुज दोष || वार्या घणा मान्यो नहीं । करी रह्यो । | अपशोष ॥ २ ॥ कहे राणी जावो तुमे । चंपाए सेठने पास || मिलाइ परिवारने । पूरो सहनी आस ३ ॥ विदागिरी मांहे दियो । राणी कंठको हार ॥ सागर लग पहोंचावियो । देइ सुभट लार ॥ ४ ॥ वाहनारूढ घर पहोंचिया ॥ वीतक कियो प्रकाश ॥ उपकार मान्यो राणीको । सज्जन हुयो हुल्लास ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ रंगीला सूडा | यह ॥ विप्र मदनसे करे उच्चारो । गुणचन्द्र छे मंत्री महारो । एकांते मिल्यो ते वारो हो ॥ मदनजी सुणिये ॥ १ ॥ मैं पूछयो कमावा सिधाया । पण कंगाल होइ किम आया | तब गुणचंद घणा शरमाया हो | म ॥ २ ॥ वीतक हाल दरसायो । सुणी मुजने क्रोध भरायो । मर्म वैश्यानो पाया हो | म ॥ ३ ॥ तब मैं कह्यो सुण भाइ । हिवे हूं जास्यूं तिण ठाइ । गमावुं वैश्यानी गुमराइ हो ॥ म ॥ ४ ॥ थारो धन पाछो लावू । तो मैं ब्राह्मण कहलावुं । नहीं तो पाछो नहीं आधुं हो | म ॥ ५ ॥ गुण सुन्दरी नो पत्तो | लगास्युं । श्रीपुर राय राणीने मिलास्युं । एता कारज कर घर आस्युं हो ॥ म ॥ ६ ॥ गुणचंन्द मुज समजाह । ते वैश्यासे नहीं जीताई ॥ बडा भूपत तिण हार्या हो ॥ म ॥ ७ ॥ तिणरो बचन अपमानी । आयो निज घर मावित्र
खण्ड ४
७३
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कानी । आज्ञा मांगी विदेश जावानी हो ॥ म ॥ ८॥ मावित्र पण समजाया । चलवाना * साज सजाया । लेइ द्रव्य घणा सिधाया हो ॥ म॥९॥ लियो श्रीपुरमा विश्रामो । धरी K वैश्या मिलणरी हामो । पूंछयो लेह नाम तस धामो हो ॥ म ॥ १० ॥ इणरे घर भ आयो चलाह । ए ग्राहक जो हर्षाह । अति आदरे मुजने लोभाइ हो ॥ म ॥ ११ ॥ खेलण EX बैठा पासा सार । तब तत्क्षण गयो मैं हार ॥ कियो मैं मन ऊंडा विचार हो ॥ म ॥१२%
॥ मुज डाव पड्यो थो सीधो । पण कुण करदीधो ऊधो । वीर्घ द्रष्टीये उपयोग दीधो हो ।
॥म ॥ १३ ॥ दूजी वार दाव न्हाख्यो । तब गणिका कपट मुज भाष्य । आनंद मन | प्रकास्यो हो ॥ म ॥ इण मूशो पाली भणायो । राखे दीपक नीचे छिपायो । ते देवे पासाने | र गुडायो हो ॥ म ॥ १५॥ पासो नर जब डाले। ते हँसी नर सामे भाले । नर मोही सुखडो
निहाले हो ॥ म ॥ १६॥ जित्ते उंदर आइ । देवे पासाने गुडाइ । हम हार तेहनी थाइ R हो ॥ म ॥ १७॥ ए सह कलामें जाणी। पण जाणीने हुवो अनाणी । पराजय करण मन by * ठाणी हो । म ॥ १८ ॥ हारी निज घर आयो । सोचत उपाय एक पायो । तत्क्षण तेही | | निपायो हो । ष ॥ १९ ।। मैं विल्ली पाली ताजी । सिखाइ सर्व कलाजी । हु६ इछित देवा |
ते साजी हो ॥ म ॥ २० ॥ वस्त्र मैं गुप्त छिपाइ । जिम वैश्या न समज पाह । चाली गयो | इण घरे माइ जी ॥ म ॥ २१ ॥ खेलणने वोह बैठा देखण नर भराया सेंठा ।
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खण्ड४
१ मेरासब
प्रहारजीने जोवण खेटा हो । म ॥२२॥ कोल करी जे पेली । या बाजी जाण जो छली । || कांड देवणो सो देवो मेली हो। म॥२३॥ वैश्या कहे कसर न राखो । विप्र कहे मैं | ॐमेल्यो स्वयं आखो। अब थारा मनकी भाखो हो ॥म ॥ २४ ॥ वैश्या कहे जे महारो।
ते धन देस्युं हूं सारो । वली हुकम न लोपस्यूं धारो हो ॥ म ॥ २५ ॥ सहू लोकने साक्षी राखी । पक्का कौल किया प्रभू साखी । फिर वाजी जमाइ पाखी हो ॥ म ॥ २६ ॥ रम्मत गम्मत चलाइ । गोडा नीचे बिल्ली दवाइ । वैश्या जाणे धन थेली याइ हो । म ॥२७॥ तत्क्षण पासो गुडायो । वैश्या ऊंदिर सरखायो । नवराथी मुख मलकायो हो । म २८॥ महारी मंजारी धाइ । बिच उंदर गइ गटकाइ । वैश्या ते स्वबर न पाइ हो । म ॥ २९॥ तत्क्षण पासो निहाल्यो । पोबारा पडियो भल्यो । वैश्याको चित तब चाल्यो हो ॥ म || 8|३०॥ मैं सहूने दीवी बताइ । देखो जीत हुइ मेरी भाइ । अब देवो सहु द्रव्यीदीराइ हो॥
म ॥ ३१ ॥ करार करी ए छट की । धन लेइ गुप्त तिहां थी सटकी । इहां आइ रही खुल्लो भ घर पटकी जी ॥ म ॥ ३२ ॥ मै पण पत्तो लगायो । इण लारे भागो आयो । हिवे सटकीने | किहां जायो जी ॥ म ॥ ३३ ॥ ए सत धन मुजने आपे । मुज हुकममें मन तन थापे । का ए छूटे तदापे हो । म ॥ ३४॥ए वीतक विप्र सुणाया। मदन जी सुण मुल काया ॥ ढाल ग्यारे अमोलख गाया हो ॥ मदन ॥ ३५॥ ॥दोहा॥ विम कहे मै सहू कही । महारी
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| वीती बात ॥ इण में जो खोटी हुवें । तो साक्षी साक्षात ॥ १ ॥ हूं मागूं छू एटलो । जे इण कीधो कोल ॥ धूतीमें दूती भणी । प्रगट हुई सहू पोल ॥ २ ॥ दूजाको धन लेवता । जिम ए पाइ सुख ॥ तिमही इणारो धन लियां । हर्षासी मुज मुख ॥ ३ ॥ घणा जीव संतापतां । इण नहीं कियो विचार ॥ तो कहो दुःखियो कुण हुवे ॥ जोइ इने निराधार ॥ ४ ॥ सहूको बदलो मैं इ । इण ने करूं सहू पेर ॥ तो सुख पावे आत्मा । ले धन जावुं । | घेर ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ कमलदललोचना । यह || बुद्धिवंत मदन जी । एतो न्याय कियो इण पेर | | आं ॥ गंभीर वदने कहे मदन जी । करो भूदेव अब मेहर ॥ बुद्धि || १ ॥ बात साची सहूछे जी तुमारी । ए कुटिला जग जेहर ॥ बु ॥ २ ॥ सह लोक तब कहे मदन से | करीने ऊंची ढेर | बु ॥ ३ ॥ ए कुटिला नहीं दयाने जोगी । धन्य २ विप्र बुद्ध घेर ॥ बु ॥ ४ ॥ इण विना और कोइ न जीत्यो । इण पापणी की लेर ॥ बु ॥ ५ ॥ हमतो जाणता जादू टोणा । कोहू देवता करे खेर ॥ बु ॥ ६ ॥ हिवे एहनी कुंदी करो पूरी। फिर न करे इण| पेर ॥ बु ॥ ७ ॥ वैश्या घबराइ कहे नरमाइ । अब नहीं रमू जूवा जेर ॥ बु ॥ ८ ॥ गुणी कात सह सहायक होवे । महारो तुम करो खेर || बु ॥ ९ ॥ मदन कहे तुम मत घबरावो || प्रभुजी करसी हर ॥ बु ॥ १० ॥ कहे विप्रसे बात सुणो मुज । संतोषे लेवो मन फेर ॥
॥ ११ ॥ मूर्खने संग मूर्खना बनो । लावो ज्ञानकी लेहर ॥ बु ॥ १२ ॥ तुम छो ब्राह्मण
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म.श्रे.
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॥
ज्ञानी धरमी । ए वैश्या जात छेरे ॥ बु ॥ १३ ॥ इणरो धन अपने किस्या कामको । जरा विचारो ठर ॥ बु ॥ १४ ॥ विप्र कहे सत्य उपदेश श्वामी || पण इणरी नहीं वैर ॥ १५ || ए व्यवहार संसारको श्वामी । म्हारे निभावो घेर ॥ बु ॥ १६ ॥ मदन कहे एक | म्हारी मानो। कहूं उभय सुखदा हेर ॥ बु ॥ १७ ॥ तुम आया मित्र धन लेवाने | तेही लीजे इण वेर ॥ बु ॥ १८ ॥ तुमारो और गुणचन्दको । लो हिवे माल अँबेर ॥ बु ॥ १९ ॥ इणने अब प्रतिज्ञा करावो । न खेले जूवा फेर ॥ बु ॥ २० ॥ वहबाइतो इण से थासी । तुम जीत्या जग जाहेर || बु ॥ २१ ॥ दोनों लोके संतोष सुखदाइ । कहूं पुकारी ढेर ॥ बु ॥ २२ ॥ इम बहू परे विप्र समजायो । मत होवो बकरी पे शेर ॥ बु ॥ २३ ॥ विप्र कहे मानू आप हुकममें । देवावो तेही नहीं देर || बु ॥ २४ ॥ मदन वैश्यासे कहे शीघ्र देवो । जो तूं | इच्छे खेर || || २५ || नहीं तो फिर फजीती पूरी । वैश्या ए मानी ते वेर ॥ बु ॥ २६ ॥ जोह चोपडा हिंसाब प्रमाणे । खरच ही तिण में उमेर ॥ बु ॥ २७ ॥ द्रव्य दिलायो सद्दकी साक्षी | माफी मंगाइ फेर ॥ बु ॥ २८ ॥ वैश्याको निज घर पहोंचाइ । वहा २ करे सहू टेर ॥ बु ॥ २९ ॥ विप्र कहे कर जोडी मदन से । एक चिंता मिटी आप मेहर || बु || ३० ॥ हिवे ढूंदू श्रीपतिनी पुत्री । मदन कहे सुणो फेर ॥ बु ॥ ३१ ॥ इहांथी तुम श्रीपुर जावो । राणीजीके घेर || बु || ३२ || कह जो मास छे धैर्य धारो । ब्रह्मचारी यहां आसी नयेरे ॥ बु ॥
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खंड ४
१ खराब
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| ३३ ॥ नागकुँवार देवालय रहसी । पूंछ जो कन्या की हेर ॥ ७ ॥ ३४ ॥ तेतो सघलो पतो में बतासी । मिला देशी कर मेहर ॥ ७ ॥ ३५ ॥ हम सुणी विप्र राजी हुयो अति । नमन । करी वेर २॥ ७ ॥ ३६ ॥ श्रीपुर आइ बात जणाइ । फिर गयो निज घेर ॥ वु ॥ ३७॥
जोगी मदन अंगज ए तीनो। चंगला नयर गया ठेर । बु॥ ३८॥ जोइ करामात मदनकी १ केशरजोगी। मिटायो क्षणामे करे ॥ ॥ ३९ ॥ जाण्यो ए छे पुण्यवंत प्राणी। राखे अतिही
मेहर ॥ बु॥ ४०॥ ढाल दुवादश कही अमोलख । चौथे खन्डे सुमेर ॥ बु॥४१॥ खन्ड KR सारांश हरीगीत छन्द । पाणी गृहतां बडने चेंटी उडी जयंती ए आविया ॥ जोगी |
छुडाया साला बचाया । सुवर्ण पोरष निपाइया ॥ विप्र वैश्या राडे तोडी । चंगलापुरीमें | रहिया ॥ ए अधिकार चतुर्थ खन्डे । ऋषि अमोल दरशाविया ॥४॥ * . ___ परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके संप्रदायके बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी रचित पुण्य प्रकाश मदन चरित्रस्य चतुर्थ खन्डम् समाप्तम् ॥ ४ ॥
२ झगडा
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म. श्रे.
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रखाकाशमें
常常带常常形;
॥ दोहा ॥ अरिहंत सिद्ध आचार्यजी। उपाध्याय अणगार ॥ प्रारंभता खन्ड पांचमो ,
खण्ड ५ । करूं पंचने नमस्कार , १ ॥ मदन चरी छे रस भारी । करी मन हुल्लास ॥ नवल विनो। दे ऊमरी । प्रगटे गुणकी रास ॥ २ ॥ अनेक गुणके आगले । साहस पण कहवाय ॥ वीर्यात्म प्रबलता । तस दुःख कोण कराय ॥ ३ ॥ विकट दुष्कर काम जे । साहस थी सिद्ध होय ॥ देवदिक सेवे सदा । ते सुण जो सहु कोय ॥ ४॥ चंगला नगरीने विषे।
रहे सुखे तिहुं जन ॥ नव २ कौतिक देखवाकर नित्य पुरमें गमन ॥५॥ एकदा फिरतां | *पुर विषे । सुण्यो घुघर घमकार । जोवे अंतःरिक्षने विषे । ऊभा रही ते बार ॥ ६ ॥ पंचरंग प्रकाश तो । जाणे द्वितीय सूर ॥ आइ स्थंभ्यो तिणपरे । जोवे ते हर्षित नूर ॥
७॥ तिण माहें थी उतर्यो । नर नारीनो जोड ॥ वस्त्र भूषण बहु मोलका । दिव्य श्वरूप | अखोड ॥ ८॥ प्रणमें पद आ मदनना । प्रेमातुर ते वार ॥ जोगी अंगज देखने । आश्चर्य || | पाया अपार ॥ ९॥ ॥ ढाल १ ली ॥ चंपा नगर निरोपम सुन्दर ॥ यह ॥ खेचर नमी
मदनने पाया । कर जोडी ऊभा रहाइ ॥ वहाबा मदनजी दगो इम देवो । आपने जुगतो E नाहीं हो ॥ वहाला ॥ मदनजी पुण्यका दरिया । घणा गुणा करी भरियारे ॥ वहाला ॥
मदन ॥ आं॥१॥ आप वयण हम शिरपे चहाया । निशी में नगर वसासी । आप हुकम हम वनमें पहुंचा। पूर्ण करवा आंसी हो ॥ वहाल ॥ मदन ॥ २॥ दूजे दिन सत||२ बाशा
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२ पृथवीपर
परिवारे आया । नयर ते शून्य देखाया ॥ आपने जोया पण नहीं पाया | तब मन वैम भराया हो ॥ व ॥म ॥ ओलंभो अतिदीधो पिता जी । किम तस एकला छोड्या ॥ पुण्य | पसये इहां आया था। मिलिया नाता तोड्या हो ॥ व ॥ म ॥ ४॥ ते हिवे किम आपने कर | आवे । कुण ए नगर पसावे ॥ निरास वचन भूप उचारे । सह हम दोष जणावे हो ॥ व ॥ म॥५॥ तब हम कह्यो कछ फिकर न कीजे । हमने दोष न दीज ॥ वयण विश्वासे हम ठगाया। हिवे विचारी कीजे हो। व ॥ म॥६॥ ते पुण्यवंत मार्या नहीं जावे । कही प्रदेश सिधावे ॥ होसी कहीं मही मंडने ऊपर । ढूंढ्या थी क्यों नहीं पावे हो॥ व ॥ म ॥७॥ हम दोनों तस जोबाने जास्यां । जरूर पत्तो लगास्यां ॥ थोडा कालमें लेइने आस्या । तबहीज हम स्थिर थांस्या हो ॥ व ॥ म ॥ ८ ॥ इशो बचन देह हम निकल्या । एक मांस तो गलि या ॥ आज हमारा सुभाग्य जोगे । अचिंत्य आप इहां मिलियारे ॥ व ॥ म ॥ ९॥ निरास | होइ घरजाता था । इण नगरी में आया ॥ नीचे जोतां आप दिखाया। अतिही आणंद
पाया हो ॥ या ॥ म ॥ १० ॥ सफल मेहनत मुख उज्वल आजे । आप हमारा कीधा। *सर्व काज थया औरभी थासी। आप जोया सहू सिद्वा हो ॥ व ॥ म ॥ ११ ॥ ओलंभो किस्यो आपने दीजे । सहू प्रत्यक्ष दिखावे ॥ आप जैसाने इसो नहीं छाजे । आश्चर्य हम मन आवे हो ॥ ६ ॥ म ॥१२॥ दारद्रीने चिंतामणी पेरे । आप हमारे कर आया ॥ भूल
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म. श्रे.
खण्ड ५
७७
१ पाणी
में नहीं करस्यूं पहला परे । घणी मेहनत थी पाया हो ॥ व ॥ म ॥ १३ ॥ मदन कहे तुमकहो ,
सोसाची । ओलंभो शीस चडावं ॥ कारण तुम जाण्यो नहीं जे वण्यो । ते में आज जणावें ॥ व ॥म ॥ १४ ॥ तुम गया पीछे दिन घणो जो । मुज पूरी करवा कामो ॥ सात बड मध्य कूपमें पेठो । नीर लेवानी हामो हो ॥ व ॥ म ॥ १५ ॥ अचिंत्य मुजने कोई | उडायो । एक बडनें चेंटायो । ते वटवृक्ष गगन उड चाल्यो । जयंती वारे ठायो हो ॥ व ॥ म ॥ १६ ॥ तिहां पण एक कौतक निपज्यो । एक शह मुजने उतार्यो ॥ तेतो चेंट्यो तेहीज वडने । तस कुटुंब मुज माया हो ॥व ॥ म ॥१७॥ ए गुरु मुज महाउपकारी । विद्या गुण का दरिया ॥ हम दोनूं का प्राण बचाया। उपकार केइ करिया हो सवा ॥ म ॥ १८ ॥
सत्संग मिले पुन्यने जोगे । तेहिवे नहीं पिछडाइ ।। गुरुजी साथे आयो हूं फिरतो ।। वा मिलिया तुम इहां आइरे ॥ व ॥ म ॥ १९ ॥ बचन पार पाडण हूं आतो । आनंदपुर अव |
चाली | भाग्य जोग मिलिया तुम विचमें । कहे इम बचन रंसाली हो ॥ व ॥म ॥२०॥ इस सुणी दोनूं हर्षाया । मदन चरित्र विसालो ॥ कहे अमोलक खन्ड पांचनी ॥ प्रथम ढाल रसालो हो ॥ व ॥ मदन ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ जोगी अगंज जो चरी । आश्चर्य पाया | अपार ॥ सागरसम मदन ए । झलके नहीं को वार ॥१॥ काम किस्या २ इण किया।
और भी करना केय । ते ए कही न जणाविया । आश्चर्य मोटो एह ॥२॥ खेचर पति
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एहने नमें । धरता मोटो प्यार ॥ मोटा नर नारी तणी । प्रभा नहीं लगार ॥ ३ ॥ आनंद| पुर ए किहाँ अछे । उजड किम थयो तेह ॥ हिवे किम ए वसावसी । जोवानो छे एह ॥
४ ॥ उमंग धरता दोइ इम । रहिया ऊभा जोय ॥ पेखी मदन चरित्रने । आश्चर्य कोण|| | न होय ? ॥ ५॥ ॥ ढाल २री ।। प्रभु त्रिभुवन तिलोरे ॥ यह ॥ भविकजन सांभलोरे । मदनचरित्र रसाल ॥ भवी ॥ ७ ॥ कर जोडी खेचर भणेरे । सांभलो अर्जी श्वाम ॥ विराजिये विमाणमें । जिस ले चालो हम गाम ॥ म ॥१॥ भूमंडे फिरवा तणोजी । आप पाया घणो दुःख ॥ हिवे दुःख नहीं देखियेजी ॥ आप सुखे हम सुख ॥ भ ॥२॥ मदन | कहे गुरुदेवसे जी । अरजी कीजे तुम ।। ए हुकम जिम आपसी जी । तिण परे करस्यां हम ॥भ ॥ ३ ॥ जोगी पदें दोनों नम्याजी । कहे अर्जी सुणो नाथ ॥ पावन हम पुरकीजिये || जी । लेइ मदनजी साथ ॥ भ ॥४॥ जोगी तब खुशी हुइजी । कहे मदनसे एम ॥ तुज इच्छा तिहां चालिये जी । तुज क्षेमे हम क्षेम ॥ भ ॥ ५॥ आज्ञा पाइ जोगीनी जी । मदनादि हर्षाय ॥ पांचही बैठा विमाणमें जी । उत्साह धर मन मांय ॥ भ ॥ ६ ॥ विद्या बले उडावियोजी । चाल्या नभ मझार ॥ कौतुक नाना देखताजी। भूपर दृष्टि पसार ॥ म | ॥ ७॥ आया आणंदपुर विषेजी । तिणहीज मेहल मझार ॥ भोजन भक्ती पूर्वेली पर । | करे कुँवरी तेवार ॥ भ ॥ ८ ॥ मदन अवसर देखने जी। दोनोंसे कहे ताम ॥ तुम जावो
१ आकाश
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विमान
निज स्थानके । हम करस्या युक्तो काम || भ ॥ ९ ॥ जो अबी आवस्ये देवता । तुमने जोइ इण ठाम ॥ वैर भाव संभालने ते । रखे करे निकाम ॥ भ ॥ १० ॥ दोनों कहे नरमायनेजी | करां हुकम प्रमाण || पण पहली पर न हुवे । हम देवा जीवरी आंण ॥ भ ॥ ११ ॥ आसरो एक छे आपकोजी । हिवे नहीं कीजे निरास ॥ हम जाइ सहू साथमांजी । बधाइ करां प्राकाश ॥ भ || १२ || मदन कहे निश्चय करोजी । हमसे अजोंग न होय । परवशकी कहणी नहीं । कल आइ लीजो जोय ॥ भ ॥ १३ ॥ इम सुणी चरणे नमी ते । | हुई यान असवार || आया वन वस्ती विषे । तस जोया सहु परिवार ॥ भ ॥ १४ ॥ चरण नाते रायना । सहू दोडी आया पास ॥ मदन मिल्या किहां अछे । हम पूछे रायजी तास | ॥ भ ॥ १५ ॥ ते कहे धैर्य धारिये । सहू शुभ होवे पुण्य पसाय || बहू चौकसथी ढूंढता । आज गया मदनजी पाय ॥ भ ॥ १६ ॥ लाया विमाणे बैठायने । मेल्या आनंदपुर मांय ॥ बचन ते पक्को आपियो । त बिन मिल्या नहीं जाय ॥ भ ॥ १७ ॥ पास नहीं हमने रख्याजी | दाख्यो असुरको डर । राते करवा जोगो करस्युं । इम कह्यो कर घर ॥ भ ॥ १८ ॥ दो जणा और संग थाजी। सूर वीर गुण धाम ॥ जाणा छां राते धसे जी । आपणो इच्छित काम ॥ भ ॥ १९ ॥ प्राते सहु मिल चालस्यां जी । धैर्य घरो चउ प्रहर ॥ इम संतोषी राखिया जी । इच्छित सहु तस खेर ॥ भ ॥ २० ॥ निमिती वयण प्रमाणथीजी ।
खण्ड ५
१ सोगन
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१ खरब
सहने बंधार आस । अमोल ढाल दूजी कही । अब जोवो मदन अभ्यास || भविक ॥ २१ । #॥ दोहा ॥ उभय गया तदनतंरे । मदन करे विचार ॥ हिवे ग्राम वसाववा । करणो | किस्यो उपचार ॥ १॥ तब ते जोगी बोलिया। फरमावो मदनेश | एह रचना किणविध
हुई । मुज मन संशय विशेष ॥२॥ किण नगरी उजड करी । निपज्यो किस्यो अन्याय ॥ PR चरित्र वीत्यो मुज कहो । पीछो करस्युं उपाय ॥ ३!! मदन कर जोडी भणोरूट्यो छे कोई देव ॥ रूप करे विहां मणो । इहां आवे नित्यमेव ॥ ४॥ हाक करे अलखामणी । त्रासीर
ला लोक ॥ वन माहीं जाइ वस्या । कीजे सुखको थोक ॥५॥ ॥ ढाल ३ जी॥ भूमीसर अलवेसर साहिब ॥ यह ॥ मदन महाबुद्धवंत करे छे । यक्ष वस लावा उपाय | बुद्धिने साहसने आगल । सह कार्य सहज थाय । म ॥ १॥ यक्ष शयनकी सेज निहाली ।
सुखमाल घणी सुखदाय ॥ कहे जोगीसे इणपर विराजो । सीधो रखीछे विछाय ॥ म|| ६॥२॥ सुखे शयन इणपर करो जी । था क्या होसो श्वाम ॥ हम बैठां जा मेहल,
वाहिरे । देखा देवका काम ॥म ॥ ३ ॥ आप प्रशादे देव समजाइ । लावशां आपके पास ॥ ते तो सेवा आपकी करसी । आप समजाजो तास ॥ म ॥ ४॥ जोगी विरा ज्या सेज्या ऊपर । मदन प्रणम्या पाय ॥ जोगी कर दोनों सिरपर फेरी । कहे बच्छ । डरीये नाय || म ॥५॥ देव दानव मानवको आपणे पर । चाले नहीं कछु जोर ॥
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म. श्रे.
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सत्य शील तप जप प्रभावे । सब वस होय निठोर ॥ म ॥ ६॥ वैम धरी घणा धोखा |
खण्ड ५ खावे । देखी देवचरित्र ॥ विन कारण ते नहीं सतावे । ते होवे मन पवित्र ॥म ॥७॥ सिखामण दोनों मन धारी । प्रणम्या जोगी पाय | आप पसाये भय नहीं हमने । देखिये करांजे उपाय || म ॥ ८ ॥ आया मेहलने बाहिर दोइ । बोले आपस माय ॥ कहो अंगजजी किस्यो करां अब । देवत जिम वस थाय ॥ म ॥ ९॥ अंगज कहे आप * छो बुद्धिवंता । कहो सो करूं प्रमाण ॥ डर नहीं किंचित किणरो मुजने । न राखू देवकी काण ॥ म ॥ १० ॥ गुरुराजने आप जैसाकी । कृपा मुजपे पूर । देखी सके कुण वांकी, नजरे । छे किणकी मगदूर ॥ म ॥ ११ ॥ देखू यक्षतो हिवणा पकडी । लावू आप हजूर ॥ इत्यादि साहस वयण सुण । हरख्यो मदनको नूर ॥ म ॥ १२ ॥ मदन कहे तो आप विराज्यो । नगर तणी जिहां पोल । देखीजो किण तरह आवे । करीब सूरतसे तोल ॥ म ॥ १३ ॥ जोग होय तो जाइ मिलजो । करजो बहु सत्कार ॥ आपण अण ओलखिता तेहने ॥ तेहथी नहीं करे क्षार ॥ म ॥ १४ ॥ कर धरी लाजो मुज पासे । हूं बैटूं इण ठाम ॥ आज तो थाने करूं आगे करूं आगे वाणी । जाणी मोटो | काम ॥ म ॥ १५॥ अंगज कहे यह सहज काम है । लावू अब्बी पकड ॥ वयण शीस चडाइ चाल्यो । मदनने पांये पड ॥ म ॥ १६ ॥ सूरज पोलने ऊपर आइ । बैठा जोता
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半で
वाट ॥ देव पेखणरी हूंश घणी मन । आवसे किसडे घाट | म ॥ १७ ॥ मदन जी बैठा रायभवन के । मुख्य दरबजे मांय ॥ ते पण मार्ग जोवे यक्षको । अंगज किणविध लाय ॥ ॥ म ॥ १८ ॥ जोगी यक्षकी सेजे सूता । करता योग विचार || इम तीनों तीन स्थाने रहिया । साहसवंत शिरदार | म ॥ १९ ॥ तीनों निडर निश्चित तीनों । तीनों छे पुण्यवंत ॥ पर उपकारकी दृष्टी राखी । काज करे घर खंत ॥ म ॥ २० ॥ हिवे किम देवता वश थावे । ते सुणियो चितलाय ॥ पांचम खंडकी ढाल तीसरी । ऋषि अमोलख गाय ॥ म ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ दिनकर पहोंचा पश्चिमें || दिशा हुई तब लाल । गजौरव वनमें हुयो । शब्द महाविक्राल ॥ १ ॥ गूंज्यो वन शिखरी गिरी | पाया प्राणी त्रास || केताइ पर भव गया । के ताइ गया नाश ॥ २ ॥ धरा धर २ थर हरे । ज्वाला गगने जाय । जाणे महाप्रलय थह । विश्व भणी गट काय ॥ ३ ॥ अंगज देख चरित्र यह ॥ सावध हुयो तत्काल || जाण्यो आगम यक्ष को । जेहनी थी मन माल ॥ ४ ॥ जोवे दृष्टि पसारके । दशो दिशा ते वार ॥ किण दिशथी | ते आवह || करूं जाइ सत्कार ॥ ५ ॥ ४ ॥ ढाल ४ थी ॥ श्रावक श्री वीरना चंपाना वासी जी ॥ यह ॥ दुसेि दूर थी आवतोजी । जाणे मोहोटो पहाड ॥ कृष्णवदन आभा समो । धमका थी पूरे खाड ॥ भविकजन सांभलोजी । साहसवंत कुँवार ॥ अं ॥
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गिरी कूटने सारिखोजी । मस्तक जास उतंग ॥ काबरा बावरा बालते । उडे वायू थी
ज्यों व्रण ढंग ॥ भ ॥१॥ कडेलाने सारिखोजी । दीपे जास लिलाट | आँख्या तो में भंसा जिसी । ते उंडी वक्र कराड ॥भ ॥ ३ ॥ भमुहा मोटा.काबरा जी । लटके उडता * PR केश ॥ नाक ठिया चूला तणा । चपटा झरे श्लेषम शेष ॥ भ ॥ ४ ॥ कान तो जाणे प्रसूपडा । भूषण तस नवलने कोल । मुख तो गिरी किन्नरी समो। बोले वज्र ज्यू
| खारा बोल ॥ भ ॥ ५ ॥ दाढी मूंछ लाम्बी घणी । ते लागी गोडे जाय ॥ पति #श्वेत कृष्ण रोमावली । बोलता बहू हलाय ॥ भ ॥ ६॥ दाँत कुदाला पावडा सम । निकल्या मुख थी बार ।। आँका बाँका तीक्षण पीला । जणाय तेह भयंकार ॥ भ ॥७॥ धम्या लोहा सारखी तस । लम्वी जिभ्या लाल ॥ अही तणी परे लटकतीने । झरती मुखसे लाल ॥ भ ॥ ८ ॥ हाथ घणा पणाविया । ग्रह्या शस्त्र विविधप्रकार ॥ झल18 #हलता विहामणा । छे केहक हाथमें झाड ॥ भ ॥९॥ दूंद पेट नगारा जिसीने ।
मोटो आगल बीट ॥ चालतो हलावतो ते । अकडाइ बण्यो धीट ॥ भ ॥ १०॥ काछ
तंग खसी घणीने । रोम विद्रूप गुप्तंग । पग लम्बाछे ताडसा । नख पावडा चाले छे सभंग ॥ म ॥ ११ ॥ गले हार अजगर तणाने । मकर मोटा साँप ॥ कर पग केडना
आभरण । गोयरा विच्छू उंदर थाप ॥ भ ॥ १२ ॥ इत्यादी शृंगार थी । तस
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दीसे रूप विक्राल ॥ कायर जो धस्की मरे । आयो जाणे सागे कलिकाल ॥ भ ॥ १२॥ नगर सन्मुख चल आवतो जी ॥ अंगज ओलख्यो तेह ॥ सत्कार करवा तत्क्षणे ।। | उठ्या निर्भय सस्नेह ॥ भ ॥ १४ ॥ साहसघर सन्मुख चल्या । कियो लुली २ प्रणाम | ॥ मामाजी छो मुखमां । इम बोल्यो हर्षमें ताम ॥ भ ॥ १५॥ उम्मेद मुज हूंती |
घणी जी । दर्शन करवा आप ॥ आज भलो दिन उगियो । मुज भइ छे खुशी अमाप | भ ॥ १६ ॥ इम कही प्रेमे कर ग्रह्यो । यक्ष जोवे दृष्टि पसार ॥ ए नरके कोई देवता । इणने डर नहीं आवे लगार ॥भ ॥ १७ ॥ मुजने जोइ इन्द्र डगे । पण ए नहीं बगियो । केम ॥ कोध न जागे माहेरी । उलटो जागे छे प्रेम ॥ भ ॥ १८ ॥ पूंछे भाइ तूं | कोण छ । लागे किण दिनरो भाणेज ॥ किण कारण कर झालियो । किम करे छ। एतलो हेज ॥ भ ॥ १९ ॥ श्वामी; छं मानवी । मुज मात पतिवृता होय ॥ सहू | बंधवछे तेहना । इम मामाजी आप छो मोय ॥ भ ॥ २०॥ बुद्धि बचन इम सांभली । यक्ष तुष्टयो अति हर्षाय ॥ पहले मोरछे जय हुई । ढाल चौथी अमोलख गाय ॥भ || २१॥ ॥ दोहा ॥ पूछे यक्ष तुम कौन हो । एकला के कोइ लार ॥ अंगज कहे हम तीन छां । रह्या इण पूरने मझार ॥ १॥ बडा हमारे शिरगुरु । विद्यागुण भन्डार ॥ दूजा गुरुभाइ बडा । मदन नाम जयकार ॥२॥ प्रशंस्या सुण आपकी । आया मिलवा काज
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म. श्रे.
॥ मुजने भेज्यो सन्मुखे । आप तणे महाराज ॥ ३ ॥ चमक्यो यक्ष यों सांभली । लघूनो में र साहस एह ॥ मोटा गुरुनो छे किस्यो । डरप्यो मनमा तेह ॥४॥ जोवू तो सही में तीनने । इम कही चाल्यो साथ ॥ प्रामके मांही आवियो । मदन देख हर्षात ॥५॥ ॥
ढाल ५ मी ॥ चौपाइ ॥ यक्ष ले अंगज आवतो जोह । मदन हर्षित हृदय होइ ॥ देखी में साहस अंगज केरो । जोड मिल्या नो हर्ष घणेरो ॥१॥ तत्क्षण सभि चल आया ।
म्या मदनके पाया ॥ मदन यक्षने नमन कीनो । चिरंजीवो आशिर्वाद में दीनो ॥२॥ प्रेमधरी कर साह्यो दूजो । पछे बातांनी कांद बूजो ॥ मदनजी तो बुद्धि
का दरिया । बातांमें यक्षका मन हरिया ॥ ३ ॥ उच्चस्थाने यक्ष बैठाइ । दोनों ढिंग| रही मशले पाइ ॥ कहे मदन लेहरमें आइ । मामाजी की सूरत सुहाइ ॥४॥ देव हुई। इसो रूप षणावे । आश्चर्य मुज मन येही आवे ।। देव कहे भाइ किसी कहूं कहानी। जे हुई छ हकीगत म्हानी ॥५॥षाश्चर्य मुज मन ए भारी । तुम डरिया नहीं देख लगारी ॥ केइ जीव धस्काइ मरिया । इण रूपे उजड गाम करिया ॥ ६ ॥ मदन कहे -
जोगीके ताइ । भूतलमें डर एकही नाइ ॥ मृत्युनें जोगीराज हरावे । तो कहो डर किसका र मन लावे ॥ ७ ॥ हमारे गुरु करामाती भारी । हम डर सब दिया विडारी ॥
ऐसे महापुरुष भाग्य जोग पावे । धन्य भाग जिनके घर आवे ॥ ८॥ अमर कहे किहां
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| ते गुरुदेव । हूं पण करवा चाहूं सेव || जिणरा शिष्य ऐसा सौभागी । तिणरा गुरु होसी बडभागी ॥ ९ ॥ मदन कहे गुरु दर्शन चलवो । पण ए रूप नहीं लागे बरेवो ॥ | शक्ति आपकी हमने बतावो । मुलग़ो रूपने शीघ्र बणावो ॥ १० ॥ देव कहे जैसी इच्छा तुम्हारी । पलहूं रूप हूं इणवारी । इम कहतां ही रूप पलटाया । मनोहर रूप | तत्क्षण बणाया ॥ ११ ॥ तीनुं मिल मेहल मांहे चाल्या || देव निज सेज पे जोगी भाल्या ॥ तप तेज नूर थणो दीपे । ज्ञान ध्यान मन इन्द्रि जीपे ॥ १२ ॥ द्रढासन बैठा ध्यान धारी । योग क्रिया यांरी दीसे सारी || १३ || इत्यादी विचार मन करतो जोगी कोप थकी देव डरतो ॥ मदन अंगज जोगी पाय धरिया । तिमही देव तस वंदन करिया ॥ १४ ॥ जोगी आशिर्वाद जद दीनो । आत्म परमात्म तुम चीनो । तीनों बैठा सामें आइ ॥ यथायोग्य सेवा करताइ ॥ १५ ॥ मदन अंगज कहे ते वारी ॥ | आज इच्छा पूरी हमारी ॥ प्रत्यक्ष निर्जरं दर्शन दीठा ॥ ए तो गुणवंत लागे छे मीठा ॥ ॥ १६ ॥ जोगी कहे यह सरल दर्शावे । तज्यो अहं पद तब इहीं आवे || छे येहीज जगमें सारो ॥ जे सुधारो निज जमारो ॥ १७ ॥ जिम आपणी आत्म सुख चहावे । तिम साधलाने सुख सुहावे ॥ जे किणहीने नहीं सतावे । ते देव तणो पद पावे ॥ १८ ॥ जो करणी में कसर करसी । ते भटक तो जगमाहें फिरसी | फिर गइ बाजी हाथ न आवे
१ अच्छो
२ देवका
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जे पाह सामग्री गमावे ॥ १९॥ केइ बिगडी भणी सुघारे । तो पण होवे खेवा पारे । जे करवो ते निज हित काज । गुरु उपदेश छे हित साज ।। २० ॥ इत्यावी उपदेश सुणायो में ॥ देव सुणने अतिहर्षायो । ढाल पंचम खंड की पांच । कहे अमोलख गुण राच ॥ ११ ॥ * ॥ दोहा ॥ सुण उपदेश जोगी तणो । असुर अतिनरमांय ॥ सत्यवाणी छे आपकी । सुख दिया सुख पाय ॥ १ ॥ मदन कहे नरमाय ने ॥ बुरो न मानो लगार ॥ ऐसा ज्ञानी होय ने । किम कियो शेहर उजाड ॥२॥ देव कहे इणने विषे । महारो नहीं छे दोष ॥ अन्याइ नृपलालची । सहू पाया अपशोष ॥ ३ ॥ मदन कहे इण पुरपति । किस्या कियो ८२ अन्याय ॥ दीसे उपदेशिक कथा । मुणवानी मुज चहाय ॥ ४ ॥ लालय बुरी बलाय छ । सुणो मित्र मदनेश ॥ उजड पुर होवे तणो । कारण कहूं अवशेष ॥५॥ॐ ॥ ढाल ६ मी ॥ सुणो चंदा जी । श्री मन्दिर परमात्म पासे जाव जो ॥ यह ॥ सुणो गुणवंत जी । E/ सांच झूरको न्याय हियामें तोलिये ॥ अहो बुद्धिवंत जी । निरापक्ष हो सांच होवे सो
बोलिये ॥ यह ॥ आनंदपुर यह नयर भलो । नृप यशोधर नगर तिलो । श्रीमतिराणी Fiगुणनिलो ॥ तस पुत्र गुणसेण शुभमिलो ॥ सु॥१॥ इहां धनदत्त नामे सेठ रहे । तस 8१ दूरकरे 23 द्रव्य तोल कोइ नहीं लहे । दाने माने पर दुःख दहे । रूपश्री नार तस गुण गृहे |
॥ सु॥२॥ पतिवृताते शीलवती । दम्पतिनी घणी धर्म रेती । जिनदेव गुरु निग्रंथ यति
म
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॥ दया धर्म धर सति पति ॥ सु॥३॥ सुख भोगवतां पुत्र भया । नंदसेण हरिसेण जया । नाम शुभ ए गुणे रया । शुक्ल शशीपर बृद्ध भया ॥ सु ।। ४॥ विज्ञान अवस्था जब आइ । बहोत्र कला तस भणाइ । वली धर्म ज्ञान घणो पढाइ । जिनमतनें मीजी भींजाइ ।। स ॥ ५ ॥ यौवने आया परणाया । गृहकार्य तस संभलाया । मावित्र धर्मे | मनरमाया। दोनों लग्या करणने कमायां ॥ सु॥ ६ ॥ विदेश जाणव मन थावे । रजालेवा|
जनक कने आवे । तब मात पिता इम फरमावे । किण कारण तूं परदेश जावे ॥ ॥७॥ भाधन घणो छ घरमांह ॥ लागे सो खरचो भाइ ॥ तमसे अधिक कुछ छे नाहीं। जाणी क्यों
पडो छो दुःख मांइ ॥ सु॥ ८ ॥ कुँवर कहे गयां प्रदेशे। कर्म परीक्षा थइरेशे । चातुरी कला गणी लेशे । देवो आज्ञा जावां हम जैसे || सु ॥९॥ नहीं मानता तस जाणी। दी आज्ञा मन मोह आणी । द्रव्य घणो लियो संग ठाणी । वली दासादि जे सुखदाणी ॥ सु ॥ १० ॥ पुरजन साथ घणा थइया । स्वपता माल साधे गहिया । शकेट भर सिन्धूर तटगइया । जोगा वाहण साथे सहया ॥ सु ॥ ११ ॥ आधे दरिये भूला पड्या । उवट मार्ग जाइ चड्या । पीवण जल खुट्या दुःख नडया। सिंधलद्विपे जाह अड्या || सु ॥ १२॥ द्वीप देखने खुशी भया। जल भरवा जलस्थान गया।दो भाइ द्वीप देख रह्या । मोटो भवन जो | आपसमें कह्या ॥ सु॥ १३ ॥ ए मनोरम्या भवनने पेखीजे। किसी रचना इणमें देखीजे ।
गाडा
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कुण इण मांहे ते निरखीजे । दोह चाल्या शीघ्र विशेखीजे ॥सु ॥ १४ ॥ सदन के नेडा, जब आइ । तस ऊपर पुतली देखाइ । ते हाथ हला कहे आवो नाहीं । ते शानीमें नहीं | समज्या भाइ । सु ॥ १५॥ मेहलरे भीतर चल्या गया। सिंघला सुन्दरी जो खुशी भया |देवांगना हर्षी आदर दिया । भले भाग्य पधार्या तुम इंया ॥ सु ।। १६ ॥ लटके मटके व बतलावें । हाव भाव नेण जणावे । तुम दर्शन मुज मन मोहवावे ॥ पूरो वांछा हिवे भले
भावे ॥ सु॥ १७ ॥ ते कर जोडी कहे कहो बाई । किसी इच्छा छे तुम तांह । हमसे पूरी में तें किम थाह । देवो कृपा करते फरमाइ ॥ सु ॥१८॥ सुरी कहे तन धन ए तुमारो । Pथाणी मुज समजो नारो । माइ बाइ मत उच्चारो । सुख विलस सफल करो जमवारो॥
सु ॥ १९ ॥ इम कही धरणी पग चेंटाइ । दोनुं भाइ हलण जरा नहीं पाइ ॥ असुरी ते दरिया कंठे आइ । लोक भरमां वण रूप षणाइ ॥ सु ॥ २०॥ सिंहणी महा विकाल | वणी । शव रूप करी दो भाइ भणी । भक्षण कर रही मन खुशी घणी । ये मायाचारी | देवी तणी ॥ सु ॥ २१ ॥ साथी खबर करण आया । सिंहणी देखी डर लाया दोनों मुरद, मादेखी घबराया। तत्क्षण पाछा जाइ जणाया ॥ सु ॥ २२ ॥ सज्जन रोवंता आइ ।
दीवी बाघणने भगाइ । मृत्युक दोंनो जलाइ । ते विजोग घणो लागे दुःख दाह । सु ॥ २३ ॥ अति अपशोष मनमें करता । मीठा नीर मिल्या फिरता । ते संगृही वाहण
२ मुरदा
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खरब
भाता । आगल गमन अनुसरता ॥ सु ॥ २४ ॥ कुंवर विना सूनो लागे । स्युं कहस्या | सेठजी आगे । अनेक बातां इम जागे । ढाल छद्री अमोल चौक रागे ॥स ॥ २५ ॥ | दोहा ॥ पांव चेंटाया देखने । दोनों चिंतातुर थाय । ए देवी चोखी नहीं। करण धार्यो म *अन्याय ॥ १ ॥ इण कारण वरजती । कला पूतली तेह ॥ आपण मूढ समज्या नहीं। | आइ फसिया एह ॥ २ ॥ त्याग अछे पर नारका । ते तो भंगन थाय ॥ मरणो तो * एकवार छे । अधिको करसी कांय ॥ ३ ॥ इम निश्चय मन थी करी । रह्या दृढता धार ॥ |चिंता लागी पाछली । करणो किस्यो उपचार ॥ ४॥ साथी रहा जोता हसे । देवी गई। किण ठाय ॥ आगल इहां होसी किस्यो । इम चिंता घणी आय ॥५॥ ॥ ढाल ७ मी ॥
वण जारा । सखी पणियां मरण कैसे जाणा ॥ यह ।। तुम सुणियों बात हमारी । नहीं 13ाकीजे विगर विचारी ।। ७ ।। देबी सुन्दररूप बणाइ । सोले श्रृंगार सजा जी । आहार
नेपुरने झणकारी ॥ नहीं ॥ १ ॥ ॐवरां सन्मुख ठाडी । मोहे अंगोपांग देखाडीजी ॥ बोले
आतही करी लाचारी ॥ नहीं ॥ २॥ हूं विरहवन्ही थी दाजी । सींची संभोग जल करो, १ नमो राजी जी। विलसो सुख इहां सुरसोरी ॥ नहीं ॥ ३ ॥ तब कुँवर नरमांइ बोले । देवीकी देवताजसा खटपट खोलेजी । थें छो देव अवतारी ॥ नहीं ॥ ४॥ महादुर्गन्धी हम काया । यह उदा
रिक तन पाया जी । मल मूत्र अशुचीकी क्यारी ॥ नहीं ॥५॥ वली क्षणिक भोगेछे
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४४
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२ तरवार
म्हारा । किम ललचाया मन थारा जी । किस्यों देखी रह्या छो मोहारी ॥ नहीं ॥ ६ ॥ देवी | कहे एतन में सुधारूं । सहू अशुची पणो निवारूंजी । सागे वणावं देव जिसारी ॥ नहीं ॥७॥ चलि देव भोजन जिमाइ । देस्यूं अतिबलिष्ट बणाइजी । विलसो मुज सरखी नारी ॥ नहीं ॥ ८ ॥ तप कुँवर कहे सुणो शाणी । थे अबी बणो जरा ज्ञानीजी । छे भोग महादुःख दारी ॥ नहीं ॥ ९॥ क्षणिक सुख बताइ । नर्क तियंचमें लेजाइजी। करे भवो भवमेंहीवारी ॥ नहीं ॥१०॥इम सुणी देवी रिसावे । विकाल रूप बणावे जी । जाणे डाकण जावे गटकारी ॥ नहीं ॥११॥ अरूण नेत्र रोशाला । बचन बदे जिम भालाजी ॥ कर करवाल भलकारी नहीं ॥ १२ ॥ तुम महारो षचन नहीं मानो।
तो जाणो मृत्यु आयो थाणोजी । करूं चउ टुकडा एक घारी ॥ नहीं ॥ १३ ॥ इम देखी मावर नही डरिया । बोलण लागा रोशमें भरिया जी। हम मरणसे नहीं डरपारी ॥
॥ नहीं ॥ १४ ॥ नहीं थांरा वचनमैं मानां । जे भवो भव में दुःख दानाजी ॥ एक भवमें 5 मरी छुटारी ॥ नहीं ॥१५॥ पर स्त्री भोगण त्यागे । ते प्राणांते नहीं भागे जी । कर जे जे इच्छा थारी॥ नहीं ॥ १६॥ हम होतब इसडो होसी । तो प्राण हमारा तूं खोसीजी ।
नहीं तो नहीं थारी सत्तारी ॥ नहीं ॥ १७॥ देवी कहे इष्ट साभलो । इम कदी मारी | E करवौलो जी ॥ जाणे हो जासी टुकडारी ॥ नहीं ॥ १८॥ शील प्रभाव नहीं लागी । जैसे
१ ढाल
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ASIYA
Mail पुष्प छडी तन वागी जी । देख देवी रही अचंभारी ॥ नहीं ॥ १९ ॥ जाण्यो इणरे धर्म छ ।
सहाइ । गई देवीकी सह गुमराह जी ॥ अतिगई मन में शरमारी ॥ नहीं ॥ २०॥ मूलगोरूप बणाइ कहे करजोडी नरमांह जी । करो मुज अपराध क्षमारी ॥ नहीं ॥ २१॥ तुम सरीखा मुज नहीं मिलिया । तुम दर्शन मुज पाप टलिया । जी हूं तो चेली हुई छं तुमारी १ कहे
नहीं ॥ २२ ॥ पूछे कुँवर तूं कुण छे बाइ । देव हुइ किम करे नरमाइ जी । दाखो नी ! हकीगत थारी ॥ नहीं ॥ २३ ॥ सुरी कहे पाप उदे भाइ । या नीच गतिमें पाइ जी । नहीं | छीवे कोइ देवतारी ॥ नहीं ॥ २४ ॥ जे नर भूली इहां आवे । ते मुजने सुख उपजावे जी। देखी वैभव जावे लौभारी ॥ नहीं ॥ २५॥ पण धन्य २ तुम तांइ । राखी इण समे | द्रढताइ जी । हिवे मांगो जे तुम इच्छारी ॥ नहीं ॥ २६ ॥ कुँवर कहे हम आगे । करो नरIA मारन का त्यागे जी। तो गया हम सह भरपारी ॥ नहीं॥ २७॥ देवी कहे त्याग नहीं होवे । हिवे जन्म कुण विगोवे जी । सत्पुरुष मिल्या तुम सारी ॥ नहीं ॥ २८॥ एक भेट म्हारी स्वीकारो । दियो रत्ननो बहुमूल्य हारो जी ॥ ए राखो करी कृपारी ॥ नहीं ॥ २९ ॥ अवसर जोइ ते राख्यो । तब मुरी तस गुण दाख्यो जी । ए टूटे जो किण वारी ॥ नहीं॥ ३०॥ जिण पासे ए सन्धासी । ते पट मासे मरजासी जी ॥ ए राख जो मन में धारी ॥ नहीं ॥ ३१॥ ए ढाल सातमी गाइ । पंचम खन्ड सुख दायी जी ॥ अमूल्य शील छे
BYPASANNY
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म. श्रे.
खण्ड ५
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१ समुद्र २ देवी
३ देवीको
सहारी ॥ नहीं ॥ ३२॥ ॥ दोहा ।। दोनू कुँवर जावण लग्या। निर्जरी कहे ते वार ॥ किहां पधारो भाइ जी । ते कहे हम परिवार ॥१॥ उभा तटनीपति ढिगे । जोता होसी में वाट ॥ देर घणी हमने हुई । टाला तस औचाट ॥२॥ सुरी कहे ते तो गया । देखी २९ महारो चरित्र ॥ जे करियो ते सणावियो । सणी हया ते विचित्र ॥३॥ त्रिदेशी कहे |चिंता तजो । मेलूं हूं झाज मांय ॥ तत्क्षण वाहण में ठव्या । लोक देख विस्माय ॥४॥ | वीतक कही विबुधी चरी । टलियो सहु संदेह ॥ धर्मात्मा लखी कुँवरने । धन्य २ सहू केह *॥५॥ ॥ ढाल ८ मी ॥ तारा प्रत्यक्ष मोहणी ॥ यह ॥ लालच बुरी बलाय छे । लालच
से दुःख पाय हो । मदन ।। दोनों कुँवर तिहां थकी । तत्क्षण फिर घर आयहो ॥ म ॥ लाल ॥१॥ वेगा आया जाण ने । सहू सज्जन विलखाय हो । म ॥ वाहण भागाके दुःख हुवो । खाली सह किम आया हो ॥ मदन ॥ लाल ॥ २॥ सामा आय पूंछियो । सहू
कह्यो देवीचरित्र हो ॥ मदन ॥ सुण हर्षाया साजना । जाणी कुंवरने पवित्र हो ॥ मदन ॥ PR लाल ॥ ३ ॥ निजस्थान सह आविया । देवी दियो ते हार हो । मदन ॥ भेट दियो भूपत
भणी । कही बात विस्तारहो । म ॥ ला ॥ ४॥ राजा सभा वाहवा करे ॥ तुम हम पुरे सिणगार हो। म ॥ लक्षीपोशाक वक्षावियो। नगदी द्रव्य अपारहो ॥म ॥ ला ॥५॥ में लेइते घर आविया । पोशाक धरी घरमांय हो ॥ म ॥ द्रव्य दियो सहू वॉरने । जे साये
हो ॥ म ॥ ला ॥ ५॥
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जन थाय हो ॥ म ॥ ला ॥ ६॥ सुख थी रहे सहू इहां । कीर्ति कुँवरकी गवाय हो ॥ म ॥ * नृपहार दियो राणी भणी । गुण तेहनो दर्शाय हो | म ॥ ला ॥७॥ एकदा अचिंत्य
नींदमें । टूटी गयो ते हार हो ॥ म ॥ जाणी नृपती दुःख धर्यो । ठपको दियो ते वार हो |॥ म ॥ ला ॥ ८॥ राणी कहे परवस भयो । सन्धावी देवो झट मोय हो । राजिंदा।
राजा पटवा बुलाया ॥ प्रकास्यो गुण सोय हो । म ॥ ला ॥ ९॥ खुल्ली वात छे हम |
तणी । देव नेमी यह हार हो । म ॥ सान्धे ते मरसी सही । षटे मांसने मझार हो ॥ म कला ॥ १० ॥ सहू कहे धाया बापजी। नहीं इसा धनरी आस हो हो ॥रा॥ मरिया धन
किसा कामको । उठ्या सह हो निरास हो ॥म ॥ ला ॥ ११॥ राय कहे जोरी नहीं । | देउं मुह माग्या दाम हो । म ॥ एक बृद्ध चित चिंतवे । राखु महारो नाम हो । म ॥ ला ॥ १२ ॥ भरोसो नहीं श्वाशको । षट मास कुण जोय हो । म ॥ धन लेइ देवू सज्जनने ।
ते तो सुखिया होय हो ॥ म ॥ ला ॥ १३ ॥ लक्ष दीनार मांगी तिणे । रायजी हुवा में कबूल हो ॥ म ॥ हार लेइ घरे गयो । पोवा जमा यो सूल हो ॥ म ॥ ला ॥ १४ ॥ मोती
व रखिया ओलस्यूं । छिद्रस्युं छिद्र मिलाय हो ॥ म ॥ मधूलगायो छिद्रने । जोडी दियो १ कीडियो छिद्र ठाय हो। म ॥ ला ॥ १५ ॥ पिपीलिका आइ तिहां । गृही सूत्र छेडो मुख हो ॥ २ मोतीके ॥म ॥ पेठी मुक्ता छिद्र में । पार हुई सहू दुःख हो ॥ म ॥ ला ॥ १६ ॥ गांठ देह फुदो
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खण्ड
दियो । बहु मोल्यो मनोहार हो ॥ म ॥ दीधो जाइ राजने । देव निमित ते हार हो ॥ ममें |॥ १७ ॥ लक्ष सोनैया मांगिया । राय कहे देस्यूं फेर हो ॥ म ॥ फेरही फेरमें करदिया || | मांस छे राय जी तेर हो ॥ म ॥ ला ॥ १८॥ ते पट वोमर के हुयो । व्यंतर जाते | देवहो ॥ म ॥ लार थी तनुज मोहरो। मांगे धन नित्यमेव हो । म ॥ ला ॥ १९॥ एकदिन
नृप बोलियो । लेवो सहश्र दीनार हो ॥ म ॥ मेहनत कुछ कीनी नहीं । तो कुण ज्यादा में| । देणार हो । म ॥ ला ॥ २० ॥ महारे पुत्र नरमी कह्यो। कबूल्या देवो दाम हो ॥रा ॥ ज्यादा थी धाया बाप जी । मर्या तात इण काम हो । म | ला ॥ २१ ॥ ललकारी तस में काढिया । ते आया मध्य बजार हो । म ॥ वृतांत कह्यो सहू लोकसे । देवावो हम दीनार हो । म ॥ ला ॥ २२ ॥ सहू कहे कर्मगति थांयरी राजा सामे कुण थाय हो ॥ म ॥ पस्ताइ आया घरे । घणा गया घबराय हो । म ॥ ला ॥ २३ ॥ खान पान तजी सहु । करियो म्हारो ध्यान हो ॥ म ॥ आसण चलियो हूं गयो । तीन दिवसने म्यान हो । मला ॥ २४ ॥ जाणी वृतांत कोपियो । राजा प्रजा जाण्या दुष्ट हो ॥म ॥ विक्रालय रूप तिसो कियो । हुयो सह पे रुष्ट हो ॥ म ॥ ला ॥ २५ ॥ अरडाट शब्द कियो अति । मुंह पछाड्यो अंगहो । म ॥ ग्राम सहु थरांगयो । केह भवन हुवा भंगहो ॥म ॥ ला ॥ २६ ॥ राजा प्रजा भयभ्रांत भया । पूरी पाया त्रास हो ॥ म ॥ निज २ जीव लेइ करी ।
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१ देव
गया वनमें न्हाश हो | म || ला ॥ २७ ॥ मैं लारो तस छोडियो । इहां नित्य आयूं एम 'हो | म ॥ आवण कोइ पावे नहीं । कह्यो वृतांत भयो जेम हो | म ॥ ला ॥ २८ ॥ न्याय द्रष्टी थी सोचिये । किण कियो अन्याय हो । म ॥ पंचम खन्ड ढाल आठमी । ऋषि अमोलख गाय हो | म ॥ ला ॥ २९ ॥ * ॥ दोहा ॥ सीस हलाइ मदन कहे । नृपनो खरो अन्याय ॥ तृष्णातुर होइ करी । बदल्यो कही मुख वाय ॥ १ ॥ विना गुणे संतापियो | न्याइ तुम परिवार || शिक्षा तेहनी तुमदीवी । हिवे लेवो मनवार ॥ २ ॥ कीधा का फळ भोगव्या । नहीं तुम्हारो दोष ॥ तुम सामर्थ्य छो सह विधे । स्युं कीडी पर रोष ॥ ३ ॥ क्षमा बडेको होत है । हलकेको उत्पात । बडा बडाइ न तजो । जोग मिले कम जात ॥ ४ ॥ अर्ज म्हारी अवधारने । निवारो सह रोष ॥ सुखी करो सह जीवने । घर धन दे संतोष ॥ * ॥ ५ ॥ ढाल ९ मी ॥ इण वाने केशर उडरही ॥ यह ॥ जोगी सुणी सह सुरकथा || जाण्यो ए सरल स्वभावी जीवके ॥ इम सुधारो कीजिये || तस मन वैर निवारवा । दे उपदेश तजावा रीवके ॥ इम सुधारो कीजिये ॥ १ ॥ अहो सुणो अमर हम तणी । होणहार टाले नहीं कोयके ॥ इम ॥ सेठपुत्र सुरी वस पडे । हार देवे नृप भेट ते होयके ॥ इ ॥ २ ॥ ते टूढे तुमही गृहो ॥ लालची राज बचन वियोग के ! इ ॥ ३ ॥ तिणथी अनर्थ निपजे । हो तबता लेवो तुम
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खण्ड
५
| जोयके । इम ॥ ३ ॥ मरण कोइ इच्छे नहीं । तुम कुटम्ब के मोहमें आयके ॥ इम ॥
लक्ष दीनारने कारणे । हार पोयो तीव्रबुद्धि उपाय के ॥ इ ॥ ४ ॥ तिमहीं लोभ में ८७ | राजा कियो । नहीं जाणे हम विपता आय तो ॥ ॥ काम क्रोध मद लोभ मोह । कटरा
शत्रु कह्या जिनराय तो ॥ इम ॥ ५ ॥ इनके वश पड्या जीवडा । अनेक विप्र रह्या जग भोगके ॥ ॥ नहीं छूटे ते दुःख थी। जिहां लग न मिटे जालम रोगतो ॥ इ॥ ॥६॥ वैरानुं बन्धन जगत में । महाभयंकर कह्यो जगनाथ तो॥ ॥ फजीती भवोभव
ए करे । सार तेने कछु हाथ न आथ तो ॥ इ ॥७ ॥ कुण पुत्र कुण तात छे । १धन
नाता सहु हुवा वार अनंत तो ॥ ॥ एक भणी संतोष वा । घणा सज्जन को आणे छ । अंत तो। इ ॥ ८॥ ए अज्ञानता अवलाने । ज्ञानीजन हांसो मन लाय तो ॥॥ किम छूटसी येह प्राणिया । कर्म फास में रह्या फसाय तो ॥ ॥९॥ एक अन्याय राजा तणो । तुम संताप्यो खवलो ग्राम के ॥ इ ॥ जुदो २ बदलो लहे । तो किस्यो होवे तुम परिणाम के ॥ इ ॥१०॥ द्रव्य घात तुमना सही। तो किम सहसो दुःख अघात के ॥ ॥ दीर्घ द्रष्टी ये विचारिये । नहीं करिये निज प्राणको पात तो ॥ इ ॥ ॥ ११ ॥ समद्रष्टा धारण करी । काटी सहुए विरोधकी जड तो ॥इ ॥ जिम आगे दुःख न लहो । आत्महितने लेवो पकडतो ॥ इ ॥ १२ ॥ धग २ तो लोह भणी । शीतल
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शरु
RAI लोहो न्हाखे छे काट तो ॥ ॥ शत्रु ता उभय लोककी । क्षमा तिमही देवे दाटतो ॥ F इम ॥ १३ ॥ गुणपर गुण तो घणा करे । बलिहारी करे अवगुणे गुण तो ॥ इम ॥ पूजे | पिशुन पांव संतना । ज्ञानी गुणी तप्त कहे निपुण तो ॥ इम ॥ १४ ॥ निज
२ सुणकर हितेच्छु हो मानिये। कहण हमारी जो लगे सुखकार तो ॥ इम ॥ नरम्यो श्रवणी* देवता । कहवा लाग्यो कर नमस्कार तो ॥ इम ॥ १५॥ सत्य उपदेश योगीशजी ।
रूचियो महारा मन मझार तो ॥इम ॥ वैर तजूं अंतर थकी । जगमें को नहीं मुज || भी गुनेगार तो ॥ इम ॥ १६ ॥ सुग्वे सहु रहिये इहां । राज कियो ए आपकी भेट तो ॥
इम ॥ अन्यने राज ए नहीं मिले । रखे ते पुनः करे अखेट तो ॥ इम ॥ १७ ॥ जोगी कहे || में त्यागी हमें । राज्य दौलत त्रिया नहीं चाय तो ॥ इम ॥ हम तो रमते राम हैं। नहीं
फसे किसी फंदके मांय तो ॥ इम ॥ १८ ॥ देणासो देवो मदन को। यह है सब | निर्वाहने जोगतो ॥ इम ।। देव कहे दियो मदनने । मुखसे कीजिये जेह मन्योग तो॥
इम ॥ १९ ॥ तेतले रवी प्रगटियो । देव बहुरूप वैक्रय करतो ॥ इम ॥ राज देवण उत्सव में | रचे । जाणे ए नयर सहु गयो भरतो ॥ इम ॥ २० ॥ आनंदपुरमें आनंद भयो । | पंचम खन्डकी नवमी ढाल तो ॥ इम ।। अब आगम पुरजन तणो । कहे अमोल सुणो || श्रोता रसाल तो ॥ इम ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ वन वासे नृप सुत मुखे । सुणि यों सारा
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* लोक ॥ राते नयर वसावसी । करसी मदन सहु थोक ॥१॥ चटपटि लागी चितमें। KI हुइ छे मासी ज्युं रात ॥ सहु साज सजी रह्या । चाला हुयां प्रभात ॥२॥ ते तले तो
रवी उगियो । मिलियो सारो साथ ॥ शीघ्र आइ ऊभा रह्या । जिहां अछे नर नाथ, ||॥३॥ वैठ विमाणे चालीया । आया नयर नजीक ॥ बाजिंत्र बहु शब्द सांभली । लागी |
मनमां पीक ॥ ४ ॥ जोयो सहु नगर भर्यो । देव रूपे, नर नार ॥ चिंते आइ सुर | वस्या । किस्यो भयौँ ए प्रकार ॥५॥ ॥ ढाल १० मी ॥ सासण देवत आवोनी हमारे घर पावणां ।। यह ॥ व्योममें रही विचारियोरे । यो छे देव चरित्र हो ॥ मदनेश्वर ।। पुण्यवंता जग शोभतारे लाल ॥१॥ मदनजी इहां होसी सहीरे । करे छे तस मनहार
हो मदनेश्वर ॥ पुण्य ॥ २ ॥ कनकावती कन्या भणीरे । देइ कुँवरने लार हो ॥म ॥ र पुण्य ॥ ३ ॥ भेजे जोवण कारणेरे । किम होह रखा जयकार हो ॥ म ॥ पुण्य ॥४॥
ऊंचा रहीने पेखियारे । राजसभाने मझार हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ५ ॥ राज | सिंहासण ऊपरेरे । बैठा मदन सिरदार हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ जय २ करे सहू देवतारे। देखाड्यो नृपने तेह हो ॥ म || पुण्य ॥ ७॥ जाण्यो मदन समजावियोरे । जाग्यो देवको नेह, हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ राजासण दियो मदननेरे । टलियो सहू संदेह हो ॥ म॥ पुण्य ॥ ९॥ मंगल गाती किन्नरीरे । नर करता जयकार हो । म ॥१०॥ राय आंगणमा
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२ भाकाश
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法
उतरीयारे । स परिवार ते वार हो ॥ म॥ पुण्य ॥ ११ ॥ औलखी मदन ए लाणधीरे ॥ उभा हुया तत्काल हो ॥ म ॥ १२ ॥ प्रणम्यां जसोधर रापनेरे । राय पण कियो प्रणाम हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ सहूजन प्रण में अदननेरे । जाणी उपकारी ताम हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ तुम प्रशादे पामियारे । हम सहू घर सुख जोग हो । म ॥ पुण्य ॥ |१५॥ मदन जी नमन सहू थी कियारे । दियो सत्कार यथायोग्य हो ॥ म ॥ पुण्य ॥१६॥ * ऊंचेश्वर मदन कहेरे । सुणियो साराही साथ हो | म ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ हूंतो कांइ करी।
नहीं सक्योरे । सहू प्रताप गुरु नाथ हो । म ॥ पुण्य ॥ १८ ॥ लालच थी दुःख पावियारे । ॥ जे सुरी दियो मुक्ताहार हो । म ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ ठूट्यो सन्धायो पटवाकने हो ॥ कही नृप लाख दीनार हो। म ॥ पुण्य ॥ २०॥ ते तस नहीं दी राजवीरे । कियो कुटम्बा
अपमान हो । म ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ ते पटवा हुवा देवतारे । कोप्या जोइ अत्याचार हो । शाम ॥ पुण्य ॥ २२ ॥ तिण थी सहूने दुःखी कियारे । अमर दोष नहीं कोय हो ॥ म ॥
पुण्य ॥ २३ ॥ हिवे इसो करजो मतीरे । जिम फिर दुःख नहीं होए हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ २४ ॥ प्रणमो गुरु अने देवनेरे । क्षमावो सहू अपराध हो । म ॥ पुण्य ॥ २५॥ यांकी कृपासे आंपा सहू जी । पाया अक्षय समाध हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ २६॥ राजादिक सहू नम्यारे । पहला जोगीका पाय हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ २७ ॥ फिर पग लाग्या देवनेरे । निज
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म.श्रे.
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अपराध क्षमाय हो | म ॥ पुण्य ॥ २८ ॥ राय विषक्षण समजियारे । देव दियो मदन ने राज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ २९ ॥ युक्ती करी राखी लहूंरे । यश प्रेम सूखने लाज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३० ॥ तिणही हगामां मांयनेरे। करी जग विवहार हो । म ॥ पुण्य ॥ ३१ ॥ कनकावती परणा दीवीरे । मदन भणी तेवार हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३२ ॥ दायचा मांय अपियोरे । आनंदपुरको राज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३३ ॥ और यथा उचित कियारे । करणो जो थो काज हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३४ ॥ फिर वैराग्य मन आणनेरे । मिलाइ स्थविर संयोग हो । म ॥ पुण्य ॥ ३५ ॥ दीक्षाली जिनराजकीरे । तोडवा कर्मका भोग हो | म ॥ पुण्य ॥ ३६ ॥ ज्ञान भणी करणी करीरे । तप जप क्षप कर संत हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३७ ॥ आयु अंते श्वर्गे गयारे । करसी भवको अंत हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ३८ ॥ मदन जी पाले राज ने हो । करे प्रजाको पोष हो | म ॥ पुण्य ॥ ३९ ॥ अमरी पडह | बजावियोरे ॥ सहूने दियो संतोष हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ४० ॥ मठ बन्धायो मनोहररे । रह जोगी तिण मांय हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ४१ ॥ सेवा सादे नित्य मदनजीरे । कहे सो हुकम उठाय हो | पुण्य ॥ ४२ ॥ प्रधान किया अंगज भणीरे । करे सहू की संभाल हो ॥ म ॥ पुण्य ॥ ४३ ॥ इछित खरच राजपुत्रनेरे || देह गुजारे सुखे काल हो | म || पुण्य ॥ ४४ ॥ वस्ती आवद हुई सहरे । अलकापुरीसम वास हो | म
म ॥
खण्ड ५
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॥ पुण्य ॥ ४५ ॥ पंचान्द्री सुख भोगवेरे । मदनका पुन्य प्रकाश हो ॥म ॥ पुण्य ॥ ४६॥ ढाल दश पंचम खंडकीरे । ऋषि अमोलख गाय हो । म ॥ पुण्य ॥ ४७ ॥॥ दोहा ॥ एकदा निशिमें मदनकी । निद्रा व्यतिक्रांत थाय ॥ कुटंब जागरणां जागता । वीतक यादज आय ॥१॥ एक पूनम वीती गई ॥ बीजी आई चाल | जिण कामे, हूं निकलियो । तेहनो नहीं कियो ख्याल ॥२॥ अब प्रमाद तजी करी । बचन पाड12 वो पार ॥ पुर पयठाण रायपुत्रीका । पहोंचावी तस द्वार ॥३॥ जोगी की कृपा थकी। सत्प बड कूपको तोय ॥ लेजावू वनदेवले । जहां लग पूनम होय ॥ ४ ॥ प्रात थी आरंभ भो । तब वक्ते होवे काम ॥ इत्यादी विचारमें । बीती रात तमाम ॥ ५॥ * ॥ ढाल ११ मी ॥ पद्म प्रभु पावन नाम तुमारो ॥ यह ॥ प्राते मदन कहे त्रियाने, रह जो सुख मझारो ॥ कार्य कोह निज देशे जाउ । पाछो आस्यु थोडे कालो ॥ देखोरे | भाइ मदन पुण्य भल कारो । होवे दिन २ तेज बधारो ॥ देखो ॥ आं॥१॥ सा कहे
हूं जावा किम देस्यूं । कार्य किस्यो सो उचारो । पधारसो तो साथे चालस्यूं। निश्चय मुज | विचारो॥ दे॥२॥ मदन कहे इम हट नहीं करनो । अवसर उचित विचारो | मै आयो | कोई कामके काजे । विच मिल्यो जोग तुमारो ॥ देखो ॥ ३ ॥ दिवस बहु लोभायो तुम थे । हिवे मन उचक्यो म्हारो ॥ कार्य सिद्ध थयां होसी । हटक माय मत डारो दे ॥ ४ ॥
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खण्ड
में सहु कार्य सिद्ध करी आस्युं । विलंबन करस्यूं लगारो ॥ थोडामें समजो इम शाणी । 1 अवसर येहीज सारो ॥ देखो ॥५॥ सा कहे ठीक आए फरमाइ । हूं नहीं कहूं नाकार #रो ॥ वचनानुसार दर्श वेगो दीजो । कार्य सिद्ध करो थारो ॥ देखो ॥ ६ ॥ त्रिया *
समजाइ सभा में आइ। बोलाइ राजकुँवारो ॥ तिणसे कहे ए राज संभालो। सुख थी प्रजापालो ॥ देखो ॥ ७॥ ते आश्चर्य घर कहे नरमाइ । किम ए बचन उचारो ॥ आप कृपा ए सब सुख मुजने । अवरन चाहा लगारो ॥ देखो ॥८॥ मदन कहे स्वदेशे सिधा । जरुरी काम हमारो ॥ ते करी हूं पाछो आस्युं । तिहां सुधी राज संभारो ॥ देखो ॥ ९ ॥ कुंवर कहे हुकम सीस चडावू । करो वंदोवस्त सारो ॥ मदन कानून ||
बांध्यो तत्क्षण । भोलाव्यो कार भारो ॥ देखो ॥ १०॥ फिर मिलिया अंगजने के। 19 रह जो सुख मझारो ।। गुरु महाराजकी सेवा कर जो। नित्य हकम सिरधारी ॥ देखो *॥ ११ ॥ ते कहे आज उधारा क्यों बोलो । केवोनी गुन्हो हमारो ॥ मुशाफरीना मजा
| लूटवा । किहां इकेला पधारो ॥ देखो ॥ १२ ॥ मदन कहे इसोमत समजा । आपसे | १ दुजापण
अद्वैत न धारो ॥ काम जरूरको करणो म्हारे । जे मेल आयो हूं लारो ॥ देखो ॥ १३ ॥
नहीं छोडीने जातो तुमने । पण नहीं तुमसा हूंशारो ॥ गुरु भक्ती राज वंदोवस्ती । # कर सो तुम श्रेय कारो॥ देखो ॥ १४ ॥ तस समजाइ जोगी पास आया । कियो
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लुली नमस्कारो ॥ नेनाश्रुत होइ बोले । राख जो कृपा आधारो ॥ देखो ॥ १५ ॥ जोगी कहे आज किस्यो करो इम । उपज्यो किस्यो विचारो ॥ सूरवीरने कायरता जो। | आश्चर्य आय अपारो ॥ देखो ॥१६॥ मदन कहे आपसे मुज श्वामी । गुप्त न बात | लगारो ॥ आधी अंत आज ताइकी वीती । कह दियो सत सारो ॥ देखो ॥१७॥ हिवे श्वामी जल लेइ आगड थी । जावो खेचरी द्वारो ॥ राज पुत्री पुर पयठाण मेली । वचन पाडूं मुज पारो ॥ देखो ॥ १८ ॥ अंतराय दर्शननी पडसी। एही लगे मुज खारो ॥ अन्य कायरता कोइ नहीं चित । आपको मुज आधारो ॥ देखो ॥ १९॥ कर सिरधर जोगी प्रेमातुर । कहे सिद्ध काम छे थारो ॥ तूं पुन्यात्म जगत जेष्ट छ । आगे
वढसी विस्तारो ॥ देखो ॥ २० ॥हम सुणी मदन हर्षाया । ढाल हुइ ये इग्यारो ॥ कहे IFI अमोल नव २मी । मदन कथा मनहारो॥ देखो ॥ २१॥ ॥दोहा॥ जोगी अवसर
देखने । दीनो दंड तस कर ॥ जा ला पाणी कूपथी । न रख कोइको डर ॥१॥ मदन | मन आनंदने । दंड तुम्बी करधार ॥ निशंके चल आया तिहां । पेठा कूप मझार ॥२॥ असुर कहे फिर आदियो । रे धीठा सिरदार । मदन कहे धार्यों करो । हूं ले जल इण | वार ॥ ३ । जोर न चाल्यो देव को । मदन शीघ्र भर तोय ॥ मूंछे ताव देता थका । ले चाल्या खुश होय ॥४॥ दे दंड जोगीने नमी । आया निज आगार ॥ इष्ट साधवा
१ पाणी.
