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म. श्रे.
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१ मोती
* व्यवसाय धर रंग ॥ १ ॥ मकरकेतू महीपाल ने । नमी नजराणो कीध ॥ सत्कारी
खण्ड २ नृपतेहने । योग्यस्थान तस दीध ॥ २ ॥ माल बतायो भूपने । मुक्ता फल बहु तेज ॥ में विविध वरण अवलोकी ने । बृध्यो नृपनो हेज ॥ ३ ॥ दो दाणा नृप छांटिया । पूछे तेही ६ नो मोल ॥ सवाकोड तिण उच्चर्या । अटल एकही बोल ॥ ४ ॥ आश्चर्य पाइ राजवी । में ग्राम जवैरी बुलाय । देशां मोल चौकस करी । जे सहू जन ठेहराय ॥ ढाल ७ मी ॥ तावडा धीमो सो पडजे ॥ यह ॥ दीपती मदननी पुन्याइ जी ॥ दी०॥ मुक्ताफळकी साची कीमत । करी सभामांही ॥ ७ ॥ सामंत साथे शाह बुलाया। जवेरी कह वाइ ॥ ३० नृप भेटने सज्ज थया सह । मनमें हर्षा ॥ दी॥ १॥ मदन अने पुरना सहू जोहरी । हिल मिल चाल्याइ ॥ आया सभामें नम्या नृपने । नम्र अति थाइ ॥ दी ॥२॥ सत्कारी सहू ने वेसाया । तिहां योग्य ठाइ ॥ मोती ताशक धरी तस सन्मुख । ते दोइ मिलाइ ॥ दी॥ ३ ॥ इणमैंथी उत्तम जोढी एक । कहाडी दो मुज तांइ ॥ साचो मोल विचारी || कीजो । सह बुद्धि मिलाइ ॥ दी ॥ ४ ॥ मौटा २ जौहरी बैठा । करवा परीक्षा तांइ
या बैठा जोवे मदनजी । सक्ष्म दृष्टि ठाइ ॥ दी॥५॥ तेहीज दोनों मोती छांट । दीना भूप तांइ ॥ उत्तम थी उत्तम ए स्वामी । हम निजो आइ ।। दी ॥ ६ ॥ जे नृप पहला छांट्या हूंता । तेहीज दिठाइ ।। खुशी हुइ शावासी दीनी । कीमत कहो भाइ