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रसालो । पूरी हुई चउखन्ड सप्त ढालो ॥ पुण्य ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ करामात जो जोगीकी । मदन करे विचार । इणही जोगी प्रशादस्यूं । काम पाडस्यूं पार ॥१॥ उजड | पुरी वसावणो । मैं दीधो छे बचन ॥ ते इण पुरुष पसायथी । पडसी पार कोइ दिन ॥ २॥ करे भक्ती भला भाव थी । अंतर नहीं जणाय ॥ जे मन कार्य साधवो । ते कधी | | न दर्शाय ॥ ३ ॥ तिहूं फिरता भूमंडले । जोता अनोखा ठाम ॥ चंगला नगरी
आविया । तिहां लियो विश्राम ॥४॥ नगरी जोवा चालिया । मध्य बजारकेमाय । नर समूह मिलियो घणो । जोवा ऊभा रहाय ॥५॥ॐ ॥ ढाल ८ मी ॥ धन्य २ मेतारज मुनी ॥ यह ॥ झगडादो मोटा जगतमें। कनक कान्ता केरा ॥ जे नर इण फंदे | | फस्या । कहूं चरित्र जेरा ॥ झ ॥१॥ वैश्या अने विप्र तणी । तिहां लागी लढाइ ॥|
विप्र कर घयों नारनो । छोडायों छोडे नाहीं ॥ २ ॥ २॥ लोक सह ठठा करे । देवे I विप्रने साजो । उस्ताद एक तूंही मिल्यो। भली लीधी लाजो ॥ ॥३॥ विप्र कहे। अजू स्यूं थयो । हिवे मजा देखाहूं ॥धूती खायो जगतने । ते धन सहु कहाडू ॥ झ ४॥ गणिका अतिघबरावती । जोडे कर पडे पायों । एक वार मुज छोडियो । नहीं करूं
अन्यायो॥ झ॥५॥इम जोह नरमाइने । दया मदनने आइ । छोडावू हूं इण भणी । * कहे गुरुजी तांड ॥झ ॥६॥ जोगी तब आज्ञा दीवी । झट करी नमस्कारो ॥ आयो