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वस्त्र तस देवे ॥ सु ॥ १९ ॥ ते कने मांगे ते वर आपे । रुद्रनो ते मद गाले ॥ ए वात गुरूजी सुणाइ । करगया ते काल ॥ सु ॥ २०॥ गुरु वियोगे हूं दुःख पावू । रहूंछ इण वनमांही ॥ इम साचे शुकेश्वर मुजने । हितकी बात चेताइ ।। सु ॥ २१॥ कहे में मदनसे बात सुणिये । महारो मन हर्षायो ॥ वाट तुम्हारी जोतो बैठो। तुम दर्शने | | सुख पायो । सु ॥ २२ ॥ ए कारज तुम हाथे थासी । कीजे साहास धारी | तीजा | खन्डकी ढाल ए छठी । ऋषि अमोल उच्चारी ॥ सु ॥ २३ ॥ॐ ॥ दोहा ॥ मदन कहे | पाए भली कही । अपणाहितकी बात ॥ हिम्मत धर निपजा वरयूं। थोडेइ काले भ्रात ॥१॥ | तोतो कहे कार्य हुयां । मुज मत जाजो भृल ॥ जिम कुँवरीने सुखी करो । तिम मुज | | हो ज्यो अनुकूल ॥ २ ॥ मानव पुनः मुजने, करी ! मिलावो परिबार ॥ यह मुज इच्छा पुरवा । हिवे तुमचो आधार ॥३॥ मदन कहें कार्य हुया । पहला छेद तुम दुःख ॥ कुँवरी मिलावू राजने । तबमें पावूसुख ॥ ४ ॥ ए निश्चय चित राखजो । रहजो सदा हुंशियार ॥ मेंहूं सहू कार्य साधने पाछो आबू इण वार ॥ ५॥ ढाल ७ मी ॥ राग वेलावल ॥ रेघडी
याला वावला ॥ यह ॥ साहसधारी मदन जी । काज साधवा जावे ॥ जे साहसवंतने उद्यामी । तेहना सह सिद्ध थावे ॥ सा ॥१॥ रन्न वन्न अटवी उल्लंघता। रहता तरु गिरी। छांहे ॥ वनफळ योग्य आरोग्यता । वे फिकर चल्या जावे ॥ सा ॥२॥ काँटा ॥ कंकर पांवे
PRABHAYRANAYARIYAR