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________________ म.श्रे. २४ L | दायजी ॥ ते विन अन्य गमे नहीं || राज घरे दुःख घणो थाय ॥ चतुर ॥ २ ॥ शोकानें परदा तणो । आसंजोगी दुःख होयजी ॥ वणिक घर रहतां थकां । मुज हुकम न उल्लंघे कोय ॥ व ॥ ३ ॥ मनहर वसे सदा मनमें। क्षणिक नाहीं भुलायजी ॥ ते पण इम चइता से । करूं कांइक मिलण उपाय ॥ च ॥ ४ ॥ बीजो कांह सूजे नहीं । मूख्यने राखूं दासजी || तिण हाथे पत्र मोकली । हूं तो पूरूं महारी आस ॥ च ॥ ५ ॥ रजा | लेवा तात मातकी । ते तो आइ तब तिण पासजी ॥ प्रणमी पद उभीरही । ते कहे। करो इच्छा प्रकाश ॥ च ॥ ६ ॥ साकहे भुज काज करणने । चाहिये छे माणस एकजी ॥ वस्तु मंगावू बजारथी । वली अन्य कार्य छे अनेक ॥ च ॥ ७ ॥ अरीबिंद कहे तुज चाहिये । हूँ शंखू तेतला दासजी ॥ कह तो भेजूं दरवारसे ॥ जे सदा रहे तुजपास ॥ च ॥ ८ ॥ मूर्ख भोलो एक नर अछे । अन्न वस्त्र लेइ रेयजी ।। फरमावोतो राखूं तेहने । तब रायजी आदेश देय ॥ च ॥ ९ ॥ हर्बी जाइ निजघरे । भेजी दासी शाळरे मायजी ॥ मूख्यों तिहां रमतो होसी । लावो तेह ने इहां बुलाय ॥ च ॥ १० ॥ मदन आयो शाळा विषे । राजपुत्री देखी नायजी ॥ पूंछे पण्डित थी तदा । राय कुँवरी कहां महाराय ॥ च ॥ ११ ॥ काम करायो मुजथकी । पइसा आप्या चारजी । आज देवण तणो को | तेही मिलावो इणवार ॥ च ॥ १२ ॥ पण्डित कहे ते घर गइ | अब नहीं आवे इण ठाण जी ॥ खण्ड २ २४
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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