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म.श्रे. ६७
चडायो ते टाणी | पुण्य ॥ ११ ॥ कर जोडी पूछे नरमाइ । किस्ये काम ये पोरसो आइ ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ कृपा करीने गुण फरमावो । पूरस्यूं वक्त पे महारो चाहावो ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ जोगी कहे यह जापते राखीजे । कहूं गुण ते कोइने न भाखीजे ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ जिण वक्त होवे द्रव्य की चहाइ । तब पोरषाकी करी पुजाइ ॥ पुण्य ॥ १५ ॥ गरदन नीचलो अंगज कापे । बेंची काम करे विनालापे ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ काट्यो अंग पाछो तिमथावे । जिम औषधसे घाव रुजावे ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ इम अखूट्ट ऋद्धि यह | जाणी । छेह न आवे कल्पांत दानी ॥ पुण्य ॥ १८ ॥ इम सुणी मदन हर्षाया । जोगी वयण सत्य शीस चडाय ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ कहे आबी रखूं एकांत जाइ । काम पढ्या | लेजास्यूं आइ || पुण्य ॥ २० ॥ तत्क्षण गिरी किन्नरी में आया । जिहां रवीका दर्शन पाया ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ बिकट पन्थ मनुष्य नहीं आवे । तिहां डंडो घणो खाडो खोदावे ॥ ॥ पुण्य ॥ २२ ॥ पोरसो पूर दियो तिण मांह | ऊपर मजबूती पकी कराह ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ सेनाण भणी गोळ पत्थर जमायो । तेल सिन्दूर्या देव बणायो ॥ पुण्य ॥ २४ ॥ | पाछा आया जोगी पासे । किया काम सह किया प्रकाशे ॥ पुण्य ॥ २५ ॥ मदन अंगज सुखे करे जोगी सेवा ॥ शिष्यने ते संभाले अह मेवा ॥ पुण्य ॥ २६ ॥ देखो मदनकी | प्रबल पुण्याइ । अल्प प्रयास अखूट ऋद्धि पाइ ॥ पुण्य ॥ २७ ॥ कहे अमोलख चरित्र
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खण्ड ४
१ गपचुप
६७
२ गुफ