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करी श्रेकार ॥ सु ॥ १३ ॥ महिमा फेली शेहर में । कोइ आया जवैरी कुँवार ॥ छे बहुला में धननो घणी ॥ वली निघा बाज सिरदार ॥ सु॥ १४ ॥ बहोत्तर कला में सीखिया जी |
जबैरातनी पैछाण ॥ तिण जोगे पुन्य. प्रवलेजी जमी चौखी दुकान ।। सु ॥ १५॥ में एकही मुद्रा करोडनी जी । धन कमी नहीं कोय ॥ द्रव्य तिहां सर्व संपजे जी । पोलो | हाथ जग मोहय ॥ सु ॥ १६॥ दुकान थी आइ निज घरे जी । दूजी मजलके माय ॥ सेठ तणो वेश परहरी । लेवे मूर्ख स्वांग षणाय ॥ सु ॥ १७॥ पंचम महाले कुँवरी आगे । अचाणक पडे आय ॥ गेलायां करे घणी । पोते हँसने तास हँसाय ॥ सु॥ १८ ॥ भोजन मांगे पेट हणी ने । ते धरे सन्मुख लाय ॥ शाक पेहली आरोग ले । पाछे । रोटी जावे खाय ।। सु ॥ १९ ॥ घडी दोघडी तिहां रही ॥ इम ख्याल करे बहु पेर ॥ दौडीने नीचा उतरी ते । अछा वस्त्रले पेहर ॥ सु॥२०॥ उत्तम भोजन खाय ने आइ चलावे दुकान ॥ उत्तम ज्ञानकी पुस्तकां जी । देवे कुँवरीने आन ॥ सु॥ २१॥ कहे तुमतो तुमारे घरे नित्य । पढता ऐसी किताब ॥ तेहवी मिलती लाइ दी । हूं तो नहीं
समज्यूं साव ॥ सु ॥ २२ ॥ यों बात भोल पे डालने जी । कुँवरी ने कामें लगाय ॥ इम में सुखे काल अतिक्रमें । ढाल छट्टी अमोलक गाय ॥ सु ॥ २३ ॥ 8 ॥ दोहा ॥
तिण अवसर कोइ देशथी । जोहरी माल बहु संग ॥ आया ते पयठाणपुर ।
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