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| जाववा । हुवा शीघ्र तैयार ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल १२ ॥ मी ॥ लालना हो राम रूप कीधो भलो | यह ॥ श्रोता हो । पुण्य थकी इच्छित फले । अभिनव वस्तु पाय । श्रता हो । | पुण्यशाली मदनेशजी । कार्य करवा उमाय ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ १ ॥ कनकसुन्दरी कर जोडने । पूछे प्रकाशो श्वामी ॥ श्री ॥ उतावल दीसे घणी । किहां जावा को काम ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ २ ॥ यहां थी जोजन द्वादशे । जावो पूनम शाम ॥ श्री ॥ तब प्रेमे भणे प्रेमला । एतो क्षणनो काम || श्री || पुण्य ॥ ३ ॥ गगन गामनी साधिये । विद्या | जे मुज पास ॥ श्री ॥ इच्छित स्थान पधारिये । नही देखीये त्रास ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ विद्या गृही साधन करी । तत्क्षण हुइ ते सिद्ध ॥ श्री ॥ पुण्य पसायी जीव ने । दुष्कर नहीं कोइ रिद्ध ॥ श्रो ॥ पुण्य ॥ ५ ॥ पूनमको दिन आवियो । प्रीतम भक्ती काम ॥ श्री ॥ विद्या प्रभावे निपाइयो । कनकावतीये विमान ॥ श्रो ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ पंच घुमंट रत्नातणा ॥ सुवर्ण स्थंभ सुचंग ॥ श्री ॥ पूतली या सजी नाचती । चित्र विचित्र बहु रंग ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ शयनासन स्थान जुजुवेा । भोजन जलका कीध ॥ श्री ॥ सामग्री सजी सह । वक्ते साधे सहू विध ॥ श्रो ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ अर्पण कियो पती भणी । विराज्यो इणमांय ॥ श्री ॥ नाथ मुशाफरी कीजिये । जिम दुःख अंगन पाय ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ विराज्या मदन जी तेह में । दे नारीने विश्वास ॥
खंड ५
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२ अलगा २
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॥श्रो ॥ प्रणमी वनिता पभणे । वेगी पूरजो आस ॥ भो ॥ पुण्य ॥१०॥ विद्या * बलथी चलावियो । अंतरिक्ष में विमाण ॥श्रो ॥ जाणे दूजो रवी प्रगट्यो । गति वायु | समान ॥ श्रो॥ पुण्य ॥ ११ ॥ थोडी वारमें आविया । कामदेवने स्थान ॥ श्रो॥
तेतले रवी छिप्यो पश्चिममें । स्थंभाव्यो विमान ॥ श्री ॥ १२॥ उतर्या मदनजी हर्ष | थी । प्रणम्या यक्षका पाय ॥ श्रो॥ इच्छा पूरक आज भेटतां । हिवडे हर्ष न मांय ॥
श्रो ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ पूनम पूरो प्रगट्यो । पूर्वदिशीमें चन्द ॥श्रो । तेतले तिहां प्रगटी। षोडश खेचरी सम्बन्ध ॥ श्रो॥ पुण्य ॥ १४ ॥ प्रणमी पद ते यक्षका । मदनेश्वर तिहां में #जोय ॥ श्री ॥ पेछाणी मन हुलस्यो । बोली हर्षित होय ॥ श्रो ॥ पुण्य ॥ १५॥ मदन नमन तिणस्यू कियो । कहे आज धन्य भाग्य ॥ श्री॥ दर्शन चित प्रसन्न हुयो में
बोली जगावे अनुराग ॥ श्री॥ पुण्य ॥१६॥ रती सुंदरी कहे तुम तणी । घणी जोहर हम वाट ॥ गइ पूनमें आया नहीं। हुयो चित उचाट ॥ श्री ॥ पुण्य ॥ १७॥ वैम केह चितमें उव्या । कियो घणो पश्चाताप ॥ श्रो॥ आज दर्श जो तुम तणा । टलिया सह उंचाट ॥ पु ॥ १८ ॥ मदनजी वीती निज कथा । कही सहू विस्तार | श्री ॥ सीलेइ सुणी विस्मित हुइ । धन्य २ तुम अवतार ॥ श्रो॥ १९ ॥ बात विनोद नी ए करीब । ढाल द्वादश माय ।। श्री ॥ अमोलख ऋषि ए रची । खन्ड पंचम सुखदा य
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॥ श्री ॥ २० ॥ दोहा ॥ मदनजी तब आपियो । जे लाया संग नीर ॥ रतीसुंदरी हर्षायो कहे । शावास नरवीर ॥ १ ॥ यथाविधी मंत्री दियो । कहे राखीजो संभाल ॥ इणथी तुम इच्छित थसी । उतरे योगी व्याल ॥ २ ॥ तुम अंग पहले पाखालके । खोलजो गुफाना पट || बाइ बाहिर काहाउने । इणथी न्हबावजो झट ॥ ३ ॥ फिर न्हबावजो शुक भणी । ते थासी नर रूप || बैठ विमाणे जाव जो ॥ न दे को दुःख धूप ॥ ४ ॥ जोगी आइ मस्ती करे । तो छांट जो ए जल || निर्बल हो पडसी धरा । भूलसी सह हल फल || ५ || ४ || ढाल १३ मी ॥ जंबूद्वीप मरूस्थल देशे | यह ॥ आनन्द धरी मदनजी उडिया | आइ बैठा विमाणो ॥ नाटक जोवा तिहां रह्या ऊभा । जिहां लग प्रगटे भाणो ॥ मदनजी सुणिये । हम दुःख दोहग धुनिये ॥ म ॥ आं ॥ १ ॥ विद्याबले विमाण चलायो । जोगीकी गुफापे आया । चिंतित स्थान देखीने हर्ष्या । जोगी तिहां नहीं पाया ॥ म ॥ २ ॥ तज विमाण ने नीचे उतर्या । पोपट मदन जी जोइ ॥ नाच्यो कूद्यो लुलीने मियों । हर्ष उमावे होइ ॥ म ॥ ३ ॥ किम साहेब आपछो आनंदमां । कार्य सिद्धकर आया ॥ धन्य भाग हम पुन्य संजोगे । आपका दर्शन पाया ॥ म ॥ ४ ॥ कहे भाइ धर्म पसाये । सह काम रूडा थासी ॥ धैर्य धारो वचन संभालो | हिवणा सब दु:ख जासी ॥ म ॥ ५ ॥ तिण जल थी मदन जी न्हाइ । शिलापे
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खण्ड ५
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छांटो मार्यो । पटपड्यो नीचे खुल्लो मार्ग । हर्ष्या मदन हुया धार्या ॥ म ॥ ६ ॥ कीर कहे मुज पहली छोडो । महारो जीव अकुलावे || पाछे कुँवरी बाहिर लाजो | ज्यों उपद्रव्य न थावे ॥ म ॥ ७ ॥ झट उड आयो मदन जी पासे । तुम्बी जले जले न्हवापों ॥ तत्क्षण मूलगोरूप ते पायो । चरणे शीस लगायो | म ॥ ८ ॥ रखवाली वाहिर तस राखी । गुफा में भदन पधार्या ॥ अन्धारे कुँवरी न पेछाण्या । जोगी आया धार्या ॥ म ॥ ९ ॥ तटकी बोले कन्या तत्क्षण । पापी दूरो रहीजे || जो जीव लेवा इच्छा होवे तो । म्हारा तन्ने छीजे ॥ म ॥ १० ॥ किम अबलाने लारे लागी । विना गुन्हे सतावे || | जाणे नहीं मुज पाछल बलिया । जे थारो अंत लावे ॥ म ॥ ११ ॥ धावोरे धावो मदन जवैरी । इण दुष्ट करथी छुडावो । इम कही ते रोवा लागी लागी । किहां लग सहं दुःख घावो ॥ ८ ॥ १२ ॥ नाम सुणी निज चमक्या मदनजी । मीठाले तर संतोषी ॥ मदन हूं तुम लेवा आयो । मत समजो ते दोषी ॥ म ॥ १३ ॥ जल्दी निकलो गुफाने बाहिर । रखे ते पापी आवे || बोली सेंदी सुण बिस्माह । हर्ष उमाले बतलावे ॥ मं ॥ १४ ॥ खरोखर जवैरी छो तुम । महारे कारण आया ॥ धन्य भाग्य आज दुःख गयो सब । | प्याराका दर्शन पाया ॥ म ॥ १५ ॥ तत्क्षण दौडी बाहिर आइ | दोन्याने दखे सुखपाइ || दुःख संभार्यो हियो उमंगायो । नेणा नीर बहाइ ॥ म ॥ १६ ॥ तुम्बी जले
अहो
१ तोला
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खण्ड
कुँवरीने न्हवाइ । स्वच्छ वस्त्र पहराइ ॥ कहे अब किंचित डरमत राखो । जोगीको चाले न कांइ ॥ म ॥ १७ ॥ दोंनोंको करग्रही मदनजी । विद्या मनमें ध्याइ ॥ उड आया
अंतरिक्ष विमाणे ॥ सुखथी तिहूं बैठाइ ॥म ॥ १८॥ विद्या बले विमाण चलायो । व वायू वेग ते चाल्याइ ॥ तीनीने मन आनंद घणेरो । आज सहू फंद सूट्याइ ॥म ॥
१९ ॥ उपकार दोनों माने मदनको । जीवित यां दीघाइ ॥ निज २ वीती बात प्रकाशवा । इच्छा उभयकी थाइ ॥ म ॥ २० ॥ जित्ते जे जे होवे रचना । ते सुणजो चित्तलाइ ॥ ढाल तेरमी पंचम खन्डकी । ऋषि अमोलख गाइ ॥ मदन ॥ २१ ॥ दोहा ॥ लारे जोगी आइयो
गुफाते खल्ली जोय ॥ आश्चर्य पा शंकावियो। तुर्त मांय गयोसोय ॥ १ ॥ राजकन्या | दीठी नहीं । सूबटो नहीं दिखाय ॥ इत उत जोया घणा ॥ घणो गयो घबराय ॥ २॥ मुज सिरपर कुण जन्मियो । जेणे कीधा ए कर्म ॥ मुज विद्या फोकट करी । न लायो कुछ शर्म |
| ॥ ३ ॥ जोम उतारूं तेहनो । देखाडी करामात ॥ तो चेलो सग्दुरु तणो । नहीं तो लाजे || १देखा
जात ॥ ४ ॥ तत्क्षण उडियो गगन में चारं कानी जोय ॥ रवी किरणने सारिखो । जातो विमाण अवलोय ॥५॥ ॥ ढाल १४ मी ॥ कांइरे गुमान करे रसिया ॥ यह ॥ कांइरे में गुमान करे गेला ॥ ७ ॥ हारे गर्भ किणारो पारन पडियो । जिण कीधो तिणने आह नडीयो॥ कांइ ॥१॥ जोइ विमाण क्रोधे धम धमीयों । इण दुष्टे हो म्हारो गमीयो॥
YASHRISHAINISTRATIKHISMISHRA
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कांह ॥ २ ॥ ठग जोगी अभिमानमें छांयो। शीघ्रगतिये उड तिण पास आयो । कां॥ ३॥ देख्यो आतो जोगी तिणवारो ।। कहे मदन डरिये न लगारो ॥ कां॥ ४ ॥णरो जोर चलसी नहीं कांड । खोटा की कमवक्ती आइ ॥ कां ॥ ५॥ ललकारी जोगी कहे उभा रहो, पापी । जाणो नहीं मुज शक्ती यदापी ॥ कां ॥ ६ ॥ छल करी किम भागी जावो । अकाले , किम भरणो चावो । कां ॥७॥ संभालो तुम इष्टने ताइ । हिवे जीवता छोडू हूं नहीं | ॥ कां ॥ ८॥ मदन विमानने धीरो पाड्यो । खेचरी मंत्रयो जल देखाड्यो ॥ कां ॥ ९॥ मदमातो जोगी गिणती न लावे । ढोंग धूम घणी सामे मचावे ॥ कां ॥ १०॥ मदन कहे इम कर्या कांड होवे । क्यों तूं व्यर्थ बाचा खोवे ॥ कां ॥ ११ ॥ होवे करामात सब ते देखाडो । सोगन गुरुजीकी कसर जो पाडो ॥ कांइ ॥ १२ ॥ जोगी सहू मंत्र अजमाइ भाल्या । पण तिण ऊपर एक न चाल्या ॥ कांइ ॥ १३ ॥ मदन कहे जावो निजी घर भाइ। किम मरवा की तुज मन आइ ॥ कां॥ १४ ॥ एकही छांटो जो जलनो देस्यं
तो थारी शक्ती सहू हरलेस्यूं । कां ॥१५॥ समजायो धूर्त समजे नाहीं । तब तो मदन *मनरीसज आइ ॥ कां ॥ १६ ॥ तुम्बी थी जल लेह छिडकायो । जोगीको सहू जोर भगायो ॥ कां ॥ १७ ॥ पहाड कूट ज्यों पडयो धरा आइ । हड्डी नशा सहू ढीली थाह ॥ कां ॥१८ अरटाड पाडी रोवा लाग्यो । विद्या बल सघलो तस भाग्यो कां ॥ १९ ॥ तब जोगीडो
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खण्ड ५
में अति पस्तायो । व्यर्था में इण लारे आयो ॥ कांह ॥ २० ॥ पश्चातापे अब होवे कांइ । K किया कर्म उदय जब आइ । कांह ॥ २१ ॥ उसकतो २ गयो घर चाली । सहू करामात * खोह कपाली ॥ कां ॥ २२ ॥ इसो जाणी कोइ दगोन करिये । ढाल चउदे अमोल सीख वरिये ॥ कांइ ॥ २३ ॥ॐ ॥ दोहा ॥ जोगी पडया तदनंतरे । तीनूं हुवा खुशाल ॥ करामात जो मदन की । जाण्या पुण्य विशाल ॥१॥ पूछे मदन कुँवरी थकी । अन्ध
गुफाने माय ॥ मुज नाम किम सांभर्यो । कुवरी कहे शरमाय ॥ २॥ राय आंगण में । में खेलती । जोवती तातने पास ॥ रूपे मुज मन मोहियो । सुणी गुण प्रकाश ॥ ३ ॥ निश्चय
मन थी तब कियो । बीजा तात समान ॥ प्रतिज्ञा ए माहेरी । पूरसी श्री भगवान ॥४॥ जे जन होवे आपणा । दुःखमें मुख ते आय ॥ सहायतापण तेही करे । इम कही मुल की रहाय ॥ ५॥ ॐ ढाल १५ मी ॥ सुमत का साहेबारे ॥ यह ॥ सुगड नर सांभलोरे । मदन का पुण्य चडता दिनकार ॥ ॥ भद्रसेण पूछे तदा । अब कहो आप विरतंत ॥ | करामात किम पामिया । दो मास किहां वीरतंत ॥ सु ॥ १ ॥ मदन कहे हिवे |
सांभलोरे कहूं म्हारा सहू हाल ॥ पुर पयठाय पीडो ग्रयो । लेवा कुवरी निकल्यो | तत्काल ॥ सु॥२॥ भटक तो आयो तुम कने जी । तुमे वताइ युक्त ॥ ते करवा आगल चल्यो जी । होवा वयण थी मुक्त ॥ सु ॥ ३॥ कामदेवने मंदिरे जी । किन्नरियां मिली
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मोय ॥ तिण वली नीर मंगावियो । हूं आगे चल्यो खुश होय ॥ सु ॥ ४ ॥ * उदक लेतां चौटावियाजी । बस्ने देवता मुज ॥ उडायो गयो वेगलो । तिहां जोगी। 1& मिल्या कई गुज ॥ स॥ ५ ॥ मरतो नर बचावियो । सिद्ध सुवर्ण पुरुष निपाय
॥ फिर आया चंगलापुरी । तिहां कीधो विषम न्याय ॥ सु॥ ६॥ उजडपुर वसावियो । लियो तिहांको राज ॥ रायकन्या परण्यो तिहां । योगी पसाये सिद्धकाज ॥ सु ॥७॥
फिर्यो देवले मिली किन्नयाँ । तिण मंत्री दीधो नीर ॥ तिण जोगे तुम हम मिल्याने । Kगइ जोगीकी पीर ॥ सु ॥ ८॥ अब जाह सोंपी रायने । हूं होवू वयण उरण । आगल
- इच्छा इण तणी । कांह करसी इम पूरण ॥ सु ॥ ९॥ इम बात विनोद में जी। 18 सुख थी मार्ग खुटाय ॥ थोडी देरने माय ने ते । पुर पयठाणे आय ॥ सु॥१०॥ # देखी गढ खुशी हुया जी । उतर्या बागमें तब ॥ खान पान सुख थी किया जी। | भद्रसेण जो जब ॥ सु ॥ ११ ॥ लेह रजा मदन तणी जी । आगल ग्राम मे आय ॥
राज तणी सभा विषे। सह जोइ जन विस्माय ॥ सु ॥ १२ ॥ जय विजय बधाइ ने & र कहे । सुणो बधाइ राजान ॥ मदन सेन रुप सुंदरीले । आया बाग के म्यान ॥ सु।
॥ १३ ॥ बाइ को आगम सुणी जी । सहू सभा हर्षाय ॥ आश्चर्य पाया राजवी । किम | लाया कन्या तांय ।। च ॥ १४ ॥ उमाया जोवा भणी जी। सहू हुया तब ही तैयारा ॥
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राय राणी शैन्या संगाते । चाल्या स परिवार ॥ च ॥ १५ ॥ पुर जन रायने आगले जी । गया भग जोवण आस ॥ ठाठ जम्यो घणो वाग में । सहू देखे धरी हुल्लास ॥ च ॥ ॥ १६ ॥ विमाण जाणे रवी दूसरो जी । करी रह्यो झल हल || बाइ बैठो मायने जी । सील गुण वीमल ॥ च ॥ १७ ॥ सहू बडाइ करे मदनकी जी । अहो २ गुण भंडार ॥ कष्ट सही दुःख नष्ट किया । जे लाया राज कुँवार ॥ च ॥ १८ ॥ तेतले जिंद आविया जी । हर्ष निशाण घुराय ॥ विमाण आदी ऋद्वि देखी । आश्चर्य अतिही पाय ॥ च ॥ १९ ॥ ए ॥ जवेरी के देवताजी । पुण्य प्रबल नर एह ॥ इम मनमें अनु मोदता जी । धरता अधिक स्नेह ॥ च ॥ २० ॥ सह जनने मध्य थी जी। आवे श्री नृपाल || अमोल हर्षानंदकी ए। भाखी पन्नरे ढाल ॥ च ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ नर वर आया देख के । मदन घणा हर्षाय । दौडी सामे आविया । नमिया लुली २ पाय ॥ १ ॥ राजा कंठे लगाविया । आणी अधिक स्नेह ॥ धन्य जवैरी तुम भणी । कियो उपकार अछेह ॥ २ ॥ अहो नरोंशिर सेहरा । सूर वीर सिरदार ।। अशक्य कार्य तुम कियो । हुयो मुजपे आभार || ३ || कर जोडी मदन भणे । मुज में शक्ती न कोय ॥ | आप कृपा प्रसाद थी । सहू यह कामा होय ॥ ४ ॥ सेवक योग्य सेवा करी । नहीं इण में आभार ॥ सुणी नृपादि हर्षिया । धन्य २ रह्या उच्चार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १६ मी ॥
खण्ड ५
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श्री जिन अजित नमु जय कारी ॥ यह ॥ धन्य २ मदन उच्चरे सहूजन | कीधो अहूंतो कामजी || स्वजन मिल्या सहू हर्षाया | पूरी हुई छे हाम जी ॥ धन्य ॥१॥ कुँवरी हुलसित आतात ढिंग । प्रेमे प्रणमें पायजी || स्मरित दुःख नेणे नीर वर्षे । विरहहियो दर्शायजी ॥ धन्य ॥ २ ॥ प्रेमोत्सुक नृप लीनी खोला में । पुचकारी घर | प्रेम जी ! आज सफल दिन बाइ हम छे । तुज दीठां पाया क्षेमजी ॥ धन्य ॥ ३ ॥ रूपवती कहे आप विरहथी । हूं तड फडती दिन रेन जी । मोटो उपकार जवैरीको छे । | मिलाया मुज़ ने सेण जी ॥ धन्य ॥ ४ ॥ मुज काजे यां दुःख सह्यो घणो । कह सी सहू भद्रसेणजी। अब जाऊं माताजी पासे। दरसणे तरसे नेणजी ॥ धन्य ॥ ५ ॥ उठी तत्क्षण आइ जननी कने । प्रेमे लागी पांयजी । उठाइली खोलामाहीं । प्रेमे हिये चिपकायजी ॥ धन्य ॥ ६ ॥ नेणा नीर न्हाखती बोले । करी अचंभो मात जी । थोडामांसरे माह वाह । सूखयो सहु गातजी ॥ धन्य ॥ ७ ॥ किहां किमगह रही किहां | किम । सह्यो दीसे घणो दुःख जी ॥ कुँवरी कहे माजी मुज दुःखडा । किम कहवावे | मुखजी ॥ धन्य ॥ ८ ॥ उडा मंत्रसे लेगयो जोगी । राखी महागिरी मांय जी ॥ अहोनिश एकली झुरती रहती ॥ ते पापी नित्य सतायजी ॥ धन्य ॥ ९ ॥ धन्य २ जवैरी जी तांइ । मुज काज भ्रम्या प्रदेशजी || महा कष्ट सही सुखी करी मुज ॥ हूं फेडी न सकूं रेशजी
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॥ धन्य ॥ १० ॥ सहेल्या घेरी बाइने आइ ॥ मधुर बचने बतलायजी । सज्जन मेले हर्षी | | होइ । गत दुःख दूर करायजी ॥ धन्य ॥ ११॥ शुभ मुहूर्त जोवायो नरपति । सहू सजाइ
सजाय जी ॥ एकण मयंगल मदनने भूपत । बैठा आणंद मांय जी ॥ धन्य ॥ १२॥ मध्य | बजारे होइने चाल्या । देखण प्रजा उमाय जी ॥ मार्ग हाट हवेली चांदणी । नर नारी थी| भराय जी ॥ धन्य ॥ १३ ॥ मदन तणा गुण सहूजन गावे । शावास नरवर बीरजी । महाबिकट काम कैसो उठायो । ते सोही पहोंचायो तीर जी ॥ धन्य ॥ १४ ॥ उतर्या आह
राजसभामें। सिंहासणे बैठा रायजी ॥ मदन ने खेची पास बैठायो। अरी गया शरमाया RE जी ॥ धन्य ॥ १५ ॥ सहू सभा ठाम ठिकाणे बैठी । महिला पडदा मांयजी भद्रसेण ऊभो. होइ बोले । सुणो सहू चित लायजी ॥ धन्य ॥ १६॥ आश्चर्य वीतक जवैरीजीको । जे
यो षट मास मायजी ॥ सुणवा जैसी बात हे साहेब । तिणथी कहवा चायजी ॥ धन्य ॥ १७॥ सहू श्रवण करे एकाग्रताथी । जोगी विद्याप्रभाव जी ॥ उडा लेगयो रूपवतीने । C गुफामें राखी छिपायजी ॥ धन्य ॥ १८ ॥ मदनजी बीडो ग्रह्यो जारे । मैं गयो आगे भाग |
जी॥ चेंट्यो सिल्लाने तोतो बणायो । मदनजी आया में थागजी ॥ धन्य ॥ १९॥ सुणी यक्ती कही जबैरीने । ते गया आगे चालजी ॥ देव समजाइ पुरवसाया। राजा हयाम परण्या नारजी ॥ धन्य ॥ २० ॥ बडने चेंटी उडगया दूरा । मरतो मनुष्या छोडायजी ।
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करामाती जोगी मिलिया । सुवर्ण पुरुष निपाय जी ॥ धन्य ॥ २१ ॥ पाछा आया विद्या | पाया । विमाण केरीगतजी ॥ हमने छोडाया जोगी हराया । इहां लाया देखो सतजी ॥ धन्य ॥ २२ ॥ चमत्कार सहू हृदय पाया । सुणी मदन विरतंत जी ॥ धन्यकार सहू मुख्य थी निकल्या | ए नर महापुण्यवंत जी ॥ धन्य ॥ २३ ॥ बटी बधाइ दीनी मिठाइ । नृत्य जय २ कार जी ॥ ढाल सोलमी कहे अमोलख । पंचम खंड मझारजी || धन्य ॥ २४ ॥ ॥ दोहा ॥ सभा वरकास हुइ तदा । नृपत आज्ञा लेय || आया मदन दुकान निज | सत्कार सहू देय ॥ १ ॥ मुनीमादी संतोष या । सहजन पाया सुख ॥ मालक पुण्यवंत पामिया । धन्य २ कहे मुख ॥ २ ॥ वक्सीस देह मदनजी ॥ कम कर सह संतोष ॥ गुणसुन्दरीनें मिलण | उठिया मंगत पोष ॥ ३ ॥ आया हवेली आपणी । नफर दियो सत्कार ॥ धन बचने संतोषने । पूंछा सह समचार ॥ ४ ॥ जिम आप छोडी गया । तिमही सब सुख मांय | बंदोवस्त पुक्तो रह्यो । इम सुणी सुख पाय ॥ ५ ॥ * ॥ दोहा १९ मी ॥ इंडोरे आंबा आंबलीरे || यह ॥ गुणसुन्दरीने मिलवा भणी जी । हवेली ऊपर आय ॥ नियमित स्थान पहलां तणो जी । तिहां रूप पलटाय ॥ श्रोतागण जोवो मदन करामात ॥ आं ॥ गेहणा वस्त्र उतारिया जी । मेला फट्टावस्त्र पेहर । धूल स्वाक तनने मली जी । सिरका बाल विखेर || श्री || २ || सागे मूर्ख सरखा बण्याजी । चडिया ऊपर तेह | हँसिया
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म. श्रे.
पक्तिये १
में झीणा मांयथी जी । जगावण भणी नेह ॥ श्रो॥३॥ कुँवरी जाण्यो आवियो जी । मिली मूर्ख परिवार ॥ हर्ष प्रेम उभराह ने जी । बोलावे धर प्यार ॥ श्रो॥४॥ दिवस घणा
खण्ड ५ में लगावियारे । आसींग्यो नहीं मोय ॥ याद आती घडी २ रे । हर्षी आज जोइ तोय ॥ श्री
॥५॥ मदन कहे हूं किस्यो करूंजी । लार लाग्यो परिवार ॥ घणा दिनामाहीं गयो जी। तेह थी मिलण आया द्वार ॥ श्रो॥ ६॥ खान पान किया घणा जी । मीठी रोटी दी मुज | ॥ उच्चे स्थान बैठावियो जी । और करी घणी गुज ॥ श्री ॥ ७ ॥ थोडा 12 दिन रही करी जी ॥ आवण हुवो तैयार ॥ सहू पूंछे भेल हुई जी । किम करे तूं गुजार ॥ श्री ॥ ८ ॥ मैं कह्मो राजपुत्री भणी जी । छोडी आयो निरधार ॥ याद महारी करता हुसी जी । ज्यास्यूं तिहां एकवार ॥श्रो ॥ ९॥ सहू कहेरे मूारे ।।
तुज थी कोण मोहवाय ॥ क्यों दुःखी होवे जाइनेरे । इम घणो परिचाय ॥ श्री ॥१०॥ - मैं नहीं मानी एककीजी । मन लाग्यो इण ठाम ॥ गुप्त भागीने आवियो जी । नकियो किहां मुकाम ||श्रो ॥ ११ ॥ आज दर्श देख्या तुम तणां जी । मोठा महारा भाग ॥
तुम तो खुशी मांही रह्या जी । इत्तादिन इण जाग ॥ श्री ॥ १२॥ कुँघरी दासीने कही। वजी । मंगायो भलो आहार ॥ पहला पीगयो दालनेजी । फिर भात खायो तेवार ॥ |श्रो ॥ १३ ॥ कूदे आंगण मायनेजी । चरित्र बहु बताय ॥ हँसावी पेट दुःखावियो जी ।
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| कुँवरीना कही बैठाय ॥ श्री॥१४॥ सुन्दरी निश्वास न्हाखनेजी । कहे तुज रुडो रूप ॥| पण गुणतो किंचित नहींरे । हूं सहू विरहनी धूप ॥ श्री ॥ १५ ॥ जोह | मूर्खाइ थायरीरे । खुशी करूं मुज मन ॥ अन्य किस्यो तू कामनारे । खुटावं म्हारा | दिन ॥ श्रो॥१६॥चाकर सह अचंभो धरे जी। क्यों हम करे सिरदार ।। सह गणथी|
पूर्ण भर्या जी । क्यों इण आगे होवे गवार ॥ श्रो॥ १७॥ जोडी युक्ती एहनी जी। IS होसी कारण कोय ॥ प्रगटे नहीं तस सामने जी । पूंछे न डर थी सोय ॥श्रो॥१८॥ ह गंभीरता सत्युग तणी जी । बाहिर नहीं करे बात ॥ मालक कही करे चाकरी जी ।
आश्चर्य मनमें पात ॥श्रो ॥ १९ ॥ कुँवरीने परचायनेजी। नीचे आया कुवार ॥ वस्त्र भूषण तन सजीजी । करे हाटे जा वैपार ॥ श्रो॥ २०॥ अवसरे राजसभा जह जी। करे योगो काम । राजा प्रजामें विस्तरी जी । मदन महिमा तमाम ॥ भो ॥ २१ ॥ इम सुख थी मदन रहे जी । अमोल सतरे ढाल ॥ पंचम खंड पूर्ण हुवोजी । मदन पुण्य में विशाल ॥ श्रोता ॥ २२ ॥ ॥ खन्ड सारांश हरीगीते छंद ॥ असुर समजा आनंदपुर | व वसा । कनकावतिका पति थया ॥ नीर ले मिल्या खेचरी । मंत्रियो जल ले गुफा में गया
॥ रूपवति भद्रसेण संग ले । जोगीने अशक्ती किया । पयठाण पुर आ रहे सुख में। | अमोल पंचम खन्ड भया ॥ ५॥॥.. . *
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परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराज की संप्रदाय के
बाल ब्रह्मचारी मुनी श्री अमोलख ऋषि जी रचित पुण्य प्रकाश मदन चरित्र पंचम खन्डम्
समाप्तम् ॥५॥
॥दोहा॥ प्रणमूं अहंत सिद्ध को । आचार्य उवझाय ॥ साधू साधवी सरण थी । षष्टम खन्ड रचाय ॥१॥ मदन चरी रस कस भरी । करीने विविध स्वाद ॥ हित
चित दे श्रोता सुणो । छांडी सहू विखवाद ॥ २॥ चमत्कार जग बल्लभो । जो कोई aजाणे कर ॥ चमत्कार सिद्ध जस हुवे । सत्य ब्रह्मवृत धर ॥ ३ ॥ मदन सत्यशीले करी || पाया निर्मळ बुद्ध चमत्कार जेजे किया । ते सुण जो चित शुद्ध ॥ ४ ॥ एकदा पुर पायठाणमें । राय भवन मझार ॥ नृप राणीने कुँवरी । एकांत करे विचार ॥५॥ जब्बर पुण्याइ आपणी । अपना पुरके माय ॥ पुण्यवंत मदन जिसा । वसिया सहू सुखदाय ॥
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६॥ महा संकट सेहन किया । सुख पाइ न लोभाय ॥ रूपवती लाइ दीवी । उपकार किम पुराय ॥७॥ अधोदृष्टी कुँवरी भणे | सत्य आप फरमान ॥ अन्य नर वरवाताण । म्हारे छे पच्चखाण ॥८॥सणीने हा राजवी। पूरो करूं बचन ॥ अर्ध राजकन्या छ । प्रीती पूरं मदन ॥ ९॥ ॥ ढाल १ ली । अलबेलीरे अम्बा मात ॥ यह ॥ पुण्यवंत | मदनकुँवार । पग २ सुख लहे ॥ जे लाया पुण्य धन संच । तेहने सह चहे | ॥ ७ ॥ सचिव बोलावण भणी भेज्या । लावो जवैरी बुलायरे ॥ लेइ आडंबर मंत्री चाल्या । मदनकी पैढी आय ॥ पग ॥ १॥ नरमी कहे राजा जी बुलावे ।
मदन सुणी हर्षायरे ॥ सज्ज हो आया राजिंद पासे । लुली २ नमन कराय ॥ पग ॥२॥ भ नृप आदर दे पास बैठाइ । प्रेमे बात जणायरे ॥ करो तैयारी ब्याव तणी । हूं पार |
पाडू मुज वाय ॥ पग ॥३॥ मदन कहे केहने परणावो । कहो जोडाको नामरे ॥ राय हँसी कहे इम किम बोलो । तुम दुल्लहा वणो काम ॥ पग ॥४॥ दुःख थी उवारी तनुजा, RI मिलाइ । कियो मोटो उपकाररे । वा तन मन थी तुमने चावे । जन्म का साथीदार |
॥ पग ॥ ५ ॥ मदन कहे तेतो बालक छे । आप अछो बुद्धवंत जी । जोगाजोग | | विचारी कीजे । जेहथी कुल सोहंता ॥ पग ॥ ६ ॥ हूं तो छु वाणिक की जाती । में वली वस्यूं प्रदेशजी । रायकन्या हम घर किम सोहे । मुख किम पावे नरेश ॥ पग ॥
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खण्ड ६
७ ॥ हम घरे नारी अन्न निप जावे । पाणी पण भरलाय जी । मर्यादा न रहे न्यात पांतमें। चेन किणी परे पाय ॥ पग ॥ ८॥ रायजी सुणने आश्चर्य पाया। प्रत्यक्ष ए| गुणवंत जी । लालच नहीं मन राज नारीनो । पर उपकारे क्षपंत ॥ पग ॥९॥ कहे धरा धव बचन वृतने । तुमहीज दीसो श्रेष्टजी । तुम कहे सो सौ करसी बाइ । न रखसी पद जेष्ट ॥ पग ॥ १० ॥ मैं तो बचन दीधो छे पहली । जो मुज पुत्री लायरे | |॥ आधा राज संग्याते तेहने । ते देश्यू परणाय ॥ पग ॥११॥ ए तो बात होवे # नहीं मिथ्या । वली तुमने ते चायरे ॥ तुमसा सुगुणा मिलणा दुल्लभ । मानो हमारी | वाय ॥ पग ॥ १२ ॥ मदन कहे जो हुकम राजरो । सो मुज करणो भागरे ॥ इच्छा |जिम अनुसर स्यूं श्वामी । देखी आप प्रेम लाग ।। पग ॥ १३ ॥ इम सुणी राजा राणी | कुवरी । पाया हर्ष अपाररे ॥ औत्सव मंडाणा तिहां बहुविध । कीर्ती जिसो विवहार ॥ #पग ॥ १४ ॥ लेइ सीखने बहू आडंबरे । मदनजी आया दुकानरे ॥ चिंते बात गुण सुन्दरी | | जाणे तो । बिगडे सह मंडाण ॥ पग ॥ १५ ॥ करणो गुप्त रही ए कार्य । नहीं | जाणे जिम भेदरे ॥ जुदा मकानमें ठांठ जमायो । तिहां सहू पूरे उम्मेद ॥ पग ॥१६॥ खान पान सभा मंडप की। तिहां सजाइ सजायरे ॥ वस्त्र भूषण उगटणादी। जगकी रीत कराय ॥ पग ॥ १७ ॥ द्रब्य तिहां सर्व संपजे आइ । सज्जन होय अनेकरे ॥ न्याती
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| गोती भाइ बेनडी। मिलिया आइ सेश ॥ पग ॥ १८॥ बाजिंत्र थी अम्बर गाजे । गायन किन्नरी लाजेरे ॥ देवपुरीसो पयठाण पुरको । लोक सजायो साज ॥ पग ॥१९॥ मेघ धारा पर द्रव्य वावरे । दोइ घर कमी नहीं कायरे ॥ आनंद रंगे सहू हाले माले । | जोडी जुगती गवाय । पग ॥ २० ॥ छट्टे खन्डे प्रथम ढाले । मंडियो लग्न मंडाणरे ॥ | अमोल कहे पुण्यवंत जीवने । पग २ नव निध्यान ॥ पग ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ से दिन | मदन जी चिंतवे । आज लग्नकी रात ॥ इण हीज बजारे हुइ । निकलसी बरात ॥ |१॥ गुणसुन्दरी ते जोवसी । होसी मन नाराज ॥ तिणने पहली परचाइने । पाछे करूं |ए काज ॥२॥ आइ हवेलीने विषे । मूर्ख रूप बणाय ॥ हँसता रमता कुँवरी कने । पड्या मदनजी जाप ॥ ३॥ मिथ्या लापे गप्प थी। खुशी कियो तस मन ॥ फिर कहे र आज मुज काम छे ।. आस्यूं कालके दिन ॥४॥ गुणसुन्दरी कहे मरख्या। थारे छे | किस्यो काज ॥ तब मूर्ख कहे सांभलो । कहूं हूं तजेन लाज ॥५॥ ॐ ॥ ढाल २ जी। कर्म तणी कथनी रे किहां जाइने कहूं। यह ॥ इणहीज नगरीरे माये रहे । प्रभूत धन, नामे एक सहूकारजो ॥ धन धान घणो छे तस धरने विषे । राजा परजा सहू देवे सत्कार जो ॥ सुणियो मदनजी चरित्र करे छे केहवा ॥ ७॥ मदन नामें नंदन छे एक छे तेहने । रूपेतेतो अतिघणो शोभाय जो ॥ बोलणरी कुछ शुद्ध नहीं छे तेहने । तिणथी
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प्रीति धरी कोइ न बोलाय जो ॥ स ॥२॥ मंत्रवादिये हरण करी रायपुत्री का । तिणधी म.श्रे.
2 उपज्यो राजा प्रजाने त्रास जो ॥ बीडो फेर्यो पुत्री लावे जे माहेरी ॥ परगा वी दूं तेही
कुवरी तास जो ॥ सु॥ ३ ॥ सेठपुत्र ते मदन बीडो झेलियो । पर देशे फिर सहन # कर्यो घणो दुःख जो ॥ सोधी लायो रायपुत्री प्रयास थी । तिणथी पाया राजा परजा सुख जो॥४॥ वचनानुसारे परणावे राय पुत्री का । दोनो घरमें मडियो हर्ष उत्सहाय, जो ॥ पण तसु तातने चिंतामनमें उपजे । मुज तनुजमें बोलणरो नहीं लहाय जो ॥
सु॥५॥ रखे हांसी करावे तिहां हम गहनी । राय रोपाइ करे कोह अयोग जो ॥ #इम चिंतामें दिन घणा विताविया । आज मार्गमें जाता मुजने छोगजो ॥ सु॥६॥ हया
मीठे बचने मुज बोलाविया । मीठा २. भोजन मुजने कराय जो । एकांते लइ कहे सुण महारी बातने । कहं हं तुजने जो तं सोगन खाय जो ॥ सु ॥७॥ महारी कही हा बात किहां करजे मति । मैं पण सोगन खाया कया प्रमाण जो ॥ ते कहे तूं पण छे मुज पुत्रने सारीखो। रूप गुणमा तेहथी अधिक विनाण जो ॥ सु ॥८॥ मुज पुत्रने रायजी आपे पुत्रिका । आज लग्नको दिनछे एही भ्रात जो ॥ बोलणरो ढंग मदन में जरा
नहीं। तिणरे ठामे तूंही कुछ सोभात जो ॥ सु॥९॥ न्हाइ सज हो प्रहरी वस्त्र भूषण ॥ E दुल्लहा वणने परणो राजकुंवार जो ॥ तेलाइने सोंप तूं महारापुत्रने । मानूंगा हूं थारो
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घणो उपकार जो ॥ सु ॥ १० ॥ मांडे बचन मनायो मुजने सेठजी । पकडी || E करने लेजाता . घर मांयजो ॥ तिण ही वेला याद हुइ मुज तुम तणी । सेठ
कह्यो हूं आस्यूं घरने जाय जो ॥ सु॥ ११ ॥ मालकणीकी आज्ञा लेइ आवस्यूं । सेठजी E छोडी दीधो महारो हाथजो । सोगन देवाडी छपाछो जावणो । करणी नही छे किण आगे, Pए बात जो ॥ सु ॥ १२॥ दौडी आयो सीधो हूं अब्बी इहां । शीघ्र जावणो आपो शीघ्र || हुकम जो ॥ बींदवणीने परणी लावू लाडी भणी । आज रातरा मजा देखांगा हम जो ॥
॥ १३ ॥ इम कही कूदे हंसे तेतो घणो । गुणसुन्दरीने हांसी आइ अपार जो मूख्यो । मारे झूठी गप्पा ए सह । कोइ तमाशो जोवण जावा विचार जो ॥ सु ॥ १४ ॥ लूण | लक्षण तो फूटी कोडी जित्ता नही । होवा जावे सेठसुतथी अधिक जो ॥ लपराया सीख्यो । ए इहां रेह करी । मुज भरमावा बात बणावे ठीक जो ॥ सु ॥ १५ ॥ कहे | मदन से जाथारी इछा जिहां । पण मत जाजे दूरो ग्रामने छोड जो । प्राते वेगो आजे | भोजनने इहां । झूर तणी मत लगावे अंग खोड जो ॥ सु॥ १६ ॥ सुणी मदन जी 5 खुशी हुवाने कूदता । उता मेडी नीचे तिणहीवार जो । चिंते कला तो जमी छे पूरी | महारी । अजु लगण नहीं ओलखे एह लगार जो ॥ सु ॥ १७॥ भेष बदलने आया चल | दूकान पे । लाग्या अपणे काम करणने मांय जो ॥ ढाल दूसरी कही ए छटा खंडकी ।
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म.श्रे.
