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________________ म . ॥६॥ मानव भव जिन पद धर्म । पावे पुण्य पशाय ॥ ते कारण जिनेशजी । पुण्य भणी सरप्लाय ॥ ७॥ पुण्य करोरे प्राणियां। चिंतित पावो सुख ॥ मदन वर तणी परे। गमावेगा सब दुःख ॥ ८॥ नव रस कस पूर्ण भन्या ॥ सप्त खन्डी एचरित्र ॥ सुणो, प्रमाद सहू परहरी। होवे आत्म पवित्र ॥९॥8॥ ढाल १॥ समकित रत्न चिंतामणी ॥ येदेशी ॥ पुण्य प्रकाश रास सांभलो । प्रकाश पुण्य करनारो हो ॥ सुख दाता | वक्ता श्रोताने । दुःख दोहग हरनारो हो ॥ पुण्य० ॥१॥ सर्व द्वीप मध्ये दीपतो। | लघु जम्बूद्वीप जाणो हो ॥ भरत क्षेत्र सहू गुण भर्यो । ताण्या धनुष्य संठाणो हो । पुण्य ॥२॥ देश बत्तीस हजारमें । पूर्व अधिक सोभावे हो ॥ अनेक ग्रामादि करी । मही | मंडण मंडावे हो ॥ पुण्य० ॥ ३ ॥ अजुध्या नगरी भली। ऋद्वि सिद्धिये भरपूरो हो ॥ |वण बैठी देश नायका । सर्व विधन से दूरोहो ॥ पुण्य० ॥ ४ ॥ लांबी जोयण बारेमा । | नव जोजन चोडाइहो ॥ अनेक पुरा थी परवरी । अलकासी देखाइ हो ॥ पुण्य० ५॥ गड उतंग नवरंगियो। गगन लगेछे द्वारो हो उच्च बुर्ज खाइ खोलेछ । फिरणी शोहे १उंडी | प्रकारों हो ॥ पुण्य० ॥६॥ उच्च मेहल बहु रंगना। हवेलियांने हाटो हो ॥ त्रिवट | चौवट चौक शेरियां । शोभे शेहर अजब थाटो हो । पुण्य० ॥७। श्री वननामादिकरी।
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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