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॥ दी ॥ ७ ॥ परीक्ष कहो छे दोनूं सारीखा । के कांह जुदाइ ॥ दीर्घ विज्ञाने जोया सहजन | इणपर दरसाइ ॥ दी ॥ ८ ॥ ए दोनूं सम सीप तनुज छे । फरक नहीं कांह ॥ सवा कोडनी कीमत दीसे । दीजे जै इच्छाह ॥ दी ॥ ९ ॥ मदनजी बैठा मून धरीने । जरा न बोल्याई ॥ विन बोलायां उत्तम नरतो । दाखे न चतुराई ॥ दी ॥ १० ॥ इम जोइ राजेश्वर चिंते । ए दीसे सुगुणाइ ॥ इनकी मती सहू थी है वेगली । पूछां इण
॥ दी ॥ ११ ॥ सहू सेठने पूंछे भूधव । ये कोइ नवाइ ॥ किहां थी आया किस्यो करे छे । बोले किम नाहीं । दी ॥ १२ ॥ बृद्ध जवैरी कहे नरमाइ । प्रदेशी आयाइ ॥ जवैरातरो धंदो इणरो । हिवणा जम्याइ || दी ॥ १६ ॥ बुद्धवंत धनवंत इण सम । पुरमे न देखाइ ॥ कम सवाली छे शरमालू । तिणधी न बोल्याइ ॥ दी ॥ १४ ॥ धराधिप तब दोनों मोती । मदनने दीधाइ ॥ करी परीक्षा कीमत दाखो । जे तुमें जणाइ ॥ दी ॥ १५ ॥ मदन कहे सहू वघ पुरुष हैं । साचीज फरमाइ || मैं बालक अधिको सी जाणू | भेद न इण मांही ॥ दी || १६ | अने वृद्धने आगे बोलतां । अशातना थाइ ॥ सहू फरमावे तेहीज कीजे । ये मुज इच्छाइ ॥ दी ॥ १७ ॥ इम सुणी राय शंकित हुयो । भेदज दिखाइ ॥ अतिआग्रह कर पूंछे नरवर । कहो जे जणाइ ॥ दी ॥ १८ ॥ जुदा कपाले जुदि है बुद्धी । न मोटा छोटाह ॥ सह जवैरी कहे कहोजी । खुशी हम सगलाई ॥