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कहे अमोलख कपट किम प्रगदाय जो ॥ सु ॥ १८ ॥ ६ ॥ दोहा ॥ मदन आपो छिपावा | रवी पश्चिम छिपाय ॥ अन्धकारके व्यापता । दी रोशनी झलकाय ॥ १ ॥ दुल्लहा | वणिया मदनजी । सजिया सहू सिणगार ॥ रयण मुगट झग मग करे । मोड जरी जर तार ॥ २ ॥ की लंगी तूर्रा शिरे । कुंडल चौकडा कान ॥ हार कंठी बहुभूषणा मुखथी चाबे पान ॥ ३ ॥ जर भर जामो केसर्या ॥ उत्रासण उतमांग ॥ खड्ड कटारी शस्त्र सज | वाणिया ज्यों राजान ॥ ४ ॥ उत्तम मयंगले बेठिया । छत्र चमर दुलाय ॥ ओपता ते इन्द्र जिसा । रूप गुणे शोभाय ॥ ५ ॥ * ढाल ३ जी ॥ आवे वर लटकंतो ॥ चंदनरिंद महाराज || यह ॥ आवे वर गुणवंतो । मदनजी मदन समान रूप गुण सोहंतो ॥ आं ॥ वर राय मयंगला रूढ हुवाजी । सोहे इन्द्रसमान || वरोबरीरा सोभता जी । जानी या मिल सजी जान || आ || १ || केइ गज गाजी रथे । केइ सुख पाले छे स्वार ॥ केइ पायक सिणगारिया जी । जाणे अमर अवतार || आ || २ || वन्ही रोशनी तेजथी जी । दीसे ज्यों उग्यो भान || नाच रंग बहु विधना | बंदी जन गावे गान ॥ आं ॥३॥ सहश्रागम नरे परवर्या जी । चाल्या मध्य बजार || चालो रायवर जोइये । इम उलट घरे नरनार || आं ॥ ४ ॥ कांती गुण जो मदन का । सहू जन जनी कहे छे धन्य ॥ रूप सुन्दरी सी भाग्यवंतनी । जग नारी नहीं अन्य ॥ आ ॥ ५ ॥ इम अनुक्रमें चालता
खण्ड ६
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१ पुत्री
आया । गुणसुन्दरी मेहल पास । ते पण ऊभी थी गोख में कांइ । देखण वरने हुल्लास P॥ आं॥६॥ तिहाइ आइ उभा रह्या जी । करता सहजन खेल ॥ मदन गुणसुन्दरी
देखने जी । मुखडो लीनो फेर ॥ आ॥७॥ चूप धरी जोवे सुंदरी । लागे सेंदीसी सूर्त एह । इम हियापे निश्चय कियो । एतो मूर्ख नहीं संदेह ॥ आ ॥ ८॥ अहारूप दिव्य | एहनो । बैठ्यो किस्यो हुंशियार ॥ अहा मोहनी मूरती ऐहनी । अहा सोभा सिणगार |॥ ७ ॥ ९ ॥ साची ए परणे सही जी । इहां राय की धीय । तो किम मूर्ख जाणिये । अती आश्चर्य उपजे जीय ॥ आ ॥१०॥ देखो जोवे नहीं मुज भणी जी । बैठो मुख फेराय || आज कपट मैं जाणियो । मुज आगल ढोंग बणाय ॥ आ॥ ११ ॥ जब आवे मुज सामने एतब वणे कंगाल ॥ गेली बातां षणायने । मजने उपजावे जंजाल ॥ आ ॥ १२ ॥ आप षण बैठा राजवीरे । मुज न प्रकाश्यो भेद ॥ कहे भाडे परणाविया । हाहा देखो दगो ए खेद ॥ ७॥ १३ ॥ हूंतो जाणती मूर्यो ए । एतो गुणभंडार ॥ रूप कलागुण सहू थी अधिका । हूं चूकी निराधार ॥ आ ॥ १४ ॥ रच्यो परपंच इण ठेटथी । मुज लायो इहां भरमाय ॥ बैठाह छे केदमा
मैं किस्यौ कियो अन्याय ॥ ७ ॥ १६ ॥ आज पात करी मुज कने जी ॥ सेठको पुत्र मदन ॥रायसूता लायो इंढने । ततो सत्य इणीरो कथन ॥ आं ॥ १७॥ कुटम्ब |
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# मिलवाको कह गयो । इण लगाया छे मांस । ते सव करामात एहनी छ । आज पड्यो म.श्रे.
खण्ड६ | प्रकाश ॥ आं॥ १८ ॥ मुज पहिले ग्रह तेहने । तेथी मोटी होसी ते नार ।। हाहा हिवे | किस्यूं करूं । इम करती अनेक विचार ॥ ७ ॥ १९ ॥ आर पडी निज सेजपे । तस | निद्रान आवे लगार ॥ मदनचरित्र संभारीने । एतो आश्चर्य करे अपार ॥ आं ॥२०॥
प्रभाते तो आवसी । तब करस्यूं पूरो फजीत ॥ क्षण २ उठने जोवती । निशा पूरी होवे || विकिण रीत ॥ आं ॥ २१ ॥ हिवे वरात मदन तणी जी । पहोंची तोरण जाय ॥ सासू
बधाइ मांये लिया । और कीधा सहू उपाय ॥ आं ॥ २२॥ आरण कारण सांचवी ।* दीवी दंपती जोड मिलाय ।। अमोल ढाल तीजी कही । जोवो पुण्य तणा पसाय ॥ ७ ॥ २३ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ कन्यादान तणे विषे । दीधो आधो राज ॥ हय गय रथ पायक सही । राजके युक्तो साज ॥ १ ॥ संतोष्या सहू लोकने । योग्य करी सत्कार ॥ दंपति आया मेहलमें । हिये उभरा ते प्यार ॥२॥ आनंदे निशी अतिक्रमी । प्रगटि। या दिनकार ॥ वंदीजन वरुदावली । सुणीने जाग्या कुँवार ॥ ३ ॥ जाचक में संतोषि या। कीधो जन व्यवहार । शुची हुई भोजन करी । करी मदन विचार ॥ ४॥ राते जोयो मुज भणी । किस्यो उपज्यो तस मन ॥ हिवे मजा मिलिये जह । इम करी| चिंतन ॥ ५॥ * ॥ ढाल ४ थी ॥ औलंभे मत खीजो ॥ यह ॥ औलंभो खरो दीजेरे भी
रथ // १०२
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सजन औ० ॥ आं ॥ महापुण्यवंत मदन ते वारे । आया हवेली मझारे ॥ मूर्खको नीचे वेस बणायो । पूर्व परे तत्कालेरे साजन || औ ॥ १ ॥ हड २ हंसता ऊपर चडिया कुँवरी आगल आह पडिया ॥ हाहा राते मज कैसी आइ । लेख विर्घाका घडीयारे साजन ॥ औ ॥ २ ॥ समजी चरित्र कुँवरी खिशाणी । भाले लीक चडाइ ॥ वस २ अब रहवा दो तमशा । प्रगट हुई कपटाइरे ॥ सा ॥ औ | ३ || दगाबाज सदा सुख पावे । सरल स्वभावी सिधावे ॥ करतां तमाशा लाज न आवे । नाहक हमने चिडावेरे ॥ सा ॥ औ ॥ ४ ॥ किस्यो वैर लेवो मुज साथे । ते लेवो एक वारेः । कैदमें न्हाखीने संतापो । ते केवोनी | गुन्हा हमारेरे ॥ सा ॥ औ ॥ ५ ॥ आश्चर्य जैसी मुद्रा करीने । कहे मदन नरमाई ॥ किस्यों गुन्हो हुयो म्हाराथी । तिण थी तुम रिसाइरे ॥ सा ॥ औ ॥ ६ ॥ तुम आज्ञा थी हूं तो गयो थी । हुह हकीगत कहीने || भाडे परण्यो राजकीपुत्री | आयो छू रात रहीनेरे ॥ मा || औ ॥ ७ ॥ महारी भूल हुवे सो फरमावो । व्यर्थ कोप न लावो || परदेश माहे | आधार तुमारो || कृपा कर सीतल थावोरे ॥ सा ॥ औ ॥ ८ ॥ कुँवरी कहे नाटक करो पूरो । हिवे लबाडी छोडो । किम वणो छो मूर्ख शाणा । मुजने लागे छे खोडो रे ॥ सा ॥ औ ।। ९ ।। रूपसुन्दरी रिजावा कारण । इंद्रसा वणी सिद्धाया ॥ महासंकट सही तुम तस लाया । खुशी करी तसकायारे ॥ सा || औ ॥ १० ॥ मैं कांइ थांकी चोरी कीधी मूर्ख सा
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म.श्रे.
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| बण आवो ॥ लाया उडाइ अबला तांइ । करीने खोटो कावोरे सा ॥ औ ॥ ११ ॥ जोइ | राते कपट पेछाप्यो । हूं भोली समज्यूं कांइ । नहीं निश्चयथी तुम छो मूर्ख | म्हारी पूरी | मूर्खाहरे सा ॥ औ ॥ १२ भेली रहीमें काल एतलो । परख्या नहीं लगारो ॥ काम | केइ थां कीना भारी । हूं तो पूरी गिंवारोरे सा ॥ औ ॥ १३ ॥ मूर्ख २ कही बोलाया । | ऐंठा भोजन खवाया || कांण मर्याद जरा नहीं राखी । नौकर सम लेखाय ॥ रेसा ॥ औ ॥ १४ ॥ क्षमो २ अपराध सौ म्हारो । सहू गुनो माफ कीजे । मुज ओगणकी शिक्षा में पाइ || अबे जरा दयालीजेरे ॥ सा ॥ औ ॥ १५ ॥ इम कहती रोती पडी पगमें । मदनजी उचकी बैठाइ ॥ इम किम करो तुम शाणी होइ । तुमथी किसी जुदाइरे ॥ सा ॥ औ ॥ | १६ | दुःख देवण ने हूं नहीं लायो । दुःख नहीं दियो तुम तांइ ॥ हुकम प्रमाणे आज लग रहियो । और करूं कहो कांइरे ॥ सा ॥ औ ॥ १७ ॥ आपणो आपो हूं किम दाखूं । | तेहथी ए चरित्र बणायो | आजपिछाण्यो तोही हूं थाणो । करो जे तुम मन चायेोरे ॥ | सा ॥ औ ॥ १८ ॥ सुंदरी कह जो कृपा आपकी । तो पहली परणो मुज तांइ ॥ रूपसुन्दरी | मोटी न होवे । पहली हूं घर आइरे ॥ सा ॥ औ ॥ १९ ॥ मदन कहे मत करो उतावल । हूं नहीं राज कुँवारो || वाणिकने घर सह छे सरखी । कुण छोटी मोटी नारोरे ॥ सा ॥ औ ॥ २० ॥ तिथी धैर्य धरो मन मांइ । तुम तात सन्मुख जाइ ॥ तुमने हूं परणं स्यूं |
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| निश्चय । इम सुण ते शरमाइरे ॥ सा ॥ औ॥ २१ ॥ मुज पीयर मुजथी न जवाय । जो म मृत्यू महारी थाय ॥ ऐसी उदारी बातां सुणने । कालजडो चीरायरे ॥ सा ॥ औ॥ २२ ॥
मदन कहे ऐसी युक्ती जमास्युं । जिम जरा नहीं होवे हाँस्युं ॥ अपणा मनोरथ सह सिद्ध |
थासी । पहला सी कहुं था स्युरे ॥सा ॥ औ ॥ २३ ॥ इत्यादी वयणे समजाइ । खुशी 2 करी तिण तांड ॥ विनोद बाते आणंद साथे । सुखे रहे तिण ठाइरे ॥ ॥ सा ॥ औ॥ २४ ॥ में अजव कलावंत मदन कुँवर ए । सीसी उपाय यह करसी.॥ ढाल चतुर्थी छद्दा खंडकी। | अमोल सुगुण उचरीसीरे ॥ सा ॥ औ ॥ २५ ॥ ॥ दोहा ॥ पचेंद्री सुख भोगवे । सुखे ,
रहे तिण ठाय ॥ जाणी गुणौघ मदन ने । गुणसुंदरी हर्षाय ॥१॥ चटपटी लागी चितमें। ९ कब मिलसी संयोग ॥ किसी करामाते करी । मिलासी मावित्र जोग ॥२॥ वारम्बार में अर्जी करे । हिवे शीघ्र करो काम ॥ जे करवो छ आपने । मन नहीं रहे वे ठाम ॥३॥ विनय भक्ती नित्य कर । सफल गिणे अवतार ॥ दुःख सहू भूली गइ । देखी गुणी भरतार
॥४॥ दास्या मुखथी सांभल्या । मदन जरूरी गुण ॥ बड भागी पति जाणियों । सकल & कला ए निपुण ॥ ५॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ साधूजीने बंदणा नित प्रति कीजे ॥ यह ॥ मदन - कुंदर जावण सज होवे । राजाजी पासे आवेजी ॥ प्रेमे नमी विचार दरशावे । निज
देश जावा चित चावेजी ॥ म॥१॥ इम सुणी राजाजी फरमावे । जावण चित किम
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म.श्रे
खण्ड ६
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* चाइजी ॥ इहां रहो करो इञ्छित कामा | कुण हुयो तुमे दुःख दाइ जी ॥ ५ ॥ ३ ॥
श्वामी आप कृपाकी छायां । दुःव नहीं मुजने लगारोजी ॥ स्वजन मिलण अति में |चित चहावे ॥ ते पण करे छे संभारोजी ॥ ॥ ३ ॥ स्वजन थी मिल पाछोऑस्यु ।। थोडाइ कालके मांइजी । अन्य कार्य मुज मार्गे बहुला । दो आज्ञा हित लाइजी ॥ म॥ ४ ॥ अतिहट जाणी वीनी आज्ञा । मेहलांमाही आया जी ॥ रूपसुंदरीसे कहे मधुरे ॥ हूं देश जावू काम सायाजी । म ॥५॥ नेणाश्रुत हो कहे प्रेमला । या कैसी पात |सुणाइजी ॥ किस्से देश आपरो नहीं जाणूं। या किसी मन आइ जी ॥ म ॥ ६ ॥ मदन कहे हैं छं प्रदेशी । वैपार काजे आयोजी ॥ माता पितादी सहू छे लारे । इह सह सुख पायो जी ॥ म ॥ ७॥ मिलवारी मुज उमंग घणेरी । जरूर एकवार जास्यं जी॥ तुम इहां सुख माहे रहिये । थोडाही दिन माहे आस्युंजी ॥ म ॥ ८॥ अति आग्रह जावणरो जाणी ॥ त्रिया कहे कर जोडीजी । मैं पण आपरे साथे आस्युं । दूर नहीं रहूं थोडीजी ॥ ९॥ बहु दिवसे मनोरथ फलिया । हिवे तज्या नहीं जावेजी ॥ किस्यो विश्वास विदेशी केरो। धैर्य मुज नही आवेजी । म ॥ १०॥ मदन कहे तुम शाणी होइ । इम किमबोलो वाणी जी । प्यारी प्रेमलाने कुण भूले । या बात बालकरी जाणी जी ॥म ॥ ११॥ काज घणा मुज मार्ग माही । संग न राखी जावे जी ॥ सर्व काम से शीघ्र निवृती
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आस्युं देर न थावे जी ॥ म ॥ १२ ॥ हम बहुविध त्रिया समजाइ । तब कहे सुखे पधारो | जी ॥ भूल जो मत दासीने तांइ । पूरजो मनोरथ म्हारो जा ॥ म ॥ १३ ॥ राय जी मदन में
की सेवा काजे । चतुरंग सैन्य संग देवे जी ॥ और सहू बंदोवस्त कीनो । मार्ग सुखथी | | वेवे जी ॥ म ॥ १४ ॥ दुकान मोटा मुनीम ने भोलाइ । सह ऋद्धि संभलाइ जी ॥
भद्रसेणने राज काज निज । संभालण दीधाइ जी ॥ म ॥ १५ ॥ | पुरजन सुणियों मदन जी जावे । बहुजन मन बिलखावे ॥ जी ॥ दौडी २ मिलवा,
आवे । सहने सुख उपजावे जी ॥ म ॥ १६ ॥ आय हवेली कहे सुंदरीने । 2 कीजे वेग तैयारी जी । तुम मावित्रसे तुमने मिलावू । जोवो करामात महारी जी ॥ मम ॥ १७ ॥ ते पण झटपट तब सज होइ । घर दासीने भोलायो जी ॥ खावो उडावो रेवो
सुख में । आइने पूरस्युं उमावो जी ॥ म ॥ १८ ॥ गुणमुंदरी रथारूढ होइ । बहू दासीये |
परवरीया जी ॥ मदन मयंगलारूढ चमर दुलावे ॥ वरुदावली उच्चरीया जी ॥म ॥ १९॥ र शुभ मुहूर्त कियो प्रयाणो। पहोंचाइ फिर्या नर राणोजी ॥ और घणा सेठ सज्जन पुर ॐ जन । सीम लगण आया जाणो जी ॥ म ॥ २० ॥ मिलिया प्रेम घणेरो जणाइ । पाछा
शीघ्र दर्श दीजोजी | फिरिया पाछा देखता जावे। मदन कहे सुखे रहीजो जी ॥ म ॥ २१ ॥ आगल मार्ग सुखे अतिक्रमी । श्रीपुर नेडा आयाजी ॥ दोय जोजन के अंतरे राहया
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म. श्रे.
|पडाव करी तिण ठाया जी ॥ म ॥ २२ ॥ आगल युक्ती करे अनोखी । ते सुण जो चित में
खण्ड | लाह जी । छटा खंडकी ढाल पंचमी । ऋषि अमोलख गाइ जी ॥ म ॥ २३ ॥ 8 ॥ दोहा ॥
जेष्ट सामंत वुलायने । कहे मदन सुणो भ्रात ॥ सहू सुखे रह जो इहां । हूं कोइ कामे जात | ॥१॥ थोडेही दिने आवस्यूं । सामंत कहे कर जोड ।। सुह्ये पधारो माहिबा । सधली चिंता छोड ॥ २ ॥ सुंदरी पूंछे नमन कर । किहां पधारो श्वाम ॥ मदन कहे तुम कारणे । करवो जुगतो काम ॥ ३ ॥ जोग जुगत जमाइ ने । फिर आस्यूं इण ठाम ॥ लेइ जास्यूं तुम भणी । जिम होवे सुनाम ॥ ४ ॥ ते कहे भले पधारिये । मदन हुवा तैयार । धामनी में
१ रात्री ते आविया । श्रीपुर नयर मझार ॥ ५॥ ॥ ढाल छट्टी ॥ वसंत ॥ मत ताको हो नार | ॐ विराणी ।। यह ॥ मदनेश्वर उत्तम प्राणी । करे करामात बुद्धवानी ॥ ७ ॥ इच्छित काम | करवाने काजे । पदन जी बुद्धि उपानी ॥ यक्ष देवालय देख मनोहर । रंग्यो चंग्यो मन
मानी । विरज्या तेह ठिकानी ॥ म ॥१॥ ब्रह्मचारीको रूप करणने । समग्नी सहू मिलानी || न्हाइ घोइ कुंकम चंदन को । तिलक भाल लियो ठानी ।। कंठ भुजहिये लगानी ॥म ॥ २॥ लांबी चोटी छुट्टी मेली । काली भमर सोभानी ॥ एकांक्षी रुद्राक्ष की माला । कंठ करे पेरानी। पितांबर रंग भलकानी ॥ म ॥ ३ ।। अग्निकुंड मुख आगे कीनो । ज्वालादी प्रजलानी ॥ सुवर्णरत्ननो नाणो राख में । राख्यो गुप्त छिपानी ॥ घोटा मोटा पासा नी॥
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म ॥ ४॥ मृग छाल बीछाइ चौडी। चिमटो पास रखानी । पद्मासन लगाइ बैठा ॥ बणियां मौनी ध्यानी । पलक स्थिर रखा धरानी ॥ म ॥ ५॥ तेतले दिनकर तेज पसरियो || पुरजन हुवा सावधानी । केताक यक्षने देवालय । आवे दर्शन लेवानी । देख ब्रह्मचारी | कानी ॥ म ॥ ६ ॥ दिव्य रूप संठाण मनोहर । लघुवय ललित सुहानी ॥
पूर्ण जोगी समते स्थिा चित । बैठा निश्चल ध्यानी । दीसे छे ये पूर्ण ज्ञानी ॥ म ॥ ७ ॥ | दंडवत सष्टांग करे केइ । जोगीश्नर बडा जानी ॥ दे आशीर्वाद चिरंजीवो हो। Kलागी मधुरी वानी । मिल्या बहुजन तिहां आनी ॥म ॥ ८ ॥ केइक दःखी दरिद्री
आह । कहे मुज दःख असमानी ॥ कृपा करीने ढःख गमावो । विनंती तस मानी । न्हावे अंगारो सानी ॥म ॥९॥ सुवर्ण रूपाको फेंके नाणो । जोइ मोर सोनानी ॥ ते
लेइने आनंद पावे । कोइके मिले रूपानी । नशीब जिम लेवे मानी ॥ म ॥ १० ॥ आश्चर्य 1पा कहे यह करामाती । दौलत करे वीरानी ॥ निर्भागीने होवे रुपैया ॥ इम कीर्ति |
पसरानी ॥ बात बहु लोकां जानी ॥ म ॥ ११ ॥ निमित प्रकाश करे केह आगे। केइ देवे रोग गमानी ॥ भोजन वस्त्र कछु न लेवे । निर्लोभी गुण खानी ॥ साक्षात् देव समानी | ॥म ॥ १२ ॥ राजाजी पण सुणी परसंस्या । आया कोइ ब्रह्मज्ञानी ॥ भूत भविष्य की| कहे बारता । हम कर आया पैलानी। बात भूपने मन मानी ॥म ॥ १३ ॥ चिंते
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#राय गुणचंद मित्र वामन । कह गया तेही ए जानी ॥ ब्रह्मचारी मुज बात बता सी ।
खण्ड ६ ६ जणाइ जा रानी । ते पण मन हर्षानी ॥ म ॥ १४ ॥ दोनोंइ आया यथाविधी सज । ॐ यक्षालयने म्यानी ॥ तेज पुंज्य जोगी जो हर्षाया । ब्रह्मचारी पहचानी । तजी वाहण | सं तिहां आनी ॥ म ॥ १५॥ द्रढासनी द्रढ ध्यान लगायो । प्रभा नहीं जोवानी ॥ प्रणमी | भूपत पासे बैठा । कर जोडी नरमानी । जाणे हिवे करै मेहरबानी ॥ म ॥ १६ ॥ क्षणन्तर में
अवसर जो मदन । ध्यानने कियो ठिकानी ॥ राजा सन्मुख जोइ वोले । हम तुम मनकी ॐाजानी । तुम्हारी कन्या हरानी ॥ म ॥ १७ ॥ तास पत्तो पूंछनको आये पण मुजसे नहीं छानी ॥ इम सुण राजा आश्चर्य पाया। एतो बडा ब्रह्मज्ञानी । महारा मनकी पहचानी ||
म ॥ १८ ॥ कर जोडी कहे अन्तरयामी । मोटी करी मेहरवानी ॥ कृपा करी ए संशय मिटावो । देवो पत्तो लगानी ॥ किहां बाइ गुणखानी ॥ म ॥ १९॥ घ्राणे हाथ || लगाइ सोचे । बोले सीस हलानी ॥ कोइक देवता हरण करीछे । राखी छे सुखस्थानी । | जन्मांतर प्रेमानी ॥ म ॥ २० ॥ जो मिलवाकी इच्छा होवेतो। लेवू इहां बुलानी ।। मंत्रशक्ती प्रबल मुजपासे । इछित देवे अकृशानी ॥ सुणी राजा विस्मय मानी ॥ म॥ २१ ॥ इत्ती कृपा करोजो श्वामी । तो जाणे दी जिन्दगानी ॥ जन्म भर उपकार न भूलूं। करस्यूं सेव चरनानी ॥ बोले जोगी सुण म्हानी ॥ म ॥ २२ ॥ आज रात का मंत्र जपस्यूं।
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ते आसी दिन ऊगानी ॥ तटनी तटपर जाइ बैठो । जो वो निघा लगानी । जिण दिशथी * आवे पानी ॥ म ॥ २३ ॥ काष्ट स्थंभ एक वहतो आसी । लाल ध्वजा फरकानी ॥ तिण |
माहे से कुँवरी निकलसी । इम कही वणियां ध्यानी ॥ बोलाया बोले न वानी ॥ म ॥ २४ | || कर वंदन राय आणंद धरता । आया निज ठिकानी ॥ परशंस्या अति करे जोगीकी ॥ १९॥ षट खन्ड ढाल षटम्यानी । ऋषि अमोल बखानी । म ॥ २५ ॥ * ॥ दोहा ॥ नृप राणी में में वाणी णी । हा मन अपार ।। धन्य २ ब्रह्मचारी जी । ज्ञानी गुणी सुखकार ॥१॥ मांस धणा बीती गया । प्यारी तनुजा बीजोग ॥ तेहतो अब मिलावसी । ब्रह्मचारी,
संयोग ॥ २ ॥ हाहा धन्य दिवस यह । इम मन अति उमंगाय ॥क्षण जावे वर्षा समी। र खान पान विसराय ॥ ३ ॥ अप्रमादी सुभटने । नदी कंठ बैठाय ॥ सावध रही जोता |
रहो । रक्तध्वज स्थंभ आय ॥ ४ ॥ निकाली तत्क्षण लइ । दीजो बधाइ मुज ॥ दारिद्र | २ दूरा करी । देस्यूं द्रव्य बहु तुज ॥५॥ ॥ ढाल ७ मी ॥ श्री अभिनंदन दुःख निकंदन
॥ यह ॥ हिवे मदनजी निशा पड्याथी । कोइ पास नहीं जोयजी ॥ मंत्र साधन को | मिस्स करीने । पुरमें गुप्त चल्या सोय जी ॥ हिवे ।१॥ सागे भदनको रूप बनाइ । - पद्म खाती घर आयजी ॥ खाती खातणने पगे लागी । पोतानो नाम जणाय जी ॥ हिवे
॥२॥ अचानक मदनने जोइ । दंपती आश्चर्य पायजी ॥ प्रेमें उभराइ गोदे बैठायो ।
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खण्ड६
॥ हर्षका आंशू वहायजी ॥ हिवे ॥ ३ ॥ अहो वच्छ अब्धी किहांथी आया । किहां रह्या
इत्ता कालजी । थारे वियोगे हम दुःख पाया । वुरी मोहणी झालजी ॥ हिवे ॥४॥ गरुड ॐ तो तुज इहाइ रहियो । चोकस कीधी अपार जी ॥ पण तुज पत्तो किहां नहीं पायो । सं तय बैठा चुप धारजी ॥ हिवे ॥ ५॥ भले आया देख मन हुलसाया । तुज थी हमने |
सुखजी ॥ मदन कहे आज धन्य घडी मुज । आप दर्शने गया दुःख जी ॥ हिचे ॥ ६ ॥ राजकन्या मुज विदेश लेगा । तिहांनी रायपुत्री जायजी ॥ ते जोइ लायो अर्ध राज पायो । तेहीज दी परणाय जी ॥ हिवे ॥ ७॥ इत्यादी सह बात सुणाइ । ते आश्चर्य घणां पायजी ॥ यह नर तो सुरसम करामाती ॥ क्या क्या किया उपाय जी ॥ हिवे ॥८॥ उरतस चंपी खाती पयंपे । भाइ तू पुण्यवंत जी महारा घरमें किण तरह रहवे । तूं|
तो होसी महंत जी ॥ हिवे ॥९॥ मदन कहे नाक बाजे ऊंचो । तो भी कपालने नीचे जी 5. आप उपकार उरण नहीं होवू । जो चर्म देवू पग वीचेजी ॥ हिवे ॥१०॥ इम सुणी
दोनों हर्षाया । मदन कहे कर जोडजी । एक काम छे अति जरूरको । ते पूरो मुज कोड Eजी ॥ हिवे ॥ ११ ॥ पद्म कहे वेगी फरमावो । करूं मुज शक्ते काम जी ॥ तुज थी अधिक
अन्य कुण मुज ने ॥ कहो सो पुरूं हाम जी ॥ हिवे ।। १२ । मदन कहे एक स्थंभ वणावो ॥ अष्ट पेहल जस होयजी ।। माहे पोलो नर सुखे रेवे । वायू गमन शोभे मेहलजी॥ हिवे
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॥ १३ ॥ जल मार्ग नावा जिम जावे । मांय जल न भरायजी ॥ माहे रहियों दुःख नहीं पाये ऐतो करो उपायजी ॥ हिवे ॥ १४ पद्म कहे अब्बी मैं वणाएं । देवशक्ति प्रभाव जी ॥ मोटो कष्ट लेइने बणावे ॥ तत्क्षण कृत उपावजी ॥ हिवे ॥ १५॥ पट जडनरी विध बताइ । दीनो मदनने संभलाय जी ॥ इच्छित देखी मदन हर्षाया। मन मानी वस्त पाय जी ॥ हिवे ॥ १६ ॥ खाती खातणरे पाय पणम्या । कहे मिलस्यूं पाछो आय जी ॥ हिवणां | काम उतावल को मुज । शीघ्र चल आगे जायजी ॥ हिवे ॥ १७ ॥ सैन्य पडावने स्थाने | आया । सुन्दरी भणी जगायजी ॥ चमकी ऊठी देख मदनेश्वर । आदर दे हर्षायजी ॥ हिवे ॥ १८ ॥ इण वेला किहां थी पधार्या । मदन कहे सुणो बात जी ॥ सहू उपाय करी हूं * आयो । तुम मावित्र घणा चहातजी ॥ हिवे ॥ १९ ॥ बैठो तुम अब्बी इण खंभ मांही।
देवू मैं नदी में वहायजी । तात तुमारा तीरे बैठा । कहाडी लेसी तुम तांय जी ॥ हिवे ॥ २०॥ पूछे तो कहजो देव हरी मुज । राखी घणी सुख मांय जी ॥ हूं सूती थी जागी इहां आइ। और न जाणूं कायजी ॥ हिवे ॥ २१ ॥ सहू विद्या भली पर समजाइ। दीदी खंभमें भ सोवायजी ॥ कुवरी खुश हुई देख करामात । कुरंब मिलणने उमायजी ॥ हिवे ॥ २२ ॥ खंभ भीडियो सन्धी रहित तब । सरिताने तट आयजी ॥ युक्ते वहाइ दियो ते तत्क्षणे | । अमोल ढाल सात गाया जी ॥ हिवे ॥ २३ ॥ ॐ ॥ दोहा ॥ कह्या प्रमाणे विधी जमी।
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मदन मन हर्षाय ॥ निशा माहें गुप्त ते । श्रीपुर देवले आय ॥ १ ॥ पूर्व तणी पेरे सज्यो। ब्रह्मचारीको रूप ॥ निसीस्या ध्यान आसणे । कोइ न जाणे श्वरूप ॥२॥ ते तले दिन
खंड ६ कर प्रगट्यो । शौच हुई सा लोक ॥ उमाया दर्शन भणी । आइ मिल्या बहू थोक ॥ १ बैठे | ३ ॥ तिमही ध्यानस्थ जोयने । धन्य २ सहु केय ॥ ज्ञानी गुणी तपो धनी । यां समर | अन्य न हेय ॥ ४ ॥ सहश्र गम सरिता तटे । मिलिया जाइ जन ॥ बाइ आवसी वेवती
ब्रह्मचारीने यतन ॥५॥॥ ढाल ८ मी॥ मानव जन्म २ रत्न तेने पायोरे ।। यह ॥ - वुद्धवंता २ मदन कला धारीरे । करे कौतक भारी ॥ आं । स्थंभ जलाशय वेवत चाल्यो।
श्रीपुर ढिंग ते हाल्योरे ॥ ते सुभट निहाल्यो । दोड्यो भूप पास पाल्यो । कहे स्थंभ
आत भाल्यो । सुणी राय मन माल्यो । बुद्ध ॥ १ ॥ पोकार थैयो स्थंभ आयो आयो। २ खुणहुवा र सहू जोइ आश्चर्य पायो जी ॥ शब्द नृपने सुणायो ! राय अति उमायो । तटनी तट | | आयो । रक्त ध्वजा देखायो ॥ वुद्ध ॥ २ ॥ शीघ्र कहाडीने ग्वाहिर लाइ । बाइनो शब्द
सुणाइ जी ॥ मुज किहां फसाइ । यह छे अहो कांइ । निकालो मुज भाइ । देव किहां | गया ॥ बुद्ध ॥ ३ ॥ सुणी शब्द भूप आश्चर्य आण्या । ऋषि वयण सत्य जाण्याजी ॥ जे आगम बखाण्या। देव हरी सत्यमान्या । यक्ती स्थंभ भठाण्या। देखे मेहल थीगण्य । बुद्ध ॥ ४ ॥ युक्ती थी ते स्थंभ उघाडी । बाहिर वाइ कहाडी जी ॥ जोवे नेत्र ते फाडी
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१राजा
में किहां आइ ठाडी । देव गया झाडी । इम आश्चर्य देखाडी ॥ बुद्ध ॥ ५॥ भूधव मधुर र E वयणे बोलाह । इम किम करे गेली बाइरे ॥ भूली गइ हम ताइ । हम तुजने बुलाइ । रही किम घबराइ । भूल देव सघलाइ ॥ बुद्ध ॥ ६॥ मात तात निज पासे जोई। कुँवरी हर्षित होइजी ॥ झट पांयेलागी। अति मोहणी जागी। सब दुःख गया भागी । हुया सहू अनुरागी । वुद्ध ॥ ७॥ राय पूछे बाइ थी उमाइ । किहां रही इत्यादिन जाइजी ॥ तब कन्या चेताइ । देव हरी मुज तांइ । राखी सुख मांह । थो सत्यवंत सहाइ । बुद्ध ॥ ८॥ हूं सूती थी सुख सेज जाइ । फिर मुज खबर न कांहजी । इहां किणविध आइ । किम रही स्थंभ मांइ । सुण आश्चर्य पाइ । ब्रह्मचारी गुण गाइ । बुद्ध ॥९॥ सहू परिवार मिल्यो तिणवारे । वृत्या मंगलाचारेजी ॥ तब नृप प्रकासे चालो ब्रह्मचारीपासे पहला भेटां | हुल्लास । फिर सहू सुखथासे ॥ बुद्ध ॥ १०॥ तिमही मिलीने सहूजन आया । अति उमंगे | भरायाजी ॥ राय कुँवरी तांइ । शीघ्र आगे लाइ । जोगी पांये लगाइ । उपकार दरसाइ ॥ | बुद्ध ॥ ११ ॥ पाय लागता सुन्दरी जोवे । आश्चर्य अति मन होवेजी॥ ये किस्या ब्रह्मचारी | | मुज कंत समारी। भला जोगी बण्यारी । वहवा कळाधारी । बुद्ध ॥१२॥ चुप चाप IR M बैठी ऋषि पासे । क्षण २ जोवे हुल्लासे जी॥राय करी प्रणामो । किया घणा गुण ग्रामो
या बाइ आइ श्वामो । आप कृपा सुख पाम्यो । बुद्ध ॥ १३ ॥ ब्रह्मचारी उतर नहीं देवे ६
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राजा
। तब भुधव इम के जी । श्वामी कृपा कीजे । एक संशय हरी जे । जोगी कहे चुप रीजे।
खण्ड . कहूं ते सुण लीजे || बुद्ध ॥ १४ ॥ तुम पुत्री वर जाणवा ताइ । आइ तुम मन माइजी * ते हूं दरसाएँ । जे ज्ञान थी पावू । जोगी जोडी जणावू । तुम चिंत गमावू ॥ बुद्ध ॥
१५॥ पयठाण पुर पति मदन जमाइ । ते जावे निज घर तांइ जी ॥ तीजे दिन इहां आसी | भ। पूर्व वाग में रहासी । ते इण पति थासी । सुखे जन्म खुटासी ॥ बुद्ध ॥ १६ ॥ सुण ||
राजेश्वर आश्चर्य पाया । वहावा भल भेद बताया जी ॥ आप अंतरयामी । मेटी महारी || खामी । किया गुण सिरनामी । उठ्या जावा निज धामी ॥ बुद्ध ॥ १७॥ वंदन कर सहू | निज घर चाल्या । जोगी गुण संभाल्याजी । राय मार्ग मांइ । जोगीका गुण गाइ । जबर | अपणी पुण्याइ । ऐसा जोगी रह्याइ ॥ बुद्ध ॥ १८ ॥ गुणसुन्दरी जो अति हर्षाइ । शाबास मदनजी तांइजी । करी केवी कलाह । कैसी बात जमाइ । दिया सहूंने भरमाइ । पाइ महाबुद्ध वंताइ । बुद्ध ॥ १९॥ राजा जैसा गया भरमाइ। तो मै किसी गिणतीमें |
आइ जी ॥ बहु मांस भरमांइ । तो भी प्रगट कीधाइ । जबर महारी पुण्वाह । ऐसा पति में पयाइ ॥ बुद्ध ॥ २० ॥ निज २ स्थाने सहू सुखेरेइ । आनंदे दिन गुजरेहजी।
बाट जमाइनी जोवे । ढाल आठमी होवे । अमोल पुण्य थी सोहधे । खन्ड छट्टे मोवै ॥a में बुद्ध ॥ २१ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ पुरमें पसरी वरता । साक्षात् भगवान ॥ ब्रह्मचारीजी आविया
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। त्रिकालका जान ॥ १ ॥ बुलाइ रायपुत्रीने । वर्ष दिवसने माय ॥ वली वताया जमाइने । ते पण रहसी आय ॥ २ ॥ तिणही पुरमाही वसे । धन्ना नामे शाहा ॥ रंभा मंजरी तस | घरे । रहे करी निर्माह ॥ ३॥ तिण पण सुणी ए वारता । मनमें अति उमंगाय ॥ पूछू | | ब्रह्मज्ञानी भणी । देमुज पती बताय ॥ ४॥ अवसर ए उत्तम मिल्यो ॥ जोवू महारा | भाग ॥ इम चिंती अइ तुरत । धन्ना शाहा पग लाग ॥५॥ ॥ ढाल ९ मी ॥ | अम्बिकाके मन्दिरके मांय ॥ यह ॥ पूर्व पुण्य संयोग । अचिंत्यो जोग जमे ॥ ७॥ रंभा | मंजरी आइ धन्ना जी पासे । कर जोडी ने नमे ॥ अचिंत्यो ॥१॥ मैं सुण्यो तात जी XIज्ञानी यहां आया। यक्ष देवालय रमे ॥ अचिं॥२॥ त्रिकालकी बात प्रकाशे । मिलावे ||
| जे मनगमें ॥ अचिं ॥३॥ कृपा करी मुज तिहां ले चालो । ज्यों मुज चिंता शमे ॥ अ॥y #४॥ कहे सेठजी मैं पण सुणियां । चेतावा चायो तुमे ॥ आ ॥५॥ जरूर ते तुज पतिबतासी । जोइ एक पलकमें ॥ अ॥ ६ ॥ इम कही बाइ साथे लेह । आया यक्षालय ठामें |
॥ अ॥७॥ लुल २ वंद्या सन्मुख बैठा ॥ मदन जोइ प्रिय तमें ॥ अ ॥ ८॥ आश्चर्व | | अतिही मन में आया । या इहां किहां आइ खमें ॥ अ॥९॥ महंदपुरे मैं इणने परणी। में खाइमें प्राण जस गमे ॥ अ॥१०॥ ते किम जीवी किम इहां प्रगटी । हर्षित मनमें रमे ॥ ||
अ॥ ११॥ नियमित वक्ते होणो जो होवे । इम चिंती ध्यानने वमे ॥ ऊ ॥ १२॥ प्रणमी
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खण्ड ६
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रंभा मज्जरी बोले । योगी संतोषी तिण समे ॥ अ॥ १३ ॥ धन्नशाहाने कहे ब्रह्मचारी। | इस दुःख जाण्या हमें ॥ अ ॥ १४ ॥ परणीने तज गया पति तुज । ते तो विदेशे भमे ॥ अ ॥ १५ ॥ गुप्त कर्म जाणी इण ताते । न्हाखी दी स्वाइमें ॥ अ ॥ १६ ॥ पति पतो | पूछणने आइ । इम सुण आश्चर्य पमे ॥ अ ॥ १७॥ कहे कन्या श्वामी बात सहू साची । शरमी जोवे भू गमे ॥ अ ॥ १८ ॥ कर जोडी कहे किम ते मिलसी । फरमावो प्रभू हमे में ॥ अ॥ १९॥ कहे योगी पयठाणपुरपति नी । ते परण्या पुत्री गुण धमे ॥ अ ॥ २० ॥ निकलिया ते कुटम्ब थी मिलवा । परस्य आइ इहां थमें ॥ अ ॥ २१॥ यहांके राय की पुत्री परणसी। मदन नाम तुज गमे ॥ अ ॥ २२ ॥ तेहने तूं जाइने मिल जे । फिकर दो | । अब वमे ॥ अ॥ २३ ॥ इम कही ने ध्यानज धरियो । मंजरी दुःख उपसमें ॥ अ॥ २४ ॥
अहो २ ज्ञानी सहू सुख दाता । इम कही वारंवार नमें ॥ अ ॥ २५ ॥ मोटो उपकार || कियो मुज ऊपर । इम कहता गया निज धमें ॥ अ॥ २६ ॥ परस्यूं मुज प्राणेश्वर आसी। रंभा रहे आणंदमें ॥ अ ॥ २७ ॥ अण चिंती मिली पहली परणी । मदन मन हर्षमें ॥
अ॥ २८ ॥ ढाल षट खन्ड नवमे सबूरी । आइ अमोल सहू रमे ॥ अ ॥ २९ ॥ 8 ॥ | दोहा ॥ मदन बुद्ध परपंचथी । जमायो सहु काम ॥ हिवे ते सह पूरवा । जागी | मनमें हाम ॥ १ ॥ चमत्कार सहू ए लखी । आश्चर्य पाया अपार ॥ नर नारी मिलिया
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६ घणी । भरायो दरबार ॥२॥ ब्रह्मचारी कहे सुखी रहो । हम जावां निज धाम ॥ # कहतांही गगने उड्या । सह रह्या आश्चर्य पाम ॥ ३॥ देव वैकुंट सिधा या ।।
इम करे सहू पुकार ॥ गुण उचरंत घरे गया । पसरी बात ते वार ॥ ४॥ उतर्या मदन में #जी वन विषे । मूल स्वरूप बणाय ॥ आया निज शैन्या विषे । जो सहूजन हर्षाय ॥५॥
8 ॥ ढाल १० मी ॥ कौन दिशासे आये पवन सुत ॥ यह ॥ देखी सब सुख पाये हो | | मदन नृप देखी० ॥ अ॥ शैन्य सजाइ चले मदनजी । जय नगारे घुराय ॥ एक मुक्काम | करी रस्ते में । श्रीपुरके ढिंग आये हो ॥ म ॥ १ ॥ पूर्वके बाग मांही उतरिया । रखवाले | नृप वैठाये ॥ते दौड आये दीनी वधाइ । पयठाण पुरके केवाये हो ॥ म ॥२॥ ते आये | बहू ठाट पारसे । सुणी भूप हर्षाये ॥ करी सजाइ शैन्या सघली । पुर रंग, | ढंग सोभाये हो ॥ म ॥ २ ॥ चाल्या बधावा नृपादी बहू । पुर जन अधिक
उमाये ॥ देखां कैसा राय जमाइ । जे ब्रह्मचारी बताये हो ॥ म ॥ ४ ॥ सहभागम | आमिल्या बागमें । भूपती मदन देखाये ॥ आनंद चउ नेत्र प्रफुलित । मदन आसण
तज धाये हो ॥ म ॥५॥ दोनों मिलिया नमीने प्रणम्या । हर्षथी हृदय भराये ॥ कहे | | नृप आप दर्शन चहातो । ते आज पुण्यसे देखाये हो ॥ म ॥६॥ पावण चारी कीजे हम घर । येहीज हम मन चहाये ॥ मदन कहे आप हुकम में हाजर । मधुर वचन मोह
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म.श्रे.
