SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म. श्रे. ७६ रखाकाशमें 常常带常常形; ॥ दोहा ॥ अरिहंत सिद्ध आचार्यजी। उपाध्याय अणगार ॥ प्रारंभता खन्ड पांचमो , खण्ड ५ । करूं पंचने नमस्कार , १ ॥ मदन चरी छे रस भारी । करी मन हुल्लास ॥ नवल विनो। दे ऊमरी । प्रगटे गुणकी रास ॥ २ ॥ अनेक गुणके आगले । साहस पण कहवाय ॥ वीर्यात्म प्रबलता । तस दुःख कोण कराय ॥ ३ ॥ विकट दुष्कर काम जे । साहस थी सिद्ध होय ॥ देवदिक सेवे सदा । ते सुण जो सहु कोय ॥ ४॥ चंगला नगरीने विषे। रहे सुखे तिहुं जन ॥ नव २ कौतिक देखवाकर नित्य पुरमें गमन ॥५॥ एकदा फिरतां | *पुर विषे । सुण्यो घुघर घमकार । जोवे अंतःरिक्षने विषे । ऊभा रही ते बार ॥ ६ ॥ पंचरंग प्रकाश तो । जाणे द्वितीय सूर ॥ आइ स्थंभ्यो तिणपरे । जोवे ते हर्षित नूर ॥ ७॥ तिण माहें थी उतर्यो । नर नारीनो जोड ॥ वस्त्र भूषण बहु मोलका । दिव्य श्वरूप | अखोड ॥ ८॥ प्रणमें पद आ मदनना । प्रेमातुर ते वार ॥ जोगी अंगज देखने । आश्चर्य || | पाया अपार ॥ ९॥ ॥ ढाल १ ली ॥ चंपा नगर निरोपम सुन्दर ॥ यह ॥ खेचर नमी मदनने पाया । कर जोडी ऊभा रहाइ ॥ वहाबा मदनजी दगो इम देवो । आपने जुगतो E नाहीं हो ॥ वहाला ॥ मदनजी पुण्यका दरिया । घणा गुणा करी भरियारे ॥ वहाला ॥ मदन ॥ आं॥१॥ आप वयण हम शिरपे चहाया । निशी में नगर वसासी । आप हुकम हम वनमें पहुंचा। पूर्ण करवा आंसी हो ॥ वहाल ॥ मदन ॥ २॥ दूजे दिन सत||२ बाशा
SR No.600299
Book TitleMadan Shreshthi Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherSukhlal Dagduram Vakhari
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy