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________________ जंगली | चुबे । महागीरी उल्लंघे ॥ दुःख किंचित नहीं वेदता । घणा जोवा उमंगे॥ सा ॥ ३ ॥ पुण्य | प्रभावे वनचर तणो । जरा दुःस्व नहीं थावे ॥ देखी अनोखी वस्तुने । अति आंणद लावै | ॥ सा ॥ ४॥ इम चलतां गिरी शिखरपे । चडिया घणा ऊंचा ॥ आगल जोवे तेतले । मन | र कार्य पहुचा ॥ सा ॥ ५॥ मणी शिखर झगमग करे । जाणे गगने लाग्यो । ध्वजा पताका | चिन्हये । देख दुःख सह भाग्यो ॥ सा ॥ ६॥ जे भद्रसेण शुक दाखव्यो । ते एही वा देवालय ॥ तिणहीज रस्ते चालिया। मन में घणा गह गय ॥ सा ॥ ७॥ समभूमी पर 12 आवाता । वन रमणीक जोह ।। अनेक उत्तम वृक्ष वेलडी । फल फूल भोइ ॥ सा ॥८॥ स्वाभावे जम्या पाषाण त्या । जाणे बिच्छा गलीचा । इम मनरंगे मालता । पोखरणीये पहोंचा ॥ सा ॥ ९॥ ते मकराणी पाषाणमें । जाणे सुज्ञे, बणाइ ॥ यथास्थान रंग शोभतो । जाणे चतुरे भाई ॥ सा ॥१०॥ भंड वस्त्र अलगा धरी । पुष्करणीमें आया॥ जल क्रीडा गमती करी । मदनजी न्हाया ॥ सा ॥ ११॥ भीने वस्त्रथी रही। कमल| ग्रही हाथ ॥ हर्षानन्द उत्सहाथी । भेट्या यक्षनाथ ॥ सा ॥ १२ ॥ पूजा करी भक्त | भावसे । पग धोकज दीधी ॥ नानाविध स्तवनता । प्रेमोत्सुक कीधी ॥ सा ॥ १३ ॥ | दीन बन्धव भक्त वत्सला । सरणागत सहाइ ॥ सामर्थ्य करवा सर्व तूं ॥ शक्ती सर्व पाइ ! ॥ सा ॥ १४ ॥ कर्तीि तुह्मारी सांभली । मुज मन उमायो ॥ संकट बिकट सहन करी ।
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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