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ONS
वाये हो | म ॥ ७ ॥ राय मदन दोनों एकण गजवर । रूप गुणे सोभाये ॥ वंदी जन | वरुदावली बोले । छत्र धर चमर दुलाये हो ॥ म ॥ ८ ॥ मध्यपुरीमें होइ चाले । पूरजन मोतीये बधाये ॥ छत्र झरोके गोरे गौरडी । पेखण छत छवाये हो ॥ ९ ॥ अमोघ धारा दान देवता । जाचक दुःख गमाये || बहू ठाटथी इम परवरिया । राजभवन में आये हो ॥ म ॥ १० ॥ सुखासन बैठाइ सहने । चारों अहार जिमाये ॥ लेह तंबोल बैठा सभा में । |प्रेमकी वांतां बणाये ॥ म ॥ ११ ॥ मांड कही ब्रह्मचारीकी कहानी । मदन सुणी विस्माये । अहो ऐसा ज्ञानी धन्य विश्व में । मदन मुखे फरमाये हो ॥ म ॥ १२ ॥ राय कहे हम कन्या परणो । जे तन मनतुमें चाये । सत्पुरुष के बचनको पालो । ब्रह्म वयण निफल न जाय हो | म ॥ १३ ॥ मदन कहे आप राजेश्वर हो । क्या मुज देख मोवाये || मैं नहीं उपना राज के कुलमें। वाणिक जात कहाये हो ॥ म ॥ १४ ॥ हम घर तुम पुत्री किम सोभे । किम सुखे काल गमाये ॥ जोगी जोडी देखी देवो । ज्यो लोकिक सोभाये हो | म ॥ १५ ॥ सुणी राय आश्चर्य अति पाया । येही निर्लोभी पाये || नहीं | मिले जोतां इसा जगमें । ब्रह्मऋषि दरशाये हो | म ॥ १६ । राय कहे पठाण पुरपतिने । जिस गुणसे तुम भाये ॥ वैसेही हम मन लोभाया। नहीं जाये छिटकाये हो || म ॥ १७ ॥ मदन कहे आप आगृह अतीतो । ना नहीं मुज थी कहवाये ॥ इम सुणी
खण्ड ६
१ पुरुष स्त्री
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१ बचन
Kish
सहू जन सुख पाया । मौत्सव अधिक मंडाये हो | म ॥ १८ ॥ शुभ लग्ने गुण सुन्दरी बाइ । मदन भणी परणाये ॥ डायचो घणो दियो भूपती । द्रव्य खूब खरचाये हो । म ॥ १९ ॥ अच्छो महल दियो रहणेंको। वहां सब सुख जमाये ॥ पद्म खातीको लिया बुलाइ | वो भी देख विस्माये हों ॥ म ॥ २० ॥ पंच इन्द्रीके सुख भोगवे । सुखें २ इहां रहाये || ढाल दशमी खन्ड छट्टे की । ऋषि अमोलिक गाये हो | म ॥ २९ ते ॥ * ॥ दोहा ॥ धन्नाशाहा सुणी वारता । परण्या राजकुँवार ॥ रंभा मंज्जरीने कह्यो । सुण हर्षो अपार ॥ १ ॥ शरमी कर जोडी भणे । आप ले चालो साथ || कोइ युक्ती योजी करी मिलावो मुज नाथ || २ || घन्ना कहे चालो हिवे । करस्युं शक्ते सहाय ॥ अंगीकार करसी पती । कही ब्रह्मचारी वाये ॥ ३ ॥ अंजन मंजन कर सज्या । तन सोले श्रृंगार ॥ धन्नाशाहा साधे चाली । शिविका हुई सवार ॥ ४ ॥ खास मेहल मदन तणो । आयाति | चाल || गुणसुन्दरी वृतांत सुण । अचंभी हुइ खुशाल ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ११ मी ॥ छे संवर का ॥ श्रीवीर जिनेश्वर गौतमने कहे ॥ यह ॥ मदन बुलायाजी, शीघ्रते आविया ॥ देखी त्रियानेजी, आश्चर्य पाविया ॥ चाल ॥ पाइ आश्चर्य पूछे सेठसे । किणरी नार किम लाविया ॥ कारण कांइ सत्य भाखो । किस्यो तुम मन चाविया ॥ सेठ कहे ए आप पत्नी । अन्य चैमन आणिये ॥ निर्दोष बाला सरण दीजे । ज्यूनो प्रेम पेछाणिये ॥ १ ॥ तब ते
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म.श्रे. ११२
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रंभाजी, कर जोडी नमी ॥ हूं आप दासी जी, भूलो किम गमी ॥ चाल ॥ गमी किम भूलो छो श्वामी । गरुढ चड उड आविया || मेहेन्द्रपुरके मेहल मांही । गंधर्व लग्न लगावि या || आप वियोगने कोप स्वजन । प्राण हरण खाइ पडी । तुम पुण्ये आयुवल जोगे । आज हुई छे धन्य घडी ॥ २ ॥ मदन कहे तब, बात साची कही ॥ महेन्द्रपुरे में, गुप्त परण्यो सही ॥ चाल ॥ सही परण्यो राजपुत्री । दूजी निशा तिहां गयो । सुणी डूबी खाइ में। जोतां पतो मैं न लह्यो । अथाग जले किम ऊगरे । ए आश्चर्य अति मन माहेरे ॥ किम हुवे तूं रंभा मंज्जरी । ओलख बचन तूं थायरे ॥ ३ ॥ कांइ प्रयोगे तूं, जाणी मुज बातडी ॥ आवी इहां तूं, मोह फंदे पडी ॥ चाल ॥ मोह फंद मुज न्हाख्या चावे | परस्त्री त्याग मुज भणी ॥ वृत भंगे नहीं म्हारो । किम वरूं हूं तुज भणी ॥ तिण थी जा तुज स्थानके । इण छल में हूं आस्यूं नहीं । इम वयण सुण कंथना । रंभा नेण श्रं वही ४ ॥ सत्य बचन नाथ, आप छो सतवंता ॥ हूं निश्चय नहीं, छली लेवूं अंता ॥ चाल ॥ लेखूं अंत हूं छली केहनो । इसी विसी नहीं जाणियें || वैम आप को दूर कहूं विती कहाणीये ॥ जिम उगरी इण शेहर आइ । पाइ प्यारो प्राणेश्वर ॥ धर्म तणी सील महिमां । आप आगे उच्चरूं ॥ ५ ॥ आप गयाथी, मैं निद्रावस भइ ॥ दिन कर चढियों, न शुद्ध तेहनी लही ॥ चाल ॥ लही शुद्धी धाय माता । लक्षण देखी माहेरा ||
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करवा ।
खंड ६
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लाइ बुलाइ मात तात ने । देखाया ते सहू खरा ॥ रोस भराणी राणी राणा । ठोकरी जगाइ मुज भणी ॥ नाम ठाम तव पूंछियो । दीवी धमकी अति घणी ॥ ६॥ नहीं कहता | गुज । मारण आविया ॥ मै कर जोडीने, तब दर्शाविया ॥ चाल ॥ दरसाविया नहीं |
मारियो । हूं पडी खाइ पोतो मरूं ॥ अजोग कर्म ए माहेरा । तेहथी आत्म हत्या करूं ॥ PF इम कही पडता मेहल पाछल । मंत्र नवकार मैं धाइयो ॥ पडी जलधी पुण्य जोगो ।
किंचित दुःख न पाइयो ॥ ७॥ अधर उडाइजी, सुर मुज लेगयो॥ धरी अटवीमें, जिहां में भी घर तस रह्यो ॥ चाल रह्यो तेहने घर मुज कहे । बेहन इहां सुख थी रहो
॥ सह भला थासी थायरा । न चिंता थी तन दहो ॥ मान वयण रही विपिन में । प्रफलादि भजण करी ॥ पण मनुष्य विन नहीं आसींगे। गेहली परे हं रही फिरी र
॥ ८॥ एक दिवस त्यां, सथवारो नरतणो ॥ आतो जोइ जी, मन हो घणो ॥ चाल ॥ घणो हो सार्थ पति तब । वनमें मुज ने जोहने ॥ पास आइ पूछे तूं कुण, साच कहे संख खोइने ॥ वनदेवीके विद्याधरी । किण इच्छा यहां फिर रही । इम सुणी धैर्य देइ तस । कल्पित बात महारी कही ॥९॥हूं अभागण, भूली बाटडी । इहां | भटकी रही, या दुःख की घडी ॥ चाल ॥ दुःख घडी थी छोडाइने । तुम मेलो कोइ | शुभ स्थानके ॥ जिम मिले मुज सज्जना । सुखी करो दया आवके ॥ इम सुणी ते
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१ सुखावे
में हर्षाया। कहे महारे साथे चालिये ॥ हम विदेशी फिरां बहूला । देश विदेश निहाली ए में
खण्ड ६ K॥ १० ॥ तिण साथे हूं, चाली खुशी हुइ ॥ सारथ पतिमुज, राखे मुख मइ ॥ चाल ॥
राखे मुख में रूपे रीजी। एकांते एकदा कहे ॥ विरह दुःख क्यों रहे व्याकुल । कोमल | तनने क्यों देहे ॥ करूं पत्नी माहेरी । खा माल तन सज सुखे रहो ॥ सुणी कंपी आत्मा, किम कीजिये एहथी द्रोहो ॥ ११ ॥ काम अन्ध ए, मानसी नहीं कयो ॥ रखे बलत्कारे' भंगे बृत गह्यो । चाल ॥ गृह्यो वृतज भंगे तेहथी । मरण श्रेय छे मूज भणी ॥ इम चिंती मिशामें निकली । तब गृही तस्कार दुःख अणी ॥ लेगया झाडने पहाड में। में जोइ ने तब थर हरी ॥ बचीखाड थी पडी कूवे । किसी कीजे इहां चरी ॥ १२ ॥ जातां पल्लीये, नारी तस लडी॥ किणने लायोरे, कहाड तूं इण घडी ॥ चाल ॥ इण घडी इण ने 5
काहाड बाहिर । नहीं तो मरूं कूवे पडी ॥ इम तुणी ते ले चल्यो मुज । क्रोधनेवश बड | में बड़ी ॥ आवियो इण ग्राममें । मुज सिरपे खंड पुलो धरी ॥ मध्य वजारे नर वृदे । २घांसका R बेंचवा उभी करी ॥ १३ ॥ इणही पुर रहे अनंगी वेसिया ॥ धन घरमें घणो रूप विशौषिया ॥ चाल ॥ वैशीयाते आइ बजारे । अवलोकन महारो करी ॥ तत्क्षण आ ढूंकडी । मोल पूछे हर्ष भरी सहश्र सोनैया कह्या तिण । ढगलो तिहां तबही कीया , प्रेमे बोलाइ मुज भणी । चलो अपणे घर बीया ॥ १४ ॥ मैं पूछो तस, कुल थारो कहो ॥
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वली तुम आचार, धर्म किस्यो बहो ॥ चाल ॥ बहो धर्म प्रकाशियो तब तेकहे उत्तम || हमे ॥ अमर सौभाग्य, श्रृंगार नित्य नव । भोग अभिनव नर रमे ॥ मोटा पुण्य छ ।
| थायरा, जेहथी हमारे कर चडी ॥ सुणी वयण इम तेहना । हूंतो सोग सागरच में पडी ॥ १५ ॥ नहीं आयूं हूं, घर कदी थायरे ॥ अति निंदक कर्म, न चाहिये माहेरे ॥
॥ चाल ॥ माहारे ए सुख नाहीं चहिये । ए थी तो मरणो भलो ॥ इम कही हूं बैठी रोती * कहे बेगी चलो ॥ कर धरी तब खेंची मुजने । मर्या पशु ज्यूं बजारमें ॥ जोवो कर्म | विटंबणा । मैं इम पडी दुःख धारमें ॥ १६ ॥ मैं मन समर्यो जी, तब नवकारने ॥ जो निर्मळ शील, तो करो सारने ॥ चाल ॥ सार करो सासण सूरी । इम चिंतवतां सहायक
भया ॥ अनेक सांप पिच्छ्हुइ, मुज चौपखे घेरी रह्या ॥ मरण धारी डरी नहीं मैं। वैस्या * सहू अलगी रही ॥ जोकर फरयो माहारो ॥ तस सांप विच्छू डंक दह ॥ १७ ॥ ब्यापी K झणणाट, सहु वैश्या तने ॥ जीव ले भागी आश्चर्य धरी मने ॥ चाल ॥ आश्चर्य पा लोक |
जो तमाशो। हांसी करे तिणरी घणी ॥ तेतले ए सेठ आइ । शुद्धी पूछी हमतणी ॥ वाह ||
चल घर माहेरे । हूं राखस्यूं बेटी करी ॥ जैन धर्मी श्रावक डूं हूं । करस्यूं भक्ती सक्ते में *सरी ॥ १८ ॥ मैं सुण हर्षी जी। यां साथे थह ॥ करूं धर्म पुण्य, मै इण घरमें रही ॥
चाल ॥ रही घर में हूं तो मुखथी। सहाज दियो मुजने घणो ॥ सर्व तरह नो मुख पाइ ।।
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म. श्रे.
| एक फिकर रह्यो आपनो । तेतले पुण्य जोग इहां। ब्रह्मचारी एक आविया । अनुभव | ज्ञान तणे प्रसादे । आप भणी बताविया ॥ १९ ॥ पयठाण पुरपत, जमाइ आवसो॥ इहां ।
खण्ड ६ | राजेश्वर, धूया परणा वसी ॥ चाल ॥ परणसी तेही पती थारा । नाम पण बतावियो । | निश्चय आयो मुज मन में । मन घणो हर्षावियो ॥ मार्ग मेह पर जोवती । आज नीठ | | दर्शन पाविया ॥ भूली सहू दुःख सरण आइ । सहू मंगल वरताविया ॥२०॥ ए कही है।
साहीबा, बीती मुज सहू ॥ झूट न समजोजी, सोगन हं लहूं ॥ चाल ॥ हूं लहूं सोगन | निश्चय काजे । पूछो सेठजी तातने ॥ जाण आपकी लाज राखो। संतोषो मुज गातने ॥ ढाल एक दश खन्ड छट्टे । अमोल ऋषि इण पर, कहे ॥ रंभा मज्जरी को चरित्र । सुणी मदन मन गैह गहे ॥ २१ ॥ ।। दोहा । मदन कहे अहो भामणी । साची थाणी बात ॥ ११४ सुखे रहो इण घर विषे । अर्को सुख निज गात ॥ १॥ चोरीथी परणी तुमें । भोग युक्त | नहीं मुज ॥ तुम पिता ने सन्मुखे । पुनः परण स्यूं तुज ॥ २ ॥ प्रेमला कहे ए| | किम बणे । शरम भर्यो ए काम ।। मदन कहे फिकर तजो। रीते पूरीस हुं हाम ॥३॥ गुण सुन्दरी निज कथन कही । संतोष्यो तस मन ॥ मिली रहे दोनों स्त्रिया । सुखथी|| काल गमन ॥ ४ ॥ धन्नासहा संतोष ने । पहोंचाया तस घेर ॥ आगल कार्य साधवा । उपजी मन में लेहर ॥ ५॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ सोहन सिंह सण रेवती ॥ यह ॥ एकदा
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मदन जी चिंतवे । हूं थेठो इहां मोजरे माय तो॥ काम घणो अजु माहेरे । न चिंता रयां ते सिद्ध किम थाय तो ॥ ए ॥१॥ इहां थी आगे हिवे चालवो । इम चिंतवी संदरीने चेताय तो॥ तुम सुखमें रहजो इहां ॥ हूं आगे जावू करवा उपाय तो ॥ ए॥ २ ॥ सुन्दरी कहे हुं संग चलूं ॥ जोवस्युं तुम किसी करो करामात तो ॥ मदन कहे अवसर नहीं। शाणा हुइने मानो जरा बात तो ॥ ए॥३॥ किण रीते काम सिद्ध हुये । पहलांथी ते नहीं कहवाय तो ॥ सर्व इच्छित हुयां माहेरा ॥ देस्युं वीगते |
सहु संभलाय तों ॥ ए॥४॥ इम बहुविध समजायने । आविया ते भूधवने पास तो॥ K आदर दियो घणो रायजी ॥ मधुर वचन पूछे कीजिये आस तो ॥ए ॥५॥ हुकम प्रमाणे
हम करां। आपथी नहीं जरा दूसरी बात तो ॥ मदन कहे कृपा आपकी । आप र प्रशाद सहू हुवे मुज चहात तो॥ ए॥६॥ इहां थी आगे जावा तणी । इच्छा म्हारी
थइ नृपाल तो॥ आज्ञा दीजिये मुज भणी । मिलवो छे मुज फुटंब ने हाल तो M॥ ए॥७॥ राय आश्चर्य धरी कहे । काइ दुःखथी आयो देश याद तो ॥ ते शीघ्र
फरमाइये । निश्चयमें मेटस्या विखवाद तो॥ ए॥ ८॥ मदन कहे किंचित दुःख नहीं । काम घणा मुज करणा जरूर तों ॥ ते करी पाछो आवस्युं । हाजर छंहूं हुकम हजूर तो ॥॥९॥ राय कहे सुख जिम करो। फोज लेजावो लागे जित्ती साथ तो ॥ पहला की
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म. श्रे.
में ने इहां तणी । सज हुई शैन्य हुकम हुयां नाथ तो ॥ ए॥१०॥ आया खाती खातण में
कने । प्रणमी कहे हूं जावूडू देशतो। आप रहजो इहां सुखमें । पाछो आस्यूं काम * हुयां असेस तो ॥ ए ॥ ११॥ इमं सहूने संतोषने । तैयारी करी मदन तत्क्षण तो ॥ रंभा मंज्जरी साथे ग्रही । और सहु जमायो सरतन तो ॥ ए॥१२॥ शुभ मुहूर्ते चालिया। राजा प्रजा घणा पहोंचावा जाय तो॥ दर्शन वेगा दीजिये। सीम लगण पहोंचाइ फिर आय तो॥ए ॥ १३ ॥ सुखे मुकाम करता थका । मदनजी आया महेन्द्र | पुर पास तो ॥ साता कारी स्थानके । सहू रह्या कार्य युक्ती विमास तो ॥ ए ॥ १४॥ | दूत बलिष्ट कला निपुण । सजवाइ कहे जावो भूप पास तो ॥ कहजो जमाइ161
आविया । मदन नरेश बधावो सू आस तो॥ ए ॥ १५ ॥ दूत अत साजे सजी । चाल्यो । होह मध्य वजार तो। लोक देखी विस्मित हुया । ए किण का सुभट आयो जुजार तो॥ |ए ॥ १६ ॥ राज सभा नृप सन्मुखे । नमी कहे जय विजय बघाय तो॥ मदन नरेश्वर | आविया । जे आपका जवाइ कहवाय तो ॥ ए॥ १७ ॥ अति आश्चर्य पाया राज वी ।
पुत्री बिना किम जवाह होय तो ॥ एकुण किहांथी आविया ॥ भूली गया परण्यो | व ठिकाणोय तो॥५॥१८॥ दूत थी कहे जाइ कहो । इहां नहीं हुयो आपको व्यावतो ,
पुत्री नहीं कोई माहेरे ॥ विना कारण किम जगे उत्साहव तो ॥ ९ ॥ १९॥ मूलीने भूप
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माविया । पार करी पधारो तिण ठाम तो॥ दूत आयो मदन कने । पीतक पात कीवी || तमाम तो॥ ए॥ २०॥ इसिया मदन कयो नार ने ॥ ते कहे साचो तास विचार तो॥ अमोल बाल पारमी कही। मदन कहे हिवे करूं उपचार तो ॥५॥२१॥७॥ दोहा ॥ पुनरपि सज कियो दूतने । कहे खुल्ला समाचार ॥ तुम भूलो पुत्री रखण। हम नहीं भूल्या लगार ॥१॥रंभा मंजरी पुत्री तुम ॥ परण्या रात जेह ॥ मदनतेहपेछाणिये। आया लेवा तेह॥२॥सख संम्पपीसोंपिये। तो तुम रहसी मान॥ नहीं तो सज हो आइये । रणमां करां संग्राम ॥२॥ सीस चाह पचन ते । दूत गयो फिर चाल ॥ मदन कह्या तिमही सहू। हाल कशा पाला॥चकित हुइ सारी सभा । मुणियां दूत पचन ॥ पात संभारी पाछली। खिन थयो तब मन ॥ ५ ॥ ॥ हाल १३ मी ॥
श्री जिनवर गणधर मुनीवरने कहेरे ॥ यह ॥ उपकार गुणवंतां मुले नहीरे ॥ ॥ फेडे , 1 जब अक्सर मायरे ॥ दोनोरे भवे सुख ते लहेरे । सगुणाने येही मुहायरे ॥ १॥ * णी पचन हम दूतकारे । कोपातुर हुया भूपालरे ॥ बुलावो दुष्ट तलपर मणीरे । निमक
| हरामी डालरे । उ ॥२॥ भट सट लाया कोतवाउनेरे। रोसे बचन कहे परे ॥ तूं में में अपराधी माहेरोरे । भाखी जे साच स्वरूपरे । उ ॥३॥ जिण मुज पुत्री भृष्ठ करीरे।
ते चोर मारण काजरे ॥ मै दियो यो एक दिन तुजेरे । ते होइ बायो राजरे ॥ उ ॥ ४ ॥
常常识
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म.श्रे.
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LON
थें जीवतो राख्यो तेहनेरे । तेहनो थयो शत्रूरूपरे ॥ मांगे छे कन्या माहरीरे । तेतो पडी मरी कूपरे ॥ उ ॥ ५ ॥ हिवे किहां थी आपीयेरे । लडाइ किम करायरे ॥ इण संकट में मै पड्योरे । कीजिये कैसो उपायरे ॥ उ । ६ । किम जीवतो छोड्यो तेहनेरे ! किसी खाइयें। लांचरे ॥ पाप प्रगट्या अब थायरारे । कहे जिम होवे तिम सांचरे ॥ उ ॥ ७ ॥ इत्यादी कोटवालनेरे नृप किया बचन करूररे ॥ साचा मनमें जाणियांरे । सोच पडयो भरपूररे ॥ उ ॥ ८ ॥ चिंते ऊंडो मन विषेरे । किम कियो इण अन्यायरे ॥ बचन दियो थो मुज भणीरे । पाछोन आस्यूं इण ठायरे ॥ उ ॥ ९ ॥ धर्म ठगाइ इण करीरे । दिसतो थो गुणवंतरे ॥ मरणो मुजने दोनो पखेरे। तो पण कहाडू तंतरे ॥ उ ॥ १० ॥ नरमाह कहे भूपधीरे | गुन्हो कीजिये माफरे । कीधी भूलमें मोटकीरे । परकास्यों सह साफरे ॥ उ. ॥ ११ ॥ हूं ले जातो मारवारे । विच मिलिया मुनीरायरे ॥ उपदेश देइ छुडावियोरे | श्रावक करी तिण ठायरे ॥ उ ॥ १२ ॥ बचन बदल इहां आवियोरे । हूं जावू तिणरे पासरे ॥ समजाइने आवस्यूंरे । मानो इत्ती आरदासरे ॥ उ ॥ १३ ॥ राय कहे होतब हुयोरे । हिवे पण कीजे उपाय || समाधान होवे तो भलोरे । नहीं तो फिर देखी जायरे ॥ उ ॥ १४ ॥ हुकम सीस चडायनेरे । तेंहीज दूत ने साथरे ॥ मदन भेटवा चालियारे । किम भयो एनर नाथ रे ॥ उ || १५ || दल प्रबल घणो पेखियोरे । पूछी सह दूत थी वातरे ॥ मदन पक्षे घा
खण्ड
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KOTONS
रजियोरे । तलवर आश्चर्य पातरे ॥ उ ॥ १६ ॥ अहो २ पुण्य एक नर तणारे । प्रगटता कीसी वाररे ॥ राहीज एकदा मुज करेरे ॥ थह चड्यो निराधाररे ॥ उ ॥ १७ ॥ फोजकी हद्दके बाहीरेरे । तलवर उभो राखरे ॥ रजा लेह लेइ जावस्यूरे । दृत्त जा मदनने भाखरे ॥ उ ॥ १८ ॥ श्वामी समाचार केववारे । आया कोतवाल लाररे ॥ हद्द बाहिर उभा कर्यारे । कहो तो लावू इण वाररे ॥ उ ।। १९ ।। मदन दौडी सामे आवियारे । लुली २ लाग्या पायरे । जीवित दान दाता तुमेरे ॥ दर्श हर्ष उपजायरे ॥ उ ॥ २० ॥ कोटवाल पावां लगेरे । | मदन लागण नहीं देयरे । सुख स्थान जाइ बैठियारे । अमोल तेरे ढाल केयरे ॥ उ ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ नरमाइ कोतबाल कहे । आप महापुण्यवंत ॥ किंचित गुण बहुकर लख्यो | तिण थी हुवा महंत ॥ १ ॥ माठो नहीं लगाडियो । पण प्रकास्युं गुज ॥ बचन न पाल्यो रंच तुम ॥ एही आश्चर्य मुज ॥ २ ॥ ना कही इहां आवण तणी । पधारी छेडया राज ॥ आपतो दोइ समर्थ छो । म्हारो बिचे अकाज || ३ || राणी मांगी आप की । ते किणविध अपाय || मर्या न होवे जीवता । कीजे क्रोड उपाय ॥ ४ ॥ सरणे आयो आपके । लज्जा राखो मोय || आप कहो सोही करूं । अण हूं तो न होय ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल १४ मी ॥ तूं तो साची श्राविका ॥ यह ॥ भय नहीं उत्तम मित्र थी । कुशल न दुष्ट थी होय हो । साजन ॥ परिक्षा होवे इण तणी । जे वक्ते बल जोय हो ॥ साजन ॥ भ ॥ १ ॥
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म.श्रे.
खण्ड६
मदन कहे नरमाइने । जो तुमने दुःख होय हो ॥ सा तो मैं जीवित निष्फल गिगुं। निश्चय कीजे सोय हो ॥ सा ॥ २ ॥ कौण समर्थ छ विश्वमें । थाणो करवा | अकाज हो ॥ सा ॥ धैर्य धरो मनने विषे । सत्यथी मिले सुख साज हो ॥ सा ॥ भा ॥ ३॥ मैतो बचन पलट्यो नहीं । छे मुज पूरो ध्यान हो ॥ सा ॥ बिन अवसर आस्युं || नहीं ॥ एहथी महारी जवान ॥ सा ॥ भा ॥ ४॥ ए अवसर आवा तणो । जाणी आयो || | चलाय हो ॥ सा ॥ अण हूंती बात करूं नहीं । निश्चय धरो मन माय हो ॥ सा ॥ भा ॥ ५॥ मरी किम कहो तेहने । जे जग जीता जोय हो ॥ सा ॥ मार्या तो मरे नहीं । जस
आयु प्रबल होय हो ॥ सा ॥ भा ।। ६ ॥ आश्चर्य धर तलवर कहे । इम प्रकाशो केम हो | #॥ सा ॥ जे न्हांखी खाइ विषे । तेहने किम रहे खेम हो ॥ सा ॥ भा ॥७॥ मदन कहे ||
डेरा विषे । जाइ जोवो नेण हो ॥ सा ॥ जो मिले तुमे पुत्री राजरी । तो मान जो सत्य || वेण हो ॥ सा ॥ भा॥ ८ ॥ तलवर अति आश्चर्य धरी । जाइ तम्बू में जोय हो ॥ सा ॥
ओलखी राज कुँवरी भणी । हिवडे हर्षित होय हो । सा ॥ भा ॥ ९॥ प्रणमी कहे बाइ | #साब जी । खुशी छे आप तन हो ॥ सा ॥ निज कोटवालने औलखी । शरमाइ ते मन हो
॥ सा ॥ भा ॥ १० ॥ तलवर कहे धन्य आपने । छो जी महाबुद्धिवंत हो ॥ सा ॥ पोतेही | परिक्षा करी । किया कंत पुण्यवंत हो ॥ सा ॥ भा ॥ ११ ॥ एतो रीत अनादिकी । पती।
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कीजे परिक्षा हो ॥ सा ॥ सवरा मंडपने विषे । वरे कन्या बुद्ध जो दक्ष हो ॥ सा ॥ भ ॥ १२॥हूं आयो गुण सांभली । दरशण करवा काम हो ॥ सा ॥ देखी प्रताप ए आप को। | पाम्यो घणो आराम ॥ सा ॥ भ ॥ १३ ॥ राय जी आगे केवस्युं । ते पण पावसी सुख हो
| १ गये ॥ सा ॥ आज भलो दिन हम तणो । पास्या सहू दुःख हो ॥ सा ॥ भ ॥१४॥ कृपा | करी संदेह हरो । पडी खाइरे माय हो ॥ सा ॥ ते उपसर्गे किम उवर्या । आश्चर्य मुजने | सवाय हो ॥ सा ॥ भ ॥ १५ ॥ रंभा कहे नवकार थी। कीधी सुर मुज सार हो ॥ सा ॥ उडाह मूकी वन विषे चोर ले गया ते वार हो ॥ सा ॥ भ ॥ १६ ॥ तिण बेची बजारमें ।। तब राखी एक सेठ हो ॥ सा ॥ तिहां मिल्या बालेश्वरं ॥ आण पुगाइ ठेट हो ॥ सा ॥ भर ॥ १८ ॥ विपता सुणी बाइ तणी ॥ नेणा छूटी जलधार हो ॥ सा ॥ धन्य २ सती छे तुज भणी। सत्य थी पड्या सहू पार हो ॥ सा ॥ भ ॥ १९॥ हिवे जाइ हूं रायजी कने । बधाइ एह हो ॥ सा ॥ सब परिवारे बधाववा । सामा आसी तेह हो ॥ सा ॥ भ ॥ २०॥ | नमन करीने चालिया । पुर भणी कोटवाल हो ॥ सा ॥ अमोल पुण्यवंत मदनकी । हुई | | चौदमी ढाल हो ॥ सा ॥ भ ॥ २१ ॥ दोहा ॥ तव तिण महेन्द्रपुरी विषे । राज सभा ने मझार ॥ राजा परजा सुस्त हो। चिंता करे अपार ॥ १॥ आचिंत्य उपसर्ग आवियो।। कियो तलवर अन्याय ॥ शत्रू छोड्यो जीवतो। तिणरा फल प्रगटाय ॥२॥ इत्यादी केह
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कल्पना । केहक हृदय उठंत ॥ तेतले हर्षित वदनथी । कोटवाल आवंत ॥ ३॥ प्रणमी
खण्ड ६ लुली भूपने । नृप कहे अकुलाय ॥ कहे पहला वीतक कथा । किम समाधान थाय ॥ ४॥
कर जोडी तलवर कहे । निश्चित रहिये चित ॥ नहीं कोई शत्रू आपना । मदन छे साचा, रमित ॥५॥8॥ ढाल १५ मी॥ जंबू कयो मान लेरे जाया ॥ यह ॥ गजेश्वर मांभ
श्वामी । नर पुण्य अचिंत्य होय ॥ ७॥ पुरुष भाग्प अचिंत छे श्वामी । जोवो प्रत्यक्ष में आप ॥ जे नर मारणने ग्रह्यो । तेहना प्रगट्या पुण्य अमाप ॥ रा॥१॥ केइ राज वशमें र हुवा । अने विद्याशक्ति अनेक ॥ दल प्रबल छ तेहने । कुण मागी सके तस टेक ॥ रा॥ २॥ पुण्यवंत क्रोड उपायसे श्वामी । मार्या कधी नहीं जाय ॥ पुण्यवंतने पुण्यवंत मिले ।
ते पण जोवो इण ठाय ॥रा ॥ ३ ॥ मैं मिल्यो मदन रायने । ते लाग्या महारे पाय ॥ ११८ ॐ ऋद्धि ठाकुराइ घणी । पण अभिमान नहीं देखाय ॥रा ॥ ४॥ उपकार तो अति मानीयो ।
जे दीधो जीवित दान ॥ बरोबरी हम बेठीया । और कियो घणो सन्मान ॥रा ॥५॥ आश्चर्य ए छे मोट को । 'बाई' डाली खाइ माय॥ ते तो मदन जी साथ छे । मने निजरेर दीनी बताय ॥रा ॥ ६॥ मैं बात पूंछी बाइने । तिण कीधा वीतक हाल ॥ ते तिणही | सभा विषे । विस्तारी कह्या सवाल ॥ रा ॥ ७॥ सुणी सहू सुख पाविया । करे धन्य २ मुख थी उचार ॥ हाह' कर्म गति कहेवी । और शील बडो सुखकार ॥रा ॥ ८॥ नृप
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कहे शीघ्र चालिये । बधाइ लावां पुरमांय ॥ अचिंत्य ए मौको मिल्यो । पूरां सहू मनरा |चाव ॥ ॥ ९ ॥ मेहलां में जाइ भूपतीजी । कही राणीने बात || रंभा मंज्जरी आइ छे । | जवाइजी के साथ || रा ॥ १० ॥ हँसी समजी राणी कहे । अब क्यों करो गयो दुःख याद ॥ पुण्य विना कम भोगिये । बाह जवाईका अहलाद ॥ रा ॥ ११ ॥ वीतक बात राजा कहीजी | तब आइ परतीत । हर्ष पामी अति घणो । जागी पूर्बली प्रीत ॥ रा ॥ १२ ॥ चतुरंगी शैन्या सजी । राय राणी हुवा तैयार ॥ उमंगे सह संग चलीजी । आया ग्रामके बार ॥ रा ॥ १३ ॥ फोज आवंती देखने जी । चमक्या मदन का लोक ॥ चेताया मदन भणी जी । आवे बहुलो थोक ॥ रा ॥ १४ ॥ मदन बाहिर आषा देखवाजी । आगे आया कोटवाल || प्रणमी कहे लेवा भणी जी । सामे आवे नृपाल || रा ॥ १५ ॥ मदन जी सामंत सगलेजी | पायचर सन्मुख आय ॥ महेंद्रपती पाला हुयाजी | देखी हियों | हुलमा | T || १६ || मिल्लिया वांय पसारने जी । पूछयो सुख समाधान ॥ सुखासन सह बेठिया जी । जोइ हर्ष्या पुण्यवान ॥ रा ॥ १७ ॥ राणीवृंद दास्यां तर्णेजी । आइ | बाइ पास || मा बेटी प्रमातुरी मिली। आश्रुपात हुल्लास ॥ रा ॥ १८ ॥ बाइ तूं गुणवंत छे। किया मोटा नृप भरतार || क्षमो अपराध सहू हम तणो । हम कियो विगर विचार ॥ रा ॥ १९ ॥ कुँवरी कहे आप पुण्यथी में । पाइ सघलो सुख ॥ सखी सहेली सह
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म.श्रे.
