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राजा
। तब भुधव इम के जी । श्वामी कृपा कीजे । एक संशय हरी जे । जोगी कहे चुप रीजे।
खण्ड . कहूं ते सुण लीजे || बुद्ध ॥ १४ ॥ तुम पुत्री वर जाणवा ताइ । आइ तुम मन माइजी * ते हूं दरसाएँ । जे ज्ञान थी पावू । जोगी जोडी जणावू । तुम चिंत गमावू ॥ बुद्ध ॥
१५॥ पयठाण पुर पति मदन जमाइ । ते जावे निज घर तांइ जी ॥ तीजे दिन इहां आसी | भ। पूर्व वाग में रहासी । ते इण पति थासी । सुखे जन्म खुटासी ॥ बुद्ध ॥ १६ ॥ सुण ||
राजेश्वर आश्चर्य पाया । वहावा भल भेद बताया जी ॥ आप अंतरयामी । मेटी महारी || खामी । किया गुण सिरनामी । उठ्या जावा निज धामी ॥ बुद्ध ॥ १७॥ वंदन कर सहू | निज घर चाल्या । जोगी गुण संभाल्याजी । राय मार्ग मांइ । जोगीका गुण गाइ । जबर | अपणी पुण्याइ । ऐसा जोगी रह्याइ ॥ बुद्ध ॥ १८ ॥ गुणसुन्दरी जो अति हर्षाइ । शाबास मदनजी तांइजी । करी केवी कलाह । कैसी बात जमाइ । दिया सहूंने भरमाइ । पाइ महाबुद्ध वंताइ । बुद्ध ॥ १९॥ राजा जैसा गया भरमाइ। तो मै किसी गिणतीमें |
आइ जी ॥ बहु मांस भरमांइ । तो भी प्रगट कीधाइ । जबर महारी पुण्वाह । ऐसा पति में पयाइ ॥ बुद्ध ॥ २० ॥ निज २ स्थाने सहू सुखेरेइ । आनंदे दिन गुजरेहजी।
बाट जमाइनी जोवे । ढाल आठमी होवे । अमोल पुण्य थी सोहधे । खन्ड छट्टे मोवै ॥a में बुद्ध ॥ २१ ॥ 8 ॥ दोहा ॥ पुरमें पसरी वरता । साक्षात् भगवान ॥ ब्रह्मचारीजी आविया