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________________ तणा फल ए दरसाया । षष्टम खन्ड पूर्ण थायरे लो ॥ मदन कुटुंबके सुखमें लो भाया । अमोल ढाल सतरे गायारे लो || आज ॥ २१ ॥ ॥ खन्ड सारांस । हरीगीत छंद ॥ सुखीकर रूप सुंदरी वर । गुणसुन्दरी मन मोहिया ॥ वण ब्रह्मचारी परण्या नारी । विरहना दुःख खोइया ॥ महेंन्द्रपुरे पुनः वरा रंभा । वटपुर सज्जन संग सोहिया ॥ पट खन्ड ए अधिकार कहे अमोल नर पुण्य जोइया ॥ ६ ॥ परम पूज्य श्री कहानी ऋषिजी महाराज के संप्रदाय के बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी रचित पुण्य प्रकाश मदन चरित्रस्य षष्टम खन्डम् समाप्त ।। ६ ।। ॥ दोहा ॥ प्रणमुं पंच प्रमष्टिको । समरूं सरस्वती मांय ॥ ए सातोंका सरण ल । सप्तम खन्ड वरणाय ॥ १ ॥ दान सील तप भावना । धर्मका चार प्रकार || प्रथमपद दियो दानने । से सह गुण दातार || २ || महिमा दानकी वरणवार । रचियो मदन चरित्र ॥ खन्ड २ रस नवनबा । सुणी हुवो मन पवित्र ॥ ३ ॥ मदन विदेशे गया पछे । वसुपत *
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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