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मिलीजी । जोवे बाइको मुख ॥ रा ॥ २० ॥ शुभ मुहूर्त में सजहुईजी । आया नगर मझार ॥ सुखे समाधे रहे सह । पनरे ढाल अमोल उचार ॥ रा ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ एकदा राणी रायजी । करे आपस में विचार || एकही पुत्री आपणो नहीं कीधो कुछ लाड ॥ १ ॥ तनुजा परणावा तणी । मात पिता मन हूंश ॥ ते अपणी पूगी नहीं || हिवे लीजे रस चूस ॥ २ ॥ बोलाया मदनेशने । कही मनकी बात । मदन कहे इच्छित करो । कमी कछू न | देखात || ३ || अति आडंबर कर तिहां । रंभ मंज्जरी परणाय ॥ अर्धराज दे डाय जे । राय राणी हर्षाय ॥ ४ ॥ विना कह्या इच्छित हुया । हर्ष्या दंपति दोय ॥ पुण्यवंत प्राणी भणी । पग २ पे सुख होय ॥ ५ ॥ ६ ॥ ढाल १६ मी ॥ ममत मत कीजो राज मनमें ॥ यह ॥ पुण्यवन्त सोभा राज पावे । पग २ आनंद प्रगटादे ॥ पुं ॥ आं ॥ एकदा कुटुंब जागरणा जगत | विचार इसो मन आवे || ठाम २ हूं पडूं फंदमे । मन म्हारो मोहवाये ॥ पुण्य ॥ १ ॥ यात तात विदेशरे मांह । पीडा बहुली पावे | खबर मुजने कुछ नहीं तेहनी । मुज विरह तडफावे || पुण्य ॥ २ ॥ मैं जब पड्यो सरिता मांहीं । बंधव मुज अरडावे ॥ कोथो लस्यूं काम कर । ते सहू काम मुज थावे ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ हिवे द लूं मात्र बंधूका । तब सुज मन तोषावे । रिद्धी सिद्धी महारी देखी । तस मन पण हर्षाये ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ हम विचारी निशा विहाणी । रंभा भणी चेतावे ||
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खण्ड ६
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तुम इहां रहजो सुख नाही । सुज मन आगे धावे ॥ पुण्य ॥५॥ मंजरी हर्ष कहे भले चालो । मुज मन एही चावे । सासू सुसरा कुटम्बने मिलस्युं । मदन पुनः दावे ॥ पुण्य । ६॥ ठाम ठिकाणो खबर नहीं मुज । अब्बी किहां ते रहावे ॥ छोड आयो हूं |विंदेश मांइ । तास पतो जव पावे ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ ठाम ठिकाणो सहू जम्या थी । मुज |
मन ठामे आवे ॥ फिर लेजास्यूं तुमने आइ । इम तस चित स्थिर ठावे ॥ पुण्य ॥८॥ | भूपतिने विचार जणायों । खिन्न हो ते फरमावे ॥ तुम दर्शने हम परसन्न होवां । जावो | किम कहवावे ।। पुण्य ॥ ९॥ मदन कहे मात तात मिलणने ! मुज मन अति उमाये ॥ पाछो आस्युं आप सेवामें । कृपा रखियो भावे ॥ पुण्य ॥ १० ॥ नृप कहे शैन्य लेजावो । जे तुम साथे चहावे ॥ अदन कहे जो कृपा आपकी । कांइक फो जलरावे ॥ पुण्य ॥ ११ ॥
तीनी दल तय किया ए कंठा । प्रयाण मदन करावे ॥ राजा सामंत प्रजा दी मिली । सीम में लगे पहोंचावे ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ दर्शन वेगा दीजो इम कही । लुल २ सीस नमावे ॥
मदन खुशी होनम्या घणेरा । सह फिर ठामे आवे ॥ पुण्य ॥१३ ॥ सुखे मुकाम करता मदनजी । वटपुर डिंग आ रहावे । दल प्रबल पसर्यो चउदिशमें । खबर ग्राममें जावे ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ सुण राजाजी मन संकाणा । कुण पर चक्री ए आवे ॥ वैर नहीं अपणो किण साथे । अचिंत किम प्रगटावे ॥ पुण्य ॥ १५॥ कहे सचिव से जावो वेगा । करो
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चौकस वे दावे । खबर देवो वेगी मुज आइ । आया ए किण कावे ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ चतुर्घट रथारूढ होइ । भट प्रभाव सोहावे ॥ आया मदन शैन्यने पासे । देखी मन घेसावे ॥
खंड ६ पुण्य ॥ १७ ॥ राज वर्गी नर आतो देखी । मदन शैन्य रक्ष धावे ॥ कर जोडी कहे मदन १ कपटसे राय थी। कोइक सामंत आवे ॥ पुण्य ॥ १८॥ मदनजी तत्क्षण वाहिर आया । जेष्टना चिन्ह देखाचे ॥ तेतले तो रथ आयो नेडो । मदन सलामी करावे | पुण्य ॥ १९॥ रथ तजी प्रधानजी नभिया । मदनजी कर धरावे ॥ ले आया निज डेरा माही । उच्चासन पधरावे ॥ | पुण्य ॥ २० ॥ किवो सत्कार सन्मान घणेरो । सचिव मन हर्षोवे ॥ ढाल सोलमी कही २९ अमोलख । छट्टे खन्ड सोहावे ॥ पुण्य ॥ २१॥ ॥ दोहा ॥ नभ्र होह सचिव जी । पूंछे ||
बेकर जोड || आप किहांका भूपति । इहां आया किण कोड ॥१॥ मदन कहे नरमायनें। हूं नहीं छं राजन ।। हूं तो इहांको वाणियो । आयो मिलण सजन ॥२॥ कुण सज्जन | इहां आपका । प्रकाशों तस नाम ॥ मदन कहे वसुपतजी । अजुद्या , तस गाम ॥३॥ चौथो पुत्र हूं ते मनो । मदन न्हारो नाम ॥ आयो छु मिलवा भणी । अवर नहीं को काम ॥ ४ ॥ सुणी सचिव अचंभिया । अहो २ नरना पुण्य ॥ महीदाकाशं गती सही २ पृथवी प्रत्यक्ष ए न नुन्य ॥ ५॥ * ॥ ढाल १७ मी ॥ आज आनंद धन जोगीश्वर आया ॥ यह ॥ ! और आकाश आज आनंद दिन मदन जी आया । रिद्धी सिद्धी ए शोभायारे लो ॥ सज्जन जनका
| जितनी
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मन हर्षाया । इष्टार्थ सिद्ध थायारे लो || आज ॥ १ ॥ फिरी सचिव आया सभा मांही ॥ हर्षी वीतक चेतारे लो || वसुपति शाहा का कुँवर मदनजी । पुर वाहिर आ रह्याइरे लो ॥ आज ॥ २ ॥ राजा चार तस हुकमके मांइ । ऋद्धि अपार देखाइरे लो || मिलवा आया निज परिवारने । अवर विचार न कांहरे लो || आज || ३ || सुणी राजेश्वर घणा हर्षाया । वसुपत परिवारे बुलायारे लो || कहे थांरा चौथा नंदन आया । मदन जग प्रगदाधारे लो | ॥ अ ॥ ४ ॥ बात सचिव जी सब जगाइ । ऋद्धि घणी लायाइरे लो || कहे पुरपति अति आणंद पाह । मिलण मन उमंगाइरे लो || आज || ५ || राजेश्वर तब फोज सजाइ । ग्रामे खबर पसराइरे लो || सुणी सह अति आश्चर्य पाइ । वसुपति निज घर आइरे लो || आज ॥ ६ ॥ चाल्या नर वर वाजत भेरी । वसुपतिजीने संगलेरीरे लो || और प्रजा संग हुइ घरी । आया ग्राम बाहिर फेरीरे लो || आज ॥ ७ ॥ मदन नफर देखी शैन्या आती । हर्ष नाद उभरा तीरे लो ॥ तत्क्षण जाइ कह्यो मदनने । श्वामी शैन्य आती जणातीरे लो आज ॥ ८ ॥ मदनजी जोइ घणा हर्षाया । निज दल सज करायारे लो । पयदल पुरपति सन्मुख आया । हते तो प्रधान देखायारलो || आज ॥ ९ ॥ नेणानेन मिल्या अमीरस ठरीया । प्रेमधी हीया भरीयारेलो || लुली २ मदन जी गुजरा करिया । रायजी नमी कर धरियारे लो || आज ॥ १० ॥ सुख समाधिनी पूंछी बातां । फिर तात ढिंग मदन आतारे
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म.श्रे.
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लो ॥ प्रेमाश्रुत पगे शीस नमाता । वसुपत हृदय लगातारे लो | आज ॥ ११ ॥ पूत सपूत जोइ सह सुख पावे । तो मावित्रनो किस्यो कहवावेरे लो || फिर तीनों भाइने आइ नमिया | द्रढालिंगन मिलावेरे लो || आज ॥ १२ ॥ मदन सज्जन सुख तस मन जाणे । के जाणे जिनराया रे लो || विछी विछायत तिहां विराज्या । जोवत हर्षे उमायारे हो | आज ॥ १३ ॥ हर्षानंदकी बटे बधाइ । कुशल वारता कराइरे सो ॥ शुभ मुहूर्त पुनः सजी सजाइ । चाल्या ग्रामके मांइरे लो || आज ॥ १४ ॥ मदन नरपति एक गज सोभे । तेज प्रतापे अरी क्षोभेरे लो !! और थयायोग्य वाहना रुढ भया । देखता मन लोभायारे लो || आज ॥ १५ ॥ मध्य बजारे चली सवारी । जोवे उमद नर नारीरे लो || मदन कुँवर पर जाव वारी । ए कोई नर अवतारीरे लो ॥ आज ॥ १६ ॥ रायभवनमें आइ उतरिया नृपने नमन करियारे लो ॥ रजा लेइ वसुपत घर आया । राज रूढीने अनुसरीयारे लो || आज ॥ १७ ॥ माताजीनें पाये लागा । जोताइ सह दुःख भागारे लो || चिरायु सुखी नग जिम स्थिर रहो । आसीस दिया पुण्य जागारे लो || आज ॥ १८ ॥ और सह सज्जनने सन्मान्या । कीधा सहना मन मान्यारे लो || पुण्यवंत किणने नहीं अपमाने । तेहीने जग पेछान्यारे लो || आज ॥ १९ ॥ शैन्य सहू सुख स्थान जमाह । तिहांइ रह्या सुख मांइरे | लो || सह सज्जन को मिल्यो समागम । नित्यानंद वरताहरे लो || आज ॥ २० ॥ पुण्य
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खण्ड ६
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तणा फल ए दरसाया । षष्टम खन्ड पूर्ण थायरे लो ॥ मदन कुटुंबके सुखमें लो भाया । अमोल ढाल सतरे गायारे लो || आज ॥ २१ ॥ ॥ खन्ड सारांस । हरीगीत छंद ॥ सुखीकर रूप सुंदरी वर । गुणसुन्दरी मन मोहिया ॥ वण ब्रह्मचारी परण्या नारी । विरहना दुःख खोइया ॥ महेंन्द्रपुरे पुनः वरा रंभा । वटपुर सज्जन संग सोहिया ॥ पट खन्ड ए अधिकार कहे अमोल नर पुण्य जोइया ॥ ६ ॥
परम पूज्य श्री कहानी ऋषिजी महाराज के संप्रदाय के बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी रचित पुण्य प्रकाश मदन चरित्रस्य षष्टम खन्डम् समाप्त ।। ६ ।।
॥ दोहा ॥ प्रणमुं पंच प्रमष्टिको । समरूं सरस्वती मांय ॥ ए सातोंका सरण ल । सप्तम खन्ड वरणाय ॥ १ ॥ दान सील तप भावना । धर्मका चार प्रकार || प्रथमपद दियो दानने । से सह गुण दातार || २ || महिमा दानकी वरणवार । रचियो मदन चरित्र ॥ खन्ड २ रस नवनबा । सुणी हुवो मन पवित्र ॥ ३ ॥ मदन विदेशे गया पछे । वसुपत
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खण्ड ७
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में पाया सुख । आत्म कार्य साधिया । ते मुणो कहूं मुख ॥ ४ ॥ एकदा मदन कुटंव संग। म.श्रे. 18 करे भूतक विधी बात ॥ कहो भाइ जी याद छे । वटवरको अवात ॥५॥ शुभ वक्ते
वाणी वेदी । आपां विनोदे चार ॥ तिमही हिवणा देखलो । निपज्या सह प्रकार ॥६॥
श्रीधर कहे मदन कहो । सहू वीतक तुम हाल ॥ राजकुँबरी चउ किम वरी । किम पाया | १ होगइ सो यह माल ॥ ७॥ मदनजी निज वीती कथा । दी विस्तारी सुणाय ॥ आश्चर्य पाया सह २ कही
घणो । धन्य २ कहे मुख वाय ॥ ८॥ हा हा पराक्रम था यरो सागे इन्द्र समान ॥ तुज दर्शन सुखी हम भया । निकल्यो बहु गुणवान ॥ ९॥ ॥ ढाल १ ली ॥ वारी जाउँ मैं गुराकी । जिन समकित रस पायो जी ॥ यह ।। सुणो मदन जी भाइ । जिम ऋद्धिया पाइ
जी ॥ सुणो ॥ आं । नरमी मदन कहे थाणी प्रकासो । किम तुम सुखीया थयाइजी । 18सुणो ॥१॥ श्रीधर कहे सुणो वीतक महारो। जिम राजपुत्री व्याह जी ॥ सुणो ॥२॥
जिण वेला तुम सरितामें पडीया । तब हम गया घबराइ जी ॥ सुणो ॥३॥ पूकार्या| उत्तर नहीं पाया। तिहूं रह्या विल खाइ जी ॥ सुणो ॥ ४॥ दिन उगता पाणी उतयों
तीनों नीचे उतर्याई जी ॥ सुणो ॥५॥ दूर २ लग जोया कांठा । किहो पतान पाया 18 जी ॥ सुणो ॥ ६॥ आरत कर ता निज घर आया । तात उदास दीठाइ जी ॥ सणो।
७॥ पूछे मदन किम नहीं देखावे । तुम किम रह्या विलखाइ जी ॥ सुणो ।। ८ ॥ इम सण
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हम वीतक कह्यो रोतां । मदन वह गयो पाणी मांह जी ॥ सुणो ॥ ॥ जोयो पण पत्तो। नहीं लाग्यो । तेह थी मन दुःखाइ जी ॥ सुणो ॥ १० ॥ सुणी वज्रपात ज्यूं बचन ए लागा
दो गया मुरछाइ जी ॥ खुणो ॥ ११॥ जल विन मीन तणीपर तडफे। प्राण आ कंठे रह्याइ जी ॥ सुणो ॥ १२॥ तब हम कह्यो तातजी सुणो आगे । मदनने हम दीठाइ, * जी ॥ सुणो ॥ १३ ॥ इम सुणी जरा सावध हुया । कहे दे मदन बताइजी ।। सुणो ॥१४॥
हम कह्यो ते पड्यो जब जल में । तब विद्युत चमकाइजी ॥ सुणो ॥१५॥ काष्टारूढ दीठो, हम वहतो। तेहथी जीवतो भाइजी ॥ सुणो ॥१६॥ निश्चय निकलशी कोहक ठामें । मिलसी पाछो आइजी ॥ सुणो ॥ १७॥ इम सुणी मन जरा स्थिर थइयो । विश्वास साता # पाइजी ॥ सुणो ॥ १८ ॥ तेतले एक नैमित्तिक आया। हमने दुःखी दीठाइ जी ॥ सुणो॥ १९ ॥ दया लाइ कहे दुःख सहू छोडो । तुम सहू पुण्यवंताइ जी ॥ सुणो ॥ २०॥ पांच में
वर्ष में मदन आमिलसी । ऋद्धि घणी संग लाइजी ॥ सुणो ॥ २१ ॥ अजीवका PE काष्टथी नित्य करता । याद आता रणमाइ जी ॥ सुणो ॥ २२ ॥ वारतेवारे शुभ संयोगे। में अटकतो ग्रास गले जाइजी ॥ सुणो ॥ २३ । इम केइ दिन कष्टे विताता ! केइदा विचार
थयाइजी । सुणो ॥ २४ ॥ कोइ उद्योग ऐसो कर लगे । प्रग जिम पुण्याइजी ॥ सुणो ।। | २५ ॥ वुद्धी बल चलतो अजमायो । पण कांह न सिजाइजी ॥ सुणो ॥ २६ ॥ जब पाप
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दिशा संपवा आइ । तब जे जोग बण्याइजी ॥ सुणो ॥ २७॥ ते सुणी यों कहे ऋषि |
खण्ड ७ अमोलक । सप्त खंड ढाल पहली थाइ जी ॥ सु ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ वसंत ऋतुते में अवसरे । पसरी भूमंड माय ॥ तरुवर नव पल्लव थया । लीला लेहर सोभाय ॥१॥ वसंतक्रीडांने कारणे । नृपराणी परिवार ॥ पुरजन परजन बहु मिली। वनी कामे रहे|
आय ॥२॥ अभिनव भूषण चीवरा । नवरंग उडे गुलाल ॥ मस्त तान वाजिंतरे । गाता वीराग धमाल ॥३॥ तिण अवसर राय पुत्रिका । पुष्पवती गुणवान ॥ सरखी सहेली संग |
ले । खेलती एकांत स्थान ॥ ४॥ आनंद मंगल वरतना । चउदिश जय २ कार ॥ तव अचिंत्य होतब बण्यो । सुणियो मदन कुँवार ॥ ५॥ ॥ ढाल २ री ॥ आदही आद जिनेश्वरोजी ॥ यह ॥ भवितव्यता भाइ सांभलोजी। तिण अवसरने मझार ॥ अंजन | १२३ गिरीना सरीखोजी । करतो अति गुंज्जार ॥ भ ॥ १ ॥ कालो मतवालो मद भर्योजी ।। भरतो मोटी फाल । सूंडा दंड उछालतो जी । दीसे ज्यों आयो काल ॥ भ ॥२॥ गाजे
भाद्रव मेहलो जी । तीक्षण दंतासूल ॥ सात अंग धरणी लगे जी । जोया शुद्ध जावे भूल Sinभ ॥ ३॥ वायु वेगे दोड तो जी। आयो राज कन्या पास ॥ देख्यो नहीं कोइ तिण | भणी जी । सहू लागी क्रीडा अभ्यास ॥ भ ॥ ४॥ झूलती राय धूया भणी जी । अधर | लीवी उठाय॥ घबराड पाडी चासला जाराततल गज भग जाय ॥
टी चीसली जी। तेतले गज भग जाय ॥भ ॥५॥
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१ हाथी
Mail हुइ घावरी जी । भागी ले निज जीव ॥ साहस कुण करे वक्तपे जी । जब आवे अचिंती
रीव ॥ भ ॥ ६॥ कुंजर पुष्पवती गृही जी । तुर्त गयो निकल ॥ विजलीना भलकापरे जी । लागे नहीं एक पल ॥ भ ॥ ७॥ दंती गयो जब वेगलो जी। तब सहेल्या करे पुकार ॥ दौडो २ राजेश्वरूजी । दौडो सह परिवार ॥ भ ॥ ८ ॥ दौडो जौधा सूभटा जी । कांह अनर्थ मोटो थाय ॥ बाइसाबने गृही करी जी । ते मयंगल न्हाटो जाय ॥ भ ॥९॥ छोडा वे कुँवरी भणीजी । करो सूर वीर सहाय ॥ हा हा कार इभ सांभली जी। लोक घणा
विस्माय ॥ भ ॥ १० ॥ राजा राणी दोडिया जी। कांइ दोड्या मंत्री सांमत ॥ बहु जन || दोडी आविया जी । सहेल्या ने पूछत ॥ भ ॥ ११ ॥ रुदन करतीते भणे जी। कांइ स्यूं
पूछो मुज तांय ॥ हाथी ले भाग्यो वाइनेजी । लावो छुडाह जाय ॥ भ ॥ १२॥ सुणी घबराया सह जणा जी । दोड्या सुभट तत्काल ॥ किण दिसे गयो लेइने जी।चौकस
करे भूपाल ॥ भ ॥ १३ ॥ शस्त्र गृही घणा सूरमा जी । कांह भाग्या नाग ने लार || - हाथें नहीं ते आवियो जी । गयो गिरी गहन मझार ॥ भ ॥ १४ ॥ सह फिर पाछा
आविया जी । कहे नहीं आवे ते हाथ ॥ पतो न लागे किहां गयो जी । किसो करा हो नाथ ॥ भ ॥ १५ ॥ सुस्त हुई सहू पैठिया जी। राय राणी का झुरे नेण ॥ अहो लाडली तूं किहां गह जी । कांइ झूरे सहू सेण ॥ भ ॥ १६ ॥ हा देव यह किस्यो ,
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म.श्रे
खण्ड ७
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कियो जी । लूह्या कालजा मोय ॥ हा हा हिवे किस्यो करूंजी । इम राणी रही रोय ॥ भ
॥ १७ ॥ उर कुटे शिर भूहणे जी । पलक २ मुर छाय ॥ रंगने मांही भंग हुयो जी। ॐ कांह सह रह्या विलखाय | भ ॥ १८ ॥ ख्याल तमाशा बंध हुया जी । कांइ जे सुणे ,
ते करे सोग ॥ सहूजन गया पुरविषेजी । मोह ए मोटो रोग ॥ भ ॥ १९ ॥ राय समजाइ
राणी भणी जी । कांइ आत कियां किस्यो होय ॥ जीवती हुइ तो मंगावस् जी। उद्यमथी , 18 तस जोय ॥भ ॥२०॥ इत्यादी बचने करी जी। कांह राणी समजाह राय॥ अमोल ढाल
दजी कही जी । श्रीधर मदन जणाय ॥ भ ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ राय मंत्री दोनों मिली । उंडो करे विचार ॥ किण उपाय थकी लगे । बाइ तणो समाचार ॥ १ ॥ ले गयो ते जीवती। नहीं भक्षेते तन । आगे कहीं न्हाखी दह । तो ते भटकसी वन ॥२॥ प्रधान कहे पिटाइये । डंडेरो पुर मांय । जो कोइ लासी बाइ ने । देशी तस परणाय ॥ ३ ॥ काम नहीं कायर तणो । लासी को पुण्यवंत ॥ जीवती होसी तो तसे । करदेशा तसत ॥४॥ लालच वस जात्री घणा । लासी पतो लगाय ॥ कला सुणी सचिव की । गह राय मन | भाय ॥५॥ॐ ॥ ढाल ३ जी ॥ वीर सुणो मोरी वीनती ॥ यह ॥ सुणी वयण राय हर्षिया ! ततक्षण हो कहे भट ने बुलाय ॥ पडह बजावो पुर विषे । जे जाइ हो राय ॐवरी लाय ॥ सह ॥ १ ॥ तेहने तेह परणाव सी । वली देशी होतस द्रव्य अपार ॥ भट
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चट बचन चडायने | पडह पीव्यो हो ते पुर ने मझार ॥ सु ॥ सुणी ने केइ चालिया । जोवाने हो ते राजकुँवार ॥ चउदिश माहे किर्या घणा । नहीं मिल्या थी हो आइ रह्या निज द्वार || सु || ३ || तब स्वपन साय मुज भणी । कुलदेवी हो कहे बीडो तूं साय ॥ राजपुत्री लेववा। तूं तो जाजे हो कजली वन मांय ॥ सु ॥ ४ ॥ ते तो मिलसी तुज भणी । सुखी होसो हो प्रकट्या तुम पुण्य ॥ जाग्यो जणायो मैं ताताने । आज्ञादी हो करो काम निपुण ॥ सु ॥ ५ ॥ राजाजी पाले जइ ने । मैं कह्यो हो लावूं राजकुँवार ॥ ते कहे शीघ्र पधारिये । काम हुया हो करस्युं कह्या अनुसार ॥ सु ।। नाम ठाम नौधी लिया । हूं चाल्यो हो हुइ मन हुल्लास ॥ कजली वनने पूंछतो । हूं पहूं तो गजारण्या पास ॥ सु ॥ ७ ॥ ग्राम एक आयो तिहां । ह्रूं रहियो हो भोजनने काम ॥ पूंछयो कोइक भीलथी । कजली वन हो कहो छे कि ठाम || सु ॥ ८ ॥ ते कहे इहां थी उतरे । एक जोजन हो रेवानदी आय | तेहना पल्ला कांठा पे । जे झाडी हो कजली वन ते कहाय ॥ सु ॥ ९ ॥ किम पूछो तस नामने । मैं कह्यो हो मुज जावो छे त्यांय ॥ ते कहे तुम भोला हुया । मरण मुख हो किमकरी जवाय ॥ सु ॥ १० ॥ जे नर नदी लंघिया । ते न आया हो फिरने पाछा घेर ॥ फिर पाछा जावो घरे । जो चावो हो तनने खेर ॥ ॥ ११ ॥ फिर मैं पूछयो तेहने । गज बेंचे हो वैपारी लाय ॥ इणही वन थी मैं सुण्या ॥ विन
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तट ७
गया हो किम हाथे आय ॥ सु ॥ १२॥ ते कहे उपाय सांभलो। जिम पकडा हो हम . म. श्रे.
ए गजराज ॥ जावां नही पेले कंठे । एले तीरे हो रही करा काज ॥ सु॥ १३ ॥ फील खड में सरीर थी अधिक त्या । खोदा हो एक उंडीखाड ॥ तेहने ऊपर पाथरा । फतलीचीमट १ हाथी २९ हो वंश तणीज फाड ॥ सु ॥ १४॥ चारो हरीयो तिण परे । लगाइ हो करां हथणीव
तैयार ॥ कागद तणी सुहामणी । उभी करां हो खाड पे ते वार ॥ सु ॥ १५॥ K] टोली आवे गज तणी । तिण नद पे हो जल पीवा काज ॥ केली करे बहविध तिहां ।
# एली तीरे हो देवे हम साज ॥ सु ॥ १६ ॥ कोइक गज मदमें छक्यो । ते जाणे हो परे || २ हथणी | कुंजेरी एह ॥ पडे आइ तिण ऊपरे । ते वाडमें हो पेठे तत्क्षेव ॥ सु॥ १७ ॥ एक
* पक्ष पडयो रहे । क्षुधा त्रषाय अति दुर्बल थाय ॥ तष हम नेडा जाइने । थोडो २ हो तसर र चारो चराय ॥ सु॥ १८ ॥ वस करां जोग उपाय थी। ते हमसे हो जब सेंदो थाय ॥ तव
आगल भू खोदने । हम कहाडा हो ते हम लारे आय ॥ सु ॥ १९॥ सांकल दंडथी बांधने |
। लावां हो इण ग्रामरे माय ॥ सेंदो करां सहू नर थकी । इक्षु दिक हो मधु अहार कराय 13॥ सु॥ २० ॥ जोगो होय ते पंचवा । जाइ वेंचा हो ले म माग्या दाम ॥ यह आजीविका
हम तणी। ते करवा हो किम हइ तुम हाम ॥ सु ॥ २१ ॥ हम चेतवां हित भणी । तिहां जावा हो मत करो उमंग ॥ इछा जो गज वैपारकी । तो रहीजे हो तुम म्हारे जी संग ॥
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सु ॥ २२ ॥ इम समजाइ बहु विधे । ते गयो हो कोइ काम काज ॥ ढाल तीजी खन्ड सात की । कहे अमोलिक हो जोवो पुण्य का साज ॥ सु ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ सुणी वचन ते मीलका | चमक्यो चित मझार ॥ संकल्प विकल्प मन हुवो। जमे न एक विचार ॥ १ ॥ निश्चय कीनो मन थकी । मरणो छे एक वार ॥ धारी काज जे निकल्या । जीवता पाडो पार || २ || खाली तो हिवे मुज थकी । म्हारे घर न जवाय ॥ हिम्मते मदत दैव की । साची ए जनवाय || ३ || होणहार जे होवसी । करस्यूं बुद्धी उपाय ॥ इम चिंती शीघ्र चालियो । साहस घर बन मांय ॥ ४ ॥ आयो रेवा नद तटे । पेख्यो द्रष्ट लगाय ॥ मोटा परवत सरीखा । मयगंल टोला देखाय ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ४ थी ॥ मनडो मो ह्योजी महावीर श्वामी म्हाने दर्शन दइदो जी ॥ यह ॥ वीतक सुणजोजी मदनेश्वर महारो हो तब जो जो जी ॥ बतिक ॥ आं ॥ रेवातट एक वटवृक्ष बर | पहले किनारे | पेखीजी ॥ तीरी नीर आइ वडियो तिणपे । गहरो देखी जी ॥ बीत ॥ १ ॥ गज वृंद देख विचार करूं मन । कीजे किस्यो उपायो जी ॥ जो देखे कोइ फील मुजे तो । कालज आयो जी ॥ बीत || २ || कार्य म्हारो इणही वन में। फिरिया थी सिद्ध न थावे जी ॥ जीवती मूइ राजरी कन्या । द्रष्टी आवेजी ॥ बीत ॥ ३ ॥ वृक्ष घणा छे इण वन मांही । गया थी नहीं ओलखाह जी ॥ झड रूप हूं बणी चलूं तो । कारज थाइजी ॥ बीत ॥
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म.श्रे.
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४ ॥ इम चिंती ग्रही बड की डाली । मोटी छोटी तोडी जी || सर्व शरीर ने गांधी ली। पतीया चोंडी जी ॥ बीत ॥ ५ ॥ झामर झूमर होइने उतयों । धीरे २ चाल्यो जी ॥ | चकोर निजरे चउ दिश जोतो । गज आवे हाल्यो जी ॥ बीत ॥ ६ ॥ जो देखूं कोह दंती आतो । तो तिहांहीं स्थिर रेबुंजी | आगे गया थी आगे चालूं । उर | दिल लेवुं जी ॥ वीत ॥ ७ ॥ इण पर बहुली भूम उल्लंघतो। एकगिरी तले आयोजी ॥ आगे अंजन गिरीने सरीखो। फील देखायो जी ॥ पीत ॥ ८ ॥ सात अंग तस भूमी ए लागा । घूमंतो वन फिरतो जी ॥ अन्य गज पासे ते नहीं जावे । झाडीमें सिरतो जी ॥ बीत ॥ ९ ॥ तेहने स्कंन्ध वर निहाली । राय कुँवरीते वारो जी । विनोद भावे क्रीडा करता । दु:ख न लगारो जी || बीत ॥ १० ॥ मधुर सरस वन फल गज तोडी । सुंडी तेहने आपे जी || शीतल नीर निरझरणारो पावे । पृष्ठे स्थापे जी ॥ बीत ॥ ११ ॥ कदीक | सूडने लेइ झुलावे । कदीक दंते ठावे जी ॥ इम बहुविध क्रीडा करावे । हँसे हँसा जी ॥ बीत ॥ १२ ॥ मैं देखी घगो आश्चर्य पायो । ए जुड्यो केम सम्बन्धो जी ॥ गजकी प्रति घणी कुँवरी पर । ए मोहणी धन्दो जी ॥ बीत ॥ १३ ॥ राज कन्या तो इहां |छे सुखमें। किम आवे भुज लारे जी ॥ मुजने जाणी गजने चेता वे तो । ए मुज मारे जी ॥ वीत ॥ १४ ॥ जिण वस्तु काजे मैं आयो । ते तो मुजने पाहजी || हिवे आगे करूं युक्ती
खण्ड ७
१ प्रवेश करे
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| कैसी । ज्यूं साधे आइजी ॥ वीत ॥ १५ ॥ रीतो तो नहीं जायो जावे । जे किया इत्ता उपाये जी ॥ इम हूं साथे फिरूं किहां लग ॥ जीव डर पावे जी ॥ बीत ॥ १६ ॥ पुरी मंडल रवी आयो जाणी । बड नीचे गय आइजी ॥ घांस पान की सेजे सुतो । कन्या भूठाइजी || बीत ॥ १७ ॥ राजपुत्री खेलणने लागी । कुंजरे निद्रा आइजी ॥ बात करणको अवसर जाणी । कंकरी बाहजी ॥ बति ॥ १८ ॥ कन्या चमकी जोवे चउदिश । कोइ न | द्रष्टी आत्रे जी ॥ हूं तो ऊभो झाडने रूपे । किम ओलखावे जी ॥ बीत ॥ १९ ॥ विचार करती पुष्पवतीने | आँखे आश्रू आया जी । ते देखी सुज मनडों हयों । भेद ज पाया जी || बीत ॥ २० ॥ ऊपर थी ए खुशी रहे छे । हाथी थी मन डरती जी ॥ पण मनडो तो | लाग्यो कुटम्ब में | नेणा भरती जी ॥ बीत ॥ २१ ॥ हिवे इणरो हूं दुःख गमावुं । इम मन मांही विचारी जी ॥ बृक्षरूप तजीने चडियो । बड पे ते वारीजी ॥ बीत ॥ २२ ॥ | शाखपत्रनी आडे छिपियो । पत्र लिखीने न्हाखी जी ॥ लिखित पत्र देखी कुँवरी हुइ ! हाकी बाकीजी ॥ बीत || २३ || आश्चर्य पाइ लियो उठाइ ! किहांथी उड ए आइजी || नर विना कुण चित्रे अक्षर | उपयोग लगाइजी ॥ बीत ॥ २४ ॥ बांचण लागी हुइ अति आतुर | ढाल चतुर्थी मांहीजी ॥ सप्त खन्डनी आगे बीतक । अमोल सुणाइजी ॥ वीतक ॥ २५ ॥ * ॥ दोहा ॥ ह्रूं अतिकष्ट सही करी । तुमने लेवण काम || आयो नृपनो मोकल्यो
१ दो पहर
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म.श्रे.
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२ नदी
| दर्शने लियो विश्राम ॥ १ ॥ जो मन हे चलव तणो तो । होवो इंशियार ॥ नहीं तो उत्तर आपिये । जाउं म्हारे द्वार ॥ २ ॥ हर्ष आश्र कुँवरी हुइ । तरुवर ऊपर जोय ॥ चौ निजर हूयां थका । आनंद अनहद होय ॥ ३ ॥ शानी करी मुजने तदा । आवो अधोभय छोड | गज हमणा जागे नहीं। पूरो महारी कोड ॥ ४ ॥ नीचो उतर्यो तत्क्षणे | ते आइ मुज पास || दोनों मिल सुखिया भया । जाणे फली सहू आस ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ५ मी ॥ कुँवर अभे बुद्धनो भंडारीरे ॥ यह ॥ मदन जी सुणियो सारी | म्हारीरे || मद० || जिणविध परण्यो रायपुत्री मैं । कहूं बींती सारी ॥ आं ॥ एकान्त अवसर पाइ तिण समें । बोले कुँवारी || मले पधार्या कार्य सार्या । कुटम्ब दो मिला || म ॥ १ ॥ मैं उपाय बतायो तस लो । मृत्यू रूप धारी ॥ छोडी जासी दंती तुज । मैं लेस्यूं उठारी ॥ म ॥ २ ॥ इम सुण कुँवरी पडी मृत्यूक जिम । गज जब जा ग्यारी ॥ जगाबे कुँवरी नहीं जागे । तब गयो घबरारी ॥ म । ३ ॥ मरी जाणिने रोयो घणे रो । गयो वन मझारी | मैं निश्चिंत हो कुँवरी पासे । आयो ते वारी ॥ म ॥ ४ ॥ | पछोडी में बान्ध ने कुँवरी । ली पीठ पर धारी ॥ शीघ्र गती तिहांथी चाल्या । कारज थयो धारी || म ॥ ५ ॥ रेवा सरिता पार होवा भगू । भय मन अपारी ॥ तेतले गजन पांय सुणाया । जोवो हूं लारी ॥ म ॥ ६ ॥ काष्ट सुंडमें न्हाठो आवे । वायु वेगारी ॥
4
खण्ड ७
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१ हाथी
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辣味
| तेहीज गज कुँवरी पेछाप्यो । गया अति घबरारी ॥ म ॥ ७ ॥ हिवे मृत्यु ए आइ आपणी | मेहनत व्यर्थं सारी || संतप्त क्रोधे दीसे दंती । न्हावसे सही मारी ॥ म ॥ ८ ॥ मैं कह्यो तस न घबरावो । ए वट वृक्ष भारी ॥ इण पर गुप्त चडीने बैठां । विघ्न देव |टारी ॥ म ॥ ९ ॥ तत्क्षण चडिया दोनों वट पर । छिप्या शाखा आडी || पत्ताथी तन लीना ढांकी । रह्या तन थर्रारी ॥ म ॥ १० ॥ ते पण आ ऊभो वड नीचे ॥ ऊंचा निहारी ॥ क्रोधातुर हो मारे टक्कर । दियो बड धूजारी ॥ म ॥ ११ ॥ प्रबल बलकियो तरु तोडन । मुड्यो न लगारी । हम आयु ने पुण्य प्रतापे । गयो फील हारी ॥ म ॥ १२ ॥ फिर रह्यो ओलू दोलू झाडरे । जावे न लगारी ॥ आंप उछले ने सूंड उळाले । मारे किल कारी ॥ म ॥ १३ ॥ ते दिवसने निशा विहाणी | गया हम अकुलारी ॥ एतो नहीं छोडेला जीवता । बडी मुशीबत यारी ॥ म ॥ १४ ॥ अन्य उपाय न दीस्यो बचनको । कुलदेवी संभारी ॥ जेहना हुकम थी साहस कीधो । लेसी ते उवारी ॥ म ॥ १५ ॥ धैर्य
कुँबरीने तां । मन घरो करारी । तीन दिवस में सुखिया थास्या । धावूं मातारी ॥ म ॥ १६ || इम कही डालीने तन बांध्यो । पद्मासन वाली । आराधन कीधी कुलम्बे । दिन श्री वीत्यारी ॥ म ॥ १७ ॥ चौथे प्रात प्रगटी मैया । प्रणमी उच्चारी ॥ ए संकट थी वेग छोडावो । असुरी ते वारी ॥ म ॥ १८ ॥ अचूक बाण आपियो मुजने । दो गजने मारी ॥ अदृश्य
१ हाथी
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म. श्रे.
