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म ॥ ४॥ मृग छाल बीछाइ चौडी। चिमटो पास रखानी । पद्मासन लगाइ बैठा ॥ बणियां मौनी ध्यानी । पलक स्थिर रखा धरानी ॥ म ॥ ५॥ तेतले दिनकर तेज पसरियो || पुरजन हुवा सावधानी । केताक यक्षने देवालय । आवे दर्शन लेवानी । देख ब्रह्मचारी | कानी ॥ म ॥ ६ ॥ दिव्य रूप संठाण मनोहर । लघुवय ललित सुहानी ॥
पूर्ण जोगी समते स्थिा चित । बैठा निश्चल ध्यानी । दीसे छे ये पूर्ण ज्ञानी ॥ म ॥ ७ ॥ | दंडवत सष्टांग करे केइ । जोगीश्नर बडा जानी ॥ दे आशीर्वाद चिरंजीवो हो। Kलागी मधुरी वानी । मिल्या बहुजन तिहां आनी ॥म ॥ ८ ॥ केइक दःखी दरिद्री
आह । कहे मुज दःख असमानी ॥ कृपा करीने ढःख गमावो । विनंती तस मानी । न्हावे अंगारो सानी ॥म ॥९॥ सुवर्ण रूपाको फेंके नाणो । जोइ मोर सोनानी ॥ ते
लेइने आनंद पावे । कोइके मिले रूपानी । नशीब जिम लेवे मानी ॥ म ॥ १० ॥ आश्चर्य 1पा कहे यह करामाती । दौलत करे वीरानी ॥ निर्भागीने होवे रुपैया ॥ इम कीर्ति |
पसरानी ॥ बात बहु लोकां जानी ॥ म ॥ ११ ॥ निमित प्रकाश करे केह आगे। केइ देवे रोग गमानी ॥ भोजन वस्त्र कछु न लेवे । निर्लोभी गुण खानी ॥ साक्षात् देव समानी | ॥म ॥ १२ ॥ राजाजी पण सुणी परसंस्या । आया कोइ ब्रह्मज्ञानी ॥ भूत भविष्य की| कहे बारता । हम कर आया पैलानी। बात भूपने मन मानी ॥म ॥ १३ ॥ चिंते