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________________ खण्ड ७ १२२ में पाया सुख । आत्म कार्य साधिया । ते मुणो कहूं मुख ॥ ४ ॥ एकदा मदन कुटंव संग। म.श्रे. 18 करे भूतक विधी बात ॥ कहो भाइ जी याद छे । वटवरको अवात ॥५॥ शुभ वक्ते वाणी वेदी । आपां विनोदे चार ॥ तिमही हिवणा देखलो । निपज्या सह प्रकार ॥६॥ श्रीधर कहे मदन कहो । सहू वीतक तुम हाल ॥ राजकुँबरी चउ किम वरी । किम पाया | १ होगइ सो यह माल ॥ ७॥ मदनजी निज वीती कथा । दी विस्तारी सुणाय ॥ आश्चर्य पाया सह २ कही घणो । धन्य २ कहे मुख वाय ॥ ८॥ हा हा पराक्रम था यरो सागे इन्द्र समान ॥ तुज दर्शन सुखी हम भया । निकल्यो बहु गुणवान ॥ ९॥ ॥ ढाल १ ली ॥ वारी जाउँ मैं गुराकी । जिन समकित रस पायो जी ॥ यह ।। सुणो मदन जी भाइ । जिम ऋद्धिया पाइ जी ॥ सुणो ॥ आं । नरमी मदन कहे थाणी प्रकासो । किम तुम सुखीया थयाइजी । 18सुणो ॥१॥ श्रीधर कहे सुणो वीतक महारो। जिम राजपुत्री व्याह जी ॥ सुणो ॥२॥ जिण वेला तुम सरितामें पडीया । तब हम गया घबराइ जी ॥ सुणो ॥३॥ पूकार्या| उत्तर नहीं पाया। तिहूं रह्या विल खाइ जी ॥ सुणो ॥ ४॥ दिन उगता पाणी उतयों तीनों नीचे उतर्याई जी ॥ सुणो ॥५॥ दूर २ लग जोया कांठा । किहो पतान पाया 18 जी ॥ सुणो ॥ ६॥ आरत कर ता निज घर आया । तात उदास दीठाइ जी ॥ सणो। ७॥ पूछे मदन किम नहीं देखावे । तुम किम रह्या विलखाइ जी ॥ सुणो ।। ८ ॥ इम सण १२२
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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