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में हुई ते त्रोदशी । मैं ध्यान ने निवारी । म ॥ १९ ॥ हंकारी तव बोल्यो गज थी । जो में जीतब की चहारी ॥ तो तत्क्षण भागी जा ह्यांधी । नहीं तो मोत थारी ॥ म ॥ २० ॥
12 खंड ७ पण ते तो माने नहीं मद भर । करे फिर मसत्यांरी ॥ होणहार आयो जाणी में । दियो 6 बाण मारी ॥ म ॥ २१ ॥ टूट पडे गिरी शिखर ज्युं पडियो । गइ भूथरारी ॥ तडफडतो
चीकार मारतो । बोल्यो ते वारी ॥ म ॥ २२ ॥ मैं तुज किंचित दुहवी नाहीं । पूर्व भव प्यारी ॥ तूं तो मुज मारीने चाली । हुइ होणहारी ॥ म ॥ २३ ॥ तो पण एक कहूं तुज * हितनी । मुज सिर मझारी ॥ मुक्ताफळ छे सहज उपना । ले जो नीकाली ॥ म ॥ २४ ॥ इम बोलता प्राण ज छूटा । ढाल पंचमारी ।। होणहार गत देखो मुगुणा । अमोल उच्चारी ॥ ॥ २५ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ हेटा उतर्या तत्क्षणे । मयंगल मस्तक फाड ॥ मुक्ताफल सबही हने । लीना युक्तीये कहाड ॥ १॥ हर्षाया मन में घणा । हुयो अचिंत्य महालाभ
॥ प्राण बच्या सजन मिल.ण । जगियो मन उत्साभ ॥ २॥ फळ अहार गमतो कियो। 2 पीयो शीतल नीर ॥ आणंद धर आगे चल्या । आइ मनमें धीर ॥३॥ मुक्ताफल की
पोटली । राखी महारं पास ॥ थोडा मोती कॅवरीये । पल्ले बान्ध्या खास ॥ a४॥ आगे चाल्या हर्ष थी। कुँवरी कहे कर जोड ॥ जीवित दान आपही दियो । और
सहू पृगसी कोड ।। ५ ॥ए उपकारने फेडवा । करस्यूं महारानाथ || तन मन सेवा मैं धरु
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। जाव जीव साथ ॥ ६ ॥ विनोद बात इमके करत । आगल वाल्या जाय ॥ विघ्न बीच में | उपजे । ते सुण जो चित लाय ॥ ७॥ ॥ ढाल ६ ठी ॥ सो वन सिंहासणरेवती ॥ यह ॥ जोवो कला कपटी तणी । सरल न समजे कायरे ॥ आखिर तो सत्य ही तीरे । सुण जो तेर चित लायरे ॥ जो ॥ ॥ तिण अवसर अंतरिक्ष में । जातो विद्याधर कोयरे ॥ नीचे जोय जाता हम भणी । हर्षित हियडे होयरे । जो ॥२॥ पुष्पवती जोइ मोहियो। हरण करण | लाग्यो लाररे | तेह भेद हम जाण्यो नहीं । होवे जेह होणहाररे ॥ जो ॥३॥ कुवरी कहे | उभा रहो । त्रषा लागी छे अपाररे ॥ कृपा करी जल पाइये ॥ जिम आवे चालण कराररे ॥ * जो ॥ ४ ॥ तरु तल तास बैठाय ने । हूं लेवा गयो नीररे ॥ ढूंकडो कहीं मिलियो नहीं। आगे ग यो सरवर तीररे ॥ जो ॥५॥ पाछे डाव रम्यो खेचरु । म्हारोह रूप बणायरे ॥ दौड आयो कुँवरी कने। जल पात्र कर सहायरे ॥ जो ॥ ६॥ घबराइ इम उच्चरे। जल्दी | वावरी चलो तोयरे ॥ रखे विघ्न कोइ ऊपजे । मै आयो जे जोयरे ॥ जो ॥ ७॥ कोइ देव दान व इहां । मुजसम रूप बगायरे ॥ लार लाग्यो थो ते माहेरे । हूं दौडी आयो इण* ठायरे ॥ जो ॥ ८॥ प्रोस्यो उदक शीघ्र कुँवरी । दो, चल्या तब दौडरे ॥ मै पण जोया से दुरथी । पायो आश्चर्य कुण जोडरे ॥ जो ॥९॥ आयो भागी जोया तेहने । व्यापियो अंगमा क्रोधरे ॥ अरे धुतारा तूं कोण छ । करे कार्य ए विरोध रे ॥ जो ॥ १० ॥ ज्युं जीया |
१ पाणी
२ पायो
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खण्ड ७
दोनो तिहां घणा । दाधो तिण मुजने गुडायरे ॥ लेइ कुँवरी भागी गयो । पत्तो न तास र देखायरे ॥ जो ।। ११ ॥ पस्तावा अति मुज हुयो । हा हा कर्म करूररे ॥ मेहनत सहू में निष्फल हुइ । भोगी जे विप्ती पूररे ॥ जो ॥ १२ ॥ बिचमा ए दुष्ट कुण मिल्यो । मुज सम R रूप बणायरे ॥ भरमाइ लेगयो कुंवरी । मारी कूटी मुज तायर ॥ जो ॥ १३ ॥ आगल * ए करसी किस्यो । निज घर कुँवरी लेजायरे ॥ के भोलावे राजा भणी । महरा कुटंय |
भरमायरे । जो ॥ १४ ॥ इम विकल्प केइ उपजे । शीघ्र गती चाल्यो तामरे ॥ तिण पापी | आइ आगले । जमाइ पोतारी मामरे ।। जो ॥ १५ ॥ दी कुवरी जाइ रायने । कहे सह्यो %8 | कष्ट अपाररे ॥ अनेक युक्ती उपाय थी। काम पाड्यो मैं पाररे ॥ जो ॥ १६ ॥ सह पंछी
आप कुँवरी भणी । दीजिये मुज इनाम जी ॥ रखे विघ्न कोइ उपजे । चेतावू पहलां श्वामजी ॥ जो ॥ १७ ॥ मार्ग धुतारो मुज मिल्यो। सरीखो रूप वणाय जी॥ हराह
आयो हूं तेहने । रग्वेत आइ भरमाय जी ॥ जो ॥ १८ ॥ नृप कहे निश्चिंत रहो। मिलो | | जाइ परिवार जी ॥ अवसर उचित करस्युं सहू। पाडस्युं वयण हूं पाररे ॥ जो ॥ १९ ॥ इम सुण ते राजी हुयो । आइ बजारने मांयजी ॥ बहकाया सह लोकने । कुटुम्बने दिया भरमाय जी ॥ जो ।। २० ॥ धन्न २ सहू तस उच्चरे । रह्यो सुखे इहां तेहजी ॥ ढाल लट्टी अमोलक कही । देखो कपट कला एहजी ॥ जो ॥ २१ ॥ ॥ दोहा । कुँवरी मिली मावित्र
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थी। आणि अधिक स्नेह || ते सुख जाणे केवली । के जाणे तस देह ॥ १ ॥ पूंछी वीतक वारता | तिण कही सह विस्तार ॥ धन्य २ श्रीधर भणी । कियो बडो उपकार ॥ २ ॥ ते उपकार फेडण तणो । अवसर दे भगवान ॥ ते दिन सफलो जाणरयुं । तब बोले राजन ॥ ३ || जे लासी बाइ भणी । तस परणस्युं तेह ॥ ए बचन छे माहरो | पार पाडस्युं जेह ||४|| आनन्दी कुँवरी सुणी । सुखे गुजारे काल || सुणियों मदनजी हिवे । जे हुवा म्हारा हाल ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ७ मी ॥ कुन्दनपुर आजोजी बनडा जी ॥ यह ॥ मेरी वीती सुणियों जी मदनजी । कीधा जे जे मैं उपाय || मेरी ॥ आं ॥ हूं आइ पुग्यो इहां जी । चलियो मध्य बजार || लोक घणा घेर्यो मने जी ॥ हाँसी करे अपार हो । मद ।। १ ।। ए आयो ते उग चली जी । श्रीधर रूप बनाय । हुर्रराट्यो देइ करीजी । दीनो मुज घबराय हो ॥ मद ॥ २ || चुगली करी कोइ राजमेजी । आया भट झट दौड || मारण लाग्या मुज भणी जी कहे मोडो इरी बोड हो ॥ मद ॥ ३ ॥ मैं कह्यो नहीं मारिये जी । इच्छा थी जाऊं बार ॥ नुकशान कुछ कीनो नहींजी । क्यों व्यर्थ करो मुज क्ष्वार हो ॥ मद || ४ || सहू जणा मिल कहाडियो हो । पुर गोपुरने बार || हुकम दियो पोरायतनेजी । मत आवा दो नगर मझार हो || मद ॥ ५ ॥ सहु गया निज स्थानकेजी । मैं पड्यो सोच के माय ॥ अहो प्रभु ये कैसी बनीजी । जग कोइय न म्हारो देखाय हो ॥ मद ॥ ६ ॥ आर्त अति
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१ चिन्ता
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में व्यापी मनेजी । चूवण लागा नेण ॥ सुख उपाय दुःखियो भयोजी । निकसे न मुखथी म. श्रे. 14 वेण हो ॥ मद ॥ ७॥ चिंतामाहे चालियोजी । अथडा तोहंताम ॥ केसर वागकी छांयमेंजीर
खण्ड में मैं लेड बैठो विश्राम हो ॥ मद ॥ ८॥ तिण अवसर आइ तिहां । फूलां मालण चाल ॥ २२ रोवंतो मुज देखने जी । बोले दया लाइ रसाल हो ॥ मद ॥ ९॥ कुण तुम किहां थी
आविया जी । रोवो छो किण काज ॥ सत्य बात बीती कहों तो । हूं देस्युं कुछ माज हो , ॥ मद ॥ १०॥ मैं कह्यो में निराधार छु मां । नहीं सरतन मुज पास ॥ इम
सुणी ते दया लाइ जी । साची किम कीजे प्रकाश हो ॥ म ॥ ११ ॥ मालण कहे चिंता KI तजो जी । तूं मुज पुत्र समान ॥ सुग्वे रहो घर माहेरे जी । मैं देस्युं वस्त्र खान पान हो
म ॥ १२ ॥ रखवालो इण वागने जी । अवर नहीं कोई काम ॥ हम सुणी मैं धैर्य धरी जी । लियो तिणहीज स्थान विश्राम हो । म ॥ १३ ॥ नित्यप्रति फूल चूंटने जी। ढेर करे
घर मझार ॥ भूषण ख्याल बहुविध करे जी । में पूछयो तस तिण वार हो ॥ म॥१४॥ K माजी यह बणायनेजी । नित्यप्रति किहां ले जाय ॥ ते कहे बेटा सांभलोरे । रायबरीने वा
घणा ए सुहाय हो ॥ म ॥ १५ ॥ फिर मै पूंछयो रायने जी। किती पुत्री है मायाते कहे एकाएक छे जी। ते पण आइ दुःख पाय हो ॥ म ॥ १६॥ वसुपत सेठका सुत थी जी। होसी तेहनो व्याव ॥ थोडा दिनके आंतरे जी । मांडसी घणा उत्साहाव हो ॥ म ॥ १७ ॥
われわれわれわれがやす
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टोला
इम सुणी * आणन्दियो जी । हिवे करूं उपाय ॥ फूल तणी रचना विषेजी । देवू कुवरीने समजाय हो ॥ म ॥ १८॥ माजी हूँ पण जाणूं छंजी । करवा पुष्ण आभरण ॥ कहो तो करूं साडी कंचुकीजी । दीजो कुँवरीनो जोइ मन हो ॥ म ॥ १९ ॥ इम सुण ते खुशी | | हुइ जी। दियो सूह डोरो हाथ ॥ रचना रचन सुरू करी जी । जे भुक्ती दोनो साथ हो ॥
म॥ २० ॥ कजली वन रेवा नदी जी । फील युथ वट झाड ॥ स्कन्ध बैठी कन्यका उम। विचित्र रंगदिया मांड हो । म ॥ २१ ॥ मृत्युक गज षणाइयो जी । मुक्त फल को ढंग ॥ १ हाथों का इत्यादि रचना रची। मैं तो धरीने अतिउमंग हो ॥ म ॥ २२ ।। करी घडी धरी छाबडी जी । दी डोसीने हाथ ॥ एकान्त कुँवरीने आपिये जी। जिम कोहय न जाणे बात हो । म ॥ २३ ।। देखी बुट्टी खुशी हुइ जी । मिलसी घणो इनाम ॥ सप्त खन्ड ढाल सप्तमी जी || कहे अमोल देखो काम हो ॥ ८ ॥ २४ ॥ ॥ दोहा ॥ हरषाणी मालण तदा । पुण्प करंडर PL कर लेय ॥ गइ ते कुँवरी मेहल में । एकांते रही तेय ॥१॥ पुण्पवती बुलायने । दीना
| गजरा हार ॥ फिर कहे हूं लावी अणूं। पुप्प सटिके मनोहार । २॥ प्रसारी देखाडतावरी २ साडी
| दृष्टि लगाय ॥ आश्चर्य पाइ अति घणा । ए कुण रचना रचाय ॥३॥ए तो बीती मज विषे । सघली दी आलेख ॥ हम दोनों जाणां अछां । बली कुण आयो देख ॥४॥ शंका पडी मनने विषे । सच्चा श्रीधर कौन ॥ जल्दी परिक्षा कीजिये । फिर परण वो जौन ॥५॥
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म.श्रे.
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॥ ढाल ८ मी ॥ अषाड भूती अणगार ॥ यह ॥ पूछे मालण तेह | माजी सच्च मुज केह ॥ मदनज सुणिये ॥ ए उत्तम साडी कुण करी जी ।। ए मुज अतिही सुहाय । एसी नित्य दीजे लाय || मदनजी सुणिये । इनाम देस्यूं मन भरीजी ॥ १ ॥ बाइजी परदेशी कोय । सहू वियोगे दुःखी होए । बाइजी सुणिये ॥ आइ रह्यो मुज बागमें जी ॥ सुरूपे गुणवंत । कळा कौशल्य सोहंत ॥ वा ॥ लोमायो गुणना राग मेंजी ॥ २ ॥ तिन दी साडी बणाय । आग्रह थी को मुज तांय ॥ बा ॥ एकांत दीजे कुँवरी भणी जी ॥ अन्य न जाणे भेद । निवारे सहू वेद ॥ बा || हुकम होसी तो लास्यूं घणी जी ॥ ३ ॥ कुँवरी मन हर्षाय । जाण्या श्रीधर साचाय ॥ मदन | पत्र लिख दियो तिण तदा जी ॥ चिंता मत कीजो कांय । इहां रहजो सुख मां ॥ मदन ॥ उपाय करस्यूं हूं यदाजी ॥ ४ ॥ देजो नित्य समाचार । नहीं कीजो प्रेम विसार || मदन || आखिर सत्य तिरसे सही जी ॥ पंच मोहर संग पत्र | दियो मालणने तत्र ॥ मदन | सुखे राख मुख थी कही जी ॥ ५ ॥ मालण अतिहर्षाय । वेगी आइ बाग मांय || मदन | कागद दियो म्हारे करे जी ॥ कुँवरी खुशी हुइ बहोत । जोइ साडीरी जोत ॥ मदन | डोकरी मुज थी उच्चरे जी ॥ ६ ॥ प्रेम पत्र ते बांचा । बुजी दुख की आंच | म ॥ साच उपजावण कारणे जी ॥ पुष्पनो कंचू बणाय । नाम | गुंथ्यो ज्यों जणाय ॥ मदन | गज मोती गुंध्या वारणे जी ॥ ७ ॥ रखियो छावडी मांय ।
खंड ७
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कुसुम थी दीनो छाय ॥ म ॥ कह्यो एकांतमें देव जो जी ॥ दूजे दिन तिहां जाय । दीनो कुवरीने ताय ॥ म ॥ हर्षी गृह्यो प्रसाद ज्यूं जी ॥ ८॥ खोली मुक्ताफल दीठ । लाग्या मनने मीठ ॥ म ॥ प्रेमे उर लागाबियो जी ॥ दी दीनार पच्चीस । कहे पुरुला जगीस || १ मोहर म ॥ इम नित्य नव २ लावियो जी ॥ ९॥ डोकरी घणी हर्षाय । महारे पासे आय ॥ म ॥ वीतक माडी सह कही जी ॥ नित्य नव २ बणाय । दुं डोसी हाथ पहोंचाय ॥ म ॥ मोती जो कुँवरी बुद्धी लही जी ॥ १० ॥ आइ पिताने पास । कर जोडी करे अरदास ॥ पिताजी सुणिये ॥ गडबड ग्राममें सांभली जी ॥ कोइ आयो रूप बणाय । तिणथी वेम मुज आय | ॥ पित ॥ मन सा म्हारी थांमली जी ॥ ११ ॥ जो होवे पुरी परिक्ष । दोन्यारी महारे समक्ष ॥ पित ॥ तो वर वानो दाखस्युं जी ॥ ज्यां सह्यां मुज काज दुःख । लाया हो मरण सन्मुख ॥पित ॥ तेहथी प्रीती राखस्यूं जी ॥ १२ ॥ नृप कहे तब घबराय । यहां लेबू दोन्या ने बुलाय ॥ बाइ ॥ तूं कीजे परीक्षा तेहनी जी ॥ इम कही दोन्या ने बुलाय । ते कपटी शीघ्र आय ॥ म ॥ दूजाको पतो को कहेनी जी ॥ १३ ॥ तब दाख्यो कुँवरी उपाय । गज मोती जे लाय ॥ पित ॥ पूरा सवासेर जे भरी जी ॥ नमूना के काम । एक मोती दियो ताम ॥ पित गह मेहला माय कुँवरी जी ॥ १४ ॥ नकलीने कहे भूप । लावो मोती इण रूप ॥ मदन ॥ सवाशेरतो कन्या वरो जी ॥ नहीं तो बैठो चुप जाय । साचाकी परीक्षा न थाय
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| | म ॥ परणन इच्छा पर हरो जी ॥ १५ ॥ नकली भइ उदास । इणविध करे प्रकास ॥
खण्ड ७ राजाजी सु० ॥ खरो होस्युं तो लावस्युंजी ॥ नमी गयो घर चाल । गुप्त भम्यो बहू थाल | * मदन ॥ मोती नमिल्या मूंगा भावस्युं जी ॥ १६ ॥ फिर आइ इम केय । गज मोती न* तमिलेय ॥ राजजी ॥ मेहनत निष्फल किम करो जी ॥ रायजी समज्या भेद । तो पण | नकरी ग्वेद ॥ मदन ॥ घर बैठो विचार करस्युं खरो जी ॥ १७ ॥ सचिवस्युं विचारी राय । नगर डंडेरो पिटाय ॥ परजाजन सुणिये ॥ गज मोती सेर सवा लावसीजी ॥ कराइ बाइने | परसन्न । जो गममी तस मन ॥ प्रजा ॥ तो कुँवरी तस परणावसी जी ॥१८॥ पसरी पुरमें बात । राय पुत्री सहू चहात ।। मदन ॥ मांगी मोती घणा लाविया जी ॥ पण नहीं है १३२
|गज मोती नाम । कोइकी न पूगी हाम ॥ मदन ॥ सहु रह्या चुप उमाविया जी॥१९॥ मैं इलका कुलभ वस्त्र कर तैयार । दीय मालणने ते वार ॥ मदन ॥ भज्या राय कुँवरी कने जी ॥
दिया कुँवरी ने जाय । जोइ घणी हर्षाय ॥ मदन ॥ पत्र लिख्या तत्क्षण मने जी ॥ २० ॥ लेइ सहू मोती लार । पधारो सभा मझार ॥ मदन ॥ डर मत धरजो केहनोजी ॥ करस्युं वंदोवस्त । जिम काम होसी परसस्त ॥ मदन ॥ जोर न चालसी जेयनोजी ॥ २१ ॥ २ अच्छा पत्र लिखी दियो तास । दीनी असरफी पचास ।। मदन ॥ झद आइ मालण मुज कने जी । बांची सह समाचार । हों हिये अपार ॥ प्रदन ॥ धेर्य आइ तव मने जी ॥ २२ ॥
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कीधो मनमें विचार | गुप्त करणो उपचार ॥ मदन ॥ कपटी जाणन पावे नहीं जी ॥ मिलूं रायसे जाय । लेवु कुँवरी बुलाय ॥ मदन | मोती बतावुं मैं सही जी ॥ २३ ॥ इम मन निश्चय की । थासी कार्य सिद्ध ॥ मदन ॥ ढाल आठमी ए भह जी ॥ अमोल करे प्रकाश | आगे शिक सम्मास || मदन | सुणियों श्रोता चित दहजी ॥ २४ ॥ ६ ॥ दोहा ॥ चाल्यो राजसभा विषे । आयो जब बजार | लारे लाग्या लोक मुज । करण लाग्या | बेजार ॥ १ ॥ ए आयो ठग ठगणने । रह जो सहू हूशियार ॥ मुज पूछे सिधावो क्या । लाया गजमुक्ता || २ || मैं कह्यो हां लायो अछू । चालो सभा मझार ॥ राय सन्मुख देखाडस्युं । शंकन आणो लगार ॥ ३ ॥ इम कही हूं आगे चल्यो । बहू चाल्या मुज लार ॥ मयंगल मोती पेखवा । करता हा हा कार ॥ ४ ॥ पुरमें पसरी बारता ॥ मिलिया लोक | अनेक || दौडी २ आगले । सहू रह्या मुज देख ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ९ मी ॥ झीणो मार्ग | जिनजी रो | यह ॥ आयो राज सभा विषे ॥ सुखकारीहो मदन जी ॥ कांई लुली २ मुजरो कीध | पुण्यं फल जोइ लीजो !! ऊभो रायजी सन्मुखे ॥ सुखकारी हो राजिंद जी ॥ कोह लोक जुड्या बहुविध || पुण्य ॥ १ ॥ राय पूछे तुम कोण छो । सुखकारी हो मदन जी ॥ तव मैं को कुँवरी लाणार || पुण्य ॥ धूर्त मुजने छेतयों ॥ सुख राज० ॥ कांह कीनो घो | क्ष्वार || पुण्य || २ || राय कहे तुम पास छे ॥ सुख० श्री घर जी ॥ कांई गज मुक्ताफळ
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खण्ड ७
१ देखके
|चंग ॥ पुण्य ॥ हिवणां ते देखाड स्यो हो । सु० श्री ॥ तो सहू पूगे उमंग ॥ पुण्य ॥ ३ ॥
। मैं तब बटवो कहाडियो । सु० मद० ॥ कांइ मुट्ठी भरी तिणमाय ॥ पुण्य ॥ दीधी नृप का १३३ * हाथ में ॥ सु० मद०॥ कांह परक्षी गुण हर्षाय ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ वोलाइ कुँवरी भणी ॥ में
सु०म०॥ अति आदर दे बैठाय ॥ पुण्य ॥ मुक्ताफळ सन्मुख ठव्या ॥ सु० म०॥ बाइ माले तुज मोती मिलाय ॥ पुण्य ॥५॥ कुवरी ये ताम मिलाइया ॥ सु० म०॥ एक सरीवा, 18| जोय ॥ पुण्य ॥ हर्षी घणी मन ने विषे ॥ सु०म०॥ कांह मुज मुख ने अवलोय ॥ पुण्य ९
॥ ६॥ राय थी कहे कर जोडने ॥ सु० पिता जी ॥ कांड येइ सुज दुःख हरणार ॥ पुण्य ॥ २६ मन थकी मैं पहलां कर्या ॥ सु० पिता जी ॥ ए मुगुण भरतार || पुण्य ।। ७॥ इत्ती बात
हुई जित्ते ॥ सु०॥ म० ॥ तत्क्षण निकली आय ॥ पुण्य ॥ चुपके उभो मुज आगले ॥ सु०म०॥ रूपे जन भरमाय ॥ पुण्य ॥ ८॥ मैं कह्यो कुण आगे आविया ॥ सु०॥ म०॥
ते कहे तूं छे कुण ।। पुण्य ॥ में कह्यो मोती मैं लावियो । सु० म०॥ ते कहे बडो निपुण : २६॥ पुण्य ॥ १ ॥ में दिया मोती रायने । सु० म० ॥ तूं झूटो मत बोल ॥ पुण्य ॥ हिवे भागी |
जा इहां थकी ॥ सु०म० ॥ चाले नहीं तुज पोल ॥ पुण्य ॥ १० ॥ मैं बटवो पक्को कर्यो । सु०म०॥ तिण नहीं जाण्यो भेद ॥ पुण्य ॥ लोक तमाशो देखने ॥ सु० म०॥ अतिही | पाया खेद ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ पारोरे मारो धूर्त ने ॥ सु० म०॥ इम राजा प्रजा केय ॥ पुण्य
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॥ पण ओलख नहीं एक ने ॥ सु० म० || विद्या थी एक ही दिखेये ॥ वुण्य ॥ १२ ॥ कुँवरी कह्यो राय कान में | सु० म० ॥ राय होवो हुंशियार || पुण्य ॥ कहे दोमाथी एकी जणो ॥ सु० म० ॥ आवा मुज पास अवार ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ मैं जाइ ऊभो राजाकने ॥ सु० म ॥ कांइ मोती छे तुम पास || पुण्य ॥ इम पूछयो मुज कानमें ॥ सु० म० ॥ कांई मैं करी तब अरदास || पुण्य || १४ || पहलां बंदोवस्त कीजिये ॥ सु० ॥ राजाजी ते नहीं आवे मुज पास ॥ g || तो हूं मोती देखाडस्यूं । सु० राजाजी || नहीं तो होवे मुज नाश ॥ ॥ १६ ॥ कीधो वदोवस्त तत्क्षणे ॥ सु० म ॥ भट सूराने बुलाय ॥ पु ॥ पकडा यों धूर्त भणी ॥ सु० म ॥ मुज लेगयो मेहल मांय ॥ पु ॥ १६ ॥ सूक्ष्म रूप खेचर करी ॥ सु० म ॥ भागी | गयो तेवार || पु ॥ हा हा कार सभा विषे ॥ सु० म ॥ मचियो तब अपार ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ तब हर्ष्या सहज ॥ सु० म० ॥ साचो निवडयो कोण | पुण्य ॥ निर्णय करतां जाणियो । सु० म० ॥ मोती ले आया होण ॥ पुण्य ॥ १८ ॥ साचो जाण्यो ते झूटो भयो ॥ सु० म० ॥ साचो निकल्यो एह ॥ पुण्य ॥ इम सुण दौडी आविया ॥ सु० म० ॥ तत भ्रात धर नेह || पुण्य ॥ १९ ॥ राजा राणी खुशी हुवा || सु० म० || टलियो सघलो दुःख ॥ पुण्य | लग्न करण निश्चय कियो । सु० म० ॥ सहू सज्जन पाया सुख ॥ पुण्य ॥ २० ॥ मेहल दीयो एह रहणने ॥ सु० म० ॥ वली द्रव्य केइ क्रोड || पुण्य | हम सब आइ इनमें
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म. श्रे. १३४
रह्या । मु०म० ॥ उत्सब माड्यो प्रोड ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ शुभ लग्ने परणाविया ॥ सु० म०
खण्ड ७ दीवी जागीरी कढाय ॥ पुण्य ॥ इण विध हम सुखिया भया ॥ सु० म०॥ टलियो में दुःस्वको पहाड ।। पुण्य । २२॥ श्रीधर वीती कथा कही ॥ सु म० ।। सात खन्ड नव ढाल र ॥ पुण्य ॥ अमोल ऋषि कहे सांभलो ॥ सुखकारी हो श्रोताजी ॥ पुण्य फळ यह रसाल ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ * ॥ दोहा ॥ जेष्ट बन्धव की मुण चरी । मदन घणा हर्षाय ॥ धन्य २/ भाइ तुमे । कीना जबर उपाय ॥ १ ॥ कोइक उत्तम वक्तकी। बात बदी सिद्ध होए ॥ ए तो
प्रत्यक्ष पारखो । मैं लीधो छ जोय ॥२॥ आं पा चारं बड परे । नदीने तट पेय ॥ जे जे ६ इच्छा वरणवी । ते पाया छा एय ॥ ३ ॥ हिवे कमी कुछना रही । मिलिया शुभ संयोग * कुलम्बे कह्या तिका ॥ वर्ष बारे ना भोग ॥ ४ ॥ ते काल पूरण हुयो । प्रगट्या पुण्य प्रताप || १३४
॥ हिवे चालो निज बोहर में । सह धन जन संग आप ॥५॥ ॥ ढाल १० मी ॥ हरीया | मन लागो ॥ यह ॥ मदन कुँवर सहूजन संगे । सोभावे उहू गणरे ॥ पुण्यना फल जोइलो संभार्या निज देशनेरे । तिहा चालण हुइ उमंगरे ॥ पुण्य ॥१॥ मदनजी कहे तात ने । अब चालीजे निज देशरे ॥ पुण्य ॥ कुलदेवी लह्या तिकेजी । वर्षे वित्य छे शेषरे ॥ पुण्य ।।। २॥ वसुपतजी कहे चालिये । हम तो सह तुम लाररे । पुण्य ॥ सपून पुत्र तुम सारीख हिवे हमने चिंता न लागाररे ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ श्रीधर नृप पासे जइ । मांगे रजा तेवाररे ॥
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पुण्य || श्वामी जाव हम देश में । संग मिली सह परिवाररे ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ राय कहे इम किम करो। तुमने इहां किस्यो दुःखरे ॥ पुण्य ॥ हम पाछल राज तुम तणो । भोगवो इच्छित सुखरे ॥ पुण्य || ५ || श्रीधर वदे नरमाइने । मिल्यो सहू परिवार मन रंगजी ॥ पुण्य || जन्म स्थान जोवा तणो । सहूने भयो उमंग जी ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ वर्ष घणा हुवा हम भणी । रहतां विदेश न मांय जी ॥ पुण्य ॥ हिवे मिलस्या सज्जन भणी । शीघ्र हुकम फरमाय जी || पुण्य ॥ ७ ॥ राज कहे जिम सुख हुवे । तिम करो सहू काजजी ॥ पुण्य ॥ दल बल जे चाइये । ते लेजावो तुम साज जी ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ इम सुणी खुशी हुवा । लीनी | शैन्य घणी साथ जी ॥ पु ॥ भिलाइ मदन शैन्यमें । साज जम्यो ज्यों नरनाथजी ॥ पु ॥ ९ ॥ शुभ मुहूर्त तणे विषे । कीधो सहू प्रयाण जी ॥ पु ॥ राज साज पहोंचाविया । सीम लगण तस जाण जी ॥ उ || १० || आगल चाल्या मौदमें । सुखे २ करत मुकाम जी ॥ पु ॥ शक्ती भक्ती थी मनावता । विच राजाने लाता ठामजी ॥ पु ॥ ११ ॥ इम अनुक्रमें आविया । अजुधापुरी समीप जी ॥ पु ॥ सुखस्थान जोवन विषे । रह्या जो सिन्धु द्वीपजी ॥ पु ॥ १२ ॥ पूर में पसरी वारता । कोइ आया राजेन्द्र चलायरे ॥ पू ॥ आपणा ग्रामके वाहिरे । रह्या छें छावणी छायरे ॥ पू ॥ १३ ॥ सन्धीपाल आइ नृप ने । अर्ज करे अकुलायरे || पू || न जाणे कुण राजवी । किण कामे रह्या सीमे आयरे ॥ पू ॥ १४ ॥
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खण्ड ७
भूप सुणी विस्मित भया । कुण ए आया किंण काजरे ॥ पू ॥ वैर नहीं महारो किण थकी | । ए छे किहांना राजरे । पू ॥ १५ ॥ जो लडवाने आवता । तो भेजता आगे दूतरे ॥5॥ कारण अन्य दीसे सही । कोइ खवर लावो रजपूतरे ॥ पु ॥ १६ ॥ सामंत तत्क्षण सज हुइ । आया पदन शैन्य मायरे ॥ पू ॥ वसुपति सेठने पेखने । ते अति आश्चर्य लायरे ॥ पू॥ १७ ॥ तस सत्कार्यों सेठजी । उंच आसण बैठायरे ॥ पु॥ पूंछे सामंत सेठसे । आप || पधार्या किण नृप सहायरे ॥ पू॥ १८ ॥ सेठ कही सहू षारता । मदन श्रीधर वीतरे ॥ पु
सुण आश्चर्य पाया अति । कहे धन्य २ पुत्र विनीतरे ॥पू ॥१९॥ फिर आया महीपालपे । भरी सभारे मायरे ॥ पू ॥ वसुपति सेठकी पुण्य कथा । दी सहुने संभलायरे H॥ पु ॥ २० ।। सुणी हा राजेश्वरु । धन्य २ महारा भाग्यरे ॥ पु॥ मुज वस्तीका एहवा
साहूकार सौभाग्यरे ॥ पू॥ २१ ॥ हूं लावस्युं बधायने । करावो शैन्य तैयाररे ॥3॥ पुरमें पसरी वारता । वसुपति आया सह परिवाररे ॥ पु॥ २२॥ शैन्या तस पासे घणी। पांच राज स्वाधीनरे ॥ पु॥ जे सुणे ते आश्चर्य लये । अहो २ पुण्याप्रवीनरे ॥पु॥ २३ ॥ | बसुपतजी की दुकानपे । सुणियां मुनीम समाचाररे ॥ पुण्य ॥ सेठ थी मिलण उमाइया। सहु सजन हुवा तैयाररे ॥ पु ॥ २४ ॥ राजा प्रजा शैन्य संगे । चाल्या बाजित्रने नादरे ॥ पु॥ ढाल दशमी सप्त खन्डकी । अमोल भणे हुयो समादरे ॥ पू॥ २५ ॥ दोहा ॥ वसुपत
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शाह सांभल्यो । सामे आवे राज । स्वजन परजन परिवर्या । मिलवा उत्सुक आज || १॥ हर्षाया घणा मनमें । कियो परिवार तैयार ॥ भारी लियो भेटणो । चउ पुत्र संग ते वार ॥२॥ आयी बैठा मार्गे । जोता सहकी बाट ॥ तेतले जन आवा तणो । सांभलियो | घोंघाट ॥ ३ ॥ गज गाजी गण गम मिल्या । आवे शीन चलाय ॥ नेडा आया देखने ।।
वसुपति उभा थाय ॥ ४ ॥ बहू मौल्यो सज भेटणो। बह तो साज सजाय ॥ मिलवाभ - सजन राजने । अतिही मन उमंगाय ॥ ५॥ ॥ ढाल ११ मी ॥ महारे आज आणंदानो
| दिन छे जी ॥ यह ॥ आज आनंद दिन सेठ आविया जी। सह सज्जनके मन भाविया में || जी ॥ ॥ सेठ सपरिवार उभा जोयने जी ॥ फाज उर
१॥सामा आया भूप पांयां चरीजी । सेठ सामा आया हर्षे भरी जी ।। आ ॥२॥ लुलीम X| २ नम्या सेठ परिवार थी जी । राय खुशी किया घणां सत्कार थी जी ॥ आ ॥ ३ ॥ सेठ
नजराणो सामो कियो जी । राजेश्वर हर्षी लियो जी ॥ आ ॥४॥ सहविध लायक तुम | | सेठछो जी । किसी वस्तु हम पास करां भेट जो जी ॥ आ ॥५॥राज्प मान्य राजेश्री में तुम मिल्या जी ॥ तुम दीठा पूण्य म्हाणा फल्या जी । आ॥ ६॥ प्रधानादिक आइ नम्या : * जी । यथायोग्य फिया सहूना गम्या जी ॥ आ ।। ७॥ राय वसुपति एक गजारूढ भया
जी । चउ भाइ दूजे दंती साभी रयाजी ॥ आ॥ ८॥ सह शैन्य साथ बाजिंत्र बाजिया
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खण्ड ७
FE जी । चाल्या ग्राममें अंबर गाजिया जी ॥ आ॥ ९॥ नर नारी जोवे बहु गम्म मिल्या जी
। हाट वाट ग्रह छत्त मांहे ठल्याजी ॥ आ ॥ १०॥ सहू मदनने अथिको दाखवे जी ।। गण गुण मुख तास ही भाखवे जी ॥ आ ॥ ११ ॥ देखी ऋद्धि वसुपति शाहा तणी |
जी । लोक जाणे ए छे स्युं भरत धणी जी ॥ आ॥ १२ ॥ राय मेहल दियो मोटारेण | ने जी । तिहां वसुपत उतरू संग सेणनेजी ॥ आ ॥ १३ ॥ राजादिक निज स्थाने गया जी ॥ ग्रामे आनंदवर्ती रह्या जी ॥ आ ॥ १४ ॥ पसरी परसंस्था सुगन्ध परेजी ॥ धन्य वसुपति सहू उच्चरेजी ।। आ ॥ १५॥ भोजन भक्ती करी सुख पाधिया जी । बहु उत्सव काल गमाविया जी ॥ आ॥ १६ ॥ लीनी खबर ज्युना घर तणी जी । शावासी मुनीमने दी घणी जी ॥ आ ॥ १७ ॥ सहू ग्राम भणी जिमाविया जी॥ वस्त्र भूषण सहूने पहराविया जी ॥ आ ॥ १८॥ पीयर थी बुलाइ चारुं बहु भणी जी॥ ते पण हुइ खुशी घणी जी ॥ आ ॥ १९ ॥ देखी ऋद्वि राजेश्वर जेहवी जी ॥ मान्यो | अहो भाग्य आपणो तेहवी जी ॥ आ ॥ २० ॥ विद्या बले मदन सिधाविया जी। सुवर्ण पोरसो कहाडी लाविया जी ॥ आ ॥ २१ ॥ तेह रख्यो गृह गुप्तमें जी । कोह नहीं करी सके लुप्तनेजी ॥ आ ॥ २२ ॥ दानशाळा मंडाइ देशमें घणी जी । करे| पोषण अनाथ अगनी जी ॥ आ॥ २३ ॥ विद्या बृद्धीना कार्य लय किया जी । धर्म
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उन्नती कर लाभज लियाजी ॥ आ ॥ २४ ॥ पसरी कीर्ती चउदिश मायनेजी ॥ कही * ढालग्यारे अमोलख गायनेजी ॥ आ ॥ २५ ॥ * ॥ दोहा ॥ एक दिन मदन जी चिंतवे । हूं || र लुब्ध्यो इहां आय ॥ पाछल झुरे परिवार मुज । करी दर्श फर्श चाय ॥१॥ हिवे शीघ्र निज शैन्य सज । चलणो फिर सह ठाम ॥ संतोषू सहूने हिवे । करूं मै एकण धाम ||
२॥ इम निश्चय कर आविया । तात भ्रात नृप पास ॥ निज इच्छा जणाय ने । ली आज्ञा | | हुल्लास ॥ ३॥ शैन्यापति बुलायने । सजाइ फोज ते वार ॥ मेहंदपुर श्रीपुर तणी। | वट पुरनी ले लार ॥ ४॥ प्रणमी पग सज्जन तणा। करी पुरजन सत्कार ॥ गजारुढ हो | | चालिया। मदन श्वसुर ते वार ॥ ५॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ लावणी ॥ दया धर्म का मूल॥ | यह ॥ पुण्य सदा सुखकार । प्रगटे करी हुइ पुण्याइ ॥ मदन कुँवर पुण्य जोग । कीर्ती |
| जग में फेलाइ ॥ ७ ॥ प्रथम श्री पुर आया खबर ए राजा प्रजा पाइ आया सामने | FE अति उमंगे। ले गया बधाइ ॥ खान पान सुस्थान भोगवे । रहे आनंद माइ॥ गुणसुन्दरी | मिली पीत्यो सहु वीतक चेताइ ॥ ढाल ॥ तिण अवसर रुपी राय जी आया राजा प्रजा | सहू वंदन धाया । मुनीराज उपदेश सुणाया । श्रीपुरपति वैरागज लाया ॥ मिलत ॥ | मदनकुँवरने देइ राज । लेइ दीक्षा सुख पाइ ॥ मदन ॥१॥श्रीपुरपती भया मदन । | तत्क्षण खातीने बुलाया ॥ अखूट धन सुख देइ पासे राख्या तिण तांया । आगल चालण
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खण्ड
* कीनी इच्छा । सुन्दरीने चेताया ॥ यहां का लस्कर यहां ही छोडा । दोनों सज वाया ॥ * झेला ॥ खातीपुत्रीने राज संभलाइ । गुणसुन्दरीने साथे ठाइ । महेन्द्रपुर फिर आया 8
चलाइ । राजा प्रजा सुण हर्षाह || मिलत ॥ गया ग्राममें विध पूर्वली । सुख थी रह्याइ में ॥ मदन ॥ २॥रंभा मंजरी अतिसुख पाइ । पुरपति विचारे । बृद्ध भयो नहीं राज निभे । करूं मदनजी सिरदारे ॥ दियो राज अतिकरने आग्रह । आप धर्म धारे ॥ थोडेही में | काले आयू पूर्ण कर । गये स्वर्ग मझारे ॥ झेल ॥ मदनेश्वरजी राज निभावे। आगल || #जावाको मन थावे । कोटवालने राज भोलावे । दोनों नारी साथ सिधावे ॥ मि० ॥ फौज तिहांकी तिहां छोड और लीनी साथाड ॥ मदन ॥३॥ चल आये || पयठाण पुरमें । उपजा आनंदा ॥ घर दुकान सडू काम संभाल्या । रुपवती समंदा ॥ | अचानक राय मृत्यू पाये । उपज्या ए फंदा । सहू शल्लाथी मदन राज किया। मिट्या सहू: १३७ में दुःख धंदा ॥ झेल ॥ भद्रसेणने राज भोलाइ । तिहां विमाणकी करी सजाइ । तीनों
महिला माय बैठाइ । विद्यावल थी तास चलाइ ॥ मि० ॥ आनंदपुरमें आया उतरि
या यक्ष देवल मां ॥ मदन ॥ ४ ॥ नारी संग प्रणम्या जोगी पग । आसिस ते देवे | R॥ आज दर्शने प्रसन्न हुवा चित, नरमी मदन केवे ॥ देवल रक्षक जा दीनी बधाइ।
सुणी हर्ष लेवे । दौडी आया जल देख मदन कहे । धन्य २ अहमेष ॥ झे ॥ बधाइ
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|| लाया मेहल मझारो । कनकावती मन हर्ष अपारो। राजपाटकी करे संभारो ॥ वर्त
रह्या छे मंगलाचारो ॥ मि ॥ चारी सखी मिल अति हर्षाह । जो विभूती इन्द्र के साइ ॥ | मदन ॥५॥ फिर अजुद्या जावण सज हुया । राजपुत्रको राज दिया ॥ चारी प्रेमला | अंगज साथ ले । जोगीश्वरको नमन किया ॥ बेठ विमाणे गगन गति चले । भूमंडल ऋद्धि | देखारया । रंग बिनोद मार्ग लंघता । अजुद्यापुरी आय गिया ॥ झेला ॥ घर आगल विमाण उतरिया । जाणे भंवर रवी अवतरिया । नर बृन्द मिल्या आश्चर्य भरिया । वहा | | वहा मदनजी पुण्यका दरिया ॥मि ॥ चार नार संग मदन कुवरजी । मिल्या मावित्र भ्रात भोजाइ ।। मदन ॥ ६॥ देख मदनकी ऋद्धि इन्द्र सम । राज प्रजा आश्चर्य लाये ॥ दया नम्रता क्षमा सील थी । मदनजी अधिका सोभावे ॥ गुणयंत जे मनुष्य देखता। गुणीजन सघला हर्षावे । राजपुत्रियों नमी सासू पाग । तास खुशी न हीये मावे ॥ झेल | रूब कुटुंब संग सुख थी रहावे । दो गंधक सुर जों सुख विलखावे । गगन गामणी विद्यार प्रभावे । चार राजने सुखे निभावे | मि॥ अमोल ऋषि कहे ढाल द्वादश । पुण्य पदार्थ
१ज्ञान | गृहो भाइ ।। मदन ॥ ७॥ 8 ॥ दोहा ॥ तिण अवसर पधारिया । संयति ऋषिराय ॥नाण करण चरण दिके । गुण छत्तीस सोभाय ॥ १॥ पंचसय साधू संगे । फिरता जनपद देश
२ क्रीया द। अयुध्याके वागमें । उतर्या लइ आदेश ॥२॥ राजा पासे जाइने । दी यधाइ वनपाल ॥
३ चरित्र
常常保常常带常常
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| सुणी सहू आणंदिया । दीधो बहुलो माल ॥३॥ श्री भंडार थकी दीवी । हीरण अर्ध |
खंड ७ 1 लक्ष तर ॥ हर्षीन घरे गया । सजीसजाइ फेर ॥ ४ ॥ सह परिवार परिवर्या । चाल्या वंदन | १३८ राय । हय गय रह पालखी । स्वजन परजन महाय ॥५॥ * ॥ ढाल १३ मी ॥ क्षिण -
लाखे जीरे जाय ॥ यह ॥ रायभवन थी नीसरी जी । वन पालक ते वार ॥ वसुपति मेहले र
आविया जी। मदन तणे दरबार ॥१॥ भाविकजन । धर्म सदा मुख दाय ॥ आ॥ १साडाबारह बधाइ दे पधारिया जी । मुज वागे मुनीराय ॥ पांच सय परिवार थी जी । सुणी सहर कोड रुपैये
हर्षाय ॥ भविक ॥ २॥ धन दियो तिण ने घणो जी । ते आयो निज घेर ॥ सहू परिवार | ने सेठ नी तब । हुकम दियो इण पेर ॥ भविक ॥ ३ ॥ शीघ्र चलो वंदण भणी जी महापुण्ये मिल्यो जोग ॥ जे प्रमाद ए वक्ते करे जी । जाणो तस कर्म रोग ॥ भविक ।
१३८ ४॥ सेठ सेठाणी बेटा बहूजी । दासादिक परिवार ॥ सगा स्नेही सजायने जी लीना 52 सबही लार ॥ भवि ॥ ५॥ राजाजीने लारे थया जी। और सायबी लार ॥ मध्य बजारे । & होयनेजी। आया वाग मझार ॥ भवि ॥ ६ ॥ जो मुनीवर वाहण तज्या जी । पंच || अभीगम सांच ॥ सचित वस्त दूरी ठवीजी । मुनी गुण दर्शन राचा ॥ भवि ॥
अचित अजोगने परहरी जी । मुख उत्रासण किध ॥ सरल करी श्री जोगनेजी। धर्म में ध्याने चित दीध ।। भवि ॥ ८॥ नहीं नजीक नहीं वेगला जी । नमन यथाविध कीन ॥
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बैठा नम्र हो सन्मुख जी । कथा सुणन चित दीन ॥ भवि ॥ ९॥ परिषद भरी जोयनेजी। दे मुनीवर उपदेश ॥ भव निवारण कारणेजी । समज्यो धर्म कीरेस ॥ भवि ॥ १०॥ धर्म | अनेक प्रकारका जी । पण मुख्य छे दो भेद ॥ पुद्गलीने आत्मिक लखोजी । पुद्गली देवे खेद ॥ भवि ॥ ११ ॥ पुद्गल के परिषय थकी जी। भमियों अनंत संसार ॥ जेह वमन कर आवियो | जी । तस भख्यो अनंत वार ॥ भवि ॥ १२ ॥ तो पण तृप्ती नहीं भइ जी। अधिक २ भइ चहाय ॥ अग्नीनी परे तृष्णाजी । सर्व भक्षवा जाय ॥ भवि ॥ १३ ॥ नटवाकी परे नाचियो |
जी । करी अनंता रूप ॥ पुद्गलकी ममता थकीजी। पड्यो भवांतर कूप ॥ भाव ॥ १४ ॥ २ रोगी | शुद्ध लहो हिवे तेहंनी जी। थावो मा गिल्याण ॥ बमण भोग इच्छा तजो जी । येही
| खरो विन्नाण ॥ भवि ॥ १५ ॥ आत्मिक धर्म ते जाणिये जी । धरेन पुद्गल प्रेम ॥ पूरे
गले मिल वीछडे जी। तेह थकी किसी क्षेम | भवि ॥ १६ ॥ अनंतकालकी संगती जी। | सहजे नहीं तजाय ॥ सम्यक्य देशवृती लही जी । अणगारी जब थाय ॥ भवि ॥ १७
॥ मयांदा संकोचता जी। अहार वस्त्रने योग ॥ भावे कषाय घटावता जी । जेह * अनादी रोग ॥ भवि ॥ १८ ॥ इम गुणस्थान रोहता जी । आत्म ध्यान लगाय ।। 1 लीन होवे निज रूपमें जी । सहू विकल्प मिटाय ॥ भवि ॥ १९ ॥ धर्म ए आत्म
ओलखी जी । तजी कर्मनो भर्म ॥ निष्फल श्रम जे नीपजेजी । वरो उंचो ए वर्म ॥
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म.श्रे.
