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म.श्रे.
सूली तो ऊंची घणी । कांह मुज थी नहीं चडाय ॥ खा ॥ १४ ॥ कृपा करी मुज ऊपरे । आप | दर्शन देवो कराय ॥ सा || १५ || मदन कहे परनारने तन । कर लगावा पञ्चखाण ॥ सा ॥ पण | उपाय एक दाखवूं । तिम देखो तुम प्राण ॥ सा ॥ १६ ॥ नमीने मैं उभो रहूँ बाइ ॥ इण | सूलीके पास ॥ सा ॥ तुम चडी मुज पीठपे । सहु परो मनकी आस ॥ सा ॥ १७ ॥ खुशी हुई नारी भणे कां । ठीक बताइ रीत ॥ सा ॥ मदन नम्यो नारी चडी । तब करवा प्रीतम प्रीत ॥ सा || १८ || प्रेम धरीने निरखथी । तब मुरदे मुख दियो फाड ॥ सा ॥ जाण्या आइ प्रेम | प्रीतम मुज इच्छे प्यार ॥ सा ॥ १८ ॥ शर्बना मुखने ढुंकडो । तब भामनी मुख लेजाय ॥ सा ॥ नाक काट मुखमें लियो । नारी दुःख पा घबराय ॥ सा ॥ उतरी नीचे मुख ढांकने । रक्त पड्यो मदनपे तदाय ॥ सा ॥ २० ॥ चमकी मदन मुख पेखियो । तिहां अग्नीने प्रकाश ॥ सा || आश्चर्य पायो मन विषे कांइ । किम काटी इण नास ॥ सा ॥ २१ ॥ पूंछे बाह तुम तणी । सह पुगी मनकी आस ॥ सा ॥ नारी कहे पुगी सही ! अब जावूं निज आवास ॥ सा ॥ २२ ॥ नारी तो निज घर चली । मदनजी सब मुख जोय ॥ सा ॥ नाक देख नारी तणों ते । अतिही आश्चर्य होय ॥ सा ॥ २३ ॥ पाछा तिहांथी चालिया । ते अम्बा देवले आय ॥ सा ॥ बंदन कीधो प्रेमसु । सन्मुख बैठा हुलसाय ॥ सा ॥ २४ ॥ चौथा खन्ड तणी कही । अमोले पहली ढाल ॥
खंड ४
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१ मुरदो