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________________ 1 गुण वर चूंपेहो ॥ पुण्य० ॥१८॥ अति आडंबर करि तदा । चारूं भणी परणाईहो ॥ रूपश्रीव खण्ड १ ने धन्नसिरी । प्रियकरी रतवती बाईहो ॥ पुण्य० ॥ १९॥ आनंद माहें रहें सहू । धन तन 16 को ले लावोहो ॥ धर्म कर्म जीव निगमे । नित्य वृते औछावोहो । पुण्य० ॥२०॥ पुण्य प्रकाशक रासको । मंडण पहली ढालो हो ॥ अमोल ऋषि कहे आगले । है अधिकार रसालो हो ॥ पुण्य० ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ अन्यदा वसुधर सेठजी। उष्ण ऋतुने मांय ॥ सूता भवन नी छत्तपर । अर्धनिशा जब आय ॥१॥ झण| झणाट गगने भयो । भूषण तणो ते वार ॥ शाहा अचंभी जागिया । जोवे || Sष्टि पसार ॥२॥ दशो दिशा प्रकाशियो । देखी देवी कोय ॥ घरवस्त्र भूषण सजी। वरूप अनोपम सोय ॥ ३॥ विद्युत क्रांती सारखी । आइ ऊभी पास ॥ श्रेष्टी मधुर वयणे करी । इम करे प्रकाश ॥ ४ ॥ कुण तुम किहांथी आविया । किण काज इण ठाम । जैसी इच्छाते कहो ॥ देवी बोली ताम ॥५॥ ढाल ॥२॥ आउखो टूटा ने सांधोको नहींरे ॥ यहदेशी ॥ त्रिदशी कहे सेठ सांभलो हो । हूं कुलदेवी तुम सुख चावू || हो ॥ आई छु थारा हितभणी हो ॥ ज्ञाने जाण्यो ते जणावूहो ॥१॥ होणहार भव्य | सांभलोहो । होणहार तेही थाय हो ॥ टाली टले नहीं कोईसेहो । इण तरे सुरी फरमाय
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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