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खरब
भाता । आगल गमन अनुसरता ॥ सु ॥ २४ ॥ कुंवर विना सूनो लागे । स्युं कहस्या | सेठजी आगे । अनेक बातां इम जागे । ढाल छद्री अमोल चौक रागे ॥स ॥ २५ ॥ | दोहा ॥ पांव चेंटाया देखने । दोनों चिंतातुर थाय । ए देवी चोखी नहीं। करण धार्यो म *अन्याय ॥ १ ॥ इण कारण वरजती । कला पूतली तेह ॥ आपण मूढ समज्या नहीं। | आइ फसिया एह ॥ २ ॥ त्याग अछे पर नारका । ते तो भंगन थाय ॥ मरणो तो * एकवार छे । अधिको करसी कांय ॥ ३ ॥ इम निश्चय मन थी करी । रह्या दृढता धार ॥ |चिंता लागी पाछली । करणो किस्यो उपचार ॥ ४॥ साथी रहा जोता हसे । देवी गई। किण ठाय ॥ आगल इहां होसी किस्यो । इम चिंता घणी आय ॥५॥ ॥ ढाल ७ मी ॥
वण जारा । सखी पणियां मरण कैसे जाणा ॥ यह ।। तुम सुणियों बात हमारी । नहीं 13ाकीजे विगर विचारी ।। ७ ।। देबी सुन्दररूप बणाइ । सोले श्रृंगार सजा जी । आहार
नेपुरने झणकारी ॥ नहीं ॥ १ ॥ ॐवरां सन्मुख ठाडी । मोहे अंगोपांग देखाडीजी ॥ बोले
आतही करी लाचारी ॥ नहीं ॥ २॥ हूं विरहवन्ही थी दाजी । सींची संभोग जल करो, १ नमो राजी जी। विलसो सुख इहां सुरसोरी ॥ नहीं ॥ ३ ॥ तब कुँवर नरमांइ बोले । देवीकी देवताजसा खटपट खोलेजी । थें छो देव अवतारी ॥ नहीं ॥ ४॥ महादुर्गन्धी हम काया । यह उदा
रिक तन पाया जी । मल मूत्र अशुचीकी क्यारी ॥ नहीं ॥५॥ वली क्षणिक भोगेछे