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________________ | १९ ॥ कारण कोइ समज्या विन । हूं कि किणने दबाबूं || धीरपे न्याव निवेडने । सहू रस्ते लावूं || झ ॥ २० ॥ इम सुण सहू विस्मय हुवा । वैश्या धैर्य लाइ || ढाल आठ चौथा खन्डकी । अमोल गाइ ॥ झ ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ मदन कहे तब विप्रने । | घबरावो मत चित्त ॥ धैर्य लाइ सच्ची कहो । हूं जे पूछूं मित्त ॥ १ ॥ कर किम झाल्यो एहनो । किस्यो कियो अन्याय ॥ तुम कहो सहू मांडने । जिम मुज समजण थाय ॥ २ || फिर गुरु प्रशादसे । करस्यूं यथायोग्य ॥ मन दोइका राखस्यूं । खुशी होसी सह | लोक ॥ ३ ॥ धीर वीर बुद्धि निलो । मदनने जाणी तेह ॥ विप्र कहे श्वामी सुणो । न्याव निवेडो एह ॥ ४ ॥ इण ठगियो मुज मित्रने । मैं ठगी इण नांय ॥ करतव्य कहूँ विस्तारने । जे इण कियो अन्याय ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल ९ मी ॥ गाफल मत रहरे ॥ यह ॥ संग तज दोरे । सहू सुज्ञ संग तज दोरे ॥ वैश्या नहीं हुई किस कीनारी । बात कहू वfती विस्तारी ॥ सं ॥ आं ॥ चंपानगरी मझारी । वसे कमल सेठ धन धारी । तस भोगवती छे नारी । बृद्धवय नन्दन एक थैयो । गुण चन्द नाम तस देयो ॥ संग ॥ १ ॥ लाड कोड घणा किधाइ । पूरी विद्या नाहीं पढाइ ॥ रूपवति नार परणाइ || भोगवे मनमाना || जाता काल नहीं जाना ॥ संग ॥ २ ॥ एकदा बैठा गौखां मांई ॥ बहु | सेठ जाता दीठाई। पूछे भटने तब बुलाइ । कोणये किहां थकी आया ॥ दीसे सह हर्षमें
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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