SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | सजाइ यथा विधिजी ॥ १६ ॥ मुख कालो कराइयो । लम्बीकरण मंगाइ यो । बैठावियो ॥ ढोल फूटो आगे बाजतो जी ॥ धूल मही उछालता । मध्य बजारे चालता । निहालता । हुर राज्यो कुण धागले जी ॥ १७ ॥ ठाम २ उभा रही। रायजीनो हुकम कही । कुमत गही । तेहनी ए गत धावसी जी ॥ जे व्यभचारे राचसी । मिथ्या भाषण | भाषसी । इण साक्षसी । दोनों भव दुःख पावसीजी ॥ १८ ॥ निकाली गामने वाहीरें । | कर्मोदय कुण सहाहरे | देखाइरे । अनाचारण गत एह बीजी ॥ सहू धिक्कार तस देवता । जोगीना गुण केवता । आइ रेवता । निज २ सदने तेहस बीजी ॥ १९ ॥ | छेमासा गया निज घरे | अपयश थी आरत धरे । किस्यो करे । कूपात्र पाने पड्यांजी ॥ ते नार वनमें आथडी । मरीने नरके पडी । दुःख घडी । भव भ्रमण हम बहु नयाजी || २० || मदन कीर्ती विस्तरी । रुडी न्याय रीती करी । ए उच्चरी । चौढाल चौ | खन्डे सिरीजी । अमोल ऋषि इण पर कहे । सत्य शील जे दृढ गहे । ते सुखलहे जोवो मदन तणी चरी जी ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ तिहां रहवा जोगी भणी । करे विनंती राय ॥ ते कहे नरवस्ती विषे । हमसे नहीं रहवाय ॥ १ ॥ एकांतवास पसंद हम । रहां ईश्वर में लीन ॥ क्या प्रयोजन जगत से। जिसका संग तज दीन ॥ २ ॥ सहू प्रणम्या जोगी पदे । तेदे आशिर्वाद || चाल्या यश विस्तारता । राखी तिहां ते याद ॥ १ गद्वा
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy