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________________ खण्ड ४ में विप्र वैश्या कने । इम करे उच्चारो ॥ झ ॥७॥ कुलीन नरने चोहटे । गृही नारीनो || हाथो । विवाद करो निर्लज्ज थइ । ये जोग न घांनों ॥ झ ॥ ८ ॥ तुम छो भूदेव सरीखा । | गुरु जगतका वाजो ॥ मनुष्यवृन्दे नारी थकी। झगडता लाजो ॥ झ ॥ ९ ॥ जोगी रूप जोइ करी । विप्र इम प्रकाशे ॥ साची कही महाराज जी। आपने इम भाषे ॥ झ॥१०॥ जाणो नहीं इणनी चरी । ए गणिक धूतारी ॥ जीव लिया घणा मर्दका । चिलकती कटारी ॥ झ ॥ ११ ॥ आप अछो प्रदेशिया। कांह भेदन जाणो ॥ पूछो #ग्रामका लोक थी। जरा इणरा बखाणे ॥झ ॥ १२॥ मैंहीज उस्ताद इण तणो । अब ६८ नश ठाम लास्यूं ॥ आप अने सहू समक्षे । इणरो कूड कडास्यूं ॥ झ॥ १३॥ सहू # कहे मदन भणी । श्वामी मत पडो चाले ॥ ऐतो रांडछे एहवी । ब्रह्म मार्ग घाले । झ॥ १४ ॥ जाणी दयाल मदन भणी । वैश्या घबराइ ॥ पांव पकड मदन तणा । कहे ब्राम्हण अतिनरमांड ॥ झ ॥ १५॥ श्वामी मुज राँकडीपरे । जरा दया कीजे ॥ छोडाइ इण दुष्टथी। । मुज अभय दीजे ॥ झ ॥ १६ ॥ हूं तो छु अनाथणी । थइ छु निराधारो ॥ आप जैसा गुरु मिल्या । दुःख समुद्र तारो ॥ झ ॥ १७ ॥ आप विना महारा इहां । रक्षक नहीं कोई ॥ छोडायां विन जावोतो । ईश सोगन होई ॥ झ॥ १८॥ मदन कहे | धैर्य धरो । घबराइयो नांहीं ॥ मुज उपाय जो चालसी । तो छोडास्यूं पाई ॥२॥
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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