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२ अमृत
भवि ॥ २० ॥ तो नर गतिकी सार्थता जी । हुइ समजो मम प्राण ॥ विद्या चरण युग तारका जी । नहीं एकहीकी ताण ॥ भविक ॥ २१ ॥ येही विचार तो सार छे जी ॥ धार मुमुक्षु हित ॥ छोड प्रणती अनादनी जी । होय खरा मुज मित ॥ भविक ॥ २२ ॥ सर्व प्राणी तारणोजी । दिये गुरु सन्दोध || अमोल ढाल त्रयोदशी जी । लागी आत्म की साध || भविक || २३ ॥ ॥ दोहा ॥ पियुष पवासी प्रासियो । त्यों प्रगम्यो उपदेश ॥ यथाशक्ति वृत धारने । गयो परजा नरेश ॥ १ ॥ वसुपति कहे श्वामी जी । साची आपकी केण || हिवे तारूं मुज आतमा । साचा मिल्या तुम सेण ॥ २ ॥ ऋषि कहे सुख जिम करो । न करो धर्म मेंढील || तारो आत्मा आपणी । अवसर एह मुशकील || ३ || मुनि वंदी गृह आविया । बोलायो परिवार || निज इच्छा दर्शावता । सह मुरजा तिण वार ॥ ४ ॥ मदन कहे कर जोडने । कीजो विचारी काम | आप जाण अवसर तणा । तिहां नहीं कुछ धाम ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल १४ मी ॥ महारो मनडो ऋषभजी से राजी ॥ यह ॥ मेरा मनडा संयम में उमाया ॥ आ । मैं तो बचन विचारी उचार्या । मुज चेतवा वक्त ए आया ॥ मेरा ॥ १ ॥ सशक्ति निज काज सुधारूं । तो जन्म मरण मिट जाया । मेरा || २ || जे परवसमें दुःख मैं सहिया । ते संयम में न देखाया | मेरा || ३ || धर्म मार्ग में दुःख नहीं सहिया ।
खण्ड ७
१ दान क्रिया दोनो
१३९
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३ शत्रू
S
| ते परवशमें दुःख पाया || मेरा ॥ ४ ॥ हिवे चेतूं तो कुछेक सुधरे । अपूर्व वक्त ए आया ॥ मेरा ॥ ५ ॥ नहीं तो पीछे गोता खारयूं । महामनीवर फरमाया ॥ मेरा ॥ ६ ॥ तुमसा | सपूत मिल्या नहीं सुधारूं । तो मैं मूर्ख गिणाया || मेरा ॥ ७ ॥ निज हित में अंतराय जे देवे । तेहीज पिशुन जणाया ॥ मेरा ॥ ८ ॥ थोडामें समजी दो आज्ञा । कछू सारन खेंचायां ॥ नेरा ॥ ९ ॥ प्रियवती कहे भली विचारी । मुज मनमें येही चाया ॥ मेरा ॥ १० ॥ पुत्रादिक कहे सुख जिम कीजे । दिक्षा उत्सव मंडाया ॥ मेरा ॥ ११ ॥ करी आडंबर वागमें आया । लोच करी सोच छिटकाया | मेरा ॥ १२ ॥ लीना संयम श्री गुरुपासे । कुटम्ब बन्धी घर सिधाया ॥ मेरा । १३ ॥ विनय भक्ती कर शिक्षा ग्रही दोइ । मुनी महासतियाजी में रहाया ॥ मेरा ॥ १४ ॥ यथाशक्ति करी ज्ञान अभ्यास ते । तप जप चित रमाया || मेरा ॥ १५ ॥ तप जप क्षप करे चडते भावे । अंत अवसर जब आया ॥ मेरा ॥ १६ ॥ आलोह निंदी करी संथारो । समाधी चित लाया ॥ मेरा ॥ १७ ॥ आयुष्य | पूर्ण हुया तनने त्यागी । वसु ऋषि ब्रह्म स्वर्ग पाया ॥ मेरा ॥ १८ ॥ तिहांथी चवी थोडा ही भव में । जासी मोक्षरे मांया | मेरा ॥ १९ ॥ सुपुत्र योगे तिरिया तात मात । पुत्र ने लारे गवाया || मेरा ॥ २० ॥ ढाल चौदमी सातमा खन्डकी । अमोल भाव दरशाया ॥ | मेरा ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ हिवे श्रीधर मदनजी । भोगे जगका भोग ॥ धर्म ध्यान
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ण्ड ७
१४०
करे चुंपसे । उभय पक्ष सुयोग ॥१॥ सामायिक त्रिकालकी । पौषध छे छे मांस ॥ प्राप्त वस्तु थी अधिक । तजी सर्व द्रव्य आस ॥२॥ चारराजका कृत्य को । राख्ये | छे आगार ॥ बाकी इच्छा पर हरी । तजी पंच वरनार ॥३॥ तन मन धने दीपावता ।। श्री जिनेश्वर धर्म ॥ चउ तीर्थको पोषता । समज्या धर्म का मर्म ॥४॥ ढाल १५ | मी ॥ आज तो बधाइ राजा नाभ के दरवाररे ॥ यह ॥ अर्थ धर्म साधक है। मदन | परिवाररे । आं। मूल स्थान अजुध्या में । रह्या सह ते वाररे ॥ अर्थ ॥१॥ इच्छा हुया वैठ विमाणे । फिरे इच्छा चाररे ॥ अर्थ ॥२॥ चारही राज संभाले पोते। करी सुख उपचाररे ॥ अर्थ ॥ ३ ॥ वटपुर मिलवाने गया । श्रीधर जे वाररे ॥ अर्थ ॥ ४॥
राज देइ मारिया राजा । श्रीधर करे संभाररे ॥ अर्थ ॥ ५ ॥ दोय श्यामा श्रीधरनी। 5 रूप गुणे श्रेयकाररे ॥ अर्थ ॥ ६॥ रूपवतिने पुष्पवती संग । भोगवे सुख संसाररे ।
अर्थ ॥ ७ ॥ दोहने दो नंद हुया। रूप गुण तदकाररे ॥ अर्थ ॥ ८॥ पद्मसेण गुणदत्त नाम गुणाधाररे ॥ अर्थ ॥ ९ ॥ मेतारजने धन्नश्री । हुवा एक कुँवाररे ॥ अर्थ ॥ १० ॥ नाम जसोघर दीपे । करे चैन चाररे ॥ अर्थ ॥ ११ ॥ अंगजने प्रियेकरी। नारी सुखकाररे ॥ अर्थ ॥ १२ ॥ गुण शील कुँवर हुवा । रूप गुण उदाररे ॥ अर्थ ॥ १३ ॥ मदन ने नारी पांच । अपच्छरा अनुहाररे ॥ अर्थ ॥ १४ ॥ रत्यवती वैश्य पुत्री । चार
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छे राज कुँवाररे । अर्थ ॥ १५ ॥रंभी मंज्जरी गुण सुन्दरी । कनकावती साररे ॥ अर्थ ॥ ॥१६॥ रूपवती ए पांचो प्यारी। मोहे दिप्त दीदाररे ॥ अर्थ ॥१७॥ पांच पत्र पांच केरा । नाम करूं उच्चाररे ॥ अर्थ ॥ १८॥ हरीसेण वारीसेणे । महासेण मनोहर रे ॥ अर्थ में ॥ १९॥ जयसेण मित्रसेण । कलागुण भंडारे ॥ अर्थ ॥ २० ॥ सर्व शिशुचारु भाइका । | भणाया तेवाररे ।। अर्थ ॥ २१ ॥ कला बहोत्र सीखी नरनी । चौसट जाणी नाररे । अर्थ में | २२ ॥ सामायिक प्रतिक्रमण क्रिया। तत्व द्रव्यं नवकाररे ॥ अर्थ ॥ २३ ॥ नय प्रमाण | अनुयोग्य नीती । सीख्या तंत साररे ॥ अर्थ ॥ २४ ॥ सर्व कला प्रवीन जाण्या । उपवय
हवा जे वाररे ॥ अर्थ ॥ २५॥ योग्य जोडी देखी परखी । परणाइ तस नाररे ॥ अर्थ ॥ |२६॥ काम संभालण जोगा हुवा । उतारण भाररे ॥ अर्थ ॥ २७ ॥ वैश्य जाती घर संभलाय । करो नीती वैपाररे । अर्थ ॥ २८ ॥ जिण २ ग्रामरी राय कन्या थी । तिण २ कुँवरने र धाररे ॥ अर्थ ॥ २९ ॥ नानाजीका राज संभलाया । किया घणा हुशियाररे । अर्थ ॥ ३०॥ निश्चित हुवा चारं भाइ । अमोल पन्नरमी ढालरे ॥ अथें ॥ ३१ ॥8॥ दोहा ॥ निश्चिंत हुवा | सहू । करवा आत्म उधार ॥ छोडी परपंच घर तणो । षट पट को वैपार ॥१॥ भाइ चउ | पत्नी सहू । पौषधशाळा मांय ॥ धर्म साधना नित्य करे। सीधो अहारज खाय ॥२॥ अभिनव ज्ञान वधारता । करी अबृत संकोच ॥ स्वधर्मी को पोषता ॥ अन्यमती धर्म रोच
RYANMASHAN
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म.
१४१
味
॥ ३ ॥ साधु सतींनी साधता । यथायोग्य नित्य सेब || श्री जिन धर्म दीपावता । तल्लीन रही अहमेव ॥ ४ ॥ तन तप थी धन दान थी । लेखे लगावे जेह ॥ देखी करणी जिण तणी । वधियो धर्म अछेह || ५ || || ढाल १६ मी ॥ लावणी । एक नगर बणा गुलजार ॥ यह ॥ सुणलेणा दान का फल | होय वीमल । दान नित्य दीजे ॥ तो मदन कुँवर परे संपदा लीजे ॥ आं ॥ तिण अवसर भूमंड माय । फिरे मुनीराय । गुरु गुणधारी ॥ पंच महाव्रत समिति पांच पांच आचारी ॥ सील घरे नव बाड । तीन गुप्त आड । कषाय चौटारी ॥ पांचों इंन्द्रियसे विषय लेहर निवारी || झेला ॥ सुणो भाइ, छत्तीस गुण जहां पावे । सुणो भाइ, घणा मुनी साथ सोभावे । सुणो भाइ जे जैन धर्म दीपावे । सु० तिण अवसर अजुध्या आव || मिलत ॥ सुदर्शन ऋषिजी संत । इन्दू सोहंत । दर्श तस कीजे ॥ तो मदन ॥ १ ॥ बन पालक सज थाय । नृप सभा आय । दीनी बधाइ ॥ वदनजी सह परिवार | खबर यह पाइ ॥ सहू सजाइ कीन । मज्जन संग लीन । चले भाइ बाइ । यथा विधी मुनीराज आय वंद्याह ॥ झेल || सु० || आचार्य पंच ज्ञानधारी । सु० अवसर उचित उचारी । सुण० दान तणी महिमा भारी । सु० लोपात्र भेद विचारी ॥ मि० ॥ निश्चय मुक्त पहोंचाय । द्रये ऋद्धी पाय । पाप सहू छीजे ॥ तो मदन ॥ २ ॥ साकेतपुर शुभ ग्राम । सेठ गुण धाम । मणी भद्र रेवे ॥ चउ गुमास्तां संग धर्म ध्यान नित्य सेवे ॥
1
खण्ड ७
१४१
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करे घणो वैपार । चित उदार । दान घणो देवे ॥ इम तन धन पाइ । श्रेष्ट लाभ तस लेवे *॥ झे० ॥ सुण ॥ चउ मुनीवर जी तिहां आया । १० विहारे श्रम अति पाया। सुण
क्षुधा त्रषा शोषी काया । सु० मन बलिया नहीं घबराया ॥ मि०॥ पुरी मंडल मझार । फिरे दारो दार । इर्या सोधी जे ॥ तो मदन ॥ ३ ॥ देखी सेठ हुल्लसाय । दौड झट आय ।। | करे इम अर्जी । कृपा करो महाराज । तारो मुनीवरजी ॥ है शुद्ध मुज घर अहार । चार
प्रकार । लेवो जे पर जी ॥ तिम चउ मेहता हर्षाय दान के गर जी ॥ २०॥ सु० तब ६ मुनीराज पधारे । सु० धामे भोजन विविध प्रकारे । सु० धोवण उष्णोदक तैयारे ॥ सुलभ
थी मेवा मिठाइ भारे ॥ मि० ॥ और मुखवास । चार अहार खास । हुइ हुल्लास । धामे | सहू चीजे ॥ तो मदन ॥४॥ चित वित पातर शुद्ध । थाल भरलाइ ॥ सर्व तरहको आहर सेठ बहराइ ॥ चारों मेहता दे दान । चिंते मन म्यान । घणो ले जाइ ॥ तिण करण र वेहरावणमें करी कपटाइ ॥ झे ॥ सु० ते थोडो २ वेहराइ ॥ सु. मुख बातां यहुली बणाइ । सु० ते स्त्री गौत्र बन्धाइ ॥ सु० मुनीराज वेहर सिधाइ ॥ मि ॥ सुखे रहे हैं पंच प्रान । करे धर्म दान । एकाग्र लगीजे ॥ तो मदन ॥५॥ तिहां थी ची मणी चन्द । पुण्य अमंद । मदनजी थइया ॥ चउदान तणे प्रताप राज चार लहिया ॥ चार महता करी काल । उपज्या तत्काल । राज घर आइया ॥ कपट प्रभावे नारी वेर्दै ते थइया
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॥ झेला ॥ सु० पूर्व प्रेम प्रभावे । सु० चारी राणी ते थावे । सु० दान थी संपदा पावे। मु० वली धर्म में मन रमावे | मि ॥ इम जाणी दीजो दान । करी सन्मान । तजी अभीमान | शुष्क ब्रतीरीजे ॥ तो मदन ॥६॥जे कीधा ते पाया। वणिक कल आया। राजा केवाया ॥ किंचित दुःख थी मुख अचिंत्यो पाया ॥ और भावे गुण भारी । प्रत संसारी। भइ तुम काया ॥ तेहथी तारण सामग्री कर तुम आया ॥ झे ॥ सु० ए ऋद्धि साथ नहीं जावे । सु० ए ऋद्धि न दुःख मिटावे । सु० दान मांही देवे ते पावे । सुण मोक्ष अर्थी ए छिटकावे ॥ मिल ॥ इम जाणी अहो प्राणी । संतोष करीजे ॥ तो मदन ॥७॥ अब छोडो ऋद्धि करो करणी । भव उद्धरणी । जिन जी फरमाइ । खांत दांत निरारंभ अणगार ज थाइ । ते मिटा देवे जन्म मरण । फिरी अवतर्ण । मोक्ष में जाइ ॥ ए सार जगतमें धारो सुखेच्छू भाइ ॥ झेला ॥ सु० ए गुरु उपदेश रसाल । सु० सुणी भवी जीव तत्काल । सुण साहवा धर्म करण उजमाल ।सुण भाइये हुह षोडशमी ढाल ॥ मिल ॥ए ऋषि वचन अमोल। हिया में तोल दान शुद्ध दीजे ॥ तो मदन ॥८॥ॐ ॥ दोहा ॥ इत्यादि दीदेशना। सुणी भव्य हर्षाय ॥ जाणी मदन पूर्व चरी । घणा जन विस्माय ॥ १॥ अचिंत्य महिमा दानकी। | थोडा में महालाभ || दाता भुक्ता सब मिल्या । भाव जिसा उत्साभ ॥ २॥ दान शील तप भावना । धर्म का चार प्रकार ॥ प्रथम पद इण कारणे । दियो दानने सार ॥ ३ ॥
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पुण्यवंत अवसर पायने । लेग्वे वस्त लगाय ॥ कंकरको कंचन करे । कालंतर में जणाय ॥ ४ ॥ विशेष काले जे फले । ते विशेष दे सुख ॥ इम प्रत्यक्ष आसा तजी । ग्रहो परोक्षो हो मुख ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ११ मी ॥ अगड दम २ बाजे चौघडया ॥ यह ॥ महापुण्यवंत श्री मदन बर जी । दान सेकियो खेवा पार ॥ पाप हावन धर्म बडावन पुण्य प्रकाश कियो अधिकार ॥ आं॥ सुणी पूर्व भव रचना मदनजी । मुनीवर ने जाण्या उपकारी । विन पूछ्या मुज तारण कारण । कथा कही पहिली महाती ॥ ऋद्धि इण थी अधिक मैं पाइ । छोड आयो अनंतवारी ॥ आत्म ऋद्धि प्राप्त । हुया विन । भव २ में हुइ खुवारी । अबतो हूं गुरु कृपा ए समज्यो । करूं आत्मका | निस्तारा ॥ महा ॥१॥ उठ वंदणा कर कहे पूज्यथी। भली कृपा करी महाराया दीनदयाल दयाकर दीनपे । भवंत्र महारा फरमाया ॥ अल्प गुरुसेवा का फल यह । अयम
करस्यूं अर्पण काया ॥ ऋद्धि सिद्धी तो मुज नहीं चहिये । जन्म मरणसे घषराया ॥ येही * दुःख मिटावन कारन । लेस्यूं हूं संयम भारे ॥ मदन ॥ २॥ ऋषिजी कहे करो सुख होवे में * जिम । धर्मे ढील करणी नाहीं । सुणी हर्षी वंदी घर आया। जग छोडन मन उमाह ॥
आइ विराज्या धर्मस्थानके । सब परिवार लिया बुलाइ ॥ कहे सहू मुज देवो आज्ञा । में दीक्षाकी लगी अति चाह ॥ सहू कहे किसी कसर यहां है । कर रह्यो आत्म उद्धार ॥
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१४३
में मदन ॥३॥ मदन कहे तुम ज्ञानी होइ । इसा वचन मुख मत बोलो ॥ जन्म सर्व श्रावक-*
व्रत धरे । नहीं मुतीकी दो घडी तोलो ।। मुनी मार्ग शिवसुखकादाता । संसारमें चउगति | * जोलो ॥ मनुष्य भवेही संयम आवे । कुण खोवे वक्त अमोलो ॥ हूं तो लैस्यु संयम अब्बी में || ढील करूं नहीं लगारे ॥ मदन ॥४॥ तीनो भाइ कहे नरमाइ । विरह हमथी सह्यो नहीं #जावे ॥ जो आत्म उद्धार करोतो । म्हारे ही मन ते चावे ॥ मदन कहे यह भली विचारी में ६। प्रेमला तब दौडी आवे ॥ सह मिली एक मतो कर्यो थां । म्हाकी गती कैसी थावे ॥
हरगिज हम जावां नही देशा। महाके तुमही आधार । मदन ॥५॥ मदन कहे मोह में दिशाको छोडी । ज्ञान नजर करके जोयो ॥ किंचित पापे भह छो नारी । इन से हलकी | * मत होवो ॥ साचो प्रेम जो राख्यां चावो । तो मोहनिंद्रासे मत सोवो । अवसर पाइ ६ करो कमाइ । जिनसे भव भ्रमण खोवो । तुम कहणी थीई नहीं । तुम क्यों नहीं तिरो संसार ॥ मदन ॥ ६॥ संक्षेपे अति बौध बचन सुन । कहे हम भी साथे आसां ॥ जैसी प्रीत संसारे निभाइ। वैसी धर्म में निभासां ॥ इम सुणी कुवर पयंपे । सर्व एक मन तुम भइया ॥ तो आसरो हमने किनको । जो नहीं रहे तात मैया ॥ और सज्जन भी
मोहवश होइ । नेणां आंशू नीतारे ॥ मदन ॥७॥ मदन कहे अहो मोहो गिल्याणी । में जरा विचार करो मन में ॥ आसरो दाता को नहीं जगमें । मतलब वसे सारा जनमें ॥
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| आप आपणा कीधा पावे । कुण लोभाचे व्यर्थ धनमें ॥ तुम सरीखा सुपुत्र सज्जन मुज। में| तारुं जन्म हिवे नरपनमें ॥ करो धर्म दलाली भारी । दे आज्ञा तुम इण वारे ॥म ॥९॥ र इम सह कुटंब समजाया। खबर चारी राजमें जावे ॥ मोटा २ सामंत सज्जन प्रजाजन # मिलके आवे । कर जोडी कहे श्वामी आपके सरण छोड गया हम राजा ॥ आपकी छांया
| आनंद पाया । सुख दिया गरीब निवाजा ॥ विना गुन्हे किम तजो नाथ । तब मदन बचन | भइम उच्च रे ॥म ॥९॥ येही रीती विश्व तणी है । तजी २ सहू रिद्ध जावे । जिम पहला
का राय सिधाया ! सोही गती महारी थावे ॥ बाकी रहे जे जग माहे जन ॥ निज २/ करणी फल पावे ॥ साचा सेवक परजा सोही । श्वामी को जो सुख चावे ॥राजा थारे | हुया है उत्तम । सुख देशी ते ज्यादारे ॥ मदन ॥ १० ॥ इम बहुविध समजुत करी तस । कियो दीक्षाको मंडानो ॥ जग व्यवहार सांचववा कारण । खुरमुंडण मंडण स्नानो। सहू वैरागी वस्त्र भूषण सज । आवेठा पालखी म्याने ॥ सहश्रपुरुष उठावे तेवी । अलग २ सषको जाणो ॥ शैन्य वाजा गीत नृत्य तिहां । आणंद मंगल वृत्यारे । म ॥ ११ ॥ मध्य | वजार सवारी चाली । क्रोडोंगम संग नर नारी ॥ लटक २ कर सहू नमे छे। धन्य २ मुख से
उच्चारी ॥ जय २ नन्दा जय २ भद्दा । भदा भदंती ललकारी ॥ आया सहू मिल ग्रामके बाहिर । जिहां मुनीवर दीठारी ॥ तजी सवारी हुइ पायचारी। यत्नाकर मैं निहारे से
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R॥ म ॥ १२॥ करी वंदणा इशाण कुण आ । पंचमुष्टी लोचनकीधा । पुत्र बाल झेल्या म.श्रे.
खण्ड ७ में बोलामें । दर्शनिक जाण संग्रही लीधा ॥ पहरी साधू वैस पंदरेही । आ उभा गुरुके पासे १४४
: जावजीव साब जोगने । नव कोटी त्याग्या तासे । वैठा साधू पंक्तीमें जा । शांत दांत
गुणी अणगारे ॥ म ॥ १३ ॥ सर्व कुटंब मिल करी वंदणा । नेणासे वर्षे पाणी ॥ वेगा दर्शन दीजो श्वामी। धन्य २जीतब तम जाणी॥ निरखत नेण तप्त नहीं होवे । ठपक २IT फिर घर जावे ॥ सुनी २ सहु दीसे साहेवी । गुण गण हिये रमावे ॥ धर्म कर्म दो साधन
ल करते । सुग्वे २ काल गुजारे ॥ म ॥ १४ ॥ श्रीघर ऋषि श्रीधरी ज्ञानकी । मेतारज निजने १ लज्जा
5 तारे ॥ अंगज अंग ज्ञानका वणिया। मदन मदन न्हाख्या मार ॥ अंक ऋषि त्रिरत्न - अंकिया। पांचो नाम गुण उच्चारे ॥ सर्व मुनी सर्व गुणमें संपन्न । जैस है सूत्र के मझारे । १४४
॥ किया ज्ञान अभ्यास बहुतसा । तपस्या कर कर्मकों जारे ॥ म ॥ १५ ॥ रूप श्रीजी निज
रूपे स्थित । पुष्प श्री गुण सुगन्ध भरी ॥ धन्नश्री धर्म धन्न संचियो । प्रियकरी तप प्रितE करी ॥ रत्तवेती रत्त रहे संयमे । रंभा रम्या क्रियाने हीरी ॥ गुणसुन्दरी राची गुण ज्ञाने।।
रुपवती स्वरुप वरी। कनकावती कनक ज्यों निर्मळ । ए नव सत्तियां सिरदारे॥ म ॥ १ सर्व सतियां महागुणवंती । ज्ञान भणी विनय भावे ॥ फिरतो तपस्या मांडी दुकर । एकांत मोक्ष तणी चावे ॥ सती संत करी करणी यथाशक्ति । जैन धर्म घणा दीपाया ॥ घणा
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जीवने मार्ग लगाया आयु तणा जब अंत आया ॥ आलोइ निंदी अणसण करियो । निज आत्म जग थी तारे ॥म ॥ १७॥ पांचू साधू आयुपूर्ण कर । ब्रह्मस्वर्गको पधारे ॥सतियों| चौथे स्वर्ग विराजी । करणी फल के अनुसारे ॥ अनोपम सुख भोगे स्वर्गका । महाल विदेह धर्मी घरमांहीं ॥ जन्म लेइ संयम धारी । कर करणी एक चित लाइ ॥ कर्ष क्षपाके : मोक्षज पासी ॥ हो जासी जय २ कारे ॥ मदन ॥ १८॥ आदीअंत वरण न करी ए । मदन कुँवर पुण्यवंत चरी ॥ सारांश ग्रहण । करिये श्रोता। निजात्म को हितधरी ॥ सत्य | सील सहासिकता धैर्य । निश्चय दया गुरु भक्त सिरी । नम्रता गुण ग्राही अमानी ॥ | इत्यादी गुण लेवो वरी ॥ धारे गुण मदनका जो जन । तोही मुणि यांको सार ॥ मदन | | | १९॥ कथानुसार विस्तार करीने । विविध राग ढाल बनाइ ।। सोभीतो सम्मास बहु जगा
दीनो मन थी मिलाइ ॥ अधिको ऊणो विरुध विप्रीत । जो कोइ गयो होवे कथाइ ॥ तो | अहंत ने आत्म शाखे । मिथ्या दुष्कृत्य मुज तांह ॥ शुद्ध कर लीजो कृपाय विद्ववर ।
अर्ज मेरी यह स्वीकार ॥ मदन ॥ २० ॥ श्री महावीर जी चर्म जिनेश्वर । पाट सुधर्मा | गण धारा जंबूजी प्रभव स्वयंभव । यशोभद्र संभूती सारा ॥ भद्रबाह स्थलभद्रा महागीरी । सबल स्वातिक अणगार ॥ समय सादिल यतिधर आर्यश्चीम भद्दल कार ॥ नर्गदत्त अरहँगण खदिलजी । द्रक्षण नगरीय श्रेयकार मदन ॥ २१ ॥ गोविंद संभूती दीन से
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म.श्रे.
खण्ड ७
लोहीतांग । उसरगणी लोहितवामी ॥ आर्यऋषि धर्माचार्य शिवभूतं । संगाजी आर्य द्र नामी ॥ विष्णुचन्द धर्मवृधन श्रीभैर । सुदत्त सुस्थित वरदैत्त यामी ॥ सुबुद्धि शिवदत्त वीरदत्तजी । जयदत्त जयदेव जयघोषजरे ॥ मदन ॥ २२ ॥ वीरें वकधर शांतीसेन श्रीवंत सुमती लूंका जक कारी ॥ वाना रुप ऋषि जरुषिजी । बजरं लवेजी उद्वारी । सोमजी कहानजी ऋषि पुज्यजी। तारा कॉला ऋषि बलाहारी। वक्षुऋषिजी धनजी ऋषिजी खंबा ऋषिजी आचारी | गुरु दयाल श्री चेनी ऋषिजी। सर्वे अमोल ऋषि नमतारे॥ मदन ॥ २३ ॥ श्री वीर संवत चोवीससो चौतीसें । विक्रम उन्नीस चौसट । दक्षिण हैद्राबाद में | आया। नवोक्षेत्र जैनी हुयो पट॥ तवखीजी श्री केवल ऋषिजी । संसारी तात साथे आया ॥ लालाने तरामजी रामनारायणजी । दियो स्थानक स्थरता पाया। दीपवाली दिन पूर्ण चरित्र यह । कियो अमोल ऋषि हित धार । मदन ॥ २४ ॥ वक्ता यथा तथ्य रागे गावे श्रोता सुण के हर्षावे ॥ ग्रन्थ समाप्तीकी भेट अपेता । इच्छितव्रत करो सह भावे ॥1 भणता सुणतां पुण्य प्रकाशे। आनंद मंगल वृतावे॥ जय २ रहे सदा जैन धर्म की। जिहां लग भूरवी शशी रहावे ॥हीं श्री सुख संपदा । सदा चरित्र यह दातार ॥ मदन ॥ २५॥8॥ सारांस हरीगीत छन्द ॥ श्री धर निज निज वीतक कह्यो । सबही कुटुम्ब | सुखीया भया ॥ सर्व सज्जन संग अजुध्या । आया मुनी भेटो थया ॥ सुणी पूर्व भव
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लियो संयम । करणी कर स्वर्गे गया ॥ जासी मोक्ष ए खंड सप्तम । ऋषि अमोल इणविध कया ॥१॥
पुन्य प्रकाश मदन चरित्र का । सात खन्ड मिल्या सह ॥ ढाल एकसो आठ पूरी। भणता कर्म होवे लहू ॥ धार सार ज्यूं हो निस्तार । यह तत्व थोडा में कहूं ॥ ह्रीं श्रीं अक्षय अनंत सुख । भणतां सुणतां ले बहू ॥१॥
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परम पूज्य श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके महंत मुनी श्री खुषा ऋषिजी महाराजके आशिष्य श्री चेना ऋषि
जी महाराजके शिष्य बालब्रह्मचारी श्री अमोलख ____ऋषिजी महाराज रचित पुण्यप्रकाश श्री
॥ मदन कुंवर चरित्र समात्प ॥
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秀水张张,
मदन कुँवर चरित्र समाप्त
खण्ड ७
૪
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________________ अमोलज्ञानमंदिरसे निकली हुई पुस्तकें शास्त्रस्वाध्याय. अमूल्यप्रभात. पच्चीस बोल और लघुदण्डका थोकडा. सदास्मरण. स्थविरावलिः मदन चरित्र आपके करकमलोमेंही हैं। DIANRAICS हे पुस्तक कालिदास सीताराम पंडित यांनी आपल्या समर्थ इलेक्ट्रिक प्रिंटिंग प्रेस धुळे जि: पश्चिम खानदेश घर नं. पर मध्ये छापलें व शेट सुखलाल दगडूराम वखारी यानी तेथेंच प्रसिद्ध केलें. sthan CIPURA E