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________________ म.श्रे. नीती बिगाडी म्हारी ॥ सु॥ ८ ॥ मैं कह्यो चिंता कर्या स्यूं होवे । उपाय कोइ बतावो। खण्ड ३ गुरु कहे पुण्य बलिष्ट जिहां लग । तिहां लग नहीं चाले दावो ॥ सु ॥ ९॥ मदनना में श्रेष्टीको पुत्र । इने विद्यासे हरासी ॥ तबही ये प्रपंच छोडने । जागे आत्म रमासी । सु॥ १० ॥ मैं पूछो किण नरथी हरसी । ते करामात बतावो ॥ होणहारसे है कोण वलीयो । विगतवार फरमावो ॥ सु ॥ ११ ॥ कहे गुरु इहांथी उत्तरे । भीमा अटवी , भारी ॥ फळ फूळ पत्र वल्ली वृक्ष वर । मनने रमावण हारी ॥ सु ॥ १२ ॥ तिण मध्ये एक देवालय वर । शिखर रयण में सौहे ॥ सुवर्ण स्थान मणीमय, मूर्ती । काम यक्षनी, ४६ | मन मोहे । सुणो ॥ १३ ॥ तिहां पुष्करणी निर्मळ जल । कमल कुमुदिनी छाया ॥ पाज पंक्तिया और सह विध। देखत मन लोभाया ॥ सु ॥१४ ॥ इण हिज भरत क्षेत्रने मध्ये ।। गिरी बैताड सोहंतो । दक्षिण श्रेणी नटवर नयरे । मने वेगनृप मोहंतो॥सु ॥१५॥ 5 तस नारी रतीसुन्दरी रंभा । विद्या बलमें पूरी ॥ सोले सहेली करने सोहे । सर्व सुगुण | | सनूरी ॥सु ॥ १६ ॥ ते सदा पुनमकी राते । तिण देवालय आवे ॥ नाटक पाडी | यक्षरीजावे। फिर बावडीमें न्हावे ॥ सु॥ १७ ॥ तिण वेला कोइ रतीसुन्दरीना ।।। नीलाम्बर हरी लावे ॥ दवल में छिपे तिणथी छांने तुतही पट लगावे ॥ सु ॥ १८॥ किन्नरीयो आइ तास डरावे । जोनिडर स्थिररेवे । ते अभय वचन आपे तव । तेहना १ हरे वस्त्र
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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