SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म.श्रे. १३९ २ अमृत भवि ॥ २० ॥ तो नर गतिकी सार्थता जी । हुइ समजो मम प्राण ॥ विद्या चरण युग तारका जी । नहीं एकहीकी ताण ॥ भविक ॥ २१ ॥ येही विचार तो सार छे जी ॥ धार मुमुक्षु हित ॥ छोड प्रणती अनादनी जी । होय खरा मुज मित ॥ भविक ॥ २२ ॥ सर्व प्राणी तारणोजी । दिये गुरु सन्दोध || अमोल ढाल त्रयोदशी जी । लागी आत्म की साध || भविक || २३ ॥ ॥ दोहा ॥ पियुष पवासी प्रासियो । त्यों प्रगम्यो उपदेश ॥ यथाशक्ति वृत धारने । गयो परजा नरेश ॥ १ ॥ वसुपति कहे श्वामी जी । साची आपकी केण || हिवे तारूं मुज आतमा । साचा मिल्या तुम सेण ॥ २ ॥ ऋषि कहे सुख जिम करो । न करो धर्म मेंढील || तारो आत्मा आपणी । अवसर एह मुशकील || ३ || मुनि वंदी गृह आविया । बोलायो परिवार || निज इच्छा दर्शावता । सह मुरजा तिण वार ॥ ४ ॥ मदन कहे कर जोडने । कीजो विचारी काम | आप जाण अवसर तणा । तिहां नहीं कुछ धाम ॥ ५ ॥ * ॥ ढाल १४ मी ॥ महारो मनडो ऋषभजी से राजी ॥ यह ॥ मेरा मनडा संयम में उमाया ॥ आ । मैं तो बचन विचारी उचार्या । मुज चेतवा वक्त ए आया ॥ मेरा ॥ १ ॥ सशक्ति निज काज सुधारूं । तो जन्म मरण मिट जाया । मेरा || २ || जे परवसमें दुःख मैं सहिया । ते संयम में न देखाया | मेरा || ३ || धर्म मार्ग में दुःख नहीं सहिया । खण्ड ७ १ दान क्रिया दोनो १३९
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy